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Monday, May 12, 2025

The Melting Glaciers: A Looming Crisis

 Melting of Himalayan glaciers has doubled in recent years

Climate change is not a distant threat for South Asia—it is a present and escalating crisis. The region, home to nearly two billion people, is experiencing severe impacts, particularly due to the rapid melting of Himalayan glaciers. These glaciers, often referred to as the "Third Pole" because they contain the largest reserve of freshwater outside the polar regions, are vital for the water security of countries like India, Pakistan, Nepal, Bhutan, and Bangladesh.(Wikipedia)


The Melting Glaciers: A Looming Crisis

Recent studies have shown that Himalayan glaciers are melting at an alarming rate. Since the start of the 21st century, these glaciers have been losing more than a vertical foot and a half of ice each year, which is double the melting rate from 1975 to 2000. In a symbolic gesture highlighting this crisis, Nepal held a funeral for the Yala Glacier on May 12, 2025, marking its near-disappearance due to climate change. (Phys.org, Financial Times)

The implications are profound. These glaciers feed major rivers like the Ganges, Indus, and Brahmaputra, which are essential for agriculture, drinking water, and hydropower. As glaciers retreat, the risk of glacial lake outburst floods (GLOFs) increases, posing threats to millions. A study indicates that 15 million people worldwide are at risk from such floods, with over half residing in India, Pakistan, Peru, and China. (New York Post, WIRED, AP News)


Projected Impacts in the Next Two Decades

If current trends continue, the next 10–20 years could see:

  • Water Scarcity: Glacier-fed rivers may experience reduced flow, especially during dry seasons, impacting agriculture and drinking water supplies.(New York Post)

  • Increased Flooding: Unpredictable monsoon patterns and GLOFs could lead to more frequent and severe floods.(WIRED)

  • Agricultural Disruption: Changes in water availability and extreme weather events could threaten food security.

  • Health Risks: Rising temperatures and water scarcity could lead to increased incidence of heat-related illnesses and waterborne diseases.


Mitigation and Adaptation Strategies

Addressing this crisis requires a multifaceted approach:

  • Emission Reductions: Implementing policies to reduce greenhouse gas emissions is crucial to slow down global warming.

  • Early Warning Systems: Investing in technology to predict and warn about GLOFs and extreme weather events can save lives.(WIRED)

  • Sustainable Water Management: Developing infrastructure and practices to use water more efficiently will help mitigate scarcity.(time.com)

  • Community Engagement: Educating and involving local communities in adaptation strategies ensures that solutions are practical and effective.


The Need for Collective Action

The scale of the challenge necessitates mass mobilization. Governments, civil society, and individuals must collaborate to implement and support climate-resilient policies and practices. International cooperation is also vital, as climate change knows no borders.

In conclusion, the melting of Himalayan glaciers is a clarion call for immediate and sustained action. The choices made today will determine the resilience of South Asia in the face of climate change.(Phys.org)




जलवायु परिवर्तन का संकट: दक्षिण एशिया के लिए हिमालयी ग्लेशियरों की चेतावनी


हिमालयी ग्लेशियरों का पिघलना: एक आसन्न संकट

जलवायु परिवर्तन दक्षिण एशिया के लिए कोई दूर की चेतावनी नहीं है—यह एक वर्तमान और तेजी से बढ़ता हुआ संकट है।
लगभग दो अरब लोगों की आबादी वाला यह क्षेत्र, विशेषकर हिमालयी ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने से प्रभावित हो रहा है।
इन ग्लेशियरों को "तीसरा ध्रुव" भी कहा जाता है क्योंकि इनमें ध्रुवीय क्षेत्रों के बाद सबसे अधिक ताजे पानी का भंडार है।
भारत, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान और बांग्लादेश जैसे देशों की जल सुरक्षा इन्हीं पर निर्भर है।

हाल के अध्ययनों से पता चला है कि हिमालयी ग्लेशियर खतरनाक गति से पिघल रहे हैं।
21वीं सदी की शुरुआत से अब तक ये ग्लेशियर हर साल औसतन डेढ़ फीट ऊँचाई तक पिघल चुके हैं — यह दर 1975 से 2000 तक की तुलना में दोगुनी है।
इस संकट पर प्रकाश डालने के लिए नेपाल ने 12 मई 2025 को याला ग्लेशियर के लिए एक प्रतीकात्मक "अंत्येष्टि" भी आयोजित की, क्योंकि यह लगभग गायब हो चुका है।

यह केवल बर्फ के पिघलने की बात नहीं है — इसके दूरगामी प्रभाव हैं:
गंगा, सिंधु और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियाँ इन्हीं ग्लेशियरों से निकलती हैं। ये नदियाँ खेती, पीने के पानी और जलविद्युत के लिए आवश्यक हैं।
जैसे-जैसे ग्लेशियर पीछे हटते हैं, ग्लेशियल झील फटने (Glacial Lake Outburst Floods - GLOFs) की घटनाएँ बढ़ती हैं, जो लाखों लोगों के लिए खतरा बनती हैं।
एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया भर में 1.5 करोड़ लोग GLOFs के खतरे में हैं, जिनमें से आधे से अधिक भारत, पाकिस्तान, पेरू और चीन में रहते हैं।


अगले 10–20 वर्षों में संभावित प्रभाव

यदि वर्तमान रुझान जारी रहे, तो अगले दो दशकों में दक्षिण एशिया को निम्नलिखित संकटों का सामना करना पड़ सकता है:

  • जल संकट:
    ग्लेशियरों से मिलने वाला पानी धीरे-धीरे कम हो जाएगा, जिससे सूखे मौसमों में सिंचाई और पीने के पानी की समस्या होगी।

  • बाढ़ का खतरा:
    अनियमित मानसून और GLOFs के कारण अचानक बाढ़ें आम हो सकती हैं।

  • कृषि में अस्थिरता:
    पानी की उपलब्धता में बदलाव और चरम मौसम की घटनाएं खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा बनेंगी।

  • स्वास्थ्य संबंधी खतरे:
    बढ़ते तापमान और जल संकट से गर्मी से संबंधित बीमारियाँ और जलजनित रोग बढ़ सकते हैं।


समाधान और अनुकूलन की रणनीतियाँ

इस संकट का मुकाबला करने के लिए कई स्तरों पर प्रयासों की आवश्यकता है:

  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती:
    वैश्विक तापमान को नियंत्रित करने के लिए उत्सर्जन में तत्काल कमी जरूरी है।

  • पूर्व चेतावनी प्रणाली:
    GLOFs और चरम मौसम की भविष्यवाणी करने वाली तकनीकों में निवेश कर जानमाल की रक्षा की जा सकती है।

  • जल प्रबंधन का आधुनिकीकरण:
    जल उपयोग की दक्षता बढ़ाने के लिए बुनियादी ढाँचे और व्यवहार में सुधार आवश्यक है।

  • जन सहभागिता:
    स्थानीय समुदायों को शिक्षित करना और उन्हें समाधानों का हिस्सा बनाना स्थायी परिणाम देगा।


एकजुट जन आंदोलन की आवश्यकता

इस संकट का सामना करने के लिए केवल सरकारी नीतियाँ काफी नहीं होंगी।
हमें समाज के हर स्तर पर जन आंदोलन की आवश्यकता है — नीति-निर्माताओं, नागरिक संगठनों, स्कूलों, और व्यक्तिगत स्तर पर।
जलवायु परिवर्तन सीमाओं को नहीं मानता, इसलिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग भी अत्यंत आवश्यक है।


निष्कर्ष

हिमालयी ग्लेशियरों का पिघलना एक गंभीर चेतावनी है।
यह केवल पर्यावरण की बात नहीं है — यह जल, खाद्य, ऊर्जा और मानव जीवन की सुरक्षा की बात है।
आज लिए गए निर्णय यह तय करेंगे कि दक्षिण एशिया जलवायु संकट का सामना कैसे करेगा।
अब भी समय है — अगर हम संगठित, जागरूक और सक्रिय हो जाएं तो सबसे बुरे परिणामों से बचा जा सकता है।


Sunday, January 09, 2022

किसान आन्दोलन: राजनीतिक मास्टर स्ट्रोक

चलिरहेको किसान आन्दोलन को एउटा राजनीतिक पक्ष छ जुन कि बहुत सराहनीय छ। त्यो राजनीतिक पक्ष प्रमुख पक्ष भने होइन। प्रमुख कुरा त यो हो कि एउटा कृषि प्रधान देश मा यदि किसान को अत्यंत आधारभुत समस्या को समाधान मा देश को सरकार लागिपरेको छैन भने त्यो सरकार ले दिन रात आखिर गर्छ के? यो त पायलट कॉकपिट मा नभएको अवस्था भएन? पायलट कॉकपिट मा छैन भने आखिर छ त छ कहाँ? थाहा दे सरकार। 

किसान आन्दोलन को सटीक राजनीतिक पक्ष यो हो कि आम जनता ले न कहिले बहुदल, न कहिले गणतंत्र अथवा संघीयता का लागि संघर्ष गरे, बलिदानी दिए। त्यो प्रत्येक पटक आशा एउटै थियो, कि आफ्नो परिवार को आर्थिक स्थिति मा सुधार आउँछ भन्ने। तर त्यो आएको देखिँदैन। व्यापक निराशा छ। किसान आन्दोलन ले सीधा भाषामा त्यस आर्थिक प्रगति को आकांशा लाई समेटेको छ। यस्तो भएको पहिलो पटक हो। 

किसान आन्दोलन एक जिल्ला सिरहा मा शुरू भएको हो। तर केही दिन भित्र मधेस को प्रत्येक जिल्ला मा पुग्यो। पुर्व पश्चिम लोकमार्ग बाट गाउँ गाउँ पुग्यो। तर यो मधेस आन्दोलन ५ होइन। किसान त देश भरि छन। जसरी मधेस आन्दोलन ले ल्याएको संघीयता देश भरि फैलियो त्यसरी नै यो किसान आंदोलन अझ बढ़ी सशक्त रूप ले देश भरि फैलिनेछ। 

सीके राउत ले मधेस को विश्लेषण गरे र निष्कर्ष निकाले मधेस लाई उपनिवेश बनाएर राखिएको छ। सीके राउत ले सारा देश को विश्लेषण गरेको भए त्यही निष्कर्ष निस्कनथ्यो। भ्रष्ट नेता, कर्मचारी, व्यापारी, ठेकेदार, प्रहरी, माफिया ले सारा देश लाई उपनिवेश बनाएर राखेको अवस्था छ। कृषि प्रधान देश हो तर कृषि मंत्रीमंडल को एजेंडा मा पुग्दै पुग्दैन। जाबो त्यो एजेंडा मा पुर्याउन आन्दोलन गर्नुपर्ने। कस्तो बतासे सरकार यो! 

यस किसान आन्दोलन ले लोकतंत्र को मुद्दा लाई, गणतंत्र को मुद्दा लाई, संघीयता को मुद्दा लाई, भ्रष्टाचार र सुशासन को मुद्दा लाई, त्यस्तो प्रत्येक राजनीतिक मुद्दा लाई समेटेको छ, समेटेर मुर्त रूप दिएको छ। त्यस आधारमा यो किसान आन्दोलन एउटा मास्टर स्ट्रोक हो। 







Friday, January 22, 2016

नेपालको भविष्य




Thursday, September 03, 2015

कोशी, गण्डकी, कर्णाली, चुरिया र मधेसमा सिँचाई

जति पानी परे पनि पहिरो नजाने, नेपाल मा पनि, बिहार मा पनि बाढ़ी न आउने। तरिका के हो? बृक्षारोपण, बाँध निर्माण र जल बिद्युत उत्पादन। ब्याएको गाई दूध दुहेन भने पनि लात हान्छ। नदी ब्याएको गाई हो। लात हानेको। जल बिद्युत उत्पादन गर्दा कोयला बाट बिजुली उतपादन गरे जस्तो होइन। पानी सकिँदैन। एउटै नदी मा पटक पटक बाँध बाँधे हुन्छ। बृक्षारोपण त व्यापक हुनुपर्यो। ५०% नेपालको भूभाग वन हुनुपर्यो। मान्छे ठुला ठुला शहर मा सरेको राम्रो, तराई सरेको राम्रो।

जुन जुन तीन ठाउँमा कोशी, गण्डकी, कर्णाली ले चुरिया काट्छ ती ती ठाउँ मा बाँध बाँधने। सस्तो पनि पर्छ। चुरिया आफैमा बाँध हो। त्यहाँ वरिपरि व्यापक बृक्षारोपण गर्ने। अनि झापा देखि कंचनपुर सम्म प्रत्येक खेत सम्म वर्ष को १२ महिना सिंचाई पुर्याउने। तराई को GDP तीन गुणा बढ्छ।

त्यही नहर नेटवर्क केपी बाजे को युपी बिहार पनि पुग्छ।















Thursday, July 23, 2015

सौर्य पम्प



सौर्य पम्पले बढायो तरकारी खेती
एक हजार २६० वाट क्षमताको सौर्य पम्पबाट सो समूहमा आबद्ध ३२ परिवारको १२० रोपनी जमिनमा सिँचाइ सुविधा उपलब्ध भएपछि अब उनीहरु वर्षैभरि विभिन्न तरकारी लगाउन सक्ने भएका छन्। ....... गाउँ तलको जुगेपानीखोला किनारमा इन्टेक बनाएर सौर्य पम्पबाट झन्डै ७० मिटरमाथि पानी तानेर सामूहिक रुपमा सिँचाइको प्रबन्ध मिलाइएको छ। सुरुमा त उनीहरुलाई यति तलबाट पानी तानेर माथि पाखोबारीमा सिँचाइ गर्न सकिन्छ भन्ने कुरामा नै विश्वास थिएन। प्राविधिकको सल्लाह र कार्यक्रमले पनि केही सहयोग गरेपछि नपुग रकम सदस्यबाट उठाएर उनीहरुले सो पम्प जडान गरेका हुन्। पहिले सुक्खा डाँडामा अहिले गोलभेँडा, बन्दा, काउली, बोडी, सिमीलगायतका तरकारी लटरम्म फलेको देख्दा गाउँलेहरु आश्चर्यचकित बनेका छन्। ..... त्यतिकै मिल्किएको जमिनमा सिँचाइ सुविधा पुगेपछि अहिले किसानले विभिन्न जातका तरकारी खेती गरी राम्रो आम्दानी गर्न थालेका छन्। राजमार्ग नजिक भएकाले बजारको कुनै समस्या नभएको मतिसरा मसाङ्गी बताउँछन्। “सामूहिक रुपमा उत्पादन गरिएको तरकारी किन्न गाउँमै व्यापारी आउने हुँदा बजारसम्म लैजानुपर्ने समस्या पनि छैन” उनले भने। ..... पहिले एक याममा लगाएको तरकारी खेतीबाट कतिपयले एक लाख रुपैयाँ सम्म आम्दानी गर्ने गरेकामा अब वर्षैभरि मौसमी र बेमौसमी तरकारी लगाएर त्यसको तेब्बर आम्दानी गर्न सकिनेमा उनीहरु ढुक्क देखिन्छन्।

“सिँचाइ सुविधा पुगेपछि गाउँमै तरकारी खेती गरेरै वर्षमा दुई÷तीन लाख रुपैयाँ आम्दानी गर्न सकिने भएपछि किन विदेश जानुपर्‍याे,” स्थानीय सुजनकुमार राना भन्छन्– “किसानका लागि सिँचाइभन्दा ठूलो केही हुँदैन।”

सुक्खा जमिनमा सिँचाइ पुर्‍याउन सकिएमा उत्पादन वृद्धि भई खाद्यान्नमा आत्मनिर्भर हुनुका साथै रोजगारी सिर्जना भई जीवनस्तरमा सुधार आउनेछ। ....... “अन्नबालीबाट भन्दा तरकारीजस्तो नगदेबालीबाट बढी आम्दानी हुने भएकाले व्यावसायिक तरकारी खेती गर्ने हाम्रो चाहनालाई सौर्य पम्पबाट सिँचाइ सुविधा उपलब्ध भएपछि पूरा भएको छ”, स्थानीय कृषक देव गुरुङ बताउँछन्। ..... यसैगरी कपिलवस्तु धरमपानीयाका इन्द्रबहादुर कुर्मीले पनि ४१० वाटबराबरको सौर्य पम्पबाट जडान गरी आफ्नो पाँच बिगाहा जमिनमा सिँचाइ सुरु गरेका छन्। उनले गत मङ्सिरमा स्थापना गरेको पम्पबाट २६ मिटर गहिरो बोरिङबाट पानी तानेर सिधै खेतबारीमा सिञ्चित गरेका छन्। उनी भन्छन् “पहिले पानीको अभावमा बाँझै रहेको खेतबारीमा अहिले बाह्रै महिना सिँचाइ सुविधा पुगेपछि विभिन्न अन्नबाली तथा तरकारी खेती गर्न सकेको छु।” ...... तराई भेगका प्रायः ठाउँमा विद्युत विस्तार भए पनि केन्द्रीय लाइनको विद्युत् भरपर्दो नभएकाले डिजेल पम्पको प्रयोग हुने गर्दा कृषि उत्पादनको लागत महँगो पर्ने भएकाले विनरक इन्टरनेसनलले सौर्य पम्प प्रणाली जडान गरी किसानको जीवनस्तरमा सुधार ल्याउने लक्ष्यका साथ सौर्य पम्प परियोजना सुरु गरेको संस्थाका निर्देशक विनोद श्रेष्ठको भनाइ छ।
एकीकृत योजना बनाउँदै मधेसी मोर्चा
प्रत्यक्ष निर्वाचित कार्यकारीबारे मतभेद
विगतमा प्रत्यक्ष निर्वाचित प्रधानमन्त्रीको पक्षमा आफूलाई उभ्याउँदै आएको नेकपा एमालेले उक्त मुद्दालाई मस्यौदामा समेट्न पहल थाल्ने बताएको छ। ..... तर एमालेसहित प्रमुख चार राजनीतिक शक्तिले संसदमा प्रधानमन्त्री चुन्ने सहमति जनाएको १६ बुँदे सम्झौताको आधारमा संविधान निर्माण प्रक्रिया अघि बढिसकेको बताउँदै कांग्रेस, पछि नहट्ने मनस्थितिमा देखिन्छ। ..... एमालेका प्रचार विभाग प्रमुख योगेश भट्टराईले भने, “प्रत्यक्ष प्रधानमन्त्रीको पक्षमा करिब ८० प्रतिशत जनमत आएको हुनाले अब यो विषयमा संविधानसभामा साथसाथै मस्यौदा समितिमा यसमा पुनर्विचार गरिनुपर्छ।” .... प्रचण्डले प्रधानमन्त्री सुशील कोइरालालाई बुधबार भेटेर शासकीय स्वरुपसहित सीमांकन र नागरिकताको विषयमा सुझाव संकलनमा देखिएको मतकै आधारमा संशोधन गर्ने प्रस्ताव गरेको ....

यसरी १६ बुँदे सम्झौताका सहयात्री दुई दलले पुनर्विचारको मनस्थिति बनाएपनि कांग्रेस भने पछाडि फर्कन नहुने पक्षमा देखिन्छ।

...... कांग्रेस प्रवक्ता दिलेन्द्रप्रसाद बडु भन्छन्, “संसद र प्रत्यक्ष निर्वाचित अर्को संस्था रहन्छन् भने त्यसले मुलुकमा द्वन्द्व निम्त्याउन सक्ने संभावना हुनाले नै लामो बहसपछि हामी शासकीय स्वरुपबारे एक ठाउँमा पुगेका हौँ।” तथापि कांग्रेसभित्रै एउटा तप्का भने प्रत्यक्ष निर्वाचित प्रधानमन्त्रीकै पक्षमा देखिन्छ।
ससुरापथमा हिमानी (तस्बिरमा हिमानीका ९ पोज)

Tuesday, September 30, 2014

Federalism Is Cheaper Than The Unitary System

English: A map of Canada exhibiting its ten pr...
English: A map of Canada exhibiting its ten provinces and three territories, and their capitals. (Lambert conformal conic projection from The Atlas of Canada) (Photo credit: Wikipedia)
Federalism is cheaper than the unitary system in place, because federalism is a far more efficient way of delivering government services to the people. This whole idea that expenses will go up 10 times because there will be 10 new states is bizarre. It is even more bizarre because that argument is being pushed around by some otherwise very smart people.

Law enforcement is handled by states in a federal system. That means the central government budget for law enforcement will go down by at least 90%. The civil war has long been over but the bloated army has not been downsized. There is a 90% savings when you bring down the number of soldiers to 10,000 from its current 90,000.

Several ministries can be outright eliminated. A bunch can be brought together. All need to be downsized. I see a 50% cost saving if all this is done right. Why is there a separate Ministry Of Irrigation? Why is that not part of the Ministry of Agriculture?

  • Agriculture
  • Tourism
  • Defense
  • Education
  • Health
  • Energy 
  • Finance
  • Foreign Affairs
  • Home
  • Industry 
  • Trasportation
  • Science And Technology
  • Federal Affairs 
  • Information And Communications
These 14 ministries would be enough. All would be restructured. All would be downsized. All would be computerized. 

The state governments would generate their own revenues. The local governments would have their own budgets. What can be done locally should not be passed on to the state and central governments. What can be done at the state level should not passed to the central government. That is what federalism means. In this arrangement the efficiency goes way up. And that is why the costs come down dramatically.