Sunday, September 29, 2019

Upendra Yadav In New York

ANTA (Association of Nepali Teraian in America) और MAA (Madhesi Association in America) का एकीकरण
Upendra Yadav In New York (Photo Album)





Janmat Party: CK Raut
बाबुराम भट्टराई को शिशा गिलास
Rajendra Mahto In New York



ANTA (Association of Nepali Teraian in America) और MAA (Madhesi Association in America) का एकीकरण



ANTA (Association of Nepali Teraian in America) और MAA (Madhesi Association in America) का एकीकरण आवश्यक है कि नहीं? होना चाहिए कि नहीं? होना चाहिए तो क्यों? संभव है कि नहीं? किया जाए तो कैसे? कल के बाद ये सब प्रश्न सामने आए है।

कल उपेन्द्र यादव कहने लगे आप लोग हम लोगो को कहते हैं एकीकरण करिए लेकिन खुद यहाँ दो बन के बैठे हुवे हैं। तो उनका कहना भी ठीक ही है। कल काफी अरसे के बाद मेरी रतन झा से मुलाकात हुवी। तो मैंने ये प्रश्न उनको डाला। उनका जवाव सकारात्मक रहा।

मैं न्यु यॉर्क में सन २००५ में आया। रतन झा के नेतृत्व में उधर कहीं ANTA का स्थापना हुवा। तो उन्होंने मुझे ईमेल किया। आप वहाँ चैप्टर गठन करिए अपने नेतृत्व में। मैं प्रेसिडेंट हुँ, आप वाइस प्रेसिडेंट बनिए। उन्होंने मुझे इसलिए कॉन्टैक्ट किया क्यों कि उस समय मेरे अलावा और किसी मधेसी को पहचानते ही नहीं थे न्यु यॉर्क में। वैसे भी मधेसी उस समय न्यु यॉर्क में थे ही बहुत कम। अभी तो संख्या में काफी बढ़ोतरी हो गयी है।

उस समय मैं सारे अमेरिका में अकेला नेपाली था जो नेपालके लोकतान्त्रिक आन्दोलन के लिए फुल टाइम काम कर रहा था। Basically days, nights, weekends. मैंने जवाब में कहा देखिए, संगठन के प्रस्तावना में लिखा है गैर राजनीतिक संगठन और मैं अभी हार्ड कोर पोलिटिकल काम कर रहा हुँ। मैं पद तो नहीं लुंगा लेकिन ANTA बहुत अच्छा आईडिया है। इसका न्यु यॉर्क में चैप्टर होना चाहिए। और उतना मैं कर दुँगा। पहले तो मैंने विनोद जी को एप्रोच किया। उन्होंने कहा ना। तब मैंने डॉ बिनय शाह के नेतृत्व में समिति गठन किया। पहला मीटिंग हुवा रिजवुड में सतेंद्रजी के अपार्टमेंट में। मैंने तभी के नेपाली मन्दिर में एक मधेसी मिटिंग किया। पाँच लोग आए। सत्य यादव कहने लगे "न्यु यॉर्क में मधेसी सब के ग्यादरिंग (gathering) कहियो भेले नै छलैय।" कुछ समय बाद बिनोदजी के कजन पबन मुझे और बिनयजी को विनोद जी के यहाँ ले गए अपने गाडी में बिठा के। अब विनोद जी इंटरेस्ट दिखाने लगे। मैंने कहा देखिए, अब बिनय को हटाया जाए वो तो अपमान होगा। पहले तो आप ही को कहा था। तो फिर? तो कहते हैं ईमेल से कहा था, ऐसे आमने सामने बैठ के थोड़े कहा था! तो मैंने कहा, आप केंद्रीय समिति में आइए। ANTA का न्यु यॉर्क में पहला बड़ा कार्यक्रम हुवा सन २००६ के ANA सम्मलेन के साथ साथ। उसके बाद वो केंद्रीय समिति में आए भी। संस्थापक अध्यक्ष रतनजी। और एक किसिमका संस्थापक मैं विनोदजी को भी मानता हुँ। कुछ साल बाद वो जब अध्यक्ष बने तो ANTA का बहुत ज्यादा संगठन विस्तार हुवा।

सुनील मेरा भान्जा है। उसको मैंने बचपन में देखा है। महोत्तरी जिला बनचौरि गाओं में। उसका ममहरा। मेरे दादाजी के सहोदर भाई (जो कि पहलवान थे) की एकलौती बेटी सुनील जी की नानी हुइ। बनचौरि गाओं में बचपन में देखने के बाद मैंने लम्बे गैप के बाद उनको देखा जैक्सन हाइट्स में जब उपेन्द्र यादव का कार्यक्रम हुवा जैक्सन हाइट्स में याक में। मैंने एक ही बार में पहचान लिया। सुनील जी की नानी की माँ, यानि की मेरी दादी मेरे को अक्सर कहा करती थी: "तोहर हम गैरतर खिचने छियौ!"

मेरे काठमाण्डु के हाई स्कुल के अंतिम साल के रूम मेट का भाई अमन मल्ल। कुछ महिने पहले मैंने देखा सुनील और अमन साथ में बैठे हैं। फेसबुक पर फोटो देखा। पता चला दोनों बंगलादेश में साथ पढ़े।

तो सुनील ने तो मिशाल कायम कर दिया। एक मधेसी आज सारे अमेरिका के NRN संगठन का निर्वाचित अध्यक्ष है। जब कि इस देश के नेपाली जनसंख्या में मधेसी शायद १% भी है कि नहीं। सुनील ने अमेरिका के NRN संगठन का निर्वाचित अध्यक्ष बन के नेपाल में भी अब मधेसी प्रधान मंत्री कोइ बने वो मार्ग प्रशस्त किया है।

मैं कुछ साल पहले कुछ साल के लिए कैलिफ़ोर्निया गया। वापस लौटा तो ANTA संगठन फुट चुकी थी और MAA संगठन पैदा हो गयी थी।

मैंने पिछले साल पहली बार किसी नेपाली संगठन का सदस्यता लिया। ताकि सुनील को वोट दे सकुं। नहीं तो मैंने ANTA का कभी सदस्यता नहीं लिया और MAA का भी औपचारिक रूप से सदस्य नहीं हुँ। मेरा जो डिजिटल एक्टिविज्म था उसके लिए वो तटस्थता जरुरी था। हॉन्ग कॉन्ग में देखिए। काठमाण्डु में जो २००६ में १९ दिन हुवा वो हॉन्ग कॉन्ग में चार महिना से हो रहा है। लेकिन वहाँ कोइ डिजिटल एक्टिविस्ट नहीं है जो कि कदम कदम पर forceful calls for action जारी करता रहे। मुवमेंट अपना पाँच लक्ष्य पुरा करता नहीं दिखती।

कभी कभी संगठन फुटना भी संगठन विस्तार के लिए अच्छा हो जाता है। जब चीन में माओ ने पार्टी शुरू किया तो पहली बार न चाहते हुवे उसने अपने पार्टी के केन्द्रीय समिति से ५०% लोगों को निष्काषित किया। लेकिन उसके बाद उसको आश्चर्य हुवा कि बजाय पार्टी का साइज़ आधा होने के दोगुणा हो गया। तो उसके बाद वो कुछ कुछ साल बाद बराबर पार्टी केन्द्रीय समिति से ५०% लोगों को निष्काषित करने लगा। जब भी संगठन को बड़ा बनाना हो।

सुनील नेविसंघ पृष्ठभुमि से हैं। उनके वर्तमान निर्वाचित पद के लिए उस पृष्ठभुमि ने बड़ा काम किया है। अमेरिका के नेपाली अधिकांश काँग्रेस पृष्ठभुमि से हैं। कमसेकम थे १०-१५ साल पहले। लेकिन नेविसंघ पृष्ठभुमि से तो बहुत हैं। सुनील की अपनी प्रतिभा है।

जभी ANTA में कोइ टेंशन न था तब भी मैं कहता था, इतने सारे पहाड़ी संगठन हैं, मधेसी संगठन भी दो चार हो जाए तो क्या फर्क पड़ता है?

अंतरिम संविधान के बाद पहली संविधान सभा से जो उम्मीद थी ---- सब कुछ मिल गया था सिर्फ एक मधेस दो प्रदेश मिलना बाँकी था। वो हो जाता तो, सच्चा संघीयता आ जाता तो फिर १०-२० मधेसी संगठन हो अमेरिका में उससे बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। लेकिन मधेस आंदोलन जनकपुर जयनगर रेलवे है तो वो अभी जयनगर नहीं पहुँच पायी है। परवाहा या खजुरी तक ही पहुँची है।

इसिलिए मेरा मानना है कि ANTA (Association of Nepali Teraian in America) और MAA (Madhesi Association in America) का एकीकरण होना बहुत जरुरी है। क्यों कि ट्रेन को जयनगर पहुँचाना अभी बाँकी है।

संगठन एक होने का तरिका है लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को कस के संस्थागत किजिए।

रतन झा ANTA के संस्थापक अध्यक्ष, विनोद साह ANTA के प्रमुख संगठन विस्तारक (वल्लभ भाइ पटेल), और MAA के संस्थापक अध्यक्ष सुनील साह। ये तीनों Board Of Trustees के सदस्य रहेंगे। ये मेरा सुझाव है। कल अगर सुनील को NRN का ग्लोबल अध्यक्ष बनना है तो उसमें रतनजी बहुत अच्छा रोल अदा करने के स्थिति में हैं। NRN मुवमेंट के संस्थापक अध्यक्ष उपेन्द्र महतो (जो कि मेरे बहुत दुर के रिश्ते में भी पड़ते हैं, मेरे पड़ते हैं तो स्वाभाविक सुनील के भी पड़ते हैं) के अमेरिका में रतनजी  शुरू से ही खास आदमी रहे हैं।

अमेरिका में सिर्फ ANTA (Association of Nepali Teraian in America) और MAA (Madhesi Association in America) नहीं हैं। छोटेमोटे कर के १० होंगे संगठन। सभी का एकीकरण किया जाए। तीन लोगों का Board Of Trustees, नाम शायद AMA हो जाए। Association of Madhesi in America. दोनों के अध्यक्ष महाधिवेशन तक सह अध्यक्ष हो जायें। एकीकरण कोइ ऐसे शहर में किया जाए जहाँ मधेसीयों का संख्या सब से ज्यादा हो। शायद न्यु यॉर्क।

और ऑनलाइन वोटिंग का व्यवस्था हो।

कुछ ऐसा पहलकदमी किया जाए ये मेरा सुझाव है।

कल उपेन्द्र यादव जी का एक कार्यक्रम MAA के साथ रहा और एक ANTA के साथ। मैं दोनों में गया।







Wednesday, September 18, 2019

बाबुराम भट्टराई को शिशा गिलास



संविधान : आधा गिलास भरी, आधा खाली पुरानै शक्तिको नेतृत्वमा रहेको राज्यसत्ताले संविधान संरक्षण र विकास गर्न नसक्ने गम्भीर स्थिति छ, यसैकारण उपलब्धि गुम्ने खतरा बढ्दै छ वास्तवमा संविधान भनेको तत्काल विद्यमान राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक शक्तिसन्तुलनको दस्ताबेज हो । शक्तिसन्तुलनको फेरबदलसँगसँगै संविधानमा पनि परिवर्तन हुँदै जान्छ र संविधान कहिल्यै पनि पूर्ण हुँदैन । संविधान भनेको कुनै ढुंगामा कुँदेको अक्षर पनि होइन । सँगसँगै सत्य कहिल्यै पनि सेतो वा कालो हुँदैन । सत्य खैरो हुन्छ । त्यसर्थ संविधान जारी गरेको चार वर्ष भएको सन्दर्भमा फेरि एकपटक वस्तुनिष्ठ ढंगले यसको मूल्यांकन गर्नु अपरिहार्य छ । ......... धारा २ मा ‘नेपालको सार्वभौमसत्ता र राजकीय सत्ता नेपाली जनतामा निहित रहेको छ’ भनिएको छ । यो अत्यन्त ऐतिहासिक महत्वको विषय हो । विगतका संविधानमा राजाले ‘हामीमा निहित सार्वभौमसत्ता र राजकीय सत्ता प्रयोग गरिबक्सी यो संविधान जारी गरेका छौँ’ भन्थे । ०४७ सालको संविधानमा पनि त्यही भनिएको थियो । त्यस अर्थमा नेपाली जनता पूर्ण रूपले सार्वभौम हुनु अत्यन्त सकारात्मक पक्ष हो । ............ धारा ३ मा राष्ट्रको परिभाषा गरेका छौँ– ‘बहुजातीय, बहुभाषिक, बहुधार्मिक, बहुसांस्कृतिक विशेषतायुक्त भौगोलिक विविधतामा रहेका... सबै नेपाली जनता समष्टिमा राष्ट्र हो ।’ ......... धारा ४ मा नेपालको राज्यको परिभाषा गरिएको छ– ‘नेपाल स्वतन्त्र, अविभाज्य, सार्वभौमसत्तासम्पन्न, धर्मनिरपेक्ष, समावेशी, लोकतन्त्रात्मक, समाजवादउन्मुख, संघीय लोकतान्त्रिक गणतन्त्रात्मक राज्य हो ।’ ........

यो संविधानमा धारा १६ देखि ४८ सम्म मौलिक हक र कर्तव्यको सविस्तार उल्लेख गरिएको छ । सम्भवतः यति धेरै मौलिक हकको उल्लेख गरिएको संविधान विश्वमै अन्यत्र पाउन गाह्रो छ ।

....... रोचक कुरा त के छ भने स्वच्छ वातावरणको हक भनेर ‘सबै नागरिकलाई स्वच्छ र स्वस्थ वातावरणमा बाँच्न पाउने हक हुनेछ’ भनिएको छ । यो अत्यन्त उन्नत समाजमा मात्रै प्राप्त हुने हक हो । ........ अनुसूची ५ देखि ८ सम्म संघ, प्रदेश र स्थानीय तहका अधिकार किटानीसाथ उल्लेख गरिएको छ । मलाई लाग्छ, विश्वको कमै संविधानमा यो उल्लेख होला । सँगसँगै संघीय संसद्मा एकतिहाइ महिलाको प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हुने र स्थानीय तहमा ४० प्रतिशत महिला र प्रत्येक वडामा एकजना दलित महिलाको अनिवार्य सहभागिता हुने व्यवस्था पनि गरिएको छ ।......... सातवटा विशिष्ट आयोगहरूः महिला आयोग, दलित आयोग, मुस्लिम आयोग, थारू आयोग, मधेसी आयोग, समावेशी आयोग, आदिवासी जनजाति आयोगको किटान संविधानमै गरिएको छ । ........ राजनीतिक दलमाथि प्रतिबन्ध लगाउन नपाइने, राजनीतिक दल लोकतान्त्रिक हुनुपर्ने, पाँच/पाँच वर्षमा अधिवेशन गर्नुपर्नेजस्ता विषय संविधानमा किटान छ । .....

प्रक्रियागत रूपमा हामीले केही त्रुटिहरू ग-यौँ । ३०८ धारालाई जम्मा चार दिनभित्र हतार–हतारमा पर्याप्त छलफल नगरीकन पारित गर्‍यौँ । संविधानको धारा पारित गर्दा कर्मकाण्डजस्तो मात्रै हामीले ग-यौँ । प्रत्येक धारामा छलफल गरेर, प्रत्येक धारामा मतदान गरेर टुंग्याउनुपर्ने ठाउँमा हतार–हतारमा एकमुष्ठ ढंगले गर्‍यौँ ।

..... भाषागत रूपमा पनि कतिपय दोहोरिएका, कतिपय दोहोरो अर्थ लाग्ने खालका शब्द परेका छन् । जसले गर्दा यो संविधानमा शब्द–शब्दमा मुद्दा परेर अल्झिने र लेखिएका कुरा कार्यान्वयन नहुने गम्भीर खतरा छ । ....... संविधानका मूलभूत मान्यतामै कतिपय गम्भीर अस्पष्टता र विभेदकारी प्रावधान छन् । उदाहरणका निम्ति धर्मनिरपेक्षतालाई संविधानको आधारभूत सिद्धान्त मानिसकेपछि धारा ४ मा स्पष्टीकरण थपेर ‘धर्मनिरपेक्षता भन्नाले सनातनदेखि चलिआएको धर्म संस्कृतिको संरक्षणलगायत धार्मिक सांस्कृतिक स्वतन्त्रता’ भनी थप अस्पष्टता र अन्योल जोडिएको छ । धर्मनिरपेक्षताको त अन्तर्राष्ट्रिय परिभाषा र मान्यता छ । ........ नागरिकतामा स्पष्ट ढंगले नै देखिने गरी विभेद रहन पुगेको छ । संविधानको धारा ११ को ६ मा वैवाहिक अंगीकृत नागरिकताको कुरा गर्ने सन्दर्भमा छोराको दम्पतीले अंगीकृत नागरिकता पाउने कुरा गरिएको छ भने छोरीको दम्पतीबारे कुनै उल्लेख छैन । यसरी छोरी र छोरा अथवा महिला र पुरुषमा नागरिकतामा स्पष्ट विभेद झल्किन्छ । सँगसँगै आमाको नामबाट नागरिकता प्राप्त गर्ने विषयमा पनि अन्योल सिर्जना हुन्छ । सँगसँगै नेपालको जस्तो विशिष्ट अवस्थामा गैरआवासीय नेपाली र ब्रिटिस गोर्खामा काम गर्ने नेपालीलाई कमसे कम तीन पुस्तासम्म पूर्ण नागरिकताको व्यवस्था गर्दा देशलाई लाभ हुन्थ्यो । त्यो विषय पनि छुट्न पुगेको छ । ............ प्रायः सबै मौलिक हकमा ‘कानुन बमोजिम’ भन्ने शब्द उल्लेख गरिएको छ र कानुन बनाउन ढिला गरेर अथवा त्रुटिपूर्ण कमजोर कानुन बनाएर मौलिक हकलाई छल्न सकिने ठाउँ राखिएको छ । ..........

अहिले लोकसेवा आयोगबाट समावेशिताका आधारमा कर्मचारी नियुक्तिको जुन विज्ञापन गरियो, त्यसमा संविधानविपरीत हुने गरी गरियो । त्यसरी नै निर्देशक सिद्धान्त संविधानमा राम्रै ढंगले लेखिए पनि धारा ५५ मा ‘यो कार्यान्वयन भए/नभएको अदालतमा प्रश्न उठाउन नसकिने’ भन्ने उल्लेख छ ।....... संघीयताको ढाँचा निर्धारण गर्न पहिलो संविधानसभाबाट गठित राज्य पुनर्संरचना समिति र अन्तरिम संविधानबमोजिम गठित राज्य पुनर्संरचना आयोगले संघीयताको पाँचवटा पहिचानका आधार र चारवटा सामथ्र्यका आधारलाई स्वीकार गरेको थियो । त्यस आधारमा नेपालमा एक प्रतिशतभन्दा बढी भाषा, जनसंख्या भएका जो समुदाय छन् । ........ उनीहरूलाई स्वायत्त प्रदेश दिने गरी संघीय प्रदेश बनाइनुपथ्र्यो । त्यसो गर्दा नेपालमा १० वटा संघीय प्रदेश हुने र दलितहरूको गैरभौगोलिक प्रदेश हुने अवस्था आउँथ्यो । आयोगले यस्तो सिफारिस गरेको भए पनि कार्यान्वयन गरिएन । साना समुदायका निम्ति स्वायत्त क्षेत्र, विशेष क्षेत्र र संरक्षित क्षेत्र बनाउने जुन कुरा थियो, त्यसको पनि पालना गरिएन । सात प्रदेशको जुन ढाँचा बनाइयो, त्यसको वास्तवमा कुनै पनि आधार छैन ।

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घुमाइफिराईकन पञ्चायतकालको जुन पाँच विकास क्षेत्र थियो, त्यसैको सामान्य परिवर्तित स्वरूप मात्रै देखिन्छ । त्यसैले यो संविधानप्रति सबैभन्दा बढी असन्तुष्टि रहेको विषय नै यही छ ।

........ यसलाई सच्याउन संविधानमा गरिने संशोधनका लागि पनि केही जटिलता छ । .......संविधानको धारा २७४ को उपधारा ४ मा प्रदेशको सिमाना वा प्रदेशको अधिकारको सूची परिवर्तन गर्नुपर्दा सबै प्रदेश सभाले मतदान गरेर स्वीकार गर्नुपर्ने, बहुमतले पारित गर्नुपर्ने प्रावधान छ । जबकि सिमाना परिवर्तन गर्दा एउटा प्रदेशको सिमाना अर्कोले त मान्दैन । त्यो कारणले गर्दा संविधान संशोधन गर्ने बाटोसमेत छेकिन पुगेको छ । यो त्रुटि नै संविधानको स्वीकार्यताको निम्ति सबैभन्दा बाधक रहेको छ । ......... नेपालको विविधतालाई सम्बोधन गर्ने गरी प्रत्यक्ष निर्वाचित राष्ट्रपतीय प्रणाली र पूर्ण समानुपातिक संसद्को व्यवस्था नै नेपालका निम्ति सबैभन्दा उपयुक्त व्यवस्था हो । .............. पहिलो संविधानसभाका वेला पनि ०६९ जेठ २ गतेको सहमतिमा कार्यकारी राष्ट्रपति र प्रधानमन्त्रीसहितको मिश्रित फ्रान्सेली प्रणालीको व्यवस्था गर्ने उल्लेख गरिएको थियो । अहिले त्योभन्दा पनि पछाडि हटेको छ । त्यसले गर्दा शासकीय स्वरूप अत्यन्त कमजोर बनेको छ । .........

अहिलेको अति कमजोर अख्तियार दुरुपयोग अनुसन्धान आयोगको सट्टा अधिकारसम्पन्न जनलोकपालको व्यवस्था हुनुपथ्र्याे । त्यो नभएसम्म देशमा उच्च तहमा भइरहेका भ्रष्टाचार रोक्न र सुशासन कायम राख्न सम्भवै छैन ।

........ न्यायपालिकाको पुनर्संरचना गर्ने विषयमा पनि पुरानै न्यायपालिकालाई यथावत् राखिएको छ । संवैधानिक मुद्दा हेर्नका निम्ति छुट्टै संवैधानिक अदालतको जुन व्यवस्था प्रस्तावित गरिएको थियो, त्यो स्वीकार नगरी संवैधानिक इजलास मात्रै राखियो र पुरानै न्यायालयको ढाँचा कायम गरियो ।........... सेनाको नाम शाही नेपाली सेनाबाट बदलेर नेपाली सेना राखिए पनि त्यसको संरचनात्मक परिवर्तनमा खासै जोड पुगेको छैन । त्यहाँ समावेशिताका कुरा उल्लेख त छन्, तर व्यवहारतः कार्यान्वयन हुन सकेको छैन  ....... संविधानका जुन आधारभूत सिद्धान्त वा मान्यताः गणतन्त्र, संघीयता, धर्म निरपेक्षता, समावेशी लोकतन्त्रको पक्षमा नभएका शक्तिहरू नै अन्ततः सत्तामा हावी हुन पुगेका छन् । संविधानसभा र गणतन्त्रलगायत मान्यताविरोधी शक्ति मूलतः ०५२ सालअघिका कांग्रेस र एमालेकै वर्चस्व सत्तामा रहन पुग्नुको कारणले संविधानका अग्रगामी प्रगतिशील पक्ष व्यवहारतः कार्यान्वयन नहुने र बिस्तारै खोसि“दै जाने गम्भीर खतरा देखिन्छ । .........

जसरी चोर बिरालोलाई दूध कुर्न राख्दा दूधको संरक्षण हुन सक्दैन, त्यसरी नै अहिलेको संविधान पुरानै शक्तिकै नेतृत्वमा रहेको राज्यसत्ताले संरक्षण र विकास गर्न नसक्ने गम्भीर स्थिति छ ।

........ यो संविधानका त्रुटि नहटाउने हठले संविधान एउटा गतिशील दस्ताबेज हो र समयानुकूल परिवर्तन हुनुपर्छ भन्ने मान्यतालाई अस्वीकार गर्छ र देशमा अर्को मुठभेड निम्त्याउँछ । त्यसैले देशको यतिवेलाको आवश्यकता यो संविधानका अपूर्णतालाई पूरा गर्ने गरी छिटो संविधान संशोधन गर्नु नै हो ।.....०५२ सालपछिका राजनीतिक शक्ति, विशेषतः माओवादी जनयुद्ध, मधेस आन्दोलन, जनजाति आन्दोलन, महिला,–दलितका आन्दोलनसँग जोडिएका शक्ति र अहिले जुन नयाँ सचेतन पुस्ता अगाडि आएको छ, तिनीहरूको बीचमा एउटा बृहद् ध्रुवीकरणले मात्रै नेपाललाई अग्रगति दिन सक्छ 



संविधान सभा मा व्हिप नलाग्ने हो। व्हिप लाग्ने संविधान सभा संविधान सभा नै होइन। अंतरिम संविधान मा अधिकार थप्न पाउने घटाउन नपाउने भन्ने किटान का साथ भनिएको थियो। तर अंतरिम संविधान ले दिएको अधिकार संविधान सभा मा व्हिप लगाएर खोस्ने काम भयो। प्रक्रिया गलत। संविधान गलत। मधेसमाथि संविधान लादने काम सबैभन्दा गलत। फ़ासिस्ट दमन गरेर लादिएको संविधान फ़ासिस्ट संविधान हो। अप्रिल २००६ को १९ दिनको क्रान्तिको रापताप लाई पाँच गुणा र पाँच पटक उछिनेको मधेसी क्रान्ति लाई प्रस्तावनामा ठाउँ नदिनु को के अर्थ लाग्छ? उल्लेख छैन।

अहिलेको संविधान मधेसी क्रान्तिको प्रतिक्रांति हो। संघीयता र समावेशिता देशले पाएकै छैन। एक व्यक्ति एक मत लोकतंत्र पनि पाएको छैन। दशौं लाख मधेसी लाई नागरिकता पत्र विहीन बनाउने काम लोकतंत्र मास्ने काम हो। गणतन्त्र चाहिँ आयो भनौं भने एउटा राजा गयो देशमा १० वटा राजा आयो।

न लोकतंत्र, न गणतंत्र, न संघीयता।

माओवादीले खोज्यो गणतन्त्र पायो बेबी किंग को अवस्था आएको भए आधा गिलास पुरा गिलास भन्दै बसथ्यो माओवादी? मधेसीले खोज्यो संघीयता पायो घच्यांग मच्यांग।

पहिलो संविधान सभा तुहाउने काम गर्ने प्रमुख व्यक्ति प्रचंड। सेना प्रमुख सँग किन निहुँ खोज्नु परेको? होइन भने पहिलो संविधान सभाले प्रगतिशील संविधान दिने हो।

दोस्रो संविधान सभा त कदम कदम प्रतिक्रांति।