Wednesday, August 30, 2023

धर्म निरपेक्षता का इतिहास और वर्तमान


जिसे आज के आधुनिक राज्य में धर्म निरपेक्षता कहा जाता है उसका इतिहास समझना बहुत जरूरी है। उसकी जरूरत क्युँ महसुस हुई? वो इस परिवेशमें हुई जहाँ पर क्रिस्चियन धर्म के अलाबे और कोइ धर्म था ही नहीं। सिर्फ प्रोटेस्टैंट समुह के अंतर्गत आज ३०,००० से ज्यादा अलग अलग किस्म के चर्च हैं। कैथोलिक से टुट के प्रोटेस्टैंट ग्रुप बनी। आज भी आप को ढेर सारे प्रोटेस्टैंट मिल जाएंगे जो कैथोलिक को क्रिस्चियन मानते ही नहीं। तो क्या होता था की मारकाट हो जाती थी। तो जब अमेरिका देश बना तो वहां बिभिन्न क्रिस्चियन समुहों के बीच अमनचैन बनाने के प्रयास में धर्म निरपेक्षता को आगे लाया गया। वहां न कोइ हिन्दु या मुसलमान या यहुदी और बुद्धिस्ट की बात हो रही थी। सिर्फ और सिर्फ क्रिस्चियन की बात हो रही थी। और धर्म निरपेक्षता का मतलब ये नहीं समझा गया कि धर्म गलत है, धर्म मत मानो। धर्म निरपेक्षता नास्तिक बिचारधारा बिलकुल नहीं। किसी भी डॉलर बिल को उल्टा के देख लिजिए लिखा रहता है हम ईश्वर में विश्वास करते हैं। धर्म निरपेक्षता का मतलब ईश्वर न मानना, धर्म न मानना होता ही नहीं। 

अमेरिका का प्रत्येक राष्ट्रपति बाइबल पर हाथ रख के शपथ लेता है। हाल ही में ब्रिटेन के हिन्दु प्रधान मंत्री ऋषि सुनाक ने गीता पर हाथ रख के शपथ लिया। किसी को कोइ दिक्कत नहीं हुई। 

अमेरिका का सारा का सारा कानुन व्यवस्था बाइबल के टेन कमांडमेंट्स पर आधारित है। चोरी अपराध क्यों है तो टेन कमांडमेंट्स कहती चोरी पाप है। 

तो एक ऐसा राजनीतिक सिद्धांत जो एक ऐसे जगह जहाँ सिर्फ अलग अलग क्रिस्चियन समुह काटमार कर रहे थे उसको हुबहु किसी दुसरे परिवेश में लाद देना या उससे भी एक कदम आगे बढ़ के गलत ब्याख्या करना लाजिमी बात नहीं। 

कोइ नास्तिक आदमी अमेरिका का राष्ट्रपति चुना जा सकता है उसकी रत्ति भर भी संभावना नहीं। तो क्यों होते हैं आस्तिक अमेरिकी राष्ट्रपति? क्योंकि जीवन में सही और गलत को परखनेका दुसरा कोइ रास्ता नहीं। 

अमेरिका में आज तक मैंने कहीं कुत्ते का मांस बेचते नहीं देखा। क्या वजह है? कोइ धार्मिक नहीं सिर्फ सामाजिक कारण है। घर घर में कुत्ता पाले हुवे हैं। बेटाबेटी की तरह मानते हैं कुत्ते को। तो कुत्ते को बेटाबेटी मान सकते हैं, गाय को माँ क्यों मानते है वो समझने में दिक्कत? माँ का भी दुध ही पिते हैं, गाय का भी दुध ही पिते हैं। 

नेपाल के भुमि पर गाय का माँस खाना वर्जित होना न धर्म निरपेक्षता के विरुद्ध है और न धार्मिक स्वतंत्रता के विरुद्ध। नेपाल में आप कुत्ते का मांस खाइए, दिल चाहे तो गधे का मांस खा लिजिए। गधे को कोइ माईबाप नहीं बोल रहा। 

धर्म निरपेक्षता का बहुत अपब्यख्या हो रहा है। धर्म का मतलब सही रास्ता। कर्तव्य। 

धर्म निरपेक्षता सिर्फ ये कहती है कि धर्म के नाम पर हिंसा वर्जित है। धर्म के नाम पर मारकाट मत करो। वो ये नहीं कहती कि धर्म मत मानो, ईश्वर है ही नहीं, दुसरे के धार्मिक भावनाओं पर ठेस पहुँचाओ। 

बाइबल में एक लिस्ट है। कौन कौन चीज खा सकते हैं। उस लिस्ट में गाय नहीं। अर्थात गाय खाने को बाइबल नहीं कह रही। यहुदी खसी, भेंड़ चढ़ाते थे अपने मंदिर में।  

Monday, August 28, 2023

हम नगर जगाने आए हैं



हम नगर जगाने आए हैं
सोइ आत्मा जग जाओ सबके सब
हम नगर जगाने आए हैं
शैतान के चुंगल से मुक्त हो जाओ
बहुत लम्बी चली ये कलियुग
अब सुबह होने को है
सब मिल इस युग को ख़त्म करो
एक नए युग की शुरुवात हो
एक झण्डा फहराओ
अपने घर के गुम्बज से
हम नगर जगाने आए हैं
हमारी आत्मा है जाग उठी
हम तो कल्कि सेना हैं

Arrow In Belly

Friday, August 25, 2023

25: Vivek Ramaswamy



Putting All My Eggs in the Boyfriend Basket As my friends left college for exciting jobs and law school, I went to Mexico for a guy.

Trump, Lord of the Ring (Around the Collar) an actual madman, a former president who tried to overturn an election and may yet destroy U.S. democracy

Political Christianity Has Claws Simply put, America is increasingly beset by a version of cultural and political Christianity that bears little resemblance to the faith as described in the Bible. It seems as if there’s an almost mathematical equation at work — when you combine theology and ideology but subtract virtue, you’ve created a formula for viciousness and strife. Raise the stakes to an existential or eternal level, remove the restraints of kindness and self-control, and watch the worst of humanity emerge. .......... .......

even the most impeccable theological understandings are meaningless if they don’t result in Christian character.

.......... a series of simple virtues, “love, joy, peace, patience, kindness, goodness, faithfulness, gentleness and self-control.” ........ Joy and gentleness should earn our attention and respect; hatred and jealousy are red flags, even in those who can quote every line of scripture. ......... beware the hateful, the people drawn to strife; embrace those who are kind and peaceful. .......... “Love is patient, love is kind. Love does not envy, is not boastful, is not arrogant, is not rude, is not self-seeking, is not irritable, and does not keep a record of wrongs.” ........ But the dominant tone of contemporary American political Christianity is close to the opposite. It’s angry. It’s punitive. In many ways it positively delights in strife. ........... If theology minus virtue can equal violence, then perhaps theology plus virtue can enable justice.


What Prigozhin Did in Putin’s Russia Was the Ultimate Betrayal .

Making Manufacturing Great Again As it turned out, Trump had no visible success in promoting manufacturing. But a funny thing has happened under his successor: Suddenly, investment in manufacturing has surged. What Trump’s trade policies didn’t achieve, President Biden’s industrial policies have. ......... Trump’s trade policy was simply incompetent: Because it raised tariffs on industrial inputs as well as consumer goods, it raised costs and may well have reduced manufacturing employment. And the Trump tax cut was based on the belief that if you let corporations keep more of their profits, they’ll invest the money rather than use it to, say, buy back shares; this belief was proved wrong. ........ Until recently, for example, there was an explosion of resources devoted to Bitcoin mining. As far as I can tell, these resources produced nothing of value

It’s Clear That Ron DeSantis Is No Longer on the Rise, but Someone Else Is Vivek Ramaswamy, a 38-year-old political upstart with little chance of actually securing the nomination. ........ DeSantis has a chronic personality problem. He simply doesn’t connect with people. He smiles the way a Doberman bares its teeth: It feels forced, aggressive and dangerous. You feel like you should retreat from it. And when he’s not forcing a smile, he reflexively scowls. He has a resting wince face. ....... He was largely ignored by the other candidates, and the only thing that cuts deeper than disparagement is indifference......... Vivek, you are no Barack ....... You have a shallow, CliffsNotes understanding of the issues, but because you speak with speed and confidence, polished diction and a toothy grin, the incoherence is disguised by the delivery. Ramaswamy is the kind of person who gets hired for charisma rather than competence. ....... he is the personification of click bait.

25: Imran Khan

Thursday, August 24, 2023

24: BRICS

Tuesday, August 22, 2023

प्रश्न: क्या आप मांस खाने वाले पुजारी को पुजा करने की अनुमति देते हैं?


प्रश्न: क्या आप मांस खाने वाले पुजारी को पुजा करने की अनुमति देते हैं?

त्रेता युग में भारत के एक मात्र रावण का ब्राह्मण परिवार मांस खाता था, शराब पिता था और तम्बाकु खाता था। लेकिन आज के घोर कलियुग में 99% ब्राह्मण परिवार मांस खाते हैं, शराब पिते हैं और तम्बाकु का सेवन करते हैं। त्रेता युग में 100% ब्राह्मण वेदों की पद्धति का पालन करने वाले थे, लेकिन अब घोर कलियुग में एक भी ब्राह्मण वेदों की पद्धति का पालन करने वाला नहीं है।
 
एक धार्मिक परंपरा है कि यदि ब्राह्मण वेदों के नियमों में विश्वास करते हैं तो वे मछली, मांस, शराब, सिगरेट आदि का सेवन नहीं कर सकते। आज हमारे हिन्दु धर्म के पतन का सबसे बड़ा कारण यह नकली ब्राह्मण है जो मछली और मांस खाता है। हमारे समाज में हिंदु धर्म की पुनर्स्थापना के लिए हमें वास्तविक ब्राह्मणों की आवश्यकता है जो वेदों की प्रणाली में वर्तमान से कहीं अधिक विश्वास रखते हों।

इस नकली, वेदों को न मानने वाले ब्राह्मण के रहते हमारा देश नेपाल कभी भी हिन्दु राष्ट्र नहीं बन सकता। जिस दिन नेपाल का समाज और सरकार सभी ब्राह्मणों को ब्रह्मचर्य का पालन करायेगी, वह दिन न केवल हिन्दु राष्ट्र, बल्कि हिन्दु जगत की भी नींव स्थापित करेगा। और नेपाल विश्व गुरु बनेगा। 

अब समाज में दो तरह के लोग हैं। जिसके हृदय में ईश्वर है वह हिंदु धार्मिक वेदों का सम्मान करेगा। उनका स्वागत नमस्ते से करें।  जो लोग वेदों का पालन करते हैं उन्हें कलियुग के अंत में कल्कि सेना के नाम से जाना जाएगा। जिनके हृदय में शैतान है वे हिंदु धार्मिक वेदों के नियमों का विरोध करेंगे। उनका स्वागत नमशैतान के रूप में किया जाना चाहिए, नमस्ते के रूप में नहीं। जो लोग वेदों का पालन नहीं करते उन्हें कलियुग के अंत में रावण की सेना के रूप में जाना जाएगा। अब वह दिन आ गया है जब समाज में वेदों को न मानने वाले रावणों को नमशैतान कह के अभिवादन किया जाएगा। 

मैं जनकपुरधाम में नमशैतान आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए जनकपुरधाम के प्रत्येक वार्ड में कुछ स्वयंसेवकों की तलाश कर रहा हुँ। इस आंदोलन का उद्देश्य हिंदुओं की सुप्त भावना को जागृत करना है और नेपाल सरकार से वास्तविक ब्राह्मणों की मांग की जाएगी। आज 99% से अधिक ब्राह्मण मांस खाते और शराब पीते हैं जो वेदों के विपरीत है। हमें वेदों का समर्थक ब्राह्मण चाहिए, वेदों का विरोधी ब्राह्मण नहीं। यह आंदोलन समाज को दो गुटों में बांट देगा: एक जो कहता है कि ब्राह्मण परिवार के किसी भी व्यक्ति को मांस खाने और शराब पीने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। वे लोग कल्कि सेना कहलायेंगे। दुसरे गुट को रावण सेना कहा जाएगा, जो कहते हैं कि ब्राह्मणों और उनके परिवार के सदस्यों को रावण की तरह मांस खाने और शराब पीने, सिगरेट पीने की अनुमति दी जानी चाहिए, जैसा कि त्रेता युग में रावण ने किया था।

जनकपुरधाम से शुरू होकर यह आंदोलन पुरे देश में फैल जाएगा और फिर नेपाल के आंदोलन के समर्थन से पुरे भारत में यह "नमशैतान महाअभियान" तैयार किया गया है, जो अन्ना हजारे के जन लोकपाल आंदोलन से हजारों गुना बड़ा है। जब जनकपुर के लोगों और शेष नेपालियों की आत्मा पुरी तरह जागृत हो जायेगी, जब यह निश्चित हो जायेगा कि वे कल्कि सेना हैं या रावण सेना, तब हम आंदोलन के अगले चरण में प्रवेश करने का निर्णय लेंगे।

यदि कल्कि सेना बहुमत में है तो हम सरकार से कलियुग के अंत के लिए एक शोध दल बनाने की मांग करेंगे। यदि रावण की सेना बहुमत में है, तो हम मांग करेंगे कि मंदिर में फलों और मिठाइयों के बदले मुर्गे की टांगें चढ़ाना शुरू करें। अंत में कल्कि सेना रावण सेना से युद्ध करेगी। लेकिन यह लड़ाई गोलियों से नहीं बल्कि मतपत्रों से लड़ी जाएगी। यदि आगामी चुनाव में कल्कि सेना की सरकार बनी तो नेपाल विश्व गुरु बन जायेगा, यदि रावण सेना जीत गयी तो नेपाल को भयानक कलियुग में धकेल दिया जायेगा। हमेशा के लिए।

प्राचीन जाति व्यवस्था का निर्माण व्यवसाय के आधार पर किया गया था। भले ही आज जीवन जीने का निर्णायक पहलु बदल गया है, लेकिन जातीय रीति-रिवाज और पहचान वही हैं। हर कोई चाहता है कि समाज से जाति व्यवस्था खत्म हो, उसका प्रभाव और असर खत्म हो। केवल इसका विरोध करने से यह संभव नहीं है. जातिगत रीति-रिवाजों को पुरी तरह से हटाया नहीं जा सकता, लेकिन पुराने रीति-रिवाजों को हटाकर नए रीति-रिवाजों को लागु किया जा सकता है। चुंकि जातिगत पहलु भी कुछ हद तक हर किसी की पहचान है, इसलिए क्रांतिकारी सुधारों से इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।

यदि सभी परिवार और रिश्तेदार चाहें या अनुमोदन करें, तो लोगों को उनके आहार, भोजन, व्यवसाय और वर्तमान जीवन शैली के आधार पर अपनी जाति बदलने की अनुमति दी जानी चाहिए। जाति व्यवस्था अतीत में दी गई पारंपरिक एवं पारिवारिक पहचान पर आधारित न होकर वर्तमान जीवनशैली पर आधारित होनी चाहिए। चुंकि मानव जीवन अपने आप में स्वतंत्र है इसलिए उसके स्तर या स्थिति का मुल्यांकन जाति के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए। नाम की तरह जाति भी केवल पहचान का आधार होना चाहिए। जिस प्रकार किसी व्यक्ति के साथ नाम के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता, वह नाम नहीं छिपाता और नाम बताने में संकोच नहीं करता - उसी प्रकार जाति बताने में भी किसी को संकोच नहीं करना चाहिए। यदि जाति के आधार पर भेदभाव न हो तो ऐसी स्थिति में स्वतः ही एक उच्च सहिष्णु समाज बन जायेगा।

जाति प्रथा के कारण सबसे अधिक प्रभाव विवाह पर पड़ता है। शाकाहारी माता-पिता अपने बच्चों की शादी मांस खाने वाले परिवारों में करना पसंद नहीं करते। भले ही वे मांसाहारी हों, उनमें से कुछ लोग अपने समुदाय की भावनाओं और रीति-रिवाजों के अनुसार गाय, सुअर या अन्य जानवरों का मांस खाना पसंद नहीं करते हैं। इसके समाधान हेतु जाति व्यवस्था की एक सर्वथा नवीन प्रथा का स्वरूप होगा।

1. ब्राह्मण: जिस परिवार में कोई मछली, मांस, तम्बाकु नहीं खाता तथा शराब नहीं पीता। 
2. सोलकन: एक परिवार जो सुअर और गाय के अलावा अन्य मांस खाता है और शराब और निकोटीन का सेवन करता है। ये ग्रुप फिर ऐसे ही में विभाजित है: 
समुह ए: शराब और सिगरेट का सेवन करना लेकिन मछली और मांस नहीं खाना। 
ग्रुप बी: मछली, मांस खाता है लेकिन शराब नहीं पीता और तंबाकुका सेवन नहीं करता। 
ग्रुप सी: सभी मांस, शराब और तंबाकु खाएं। 
3. दलित: सुअर या गाय से छोटा कोई भी मांस खानेवाला परिवार 
4. शुद्र: वह परिवार जो गाय या उसके समान जानवर खाता है।

इस जाति व्यवस्था की निगरानी एक आईडी प्रणाली से की जाएगी ताकि लोगों को उनकी वास्तविक जाति के अलावा अन्य जातियों से भोजन चुराने से रोका जा सके। सभी मांस, शराब, सिगरेट को शहर के बाहर एकत्र किया जाएगा और केवल आईडी के साथ ही अनुरोध के साथ घर-घर पहुंचाया जाएगा। जो व्यक्ति जीवन भर दुसरों के धार्मिक कार्यों के लिए मांस और मछली का त्याग करता है, वह हमारे समाज के लिए सदैव सर्वश्रेष्ठ रहेगा। इसीलिए ब्राह्मण सदैव हिंदु धर्म में सर्वोत्तम जाति रही है और रहेगी। हालाँकि, मछली, मांस, शराब और सिगरेट का सेवन करने वाले परिवार को हम कभी ब्राह्मण नहीं मान सकते। मछली और मांस खाने वाला ब्राह्मण कोई मुर्ख ही सर्वोत्तम जाति का माना जा सकता है। एक बुद्धिमान हिंदु इसे कभी स्वीकार नहीं कर सकता। मछली-मांस, शराब, सिगरेट का सेवन करने वाले परिवार को हम कभी ब्राह्मण नहीं मान सकते। मछली, मांस, शराब और सिगरेट का सेवन करने वाले परिवारों को ब्राह्मण जाति से निकाल कर दलित वर्ग में रखा जाना चाहिए और वैष्णवों को ब्राह्मण वर्ण में आने का मौका दिया जाना चाहिए। नई जाति व्यवस्था काम पर आधारित होनी चाहिए, जन्म के आधार पर नहीं। दलितों और मुसलमानों को भी ब्राह्मण बनने का मौका मिलना चाहिए।

इस व्यवस्था के आने के बाद ही सभी का हिंदू धर्म के प्रति सम्मान बढ़ेगा। जिस दिन धर्म की पुनर्स्थापना होती है, उसके अगले दिन से अधर्म और अधर्म का विनाश प्रारम्भ हो जाता है। जब तक सभी हिंदु ब्राह्मणों को श्रेष्ठ जाति के रूप में स्वीकार नहीं करते, तब तक हिंदु धर्म की बहाली नहीं हो सकती। भारत ने चार हजार साल पहले जाति व्यवस्था की प्रथा शुरू करके समाज को संघर्ष में धकेल दिया था। अब समय आ गया है कि नेपाल इस प्रथा को दुर करे और नई समयबद्ध व्यवस्था लागु कर विश्वगुरु बने।

नई जाति व्यवस्था के उद्भव से धनहीन समाज का निर्माण, म्लेच्छ और दहेज प्रथा को समाप्त करने और कलियुग को समाप्त करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे। जिस प्रकार राम को रामसेना की आवश्यकता थी और कृष्ण को नारायणीसेना की, उसी प्रकार कलियुग को समाप्त करने के लिए कल्कि को कल्किसेना की आवश्यकता होगी। नई जाति व्यवस्था का दुसरा सबसे बड़ा फायदा यह है कि हर लड़की सरकार के साथ यह डेटा (रिकॉर्ड) निकालकर तय कर सकती है कि एक लड़का प्रतिदिन कितनी शराब, गुटखा, सिगरेट पीता है कि उसे उस लड़के से शादी करनी है या नहीं। और फिर कल्किवाद  के सहयोग से दहेज प्रथा भी दूर हो जायेगी।

कल्कि सेना कोई सामाजिक या धार्मिक संगठन नहीं है। भविष्य में कोई यह कहने का साहस नहीं करेगा कि मैं कल्कि सेना का सदस्य हूुँ। कल्कि सेना के नाम से कोई भी संगठन पंजीकृत नहीं किया जाएगा। कल्कि सेना एक प्रबुद्ध चिंतनशील आत्मा का प्रतीक है। किसी से भी ज्यादा मैं कल्कि सेना नहीं कह सकता। मेरी आत्मा कल्कि सेना है। किसी भी कल्कि सेना को किसी अन्य कल्कि सेना के साथ किसी भी धार्मिक, सामाजिक कार्य या आंदोलन के लिए कोई भी टीम बैठक आयोजित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। प्रत्येक परिवार एक कल्कि सेना हो सकता है, लेकिन वे एक कल्कि सेना संगठन नहीं बना सकते। हम कल्कि सेना को हिंदु सेना, बजरंग दल, आरएसएस जैसे हिंदू संगठन नहीं बनाना चाहते।

कल्कि की सेना नेपाल में रावण की सेना के साथ एकमात्र युद्ध लड़ेगी - यानी चुनाव के दिन। गोली से नहीं, मतपत्र से। कल्कि सेना के युद्ध जीतने का एकमात्र तरीका वोट गिराना है। रावण सेना से युद्ध करने के लिए समस्त कल्कि सेना को केवल चुनाव के दिन ही आमंत्रित किया जायेगा। सामाजिक परिवर्तन का बाकी काम कल्कि सेना के प्रतिनिधि राजनेता, नेपाल पुलिस और नेपाल सेना द्वारा किया जाएगा। हां, अगर कल्कि सेना चुनाव जीतती है, तो नेपाल पुलिस और नेपाल सेना कल्कि सेना के लिए सभी युद्ध लड़ेगी।

यदि आप मानते हैं कि आपकी आत्मा जागृत हो गई है, यदि आप मानते हैं कि मंदिर में फल और मिठाइयाँ चढ़ाना बेहतर है न कि मुर्गे की टांगें, यदि आप चाहते हैं कि कलियुग का अंत हो, तो अपने घर के सामने एक नेपाली झंडा लगाएँ। जिस घर के सामने नेपाल का झंडा नहीं होता उसे रावण सेना का घर कहा जाता है। उन दानदाताओं को खोजने का प्रयास किया जाएगा जो उन गरीबों के लिए नेपाली झंडे खरीदेंगे जिनके पास पैसे नहीं हैं और वे अपने घरों में नेपाली झंडे लगाना चाहते हैं।

एक बार नारदजी ने लक्ष्मी माता से पूछा, पृथ्वी पर ऐसे लोग हैं जो कहते हैं कि कलियुग की आयु पांच हजार, पचास हजार, पांच लाख और पचास लाख है। इस दुविधा से उबरने के लिए मनुष्य अपनी बुद्धि से कैसे जान सकता है कि कलियुग के अंत का समय आ गया है? और लक्ष्मीजी ने कहा कि जब सभी मंदिरों पर ताले लगे हैं और सभी शराब की दुकानों पर कतार लगी हुई है, तो भगवान हमें यह समझने का संकेत दे रहे हैं कि कलियुग के अंत का समय आ गया है।

मौजुदा कोरोना महामारी के दौरान यही हुआ है। सभी मंदिरों पर ताला लगा दिया गया और सभी शराब की दुकानों पर हफ्तों तक कतारें लगी रहीं। वह स्थिति भगवान द्वारा हम मानव जाति को यह संकेत देने के लिए बनाई गई थी कि कलियुग के अंत का समय आ गया है। मटिहानी के जय साह ने उसी लॉकडाउन के दौरान अमेरिका में रहकर बिना पैसे और सोने के समाज का निर्माण करके कलियुग को कैसे समाप्त किया जाए, इस पर एक किताब लिखी। जिसकी पढ़ाई जल्द ही दुनिया के सभी विश्वविद्यालयों में होगी।

कुछ लोग कहते हैं कि परमाणु युद्ध के बाद कल्कि घोड़े पर सवार होकर हमारे समाज में बचे हुए पापियों को मारने के लिए आकाश से आएंगे। एक बार कल्कि पापियों का संहार करना शुरू कर दे तो उसे कोई नहीं रोक सकता।

यह कोई स्थाई उम्र नहीं है। कलियुग में कल्कि को भी समाज के नियम और अनुशासन का पालन करना होगा। और वर्तमान कानुन के अनुसार, केवल अदालतें और पुलिस ही मौत की सज़ा दे सकती हैं। अगर कोई व्यक्ति अचानक घोड़े पर चढ़कर लोगों को तलवार से काटने की कोशिश करता है तो मौजुदा कानुन के मुताबिक उसे जेल जाना होगा। और दुसरी बात यह है कि इस कलियुग में कल्कि कोई जादुई शक्ति लेकर नहीं आने वाला है। वह बिल्कुल सामान्य इंसान के रूप में आएंगे। आज के समाज में अगर कोई कल्कि जैसा बनना चाहता है तो बस इतना ही। 

रावण धन है। समाज के इस प्रावधान को सभी को पुरा करना होगा। वह 100% सामान्य व्यक्ति होगा जो कलियुग को समाप्त करने के लिए सबसे पहले अपने विचार लाएगा। उन्हें एक घोषणापत्र पेश करना होगा। अनुयायियों का एक बड़ा आधार बनाना होगा। लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता हासिल करनी होगी। चुनाव में अन्य ताकतवर पार्टियों को चुनौती देनी होगी। चुनाव जीतना होगा और संविधान में संशोधन करना होगा। फिर वैदिक नियम लागु करने होंगे। और तभी कानून और अनुशासन अंततः वेदों के कानुन का उल्लंघन करने वाले पापियों को दंडित करेंगे।

एक शिक्षित व्यक्ति के रूप में, मुझे नहीं लगता कि कल्कि अवतार कानुन तोड़ेंगे, अलौकिक जादु दिखाएंगे और सड़क पर घोड़े पर चढ़कर कार में बैठने वाले पापी का सिर काट देंगे। कानुन के माध्यम से पापियों को नष्ट करने का एकमात्र तरीका राजनीतिक है, राजनीति के माध्यम से समाज की व्यवस्था को बदलना है। इसलिए कल्कि को एक राजनीतिक नेता के तौर पर ही खोजा जा सकता है। कोई अन्य रास्ता खोजना असंभव है। 

'अगर नेपाली जनता चाहेगी तो अगले चुनाव में कल्कि सेना और रावण सेना के बीच युद्ध होगा। यदि जनकपुर के लोग नमशैतान अभियान शुरू करेंगे तो आने वाले चुनाव में कल्कि सेना और रावण सेना के बीच युद्ध का नेतृत्व मैं करूंगा। और आगामी चुनाव में रावण सेना के नेता शेर बहादुर देउबा, केपी शर्मा ओली, प्रचंड, रवि लामिछाने, चंद्रा राउत, उपेंद्र यादव, महंत ठाकुर होंगे.''

------ जय साह


यह अभियान कब शुरू होगा? जिस दिन जनकपुर के लोगों के घरों में कल्कि सेना के टैग के साथ आधे से ज्यादा नेपाल का झंडा होगा, उस दिन जय साहजी अमेरिका से आएंगे और इस महान अभियान की शुरुआत करेंगे। तब तक नई जाति व्यवस्था के सारे नियम उनकी लिखी किताब से पढ़े जा सकते हैं. आप उनके बनाए वीडियो देखकर सारी व्यवस्थाएं जान सकते हैं.

नेपाल विश्व गुरु है, जनकपुरधाम सम्पुर्ण नेपालका मार्गदर्शक है माता सीता की जन्मस्थली अब पुरे विश्व में महान होगी।

नमशैतान महाभियान के शुभारंभ के तुरंत बाद, दुनिया की सबसे शिक्षित, अनुभवी, उद्यमशील राजनीतिक पार्टी - सत्य युग समाज पार्टी - का गठन किया जाएगा। हर नगर पालिका मेयर बलेन शाह और डिप्टी मेयर जैसे कॉरपोरेट जगत की जानकारी रखनेवाले एमबीए डिग्रीधारी युवाओं को जगह देगी।

मेरे प्यारे जनकपुर के मुल निवासियों, पुरा नेपाल आपके साथ इस आंदोलन की शुरुआत करेगा। इस आंदोलन के समर्थन में पुरे नेपाल ही नहीं बल्कि भारत के कोने-कोने से यहां तक ​​कि भारत के लाल किले से भी नेपाल का झंडा फहराया जाएगा। आप आगे बढ़ें। कलियुगको समाप्त करने के लिए आगे बढ़ने के लिए पुरी दुनिया हम जनकपुरवासीयों को नमन करेगी। केवल जाति व्यवस्था बदलने से कलियुग का अंत नहीं होगा। इसके तुरंत बाद दहेज प्रथा को हमेशा के लिए ख़त्म करने का पुरा रोडमैप मेरे किताब में लिखा है। फिर नई आर्थिक नीति लाएंगे ताकि मुकेश अंबानी, अमिताभ बच्चन, रिक्शा चालक, शिक्षक, डॉक्टर सभी की आय एक समान हो जाए। कोई गरीब नहीं है। कोई भी अमीर नहीं है। यह सत्ययुग समाज पार्टी धन विहीन समाज की स्थापना करेगी क्योंकि धन ही कलियुगका घर है। हर सामान की कीमत रुपये में नहीं बल्कि घंटे, मिनट और सेकेंड में होगी।