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Wednesday, September 03, 2025

Signs of the End of Kali Yuga: A Cross-Religious Perspective


A year ago, greenery began to appear in the deserts of Saudi Arabia.
After 2,600 years, Israel obtained the Red Heifer for sacrifice.
During COVID, temples were locked while there were queues for liquor.

These three events are proof that, in Islam, Judaism, and Hinduism, the signs of the end of Kali Yuga have been fulfilled.

The way preparations for a world war globally, and for Ghazwa-e-Hind in India, are taking shape is also a sign of the end of Kali Yuga.

Due to global warming, antibiotic resistance, and air pollution, more than 50% of the world’s population will perish. This too is a sign of the end of Kali Yuga.



Signs of the End of Kali Yuga: A Cross-Religious Perspective

In recent years, several unusual global developments have been interpreted by believers as signs pointing toward the end of Kali Yuga—the final age in Hindu cosmology, often associated with darkness, decline, and eventual renewal. What makes these signs especially compelling is that they appear across multiple religions, suggesting a convergence of eschatological expectations in Hinduism, Judaism, and Islam.

Unfolding Events Across Traditions

  • Saudi Arabia’s Desert Turning Green
    A year ago, reports emerged of greenery spreading in parts of Saudi Arabia’s desert. For many, this phenomenon symbolized a prophetic transformation—deserts blossoming where there was once only sand. In Islamic traditions, such ecological changes are sometimes associated with the approach of the end times.

  • Israel and the Red Heifer
    After 2,600 years, Israel reportedly obtained the Red Heifer, an animal considered essential for ancient ritual sacrifice. In Jewish eschatology, the appearance of the Red Heifer is linked to purification rites and preparations for the rebuilding of the Third Temple—events tied to messianic expectations.

  • Temples Locked During COVID, Liquor Stores Crowded
    During the COVID-19 pandemic, many Hindu temples were closed under lockdown, while liquor stores saw long queues. To some, this reversal of priorities embodied the moral and spiritual decline described in Hindu scriptures as hallmarks of Kali Yuga.

Together, these developments are interpreted as proof that prophetic signs across Islam, Judaism, and Hinduism are converging to mark the close of the age.

Global Conflicts and the Gathering Storm

The signs are not limited to symbolic events. The rising possibility of global conflict—whether through a third world war or, in South Asian discourse, the oft-invoked Ghazwa-e-Hind (a prophesied great battle over India)—is also seen as part of the final unraveling of Kali Yuga. The world order appears increasingly fragile, and war clouds hover ominously over the international stage.

Ecological Collapse as Prophecy Fulfilled

Modern science echoes these apocalyptic warnings in its own way. The spread of global warming, antibiotic resistance, and rising air pollution threatens to claim the lives of more than half of the world’s population in the coming decades. Such predictions align with ancient prophecies foretelling large-scale destruction before the dawn of a new age.

Conclusion: The End of an Age, the Beginning of Another

For many, these events—whether ecological, religious, or geopolitical—are more than coincidences. They are seen as the culmination of a long-prophesied decline, signaling that humanity stands at the threshold of transformation. In the cyclical understanding of time found in Hindu cosmology, the end of Kali Yuga is not simply an end, but also the beginning of a new Satya Yuga—the age of truth, peace, and renewal.



कलियुग के अंत के संकेत: एक अंतर-धार्मिक दृष्टिकोण

पिछले कुछ वर्षों में कई असामान्य वैश्विक घटनाएँ सामने आई हैं, जिन्हें आस्थावान लोग कलियुग के अंत की ओर संकेत के रूप में देखते हैं। हिंदू धर्म की अवधारणा में कलियुग अंतिम युग है, जिसे अंधकार, पतन और अंततः नवीनीकरण से जोड़ा जाता है। दिलचस्प बात यह है कि ऐसे संकेत केवल हिंदू धर्म तक सीमित नहीं हैं—वे यहूदी और इस्लामी परंपराओं में भी दिखाई देते हैं, जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि तीनों धर्मों की प्रलय-संबंधी अपेक्षाएँ एकसाथ जुड़ रही हैं।

परंपराओं में घटित घटनाएँ

  • सऊदी अरब का रेगिस्तान हरा होना
    एक वर्ष पहले खबरें आईं कि सऊदी अरब के कुछ रेगिस्तानी हिस्सों में हरियाली फैलने लगी है। कई लोगों के लिए यह घटना भविष्यवाणी जैसी लगी—जहाँ केवल रेत थी, वहाँ जीवन उभर आया। इस्लामी परंपराओं में ऐसे पारिस्थितिक परिवर्तन अक्सर क़यामत (अंत समय) से जोड़े जाते हैं।

  • इज़राइल और रेड हेफ़र
    2600 साल बाद, इज़राइल को “रेड हेफ़र” (लाल बछिया) प्राप्त हुई, जो प्राचीन बलिदानी अनुष्ठानों के लिए आवश्यक मानी जाती है। यहूदी परंपरा में इसका प्रकट होना शुद्धिकरण और तीसरे मंदिर के निर्माण की तैयारी से जुड़ा है—जो मसीही भविष्यवाणियों का हिस्सा है।

  • कोविड के दौरान मंदिर बंद, शराब की दुकानों पर भीड़
    कोविड-19 महामारी के दौरान लॉकडाउन में मंदिर बंद कर दिए गए, लेकिन शराब की दुकानों पर लंबी कतारें लग गईं। कई लोगों ने इसे मूल्यों और आध्यात्मिकता के पतन का प्रतीक माना—एक ऐसी स्थिति जिसका उल्लेख हिंदू ग्रंथों में कलियुग की पहचान के रूप में मिलता है।

इन तीनों घटनाओं को एक साथ देखकर लोग मानते हैं कि इस्लाम, यहूदी और हिंदू धर्म—तीनों में बताए गए संकेत पूरे हो चुके हैं।

वैश्विक संघर्ष और तैयारी

ये संकेत केवल धार्मिक घटनाओं तक सीमित नहीं हैं। तीसरे विश्व युद्ध की आशंका और दक्षिण एशियाई संदर्भ में ग़ज़वा-ए-हिंद की चर्चाएँ भी इसी अंतिम समय की तैयारी के रूप में देखी जा रही हैं। अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य नाज़ुक होता जा रहा है और युद्ध का साया गहराता जा रहा है।

पर्यावरणीय संकट: भविष्यवाणी की प्रतिध्वनि

आधुनिक विज्ञान भी अपने ढंग से इन्हीं चेतावनियों को दोहराता है। वैश्विक ऊष्मीकरण, एंटीबायोटिक प्रतिरोध और वायु प्रदूषण जैसे कारक भविष्य में दुनिया की आधी से अधिक जनसंख्या को समाप्त कर सकते हैं। यह आकलन भी प्राचीन भविष्यवाणियों के अनुरूप लगता है, जिनमें महाविनाश के बाद एक नए युग के आगमन की बात कही गई है।

निष्कर्ष: एक युग का अंत, दूसरे की शुरुआत

कई लोगों के लिए ये घटनाएँ—चाहे वे पारिस्थितिक हों, धार्मिक हों या भू-राजनीतिक—सिर्फ संयोग नहीं हैं। इन्हें लंबे समय से कही गई भविष्यवाणियों की परिणति के रूप में देखा जाता है, जो बताती हैं कि मानवता एक बड़े परिवर्तन के द्वार पर खड़ी है। हिंदू धर्म की चक्रीय समय अवधारणा के अनुसार, कलियुग का अंत केवल अंत नहीं, बल्कि सत्ययुग—सत्य, शांति और नवीनीकरण के युग—की शुरुआत भी है।



कलियुगको अन्तका संकेत: एक अन्तर-धार्मिक दृष्टिकोण

केही वर्षयता देखिएका असामान्य वैश्विक घटनाहरूलाई आस्थावानहरूले कलियुगको अन्ततिर संकेतका रूपमा लिएका छन्। हिन्दू धर्मको अवधारणामा कलियुग अन्तिम युग हो, जसलाई अन्धकार, पतन र अन्ततः पुनर्जागरणसँग जोडिन्छ। रोचक कुरा यो हो कि यस्ता संकेतहरू केवल हिन्दू धर्ममै होइन, यहूदी र इस्लामी परम्परामा पनि देखिन्छन्, जसले तीनै धर्मका प्रलयसम्बन्धी अपेक्षाहरूलाई एउटै बिन्दुमा ल्याइरहेको देखाउँछ।

परम्परागत घटनाहरू

  • साउदी अरेबियाको मरुभूमि हरियो हुनु
    एक वर्षअघि खबर आयो कि साउदी अरेबियाको केही मरुभूमि भागहरूमा हरियाली फैलिन थालेको छ। धेरैका लागि यो घटना भविष्यवाणी जस्तै लाग्यो—जहाँ केवल बालुवा थियो, त्यहाँ जीवन अंकुरित हुन थाल्यो। इस्लामी परम्परामा यस्ता पारिस्थितिक परिवर्तनहरूलाई प्रायः क़यामत (अन्त समय) सँग जोडिन्छ।

  • इजरायल र रेड हेफर
    २६०० वर्षपछि इजरायललाई “रेड हेफर” (रातो गाईको बाछी) प्राप्त भएको छ, जुन प्राचीन बलिदानी अनुष्ठानका लागि आवश्यक मानिन्छ। यहूदी परम्परामा यसको प्रकट हुनु शुद्धिकरण र तेस्रो मन्दिर निर्माणको तयारीसँग सम्बन्धित छ—जसलाई मसीही भविष्यवाणीहरूको हिस्सा मानिन्छ।

  • कोभिडका बेला मन्दिर बन्द, मदिराको पसलमा भीड
    कोभिड-१९ महामारीको लकडाउनमा मन्दिरहरू बन्द भए, तर मदिरा पसलमा लामो लाइन देखियो। धेरैले यसलाई मूल्य र अध्यात्मिकताको पतनको प्रतीकका रूपमा व्याख्या गरे—एक अवस्थाको रूपमा जसको उल्लेख हिन्दू शास्त्रमा कलियुगको चिनारीका रूपमा गरिएको छ।

यी तीनै घटनाहरूलाई एकसाथ हेर्दा मानिसहरूले विश्वास गरेका छन् कि इस्लाम, यहूदी र हिन्दू धर्ममा उल्लेख गरिएका अन्त समयका संकेतहरू पूरा भइसकेका छन्।

वैश्विक संघर्ष र तयारी

यी संकेतहरू केवल धार्मिक घटनासम्म सीमित छैनन्। तेस्रो विश्वयुद्धको सम्भावना र दक्षिण एसियाली सन्दर्भमा गजवा-ए-हिन्द को चर्चा पनि अन्तिम समयको तयारीका रूपमा लिइन्छ। अन्तर्राष्ट्रिय परिदृश्य अझै नाजुक बन्दै गएको छ र युद्धको छायाँ गहिरिँदै गएको छ।

वातावरणीय सङ्कट: भविष्यवाणीको प्रतिध्वनि

आधुनिक विज्ञानले पनि आफ्नै शैलीमा यस्तै चेतावनी दिन्छ। विश्व तापमान वृद्धी, एन्टिबायोटिक प्रतिरोध र वायु प्रदूषणका कारण भविष्यमा संसारको आधाभन्दा बढी जनसंख्या नष्ट हुन सक्ने अनुमान गरिएको छ। यस्तो मूल्याङ्कन पनि प्राचीन भविष्यवाणीहरूसँग मेल खान्छ, जसमा महाविनाशपछि नयाँ युगको उदय हुने भनिएको छ।

निष्कर्ष: एउटा युगको अन्त्य, अर्कोको सुरुवात

धेरै मानिसका लागि यी घटनाहरू—चाहे तिनीहरू पारिस्थितिक हुन्, धार्मिक वा भू-राजनीतिक—सिर्फ संयोग मात्र होइनन्। यी लामो समयदेखि गरिएका भविष्यवाणीहरूको परिणति हुन् भन्ने विश्वास गरिएको छ, जसले देखाउँछ कि मानवता अब ठूलो परिवर्तनको ढोकामा उभिएको छ। हिन्दू धर्मको चक्रात्मक समय अवधारणा अनुसार, कलियुगको अन्त्य केवल अन्त्य मात्र होइन, सत्ययुग—सत्य, शान्ति र पुनर्जागरणको युग—को सुरुवात पनि हो।


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