Pages

Thursday, September 11, 2025

क्रांति को शांतिपुर्ण अवतरण: अंतरिम सरकार र चाँडो चुनाव

क्रांति को शांतिपुर्ण अवतरण: अंतरिम सरकार र चाँडो चुनाव 

त्यो अंतरिम सरकार को नेतृत्व मा सुशीला कार्की हुन सक्छे। चाँडो चुनाव भनेको हिउँद मा गर्न नमिल्ने होला। चुनाव ६ महिना मा हुने होला। मार्च तिर। मार्च अप्रिल। 

त्यसपछि क्रांति को स्वरुप फेरिन्छ। जेन जी ले चुनाव स्वीप गर्ने किसिमले संगठन बनाउन सक्नुपर्यो। 

तर प्रथम शर्त नै संसद विगठन हो। यो विशेष परिस्थिति हो भनेर मानन रामचन्द्र स्वीकार छैनन। 

केपी ओली को गल्तीले क्रान्ति भो। रामचंद्र को ग़लतीले अर्को क्रांति हुन्छ। 

संसद विगठन। अंतरिम सरकार। छ महिना भित्र अर्को चुनाव। तर संसद नै विगठन नगरे के को सुशीला कार्की? 

निर्दल बाट जाबो बहुदल मा जान नया संविधान चाहिएको। गणतंत्र र संघीयतामा जान नया संविधान चाहिएको। जुन संविधान ले भ्रष्टाचारतंत्र दियो, सिंडिकेट राजनीति दियो, त्यस भित्र बसेर भ्रष्टाचार बिनाको देश कल्पना गर्न सकिँदैन। 

संसद विगठन बिनाको अंतरिम सरकार गठनले जेन जी लाई फेरि सड़कमा ल्याउँछ। ओली को गलती रामचन्द्र दोहोर्याउँदैछन। 





A Peaceful Descent of the Revolution: Why Nepal Needs an Interim Government and Early Elections

The revolutionary moment that has swept Nepal cannot simply fade away into half-measures. It must descend peacefully, but decisively, into a new political order. The path forward is clear: dissolve parliament, establish an interim government, and hold elections within six months.

The Question of Leadership

An interim government under the leadership of Sushila Karki is one possible arrangement. Yet this only has meaning if it is built on the foundation of parliamentary dissolution. Without that first step, the appointment of any interim prime minister becomes an exercise in futility—a continuation of the status quo in a different name.

The Urgency of Elections

Elections cannot realistically be held in the winter. But by March or April, Nepal can return to the ballot box. This timeframe provides enough room for preparation, while also ensuring that the revolutionary momentum does not dissipate. For Gen Z—the true face of today’s revolution—this is an opportunity to organize systematically and sweep the elections.

A Crisis of Legitimacy

Nepal has re-written constitutions in moments of transition. The move from partyless Panchayat to multiparty democracy required one. The move to republicanism and federalism required another. But the present constitution has institutionalized corruption and entrenched syndicate politics. Expecting a corruption-free Nepal under its framework is nothing but a fantasy.

The Mistakes of Leaders

This revolution erupted because of KP Oli’s catastrophic missteps. If Ramchandra Poudel refuses to accept the necessity of dissolving parliament, he risks triggering yet another wave of unrest. By clinging to the discredited parliament, he repeats Oli’s error—undermining the revolutionary energy rather than channeling it into lasting reform.

The Only Way Forward

The roadmap is unambiguous:

  • Dissolve parliament.

  • Form an interim government.

  • Hold elections within six months.

Anything less is a betrayal of the revolutionary spirit. Should Ramchandra resist, Gen Z will once again take to the streets, and the cycle of protest will repeat. Nepal cannot afford to stumble in circles. It must move forward—with courage, clarity, and conviction.



क्रांति का शांतिपूर्ण अवतरण: अंतरिम सरकार और शीघ्र चुनाव

नेपाल में जो क्रांतिकारी माहौल पैदा हुआ है, वह आधे-अधूरे उपायों से समाप्त नहीं किया जा सकता। इसे शांतिपूर्ण लेकिन निर्णायक तरीके से एक नए राजनीतिक ढाँचे में उतरना होगा। आगे का रास्ता साफ है: संसद का विघटन, अंतरिम सरकार का गठन, और छह महीने के भीतर चुनाव।

नेतृत्व का सवाल

अंतरिम सरकार का नेतृत्व सुशीला कार्की के हाथों में दिया जा सकता है। लेकिन इसकी सार्थकता तभी होगी जब संसद को पहले भंग किया जाए। बिना संसद भंग किए किसी भी अंतरिम प्रधानमंत्री की नियुक्ति केवल यथास्थिति बनाए रखने जैसा होगा—नाम बदलकर वही पुरानी व्यवस्था।

चुनाव की तात्कालिकता

सर्दियों में चुनाव कराना व्यावहारिक नहीं होगा, लेकिन मार्च या अप्रैल तक नेपाल फिर से मतदान कर सकता है। यह समय सीमा तैयारी के लिए पर्याप्त होगी और यह भी सुनिश्चित करेगी कि क्रांतिकारी ऊर्जा व्यर्थ न हो। जेनरेशन जेड—जो आज की क्रांति का असली चेहरा है—के लिए यह अवसर है कि वे संगठित होकर चुनावों में भारी जीत दर्ज करें।

वैधता का संकट

नेपाल ने हर संक्रमणकाल में संविधान बदला है। निर्दलीय पंचायती व्यवस्था से बहुदलीय लोकतंत्र में जाने के लिए नया संविधान बना। गणतंत्र और संघीयता की ओर बढ़ने के लिए भी नया संविधान बना। लेकिन वर्तमान संविधान ने भ्रष्टाचार और सिंडिकेट राजनीति को संस्थागत कर दिया है। इसके ढाँचे में रहते हुए एक भ्रष्टाचार-मुक्त नेपाल की कल्पना करना मात्र एक भ्रम है।

नेताओं की भूलें

यह क्रांति केपी ओली की भारी भूलों के कारण हुई। यदि रामचंद्र पौडेल संसद विघटन की आवश्यकता स्वीकार नहीं करते हैं, तो वे भी एक और आंदोलन को जन्म देंगे। भ्रष्ट संसद से चिपके रहकर वे भी ओली की गलती दोहरा रहे हैं—क्रांतिकारी ऊर्जा को सही दिशा देने के बजाय उसे कमजोर कर रहे हैं।

आगे का एकमात्र रास्ता

रोडमैप एकदम स्पष्ट है:

  • संसद का विघटन।

  • अंतरिम सरकार का गठन।

  • छह महीने के भीतर चुनाव।

इससे कम कोई भी विकल्प क्रांतिकारी भावना के साथ विश्वासघात होगा। यदि रामचंद्र ने विरोध किया, तो जेन जेड एक बार फिर सड़कों पर उतरेंगे और आंदोलन दोहराया जाएगा। नेपाल अब गोल-गोल चक्कर नहीं काट सकता। उसे साहस, स्पष्टता और दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ना ही होगा।



क्रांति केँ शांतिपूर्ण अवतरण: अंतरिम सरकार आ शीघ्र चुनाव

नेपालमे जे क्रांतिकारी माहौल बनल अछि, ओ आधा-अधूरा उपाय सँ समाप्त नहि भऽ सकैत अछि। ओकरा शांतिपूर्ण मुदा निर्णायक ढंग सँ नव राजनीतिक ढाँचा में प्रवेश करय पड़त। आगाँक बाट साफ अछि: संसद विघटन, अंतरिम सरकारक गठन, आ छह मासक भीतर चुनाव।

नेतृत्वक सवाल

अंतरिम सरकारक नेतृत्व सुशीला कार्कीकेँ सौंपल जा सकैत अछि। मुदा एकर सार्थकता तखनहे होएत जँ पहिने संसद विघटित होए। संसद विघटन बिना कोनो अंतरिम प्रधानमंत्रीक नियुक्ति नाम बदलि कऽ पुरनका व्यवस्था जका होएत—यथास्थिति केँ बरकरार राखब मात्र।

चुनावक तात्कालिकता

जाड़क महीनामे चुनाव संभव नहि होएत। मुदा मार्च-अप्रैल धरि नेपाल फेर सँ मतदान कऽ सकैत अछि। ई समयसीमा तैयारी लेल पर्याप्त होएत आ ई सुनिश्चित करएत जे क्रांतिकारी ऊर्जा व्यर्थ नहि होए। जेनरेशन जेड—जे आजुक क्रांति केँ असली चेहरा अछि—लेल ई अवसर छी जे ओ संगठित भऽ कऽ चुनावमे भारी जीत हासिल करए।

वैधता केँ संकट

नेपाल अपन हर संक्रमणकालमे संविधान बदलने अछि। निर्दलीय पंचायती व्यवस्था सँ बहुदलीय लोकतंत्र धरि जाए लेल नव संविधान बनल। गणतंत्र आ संघीयता धरि पहुँचबाक लेल सेहो नव संविधान बनल। मुदा ई वर्तमान संविधान भ्रष्टाचार आ सिंडिकेट राजनीति केँ संस्थागत कए देने अछि। एहि ढाँचा भीतर भ्रष्टाचार-मुक्त नेपालक कल्पना करब फक्त भ्रम अछि।

नेतागणक भूल

ई क्रांति केपी ओलीक भारी भूल सँ भेल। जँ रामचन्द्र पौडेल संसद विघटनक आवश्यकता स्वीकार नहि करैत छथि, तऽ ओ फेर सँ नव आंदोलन केँ जन्म देताह। भ्रष्ट संसद सँ चिपटल रहि ओ सेहो ओलीक गलती दोहरा रहल छथि—क्रांतिकारी ऊर्जा केँ दिशा दएबाक बदला ओकरा कमजोर कए रहल छथि।

आगाँक एकमात्र बाट

रोडमैप बिल्कुल स्पष्ट अछि:

  • संसदक विघटन।

  • अंतरिम सरकारक गठन।

  • छह मासक भीतर चुनाव।

ई सँ कम कोनो विकल्प क्रांतिकारी भावना सँ विश्वासघात होएत। जँ रामचन्द्र विरोध करैत छथि, तऽ जेन जेड फेर सँ सड़क पर उतरी आ आंदोलन दोहराएल जाएत। नेपाल आब गोल-गोल चक्कर नहि काटि सकैत। ओकरा साहस, स्पष्टता आ दृढ़ संकल्प सँ आगाँ बढ़बाक अछि।





No comments: