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Monday, January 07, 2019

सीके राउत की गिरफ़्तारी नेपाल लोकतंत्र न होने का प्रमाण है

सीके राउत को फिर से गिरफ्तार कर लिया गया है।



आप सीके राउत के विचारधारा से असहमत हो सकते हैं। लेकिन एक शांतिपुर्वक अपने बात रखनेवाले व्यक्ति को, शांतिपुर्वक संगठन निर्माण करने वाले व्यक्ति को गिरफ्तार सिर्फ उस राजनीतिक व्यवस्थामें किया जा सकता है जो कि लोकतान्त्रिक नहीं है। ये मानव अधिकार का हनन है। जिस देशमें चुनाव हो वो लोकतंत्र है ऐसी बात नहीं है। लोकतंत्र होना नहोना मानव अधिकार से सम्बंधित बात है। चुनाव तो तानाशाह भी कराते हैं।

क़ानून के शासन का एक नियम है कि एक ही आरोप पर एक व्यक्ति को एक से ज्यादा बार मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता है। लेकिन नेपाल में कानुन का शासन है ही नहीं। पहली बार जब सीके राउतको गिरफ्तार किया गया तो नेपालके सर्वोच्च अदालत ने उन्हें रिहा करवाया। क्यो कि नेपालके संविधान में स्पष्ट लिखा गया है कि वाक स्वतंत्रता प्रत्येक नागरिक का अधिकार है।

लेकिन उसके बाद भी बार बार कइयों बार गिरफ़्तारी हुइ। ये मुसा बिरालो के खेल की तरह हो गया।लोकतंत्र का उपहास होता रहा है।

इस बार तो सर्वोच्च अदालत भी खेल में शामिल हो गया। इस से बड़ा मजाक क्या हो सकता है?

सीके का विश्लेषण सही है कि नेपालके भितर मधेसीको राजनीतिक समानता प्राप्त नहीं है। उस समस्याका समाधान फोरम राजपा वाले कहते हैं संघीयता है। सीके फरक विचार प्रस्तुत करते हैं। संघीयता है तो आ गया आपका संघीयता, तो फिर अब मधेसीको समानता क्यों नहीं मिला?

आप सीके के विचार से असहमत हो सकते हैं। और मैं हुँ। मेरा विचार है लक्ष्य होना चाहिए दक्षिण एशिया का राजनीतिक एकीकरण। मधेस अलग देश क्यों, सारे उपमहाद्वीपको ही एक देश बना दो।

लेकिन मैं सीके के विचार से असहमत हुँ इसका मतलब तो ये नहीं निकलता कि सीके को जेल में ठुँस दो। ये क्या हो रहा है ये? अप्रिल २००६ के १९ दिन के क्रांति में जो नेपाली शहीद हुए वो क्या इसी के लिए शहीद हुवे थे? मधेसी क्रांति १, २, ३, ४ में जो शहीद हुवे वो क्या इसी के लिए शहीद हुवे? नेपाल गणतंत्र के राजनेता क्या सबके सब नवराजा बन गए हैं?

बस भी करो ये तानाशाही।

सीके राउत की मैने आलोचना की है और इसी ब्लॉग पर की है। चुनाव के समय किया। आप इस ब्लॉग के पिछले पन्नों में जा के अभी देख सकते हैं। मैंने कहा है कि आप स्पेन के केटलोनिआ का उदाहरण देते हैं, स्कॉटलैंड का उदाहरण पेश करते हैं। लेकिन आप जिन लोगों की बाते करते हैं वो तो चुनाव लड़ के अपने अपने प्रांतो में सरकार बनाए बैठे हैं। आप क्यों नहीं पार्टी खोलते? आप क्यों नहीं चुनाव लड़ते? आप क्यों नहीं प्रान्तीय सरकार बनाने की सोंचते? महात्मा गांधी की भारतीय कांग्रेस पार्टी अंग्रेज शाषित भारत में चुनाव लड़ा करती थी, और प्रांतीय सरकार बनाया करती थी। आप चुनावी प्रक्रिया से अलगथलग रह के strategic, tactical गलतियाँ कर रहे हैं। ऐसा मैंने कहा है।

लेकिन कोइ अहिंसावादी राजनेता अगर strategic, tactical गलतियाँ करे तो उसे जेल में ठुँस दो, ये कौन सा न्याय है?

सन २००५-२००६ में अमेरिका में रह रहे दो तीन लाख से उपर नेपाली में मैं अकेला था जिसने फुल टाइम नेपालके लोकतान्त्रिक आंदोलन के लिए काम किया। जो नेपाली दो नंबर पर था समय देने के हिसाब से उसने मेरे तुलना में २०% भी समय नहीं दिया।

वो मेरा योगदान मैंने इसलिए नहीं किया कि ये दिन देखना पड़े।

एक राजनीतिक शाश्त्र के अध्येता और विद्यार्थी होते मैं ये देख रहा हुँ कि मधेस अलग देशकी संभावना के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा भु-राजनीति है। भारत और चीन दोनों ही नहीं चाहेंगे कि नेपाल एक से दो देश बन जाए। जबकि भारत चाहता है कि मधेसीको समानता मिले। नाकाबंदी ही कर दिया था।

अगर कोइ बर्लिन की दिवार ढहने साइज का भु-राजनीतिक भुकम्प आ जाये और भारत और चीन ही एक से १० देश बन जाए तो अलग बात है। उस परिस्थिति में मधेस अलग देश संभव है। लेकिन उसकी संभावना क्या है? बल्कि उलटे युरोप के १०-१२ देश एक देश बन जाना चाहते हैं।

लेकिन यहाँ बात भु-राजनीति की नहीं है। मुद्दा मानव अधिकार की है। आप किसी की वाक स्वतंत्रता हनन नहीं कर सकते। नेपाल में लोकतंत्र का उपहास बंद करिए। सीके को तुरन्त रिहा करिए। बन्दर का खेल नहीं लोकतंत्र। लोकतंत्र की अपनी मुल्य मान्यताएँ होती है।

नेपालके नेता लोग कहते रहते हैं विदेश में रह रहे लोग वापस आ जाओ। गया तो वापस सीके। क्या हालत कर के रखे हो? कुछ लोग होते हैं बौद्धिक रूप से प्रखर। कुछ संगठन में कुशल होते हैं। जैसे कि गिरिजा कोइराला संगठन में कुशल थे। लेकिन वो कोइ बौद्धिक लोग नहीं थे इस बात को वो खुद मानते थे। सीके दोनों में माहिर हैं। इस बात की कदर करो। देश के भविष्य की सोचो।

नेपालमा लोकतंत्र बाँदर को हात मा नरिवल?















राजधानीका ठाउँठाउँमा सीके राउतका पोस्टरहरु (६ तस्बिरहरु)
‘काठमाडौँभन्दा बाहिर पनि एउटा शक्ति निर्माण हुँदैछ, त्यो हो जनकपुर’
Asian Human Rights Commission: NEPAL: Dr. C.K. Raut needs urgent medical care and treatment

Friday, December 29, 2017

कम्युनिज्म, समाजवाद र सिद्धांत को कुरो



आज कसैले पृथ्वी गोल छ भनेर ऐलान गर्छ भने उसलाई यो त कस्तो महावैज्ञानिक, पृथ्वी गोल रहेछ भनेर पत्ता लगायो भन्ने कुरा आउँदैन। मदन भंडारी द्वारा प्रतिपादित बहुदलीय जनवाद लाई कम्युनिस्ट ले बहुदल मान्यो भन्ने किसिमले हेर्न सकिन्छ तर कम्युनिस्ट ले नै बहुदलीय व्यवस्था को आविष्कार गर्यो भन्न मिल्दैन। त्यस बहुदलीय जनवाद ले बहुदलीय लोकतंत्र र मिश्रित अर्थतंत्र नै भनेको हो। तर एकदलीय व्यवस्था भएको चीन ले पनि मिश्रित अर्थतंत्र मानेको छ। चीन मा निजी क्षेत्र अमेरिका लाई टक्कर दिने किसिमको छ। मदन भंडारी को बहुदलीय जनवाद वास्तवमैं नया सिद्धांत हो भने त्यो कम्युनिस्ट देश चीन मा पनि लागु हुनुपर्छ। तर नेपालको कुनै पनि कम्युनिस्ट ले चीन सम्म त्यो सन्देश पुर्याएको मलाई थाहा छैन।

हुन त कार्ल मार्क्स ले मर्ने बेला तिर "म मार्क्सवादी होइन" भनेर ऐलान गरेका थिए। आफैले प्रतिपादित गरेको सिद्धांत नाना थरि मानिस ले विभिन्न किसिमले बांगोटिंगो अपव्याख्या गरिदिएको देखेर कार्ल मार्क्स आत्तिएका हुन। स्टालिन को तोड़मरोड़ लेनिन लाई पनि  नपचेको। पार्टी बाट यसलाई निकाल्नु पर्छ सम्म भनेका। लगत्तै देहांत भयो।

मार्क्सवाद को एउटा प्रयोग लेनिनवाद हो, अर्को स्टालिनवाद, तेस्रो माओवाद। लेनिन ले क्रांति मा भन्दा बढ़ी योगदान सिद्धांत मा दिए भन्न मिल्छ। शहर र कलकारख़ाना मा फोकस लेनिनवाद हो। चरम तानाशाही स्टालिनवाद हो। शहर होइन गाउ, कारखाना होइन खेत भनेको माओवाद ले। उद्योग उसै पनि नभएको तेस्रो विश्व का देश हरुमा माओवाद को लोभ देखिनु स्वाभाविक भन्न सकिन्छ।

लेनिन ले गरेको क्रांति को ७० वर्ष जति मा सोवियत संघ विघटन भयो। पश्चिमा देश हरुमा त्यसलाई कम्युनिज्म को पराजय को रुपमा लिने गरिन्छ। तर लेनिन को क्रांति को तीन दशक भित्र अमेरिका मा राष्ट्रपति रुज़वेल्ट ले गरीब हरु को पक्ष मा व्यापक कार्यक्रम हरु ल्याए। अहिले उत्तरी युरोप का देश हरु मा रहेको लोककल्याणकारी राज्य (welfare state) न पुरानो ढर्रा को पूँजीवादी भन्न मिल्छ न कम्युनिस्ट। तर चीन ले त्यसै लाई पनि नक्कल गर्ने जमर्को गरेको छैन।




















अमेरिका को प्राविधि (technology) क्षेत्र का ठुला ठुला इंटरप्रेन्योर (entrepreneur) थुप्रै ले post-capitalism को कुरा गर्न थालेका छन। २० औ शताब्दी को आर्थिक फ्रेमवर्क चाडै नपुग हुनेछ भन्न थालेका छन। चाडै भनेको १०० वर्ष भनेको होइन। १०-२० वर्ष भनेको। Universal Basic Income को कुरा आएको छ।

भने पछि राज्य को रुपरेखा के हुने --- त्यो बहस त ज्वलंत छह विश्वव्यापी रूप मा। त्यस बहसमा नेपालका क्रियाशील राजनीतिज्ञ हरु सामेल हुनु ख़ुशी को कुरा हो।

कम्युनिस्ट लेबल नै किन चाहियो? कम्निस्ट भने पछि हिंसा मा विश्वास गर्ने, एकदलीय व्यवस्था लादन खोज्ने जस्तो अर्थ लाग्छ। समाजवादी शब्द ले हुँदैन? एमाले र माओवादी को एकीकरण गर्ने हो भने नया पार्टी को नाम नेपाल समाजवादी पार्टी राखे हुँदैन? आखिर बहुदलीय लोकतंत्र र मिश्रित अर्थतंत्र दुबै ले मान्ने नै भनेको हो। दुबै लाई मानेर दुबै लाई बरु परिष्कृत बनाउँदै जान मिल्छ।

बहुदलीय लोकतंत्र त मान्ने तर प्रत्येक राष्ट्रिय पार्टी ले पाएको मत को समानुपातिक पैसा राज्य ले नै दिने, पार्टी चलाउन, चुनाव लडन अरु कुनै स्रोत बाट पैसा लिन नपाउने गर्न सकिन्छ।

मिश्रित अर्थतंत्र मा निजी क्षेत्र (private sector) त हुन्छ नै, साथै सरकारी क्षेत्र (public sector) र सहकारी क्षेत्र (cooperative sector) पनि हुन्छ। ती बाहेक अरु पनि हुन्छ। जस्तो कि non profit sector हुन्छ। नया केटेगरी हरु थपिएका छन। जस्तो कि social entrepreneurship . ----- कंपनी त खोल्ने तर त्यसको प्रमुख उद्देश्य मुनाफा नहुने, तर मुनाफा भने कमाउने। यी प्रत्येक सेक्टर अमेरिका मा छ। नेपालमा पनि छ। कसैले आएर नेपालमा निजी क्षेत्र, अथवा सरकारी अथवा सहकारी क्षेत्र आविष्कार गरिदिनुपर्ने अवस्था छैन। तर गुणात्मक (qualitative) र मात्रात्मक (quantitative) कुरा हरु आउँछन। Ratio को कुरा आउँछ। ९०% निजी क्षेत्र ले ओगटेको देश र ५०% मात्र निजी क्षेत्र ले ओगटेको देश दुबै मिश्रित अर्थतंत्र भएर पनि नितांत फरक देश हुन।

अर्थतंत्र को मात्र कुरा छैन। सामाजिक मुद्दा हरु छन। लैंगिक, क्षेत्रीय, जातीय, सांस्कृतिक आदि। समानता को प्रतिभुति प्रत्येक मानव सम्म पुग्नु पर्छ। संसदमा महिला को सहभागिता को सवाल मा नेपाल ले चीन, भारत, अमेरिका, बेलायत, रूस, जापान सबै लाई उछिनेको छ। त्यो सराहनीय कुरो हो। मधेसी, जनजाति, दलित लाई पनि त्यसै गरी समेट्नु पर्छ।

नेपाल को माटो सुहाउँदो भनेको त हाइड्रो समाजवाद हो। भुटान को देखासिखि १०-२० हजार मेगावाट उत्पादन गर्ने र राजा वीरेंद्र को भाषा मा सबै नेपाली को आधारभूत आवश्यकता पुरा गर्ने। १० वर्ष भित्र मधेसमा सौर्य उर्जा बाट पहाड़ मा हाइड्रो बाट भन्दा बढ़ी बिजुली उत्पादन गर्न सकिने हुन्छ। सौर्य प्रविधि को मुल्य को गिरावट त्यस किसिम को हुने प्रक्षेपण गरिँदैछ।

एमाले र माओवादी मिलेर समाजवादी पार्टी बनाउने। फोरम र राजपा त्यस पछि एकीकरण गर्नै पर्ने हुन्छ। काँग्रेस मा पनि देउबा र पौडेल को शायद एकीकरण हुँदै गर्ला।





Saturday, October 28, 2017

महेंद्र पथ भनेको चीनको एक भाषा, एक भेष, एक देश र तैं चुप मैं चुप नै होइन र?









महेंद्र पथ भनेको चीनको एक भाषा, एक भेष, एक देश (unitary state) र तैं चुप मैं चुप (no free speech) नै होइन र?


राजा महेंद्र ले चीन र भारत लाई एक अर्का विरुद्ध प्रयोग गरेका होइनन कि चीन लाई अँगालेका हुन। वाक स्वतंत्रता को समाप्ति, संगठनको स्वतंत्रता को समाप्ति, एक भाषा, एक भेष, एक देश ---- त्यो सब चिनिया मोडल हो। अझ माओ पनि राजा जस्तै थिएनन र? आजीवन शासन गरे। अहिले ओली महेंद्र पथमा हिडेको भन्नु पुर्ण सत्य भएन। अब ideology export गर्नु चीनको घोषित नीति नै भइसकेको अवस्था मा नेपाली जनता ओलीसँग सतर्क हुनुपर्छ। नेपाल चीन का लागि आकर्षक छ। भारत र अमेरिका दुबै लाई एकै पटक नीचा देखाउन मिल्ने ठाउँ।

दुई तिहाई ल्याएर संविधान संसोधन गर्छु भनेको के ओली ले? बहुदल, वाक स्वतंत्रता आदि लाई तत्काल लाई मान्नुपरे मानने पछि फाल्ने भनेको हो कि?

भन्दैमा भारत कै राजनीतिक सिस्टम राम्रो, अमेरिका को फोटोकॉपी गर्नु पर्छ भन्ने होइन। लोकतंत्र जुन जुन देशमा छ त्यस्तो प्रत्येक देशमा आफ्नै विशिस्ट किसिमको छ। उत्तरी युरोप मा रहेको लोकतंत्र लाई त औपचारिक रूप मा नै समाजवाद नै भन्ने गरिन्छ। तर त्यस्तो प्रत्येक ठाउँ मा मानव अधिकार को पुर्ण गारंटी छ। वाक स्वतंत्रता छ कि छैन भन्नेमा दुईमत छैन। विभिन्न राजनीतिक पार्टी को meaningful अस्तित्व छ।

तर चीन ले भनेको समाजवाद उत्तरी युरोप को जस्तो होइन। ओली ले भनेको समाजवाद त चीन को जस्तो पनि होइन। ओली को आइडियोलॉजी त नाङ्गो माफ़ियातंत्र र सिंडिकेट राज हो, लुटतंत्र हो, Tammany Hall हो।

बीपी कोइराला लाई लेखक, विचारक भन्न मिल्छ, तर कुशल राजनीतिज्ञ भन्न मिल्दैन। महेंद्र ले कु गर्ने कुरा महिनौं सम्म थाहा पाएर पनि sitting duck भएर बसे। नेहरू को मा कूदेर जानु पर्ने थियो। माओ र नेहरू बीच को फरक बुझ्न सक्नुपर्थ्यो। नेपालमा राजनीति गर्न त्यति geopolitics त बुझ्न सक्नुपर्छ।




Thursday, April 07, 2016

नेपालमा लोकतंत्र र व्यक्तिको निर्माण

लोकतंत्र भनेको एक व्यक्ति, एक मत, एक आवाज। व्यक्ति को राजनीतिक निर्माण हुनुपर्यो। त्यस व्यक्तिले निष्पक्ष निर्वाचनमा निर्धक्क मत खसाल्न पाउनुपर्यो। त्यस व्यक्तिले बोल्न पाउनु पनि पर्यो बोल्नु पनि पर्यो, बोलेको ले असर गर्नु पर्यो।

नेपाल मा व्यक्ति को निर्माण भएको छैन कि भनेर सोध्नु पर्ने भएको छ। लोकतंत्र लथालिङ्ग भएको छ। त्यसमा व्यक्ति को राजनीतिक निर्माण नभएर हो कि? व्यक्ति को राजनीतिक निर्माण मानव अधिकार ले गर्छ। धर्म निरपेक्षता बिना मानव अधिकार हुँदैन। नेपालको संविधानमा धर्म निरपेक्षता छैन। सनातनी ले आफ्नो धर्म घुसाउन भ्याएको छ। वाक स्वतंत्रता को हनन। प्रहरीको बल प्रयोग लोकतान्त्रिक राज्य मा जस्तो छैन।

तर मानव अधिकार त अझ पछि हो। मानव अधिकार खोज्ने व्यक्ति को निर्माण पनि नभए जस्तो देखिन्छ। म एउटा यूनिक व्यक्ति हुँ। म जस्तो अरु कोही पनि छैन। मेरो आत्मा छ। त्यो आत्मा लाई स्वर्ग लानु छ भन्ने चेतना नभएको व्यक्ति लाई व्यक्ति नै भन्न मिल्दैन। आफ्नो निर्णय ले आफ्नो आत्मा लाई स्वर्ग लाने निर्णय गरेको र मृत्यु माथि विजय प्राप्त गरेको व्यक्ति व्यक्ति हो। अनि त्यस व्यक्ति ले मानव अधिकार खोज्छ। अनि व्यक्ति को राजनीतिक निर्माण हुन्छ। अनि त्यस व्यक्ति ले मताधिकार खोज्छ। आवाज खोज्छ। बोल्छ।

नेपाल मा व्यक्ति को निर्माण भएको छैन जस्तो देखिन्छ। लोकतंत्र लथालिङ्ग छ।

चुनाव मा धाँधली मात्र होइन, कदम कदम मा लोकतंत्र को हनन भएको छ।

God
India And God

जीजस ले जेरूसलम मा बाहुनवाद का विरुद्ध अहिंसात्मक जिहाद छेड़ेका हुन। किनभने त्यति बेला पुजारी हरुको एउटा वर्ग थियो जो परमेश्वर र आम आदमी बीच एउटा पर्खाल बनेर बसेको थियो। त्यस पर्खाल लाई भत्काउनु पर्ने थियो। नेपाल को बाहुनवाद भनेको त्यही पर्खाल हो। त्यो पर्खाल भारतमा पनि भत्काउनु पर्ने छ। एउटा मनुष्य को परमेश्वर सँग सीधा सम्बन्ध हुनुपर्छ। बाहुन पुजारी मीडिएटर को आवश्यकता छैन। बाहुन ले बाटो मा ढाट बाँधेर पैसा उसुलेर बसेका छन। त्यो पर्खाल नभत्काए सम्म देशले लोकतान्त्रिक र आर्थिक प्रगति गर्ने देखिँदैन।

जीजस क्रांतिकारी थिए।

परमेश्वर ले तपाइँ को भाषा संस्कृति लाई समस्या मान्ने कुरै छैन। तर परमेश्वर चाहनु हुन्छ तपाइँको आत्मा स्वर्ग पुगोस। तर त्यसको लागि तपाइँ ले परमेश्वर सँग सीधा संपर्क गर्नु पर्ने हुन्छ। त्यो काम तपाइँ का लागि अरु कसैले गरि दिन मिल्दैन।




Thursday, October 01, 2015

In The News (1)



वार्ता टोलीलाई विशेष निर्देशन दिइएको छ : झलनाथ खनाल
निषेधित क्षेत्र हटाउने, सेना फिर्ता गर्ने, आन्दोलनमा संलग्नहरुमाथि लागेका मुद्दा फिर्ता गर्ने लगायतका बिषयमा सरकार सकारात्मक बनेको छ । त्यसैले अब उहाँहरु (आन्दोनलकारी दल) ले पनि नाकाबन्दी फिर्ता गर्नुपर्‍यो । ..... धेरै बिषयहरु त संविधानले सम्बोधन गरिसकेको छ । त्यही कुरा हाम्रो टोलीले बुझाउने कोशिस गर्नेछ । ..... जनसंख्याको आधारमा क्षेत्र निर्धारण गर्ने भन्ने एउटा सिद्धान्त हो । तर, भूगोललाई अलग गरेर जनसंख्याको मात्र आधारमा निर्धारण गर्ने कुरा व्यवहारिक हँुदैन । त्यसैले संसारभर भूगोल र जनसंख्या दुवैलाई आधार मानिन्छ । हाम्रोमा पनि त्यही हो । यो कुरा उहाहरुले बुझ्नै पर्छ । जहाँसम्म सीमांकनको कुरा छ त्यसलाई आयोग बनाएर टुंग्याउने भनिएकै छ ।
प्रधानमन्त्रीले भोलि राजीनामा दिनसक्ने
संविधान कार्यान्वयनको लागि प्रधानमन्त्रीले राजीनामा दिनसक्ने
शुक्रबार हिउँदे अधिवेशन सुरु
मधेसी मोर्चा–तीन दल वार्ता निष्कर्षविहीन
मृतकलाई सहिद घोषणालगायत विषयमा सरकारी टोली सहमत भए पनि घाइतेको संख्या किटानीमा मतभेद चलिरहेको छ .... ‘उहाँहरुले घाइतेको संख्या धेरै नरहेको जिकिर गरिरहनुभएको छ, ठाकुले घटनास्थल र अस्पतालमा गएर संख्या हेर्न चुनौती दिनुभएको छ’ ..... आजको बैठक औपचारिक विषयमा प्रवेश गर्ने सम्भावना कम रहेको ..... वार्ताका लागि मधेसी मोर्चाले पाच शर्त राखेकोमा दंगाग्रस्त क्षेत्रबाट सेना सोमबारै फिर्ता भइसकेको छ । आन्दोलनका मृतकलाई सरकारले १० लाखको दरले उपलब्ध गराइसके पनि मोर्चाले सहिद घोषणा गर्नुुपर्ने माग राखेको छ । मृतकका परिवारलाई क्षतिपूर्ति, आन्दोलनका घाइतेको उपचार, गिरफ्तारको रिहाई र मुद्दा फिर्ता जस्ता माग शर्तका रुपमा अघि सारिएको छ । सरकारी टोलीले मोर्चाका पूर्वशर्तहरु पूरा गर्ने, तर त्यसका लागि भारतीय सीमाक्षेत्रमा जारी आन्दोलनकारीको धर्ना रोकिनुपर्ने प्रस्ताव गरेको छ । ....

मोर्चाले भने वार्ताले सुरु नहुन्जेल सीमा नाकाको धर्ना नरोकिने अडान राखेको छ । राजनीतिक मागमध्ये २०६३ मा भएको आठ बँुदे सहमतिमा स्वायत्त मधेस प्रदेश हुनेगरी संघीय सीमांकन, जनसंख्याका आधारमा निर्वाचन क्षेत्र, समानुपातिक समावेशी आधारमा प्रतिनिधित्वजस्ता बुँदा कार्यान्वयन हुनुपर्ने माग मधेसी मोर्चाको छ । संविधानको प्रस्तावनामा मधेस आन्दोलन उल्लेख हुनुपर्ने थप माग आन्दोलनकारीको छ ।

..... हिजो रौतहटमा आन्दोलनरत मधेशी मोर्चाको बैठक सकेर काठमाडौं फर्किएका तमलोपा अध्यक्ष महन्थ ठाकुरसँग वार्ता गर्ने तयारी भएको छ । ..... सरकारले वार्ताका लागि ठोस प्रस्ताव नल्याएको मोर्चाले बताउँदै आएको छ ।
कोइरालाको निर्देशनमा अमरेशको कारबाही रोकियो



मधेस आन्दोलनमा राज्यबाट मानव अधिकारको गम्भिर उल्लंघन : गगन थापा
मधेस आन्दोलनका बेला राज्यका तर्फबाट भएको मानव अधिकार हनन्को राष्ट्रिय मानव अधिकार आयोगले छानबिन गर्नुपर्ने माग


तमलोपा सह महामन्त्री सोनल रिहा
जिल्ला अदालतले अदालतले तराईमधेसमा जारी आन्दोलनको क्रममा पक्राउ परेका तराई मधेस लोकतान्त्रिक पार्टीका सह महामन्त्री जितेन्द्र सोनल र केन्द्रीय सदस्यसमेत रहेका जिल्ला अध्यक्ष नवलकिशोर सिंहलाई रिहा गर्ने आदेश दिएको छ । न्यायाधीश भोजराज शर्माको इजलासबाट बन्दी प्रत्यक्षीकरणको आदेश जारी भएपछि उनीहरु रिहा भएका हुन् । ..... अधिकार क्षेत्र नाघेर प्रमुख जिल्ला अधिकारीले सार्वजनिक अपराधअन्तर्गत मुद्दा चलाएर कारागार पठाएको विरुद्धमा जिल्लाका बार एसोसिएसनका अध्यक्ष रामचन्द्र सिंहसहितका अधिवक्ताहरुले बन्दी प्रत्यक्षीकरणको रिट दायर गरेका थिए ।

तीन दिनको बहसपछि यस्तो आदेश भएको हो ।

'प्रजिअले गैर कानुनी रुपमा मुद्दा चलाएकोले मुद्दा खारेजसहित बन्दी रिहा गर्ने आदेश भएको छ,' अधिवक्ता अरुण दुबेले भने, 'प्रजिअले संविधान र कानुन मिचेर अधिकार क्षेत्र भन्दा बाहिर गएर मुद्दा चलाएका थिए, त्यसैले मुद्दा खारेज भएको हो ।'

बारा-पर्साका झन्डै ४० जना अधिवक्ताले बहस गरेका थिए ।



वार्ताप्रति सरकार गम्भीर छैनः यादव
संघीय समाजवादी फोरम नेपालका अध्यक्ष उपेन्द्र यादवले सरकारले वार्ताको नाममा 'गफ' मात्र गरिरहेको आरोप लगाएका छन् । वीरगन्ज र सीमावर्ती सहर रक्सौलबीचको मितेरी पुलमा विगत ८ दिनदेखि जारी धर्नामा बिहीबार सहभागी हुन आएका अध्यक्ष यादवले वार्ताप्रति सरकार गम्भीर नभएको बताए ।

'अहिले वार्ता हैन्, गफ मात्र भइरहेको छ,' धर्नास्थलमा कान्तिपुरसँग बोल्दै यादवले भने, 'गफबाट मुलुकले निकास पाउँदैन् ।'

वार्ताको वातावरण बनाउनका लागि मोर्चाले पेश गरेको ५ शर्त हालसम्म सरकारले पुरा गरेको छैन् । 'मधेस आन्दोलनका क्रममा ज्यान गुमाएकाहरुको सूची मोर्चाले पेश गरिसकेको छ,' उनले भने, 'हालसम्म शहिद घोषणा गर्ने काम भएको छैन् ।' ...... राज्यले मधेसीलाई नेपाली नै मान्दैन् । माग पूरा नहुन्जेल नाकाबन्दी र असहयोग आन्दालेन जारी रहने उनले दाबी गरे । खास जाति विशेषको कब्जामा रहेको राज्य केही अवसरवादी र स्वार्थी तत्वको कब्जामा रहेकाले मुलुकले निकास नपाएको उनले गुनासो गरे । आन्दोलनबाटै जनताले राज्यको स्वरुप परिवर्तन गर्ने उनले दाबी गरे । विगतमा भएका सम्झौता कार्यान्वयनको थालनी समेत गरिएको छैन् । राज्यले ठोस निर्णय गरेर अगाडि बढेमा मात्र सार्थक वार्ता हुने यादवले बताए ।


काठमाडौं र मधेसको साइनो
नेपालको राजनीतिक भूगोलको सुनिश्चितता नहुन्जेलसम्म दक्षिणी नेपालका बासिन्दाको काठमाडौंसँगको सम्बन्ध लुकाचोरीझैं रह्यो । मधेस काठमाडौंका लागि विर्ता–मौजा, सिकार खेल्ने ठाउँ वा प्राकृतिक संसाधनको दोहनकै रूपमा उपयोग भइरह्यो । सिमरौनगढ राज्य पतन भएपश्चात् काठमाडौंसँग पहिलोपटक यस क्षेत्रले आश्रय पाएको थियो । सुगौली सन्धि र त्यसपश्चात् नयाँ मुलुकको रूपमा पश्चिम तराईका हिस्सा प्राप्त भइसकेपछि २००७ सालसम्म काठमाडौंसँगको सम्बन्ध एक प्रकारको देखिन्छ । ..... संविधानसभाको प्रक्रियामा मधेसको एउटा हिस्सा सामेल भएर पनि बाहिरियो भने ठूलो हिस्सा प्रक्रियामा सामेल नै भएनन् । पहिलेदेखि नै संविधानसभाको निर्वाचनमा भाग नलिएका मधेसी शक्तिहरू त छँदै थिए । अहिले मधेसको कोणबाट भन्दा अंकगणित नयाँ संविधान निर्माणको पक्षमा देखियो अर्थात् मधेसी दलबाहेक यस क्षेत्रबाट जितेका सबैले संविधानको विधेयक पारित गर्दा हस्ताक्षर गरेका छन् । तर असहमति प्रकट गर्दै आहुति दिनेहरूको पक्ष डेढ महिनादेखि शान्तिपूर्ण आन्दोलनमा छन् । मधेसीले संविधानलाई यथास्थितिमा स्वीकार गर्दैन मात्र भनिरहेका छैनन्, काठमाडौंले हाम्रो वर्तमान र भविष्यको नाकाबन्दी गर्‍यो भन्ने आरोपसमेत लगाइरहेका छन् । ...... आन्दोलनकारी मधेसीहरूको बुझाइमा सार्वभौम संविधानसभाबाट निर्मित संविधानमार्फत मधेसी सपनाको ‘नसबन्दी’ गरिएको छ । विगतदेखि नै काठमाडौंसँग संवैधानिक सम्मान र सुरक्षाका लागि मधेसले सङ्घर्ष गर्दै आएको छ । तर पनि ऊ काठमाडौंसँग नै जोडिएर बस्नुमा नै आफ्नो सर्वोत्तम भविष्य देख्छ । हो, त्यसैले उसले आक्रोश र उत्तेजनामा काठमाडौंप्रति तिक्तता पोखे पनि मूलरूपमा ऊ काठमाडौंलाई अत्यन्त मनपराउँछ । काठमाडौं सबैको साझा बनोस्, राज्यमा स्वामित्व देखियोस् भन्ने चाहनामात्र उसको हो र यो नै मधेसको मूलधारको मनोविज्ञान पनि हो । .... सङ्घीयता होस् वा समानुपातिक समावेशी त्यसको फाइदा मधेसले मात्र लिने होइन । यस अर्थमा मधेसी आन्दोलनलाई केवल कुनै समुदाय वा क्षेत्रको आन्दोलन बुझ्नु अपुुरो र पूर्वाग्रही हो । दक्षिणी नेपाल आन्दोलित देखिए पनि आन्दोलनको परिणामले राष्ट्रकै मनोविज्ञान र मार्गचित्रमा परिवर्तन ल्याउँछ । .... आन्दोलन भइराखेका जिल्लाहरूको दक्षिणी क्षेत्रमा देखिएको सहभागिताको अनुपातमा उत्तरी क्षेत्रमा उदासीनता देखिन्छ । .... काठमाडौंको निर्माणमा मधेसको रगत र पसिना बगेको छ । काठमाडौंमा जुन वैभव छ, त्यसको सिर्जनामा मधेसी मन र मस्तिष्क खर्चिएको छ । काठमाडौंको पारम्परिक परम्परा र संस्कृतिमा मधेसको सुवास छ । काठमाडौं र मधेसबीच अन्तरघुलन र अन्तरनिर्भरताको सम्बन्ध पनि छ । त्यो कुन अर्थमा भने काठमाडौंमा मधेसीको उपस्थिति र स्वीकार्यताको अवस्था तथा मधेसमा काठमाडौंको प्रतिनिधिका रूपमा पहाडी समुदायको आगमनको अवस्था र सामाजिक सम्बन्धको विन्यासको रूप । औलो उन्मूलनपश्चात् राज्य संरक्षणमा पहाडी समुदायको आगमनको चरण र त्योभन्दा पहिला विभिन्न कालखण्डमा विर्ता, मौजा, व्यापार, जागिर, उपत्यका निकाला वा अन्य अवसरको खोजीमा आएकाहरूको सन्दर्भ र यी दुइटै चरणमा आएकाहरूबारे आम मधेसीले राखेको बुझाइले पनि काठमाडौंबारे मधेसको धारणा बनाउन बल पुर्‍याउँछ । अनुभवले के देखाएको छ भने बसाइँ–सराइ गरेको भन्दा पनि पहिलेदेखि स्थापित पहाडी समुदाय मधेसी जीवनसंँग बढी अन्तरघुलित छन् र मधेसको मुद्दाप्रति उदार पनि । संविधान निर्माणको क्रममा मधेसमा बसाइँ–सराइ गरेर राजनीतिक शीर्षमा पुगेकाहरू प्रभावशाली हुनपुग्दा काठमाडौं अपेक्षा विपरीत अनुदार हुनपुगेको विश्लेषण छ ।.......

मधेसको मूलधार मधेसप्रति मात्र चिन्तित छैनन्, ऊ काठमाडौंमार्फत समग्र नेपालमा उन्नति, स्थिरता र शान्ति चाहन्छ । मधेस आफू माझको उच्चतम सम्भावनाहरूको उन्नयन गरी नेपालको सर्वोत्तम हितमा समर्पित गर्न चाहन्छ । ऊ मधेसको मात्र होइन, नेपालको कार्यकारी सेवक बन्न चाहन्छ ।

..... काठमाडौंसँगको सम्बन्धले देशभित्र मात्र होइन, भू–राजनीतिक सन्तुलनमा पनि मधेसको भूमिका निर्णायक छ । मधेसको भौगोलिक अवस्थिति, विविधतायुक्त जनसाङ्ख्यिक बनोट, जनघनत्व र पहिचानको गहिरोपनले गर्दा यस क्षेत्रमा मध्यमार्गी धारले आयतन पाएन भने यसले अस्थिरता र तुरूपको नियति भोग्न सक्छ । त्यसले गर्दा मधेस र काठमाडौं बीचको सुमधुर सम्बन्धले काठमाडौंलाई भूराजनीतिक सन्तुलन मिलाउन सहज हुनसक्छ ।
मोदी मोडलको कूटनीतिक रचना
छिमेकका प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी नाकाबन्दीको कुरूप मोडल लिएर ५६ इन्चको छाती देखाउँदै नाकाहरूमा ओर्लेलान् भन्ने हाम्रा वर्तमान र भावी प्रधानमन्त्रीहरूले सपनामा पनि सोचेका थिएनन् होला । तर ओर्लिए । अखबारहरूले ‘अघोषित नाकाबन्दी’ भने तापनि सरकारका अर्थमन्त्रीले अन्तर्राष्ट्रिय कूटनीतिक समुदायलाई बोलाएर ‘भारतीय पक्षबाट नाकाबन्दी भइरहेको’ सुनाए । अर्कातर्फ कूटनीतिक प्रयासका लागि एकजना मन्त्री दिल्ली पुगे । दुईजना मन्त्रीले न्युयोर्कमा मोदीलाई भेट्ने असफल प्रयास गरे । ‘आन्दोलन’को आडमा भारतीय पक्षले गरिरहेको यो ज्यादती धेरै दिन टिक्ने छैन । किनभने नाकाबन्दी लगाइरहनका लागि मोदीसँग न तर्क छ, नत तुक नै बाँकी रहनेछ । ..... संविधान जारी भएपछि मुख्यत: आदिवासी थारु समुदायलाई वर्तमान संविधानले सम्बोधन गर्न नसकेको टिप्पणी र अन्तरिम संविधानमा व्यवस्थित गरिएका अधिकारसमेत कटौती गरिएकोमा भइरहेका आन्दोलनमा सम्बन्धित समुदायमात्रै होइन, गैर–आदिवासी वा गैर–मधेसीहरूले पनि आफ्नो क्षमता स्तरमा ऐक्यबद्धता जनाउँदै आएका हुन् । ..... गैरराजनीतिक (ब्युरोक्रयाट) मानिस सन्देश बोकेर आउँदा राजनीतिक विकल्प होइन, आदेश सुनाउन आउँछ भन्ने बुझ्न कुनै कठिनाइ हुन्न ....

हाल भइरहेको तराई–मधेस आन्दोलनका मुद्दा मोदी प्रशासनले अपहरण गर्‍यो

..... आन्दोलन छचल्किएर पोखिने (स्पिल ओभर इफेक्ट) निहँुमा गरिएको नाकाबन्दी र राजनीतिक दबाब सार्वभौम मुलुकमाथि ठाडो हस्तक्षेप हो । यो गैरकूटनीतिक, प्रभुत्ववादी हैकमको भारतभित्रै बीजेपी बाहेकका कंग्रेस, सीपीएम लगायत प्राय: सबै राजनीतिक दलहरूले तीव्र विरोध जनाइरहेका छन् । ..... सर्वव्यापी निन्दाबाट बच्न केही दिनभित्रै प्रत्यक्ष नाकाबन्दी हटाएर राजनीतिक तथा कूटनीतिक बाटो अख्तियार गर्नु भारतीय पक्षका लागि श्रेयस्कर हुनेछ । .... उनी प्रधानमन्त्री भएपछि उनकै स्वीकृतिमा बंगलादेशमा सत्तारुढ दलले विपक्षीमाथि हालसम्म गरिरहेको व्यवहार, श्रीलंकाली निर्वाचनमा भारतको परोक्ष भूमिका र पाकिस्तानसँगको सवाल—जवाफ सामान्य थिएनन् र होइनन् । हालै चिनियाँ अर्थतन्त्रमा देखिएको ‘लाक्षणिक–संकट’बाट फाइदा कसरी उठाउने भन्ने प्रधानमन्त्रीको तहमा गरिएको खुला बहसलाई कहीं शोभनीय ठानिएन । ..... यद्यपि उनी जलस्रोतको भरपुर उपयोगमार्फत कृषिमा उत्पादकत्व बढाउने र गिटी, ढुंगा, बालुवाको भरपुर दोहनमार्फत हराभरा ‘स्मार्ट सिटी’को सपना उत्तर भारतका प्रदेशहरूमा सजाएर लोकप्रियता जोगाउन चाहन्छन् । यसका लागि उनका आँखा भारतका अन्य शासकहरूझैं नेपाली जलस्रोतको दोहन र

चुरे प्रदेशमा रहेको गिटी, ढुंगा बालुवा र काठ–पातमा अड्किएको भान हुन्छ ।

उपलब्धिका लागि उनलाई लगानी बोर्ड, ऊर्जा र वन मन्त्रालय चलाउने काठमाडौंका शासक र मधेसका ठालु सामन्त दुवै चाहिन्छन् । तर वर्तमान हर्कतमार्फत उनले दुवै सन्तुलन गुमाउन पुगे । ....... भारतमा मोदीको उदयसँगै नेपालमा मोदीमेनिया (मोदी प्रेम) यति धेरै बढ्यो– भनिसाध्यै छैन । हिजोआज

हेलिकप्टरमा तेल ल्याएर भए पनि खाँचो टार्ने ‘हमजायगा मार्काको’ गफ दिइरहेका गृहमन्त्री

सुनकोशीको जुरे पहिरोमा फँसेका मानिसहरूको उद्धार, डुबानमा फँसेकाहरूको उद्धार र नदी थुनिएर पानी भरिँदै जाँदा र अकस्मात खोलिँदा तल्लो तटमा आउन सक्ने संकटलाई अनदेखा गरेर, जनताप्रतिको आफ्नो कर्तव्यपालन भुलेर प्रधानमन्त्रीसहित विमानस्थलको पटांगिनी साष्टङ्ग दण्डवत गर्ने मुद्रामा मोदी–अभिनन्दनमा लाम लागे । बुद्ध नेपालमा जन्मिएको कुरा गर्दामात्रै होइन, ‘पहाडको पानी र जवानी ढिलो—चाँडो दक्षिणतिरै बग्छ’ भनिरहँदा प्रचण्डदेखि कमल थापासम्म, केपी ओलीदेखि राजेन्द्र महतोसम्म र रामचन्द्र पौडेल, गगन थापादेखि रविन्द्र अधिकारीसम्म संसदको डेस्क भाँच्चिनेगरी ताली ठोकिरहेका थिए । तिनको शब्दैपिच्छेको ताली ठोकाइ र अहिलेको थाप्लो ठोकाइ (मोदीफोबिया) बीचको साइनो सम्बन्धबारे अर्को कुनै लेखमा लेखौंला । तर अत्यन्त हर्षित हुने र मात्तिने, अत्यन्त दुखित हुने आत्तिने प्रवृत्ति राजनीतिका लागि भयंकर घातक हुन्छ भन्ने पाठ सिक्न जरुरी छ । .........

२०४५ साल आयो र गयो । त्यो नाकाबन्दी ‘इगो’ र ‘इमोसन’को परिणाममात्रै थिएन । राष्ट्रिय–राज्य नभइसकेको एउटा ‘फ्रन्टियर स्टेट’को राष्ट्रिय–राज्य बन्ने अमूर्त चाहनामाथिको हस्तक्षेप थियो ।

...... नेपाली राजनीतिमा भारतीय थिचोमिचो नयाँ होइन । २०६२/६३ पछि राजनीतिमा ‘माइक्रो–म्यानेज’ गर्ने तहसम्म भारत लागिपरेको चर्चा नयाँ होइन । पछिल्लो निर्वाचनपछि कांग्रेस–एमालेको सहयात्रा होस् या मधेस आन्दोलनमा

उपेन्द्र यादवको उतार–चढाव–उतार र बाबुराम भट्टराईको माओवादी प्रत्यागमन

सम्म आइपुग्दा उसको संलग्नता देख्नेहरूको भरमार लाइन छ । हावा नआई पात हल्लिएको पक्कै होइन होला । सबैलाई थाहा छ, तर शासन सत्तामा रहुन्जेल शीर्षहरू बोल्दैनन् । सत्तामा पुग्ने सुनिश्चितताका लागि ‘फाष्ट ट्रयाक’ सुम्पनेदेखि नदीनाला ओगट्न दिने प्रतिबद्धतासम्ममा पछि परेको देखिन्न । .......

हालकै परिदृश्य पच्छयाइरहने हो भने मोदी–मोडलको हस्तक्षेपको सामना जन्मजन्मान्तर गरिरहनुपर्ने हुन्छ ।



धमाधम उद्योग बन्द

पोखरा औद्योगिक क्षेत्रका उद्योगहरू धमाधम बन्द हुन थालेका छन् । सडकमा सवारी आवागमन घटेको छ । पेट्रोलियम पदार्थ ल्याएर सुटुक्क बाँड्लान् भनेर सवारीको भिड पेट्रोल पम्पहरूमा बढेको छ । सार्वजनिक यातायातका सवारीको संख्या पनि घटेको छ ।

...... पोखरा– औद्योगिक क्षेत्रभित्रको पोखरा नुडल्सले बुधबार अर्को व्यवस्था नहुँदासम्म भन्दै साढे ४ सय कर्मचारी र मजदुरलाई घर पठाएको छ । कच्चा पदार्थ नै नभएपछि चाउचाउ उत्पादन बन्द भएकाले उद्योगले उनीहरूलाई घर पठाएको हो । ‘कर्मचारी, मजदुर उद्योगमा आए पनि काम छैन, त्यसैले घर जान भनेका छौं,’ नुडल्सका कार्यकारी सञ्चालक बाबुराम पन्तले भने, ‘जहिले उद्योग खुल्छ त्यतिबेला आउन भनेका छौं ।’ उद्योगले रम्बा, बोनस, जोजाजस्ता चाउचाउ उत्पादन गर्छ । ..... गौरीशंकर फुड्स प्रालि पनि बुधबारदेखि नै बन्द भएको छ । उसले पनि मजदुरहरूलाई स्वैच्छिक बिदामा प्रोत्साहन गरिरहेको छ । विभिन्न २४ ब्रान्डका बिस्कुट उत्पादन गर्दै आएको उद्योगका लागि आवश्यक कच्चा पदार्थ अभाव भएपछि बन्द भएको हो । इन्धन, तेल, घिउ, चिनी, मैदा, पाम आयल, र्‍यापर, कार्डबक्स, फ्लेवरजस्ता कच्चा पदार्थ नभएपछि उद्योग बन्दको विकल्प नभएको सञ्चालका धर्मराज अधिकारी बताउँछन् ।

‘अघोषित नाकाबन्दीले समस्यामा परियो,’ उनले भने, ‘घोषित रूपमै उद्योग बन्द गरेका छौं ।’

दुई दिन स्वैच्छिक अवकाश लिएका मजदुरलाई उद्योगले थप दुई दिन दिएर घर पठाइएको छ । ...... आवश्यक कच्चा पदार्थ अभावमा उद्योगहरू धमाधम बन्द भएका छन् । अहिलेसम्म जेनतेन थेगे पनि सबै कच्चा पदार्थ अभाव भएपछि कर्मचारी, मजदुरलाई बिदा दिएर उद्योगहरू बन्द भएका हुन् ।

‘उत्पादन बन्द भएको छ, अलिअलि उत्पादन भएको पनि बजार पुर्‍याउन सकिएको छैन,’ अधिकारीले भने, ‘बजारबाट असुली पनि उठाउन सकिएको छैन । अब बैंकको ब्याज बुझाउन पनि मुस्किल भएको छ ।’

औद्योगिक क्षेत्रभित्रका र बाहिरका पनि अधिकांश उद्योग बन्द भइसकेको उद्यमीले बताएका छन् । ....... ताजा पाउरोटी उद्योगका सञ्चालक विनोद शर्मा न्यौपाने बजारमा कतै डिजेल पाइन्छ कि भन्दै भौंतारिँदै थिए । ‘भएको स्टक सकिएको र एक दिन मात्रै भए पनि उद्योग सञ्चालनमा ल्याउन सकिन्छ कि भनेर डिजेलको खोजीमा लागेको हुँ,’ उनले भने, ‘तर पाइएको छैन ।

यस्तै चालाले कर्मचारीलाई दसैंको मुखमा तलबभत्ता, बोनस बाँड्न नपाइने हो कि भन्ने चिन्ता लागेको छ ।’

..... विभिन्न कच्चा पदार्थ, इन्धन, केमिकल, प्याकेजिङका सामान आउन छाडेपछि उद्योग बन्दको विकल्प नभएको ...... अधिकांश कच्चा पदार्थ भारतबाट आउने भएकाले अभाव भएको बताए । ‘नेपालभित्रै पाइने कच्चा पदार्थ पनि ल्याउन पाइएको छैन,’ उनले भने,

‘औद्योगिक क्षेत्रभित्रका अधिकांश उद्योग बन्द भइसकेका

र केही हुने क्रममा छन् ।’ ...... खाद्यान्न, स्टिल फेब्रिकेसन, डेरी, स्टेसनरी, अक्सिजन ग्यास, पानी, प्लास्टिक, फर्निचर ..... पोखरा उद्योग वाणिज्य संघका अध्यक्ष विन्दुकुमार थापाले अघोषित नाकाबन्दीको असर उद्योगधन्दा लगायतका सबै क्षेत्रमा देखिइसकेको बताए ।

‘पेट्रोलियम पदार्थको अभावमा अहिले सडकमा एक चौथाइ मात्रै गाडी चलेका छन्,’ उनले भने, ‘उद्योगधन्दा ठप्पप्राय: भएका छन् ।’

...... बजारमा खाना पकाउने ग्यास र निर्माण सामग्रीको पनि अभाव भइसकेको छ ।

पोखरामा दैनिक ५ ट्यांकर पेट्रोल र १५/१६ ट्यांकर डिजेल खपत हुँदै आएको थियो ।

छड, रड, सिमेन्ट, जस्तापाता, पाइप, रंग, धारा, फर्निचर, सिसा, प्लाइउडलगायत निर्माण (हार्डवेयर) सामानको पनि अभाव भएको ...... ‘आपूर्तिमा देखिएका समस्याको सही सम्बोधनका निम्ति सरकारका तर्फबाट आवश्यक कूटनीतिक पहलको तत्काल थालनी,

आन्दोलनरत असन्तुष्ट पक्षसँग सार्थक वार्ता

तथा वैकल्पिक आपूर्ति व्यवस्थाका लागि सरकारी तदारुकता अहिलेको आवश्यकता रहेको ...... कतिपय उपभोक्ताहरूले ग्यासको विकल्पमा दाउरा बालेर खाना पकाउन सुरु गरिसकेका छन् । ‘चार दिन भयो ग्यास सकिएर दाउरामा पकाउनुपरेको छ,’ गृहिणी राधिका अधिकारीले भनिन्,

‘ढलान घरमा चुलो बाल्न अलि समस्या हुने रहेछ ।’

ग्यास नपाउँदा सदरमुकाममा डेरा लिएर पढ्न बसेका विद्यार्थी र कर्मचारीलाई पनि निकै समस्या भएको छ । ..... इन्धन नपाइएपछि पोखरा–बाग्लुङ राजमार्गमा सवारी चाप घटेको छ । जिल्लाका ग्रामीण क्षेत्रमा चल्ने सवारी ७० प्रतिशतभन्दा धेरै चल्न छाडेको ......

‘धेरैजसो गाडी एक सातादेखि थन्किएका छन्,’ अध्यक्ष विद्वान् गुरुङले भने, ‘मुख्य व्यवसाय हुने सिजनमै गाडीलाई ठूलो मार परेको छ ।’ व्यवसायीको वर्षभरि हुने व्यापारको आधाजसो व्यापार असोज र कात्तिकमा हुने बताउँछन् ।

..... ग्रामीण क्षेत्रमा सवारी नचलेपछि यात्रीहरू पैदल हिँड्न बाध्य भएका छन् । .... ‘बजारभरि ग्यास र पेट्रोल कतै भेटिएन,’ अनुगमन समितिका संयोजक एवं सहायक प्रमुख जिल्ला अधिकारी सुवासकुमार लामिछानेले भने,

‘अबको एक सातासम्म यस्तै भए समस्या जटिल बन्ने देखिन्छ ।’

सुरक्षा, विद्यालय र अत्यावश्यक स्वास्थ्य सेवाका सवारीहरूका लागि इन्धन आपूर्ति सहज बनाउन पहल भइरहेको ....... पर्वतमा अहिले मासिक तीनदेखि चार हजार सिलिन्डर ग्यास खपत हुने गरेको व्यवसायीहरू बताउँछन् । पेट्रोलियम पदार्थ मासिक ३० देखि ३५ हजार लिटर खपत हुने तथ्यांक छ । ..... गुल्मीमा पेट्रोलियम पदार्थसँगै बजारमा सिमेन्टको पनि अभाव छ । यहाँका पम्पहरूले पेट्रोलको आपूर्ति नभएपछि ५ दिनदेखि बन्द गरेका छन् । दुई दिनभित्र नखुलेमा डिजेल पनि अभाव सुरु हुने व्यवसायीले बताए । पेट्रोल अभावले मोटरसाइकल कम चल्न थालेका छन् । बुधबारदेखि ग्यासको पनि अभाव सुरु भएको उपभोक्ताको गुनासो छ । त्यस्तै जिल्लाभर सिमेन्ट अभावले निर्माणकार्य प्रभावित भएको निर्माण व्यवसायी संघका अध्यक्ष नारायण पोखरेलले बताए । उनले भने,

‘पेट्रोल छैन छैन, सिमेन्ट पनि छैन ।’

..... पेट्रोलियम पदार्थको अभावमा ७५ प्रतिशतभन्दा बढी सार्वजनिक सवारी चलेका थिएनन् । यस्तै निजी सवारी साधन चल्न छाडेका थिए । ..... ‘लाइनमा ३ घण्टा बसें, ३ लिटर पाएँ, ठिकै छ ।’ ..... ‘राति ११/१२ बजेसम्म लाइन थियो,’ पम्प कर्मचारी सुजन मास्केले भने,

‘बिहान ३ बजेदेखि नै तेल भर्नेको लाइन लागेको थियो ।’

iPhone Release: People In Line

Wednesday, September 02, 2015

म क्रिस्चियन/मुसलमान होइन, म समाजवादी होइन



बाबुराम भट्टराई मेरो लागि मुसलमान भने पनि भो, क्रिस्चियन भने पनि भो। फरक राजनीतिक धर्म को मान्छे। २००५ को गर्मी मा म जब न्यु यॉर्क शहर आएँ, त्यति बेला दुनियामा नेपालका माओवादी को यथार्थपरक इमेज नै के थियो भन्दा शीत युद्ध पछि को दुनिया कै नंबर एक अल्ट्रा लेफ्ट समुह। राजनीतिक अल काईदा। कहाँ नेपाल शांग्रीला/हिप्पी को देश। कहाँ माओवादी। बरफ र आगो एउटै चित्रमा। नेपाल बाहिर चाहिँ पाइला नटेकेको भनौं भने दक्षिण एशिया मा फैलिन चाहेको आशंका, र दक्षिण एशिया स्तर मा संगठन भए नभए को स्पष्ट नभए पनि भारत का सशस्त्र माओवादी लाई प्रशस्त inspire गरेको तथ्य। अमेरिका ले अहिले अल काईदा/ISIS बारे जे भन्छ त्यति बेला नेपालका माओवादी बारे त्यही भन्थ्यो। भौतिक रुपले सिध्याउनु पर्छ। अर्को औषधि छैन। र त्यसलाई पुर्ण रुपले सैद्धांतिक रुपले हेर्नु हुँदैन। अमेरिका ले अरु देश लाई मिलिटरी ऐड दिँदा कति अमेरिकी कंपनी हरु लाई फाइदा भइराखेको हुन्छ। कमाइ हुन्छ। Follow the money.

अमेरिका को लाइन गलत थियो। विशेष गरी ज्ञानेन्द्र को कु पछि त अझ माओवादी "समस्या" को राजनीतिक समाधान मात्र संभव थियो। कमती गार्हो थिएन त्यो समीकरण। १० वर्ष मा हामी यहाँ आइपुगेका छौं। राजा नमारी नसमाती गणतंत्र ल्याउने देश इतिहासमा कति छन?

म समाजवादी होइन। वास्तव मैं होइन। भित्री ह्रदय बाट नै होइन। स्वेच्छा ले नै होइन। म हिन्दु/बुद्धिस्ट, बाबुराम भट्टराई क्रिस्चियन/मुसलमान। तर मैले मेरो धर्म ले भन्छ भनेर राम्रो व्यवहार गरेको हुन सक्छु। बाबुराम को धर्म ले पनि उसलाई राम्रो व्यवहार नै गर्न लगाउँछ भने मलाई त्यो धर्म समस्या हुने कुरा भएन। भन्दैमा म क्रिस्चियन/मुसलमान हुनु पर्दैन। र धर्म प्रदत राम्रो व्यवहार भनेको गरीब का लागि शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार को कुरा हो। मेरो राजनीतिक धर्म ले पनि सबै को, गरीब को पनि जीवनस्तर उकास्ने सोंचछ। धनी को मात्र होइन, गरीब को मात्र होइन। र त्यहाँ कुनै clash छैन। दुबै लाई सँगै माथि लानुपर्ने हुन्छ नत्र ती दुई मध्ये एक लाई पनि माथि लान सकिँदैन। र एउटा स्वच्छ लोकतंत्र/अर्थतंत्र मा जो सुकै धनी बन्न सक्छ। जन्मले मात्र धनी हुने रूढ़िवादी समाज हो।

नेपाल राजनीतिक रुपले एक किसिम ले अचम्म छ। जो पनि समाजवादी। काँग्रेस पनि (घोषणा मा) समाजवादी, एमाले (कागजमा) समाजवादी, फोरम समाजवादी, हृदयेश समाजवादी, माओवादी समाजवादी। सत्ताधारी पनि समाजवादी, विपक्षी पनि समाजवादी। यस्तो पनि हुन्छ? हाँडी गाउँ को जात्रा।

म क्रिस्चियन/मुसलमान होइन, म समाजवादी होइन।

बाबुराम भट्टराई का लागि कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो जे होला मेरो लागि Universal Declaration Of Human Rights त्यही हो।मेरो राजनीतिक ज्यामिति को विन्दु र रेखा त्यो छोटो दस्तावेज हो। बहुदल त्यस बाट उब्जिने कुरा हो, लोकतंत्र त्यस बाट  उब्जिने कुरा हो। त्यस दस्तावेज को ॐ चाहिं फ्री स्पीच हो। सीके राउत ले सेन राजा सेन राजा भन्छ। उसले भन्नु अगाडि मलाई थाहा पनि थिएन।

मानव अधिकार र लोकतंत्र को परिधि भित्र तर म जस्तो को र बाबुराम भट्टराई जस्तो को धेरै कुरा मिल्न सक्छ। म अमेरिकी राजनीति र अर्थतंत्र लाई face value मा लिंदीन। नियमित आलोचना गर्छु। America's original mission - a total spread of democracy - is in a direct clash with America's original sin - race भन्छु।

कति हुन्छन् theory का कुरा कति व्यावहारिक कुरा। Science theory भो, engineering त्यसको application. कर्मक्षेत्र मा बाबुराम भट्टराई नेपालमा फुल टाइम राजनीति गरिरहेको मान्छे, एक पटक प्रधान मंत्री भइसकेको र फेरि हुन सक्ने मान्छे। म कहिले चुनाव नलडने मान्छे। म मेरो टेक कंपनी बिल्ड गर्न चाहेको मान्छे। तर राजनीति मा गहिरो interest भएको मान्छे। उही हो, आफु हुर्केको घरमा आगो लाग्दा टाढा बाट पानी फालेको चाहिं हो। तर टाढा भन्न मिल्दैन। यो डिजिटल माध्यम ले को टाढा को नजिक! म अमेरिका आउनु अगाडि पार्टी मा हृदयेश महासचिव, म र सरिता उपमहासचिव, राजेन्द्रजी केंद्रीय समिति सदस्य, रामेश्वर राय यादव अध्यक्ष, त्यति बेला समोसा मा आलु र बिहार मा लालु थिए, हृदयेश लाई एउटा यादव चाहिएको, बॉर्डर यता पनि लहर आइहाल्छ कि भन्ने थियो। म पत्रकार मान्छे होइन। मैले गरेको डिजिटल activism हो। नेपाल को शांति प्रक्रिया मा कुनै सभासद अथवा शीर्ष नेता नै भन्दा कम मैले गरे जस्तो लाग्या छैन। तर म "फर्किने" मान्छे होइन। There is no going backward, there is only going forward. नेपालको आर्थिक क्रांति मा मेरो कंपनी योगदान दिन चाहन्छ। तर न्यु यॉर्क त मेरो होमटाउन हो। म भारत र नेपाल माँ फिँजिन चाहेको चाहिँ हो। बिहार भो। मेरे दिल में बिहार और नेपाल बराबर है।

मदन भंडारी को तथाकथित बहुदलीय जनवाद को पुस्तिका त्यति बेला नै पढेको। खासै घत लागेन। कम्निष्ट ले बहुदल मानने भनेको न हो -- त्योंभन्दा बढ़ी के हो? बरु बाबुराम भट्टराई ले आफ्नै धर्म मा केही नया सोंच ल्याउन सक्ने संभावना देख्छु। उसको धर्म को पनि मेरो धर्म को पनि मान्छे ले The Scientific Method चाहिं मान्नै पर्छ। म मान्छु। बाबुराम भट्टराई ले मानेको देखेको छु। तर मेरै धर्म मा त्यो नमान्ने dogmatic मानिस प्रशस्त छन। बाबुराम को धर्म मा पनि होलान।

म नेपालको भारत सँग को राजनीतिक र आर्थिक एकीकरण मा र चीन मा पॉलिटकल रिफार्म को मुद्दा मा बाबुराम सँग सहकार्य खोजेको मान्छे। स्पष्ट कुरा। मोही माग्ने ढुङ्ग्रो देखाउने। नेपालको माओवादी समस्या समाप्त भयो मोटामोटी। नेपाललाई १ मत को ५० रुपया को बाटो लाने र प्रत्यक्ष निर्वाचित प्रधान मंत्री को बाटो लाने हो भने र भारत सँग negotiate गर्दा भारत ले पनि १ मत को ५० रुपया मान्नु पर्ने भन्ने हो भने अनि भारत को पनि माओवादी "समस्या" समाप्त हुन्छ।

बाबुरामले खोजेको नया धार
१ मत को ५० रुपया
प्रत्यक्ष निर्वाचित प्रधान मंत्री र १०% आर्थिक वृद्धि दर
भारतका २४० ट्रिलियन डॉलर वाला अर्थतंत्र बनने का फोर्मुला इजराइल के पास है


Tuesday, September 01, 2015

Saturday, August 29, 2015

धर्म निरपेक्षता सब भन्दा बढ़ी चाहिएको नेपालको हिन्दु लाई

Animation of the structure of a section of DNA...
Animation of the structure of a section of DNA. The bases lie horizontally between the two spiraling strands. (Photo credit: Wikipedia)
भोजपुरा प्रदेश र मधेसी मुस्लिम
धर्म निरपेक्षता र मानव अधिकार
केपी ओली र धर्म निरपेक्षता
भारत बाट आउने भाड़ा मा उपलब्ध बाबा जी हरु
उद्दण्ड मच्चाइ रहेको भारतीय बाबाजी
राज्य (state) को आफ्नो धर्म हुँदैन भनेको
जबरजस्ती धर्म परिवर्तन गर्ने तरिका के हो?
धर्म परिवर्तन गर्न पाउनु मानव अधिकार हो
Janakpur Muslims

धर्म निरपेक्षता सब भन्दा बढ़ी चाहिएको नेपालको हिन्दु लाई। हिन्दु राष्ट्र त २५० वर्ष देखि पृथ्वी ले "सच्चा हिन्दुस्तान" त बनाएर राखेको हो नि। त्यसले गरीबी र अंधकार बाहेक के दियो?

देश लोकतन्त्रमा जाने तर देशमा वाक स्वतंत्रता नहुने। त्यस्तो पनि हुन्छ? आज संसार मा जति विकसित देश छन सबै लोकतन्त्रको आधारमा धनी र विकसित र आधुनिक बनेका हुन। मान्छेको biology त जहाँ पनि उही हो। Brain त केपी ओली बाहेक सबै को टाउको मा छ।

मानव अधिकार सर्वमान्य घोषणापत्र हो। त्यो मानव अधिकार भनेको लोकतंत्र को DNA हो। जुन देशमा मानव अधिकार छैन त्यहाँ लोकतंत्र छैन। मापदंड नै त्यही हो।

नेपालमा मुसलमान लाई बस्न दिने कि नदिने? बुद्धिस्ट ईसाई लाई बस्न दिने कि नदिने? प्रश्न त्यो हुँदै होइन।

प्रश्न हो, नेपालका हिन्दु गरीब भएर बस्ने कि धनी देशको नागरिक बन्ने? धनी आधुनिक देश बन्ने एक मात्र उपलब्ध बाटो हो लोकतंत्र। लोकतंत्र को DNA हो मानव अधिकार।

जुन देशमा धर्म निरपेक्षता छैन त्यस देशमा लोकतंत्र छैन। कि त लोकतंत्र चाहिएन, धनी देश बन्नु छैन भन्नुपर्यो।

तपाइँ को भगवान ले भोको पेट बस मोक्ष पाइन्छ भनेको छ भने माग्नुस हिन्दु राष्ट्र।

धर्म निरपेक्षता बिना देश धनी र आधुनिक बन्दैन भने त्यो धर्म निरपेक्षता आखिर हो के? नेपाली नागरिक हिन्दु हुन पाउँदैन भन्ने हो?

धर्म निरपेक्षता भनेको राज्य (state) को धर्म हुँदैन भनेको। नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता को त्यो भन्दा राम्रो गारंटी र insurance अर्को हुने सक्दैन। राज्य (state) को आफ्नो धर्म हुँदैन भने जुन सुकै नागरिक को जे सुकै धर्म भए राज्य (state) लाई फरक नै परेन।

धर्म निरपेक्षता भनेको राज्य (state) ले धर्म मा पैसा खर्च गर्नु गैर कानुनी हुन्छ।

तर नागरिक को आफ्नो धर्म हुन्छ। प्रधान मंत्री को आफ्नो धर्म हुन्छ। सरकारी कर्मचारीको आफ्नो धर्म हुन्छ। अमेरिका मा जति धार्मिक मानिस संसारमा कहीं पनि छैन। युरोप मा पनि छैन।

नेपाल धनी देश बन्यो भने धनी हिन्दु नेपाली नागरिक ले पैसा खर्च गरेर "जा अमेरिका मा ईसाई लाई हिन्दु बना, अभियान चला" भन्न पाइयो। अहिले त गाँठ छैन। त्यो धनी देश बनने बाटो धर्म निरपेक्षता हो।




Tuesday, August 25, 2015

२०४६ सालमा यो भन्दा धेरै सानो आंदोलन हुँदा माग पुरा भएको

२०४६ सालमा यो भन्दा धेरै सानो आंदोलन हुँदा राजा वीरेन्द्र ले माग पुरा गरेको। श्री ६ सुशील कोइराला।


Wednesday, August 19, 2015

ज्ञानेन्द्र को डर छ?

ज्ञानेन्द्र को नाम त लिएका छैनन् तीन दलका बाहुन ले तर सो जा नहीं तो गब्बर आ जाएगा भनेर कसलाई भनेको? ज्ञानेन्द्र हो गब्बर सिंह? नाम खुलाएर बोल्ने। कि डर लाग्छ? डर लाग्छ भने डर लाग्छ भन्ने। नाम लिन डर लाग्छ भन्ने हामी कुरा बुझछौं।

कुरा सही रहेछ भने हामी संघीयता/समावेशीता को मुद्दा लाई एक छिन थाती राखेर गणतंत्र का लागि, लोकतंत्र का लागि फेरि एक पटक पहिला क्रांति गर्छौं। सक्छौं। हामी लाई डर छैन।

तर हाम्रा पनि इनफार्मेशन सोर्स हरु छन। हाम्रो इनफार्मेशन के छ भने ज्ञानेन्द्र रिटायर भएको मान्छे। मन मष्तिष्क सबैले।

रह्यो कमल थापा को कुरा। पारस बैंकक बाट फर्किन्दा एयरपोर्ट मा उ न गएको। यो त अस्ताएको सुर्य, यसको पुजा गरेर फाइदा छैन भनेर हेपेर एयरपोर्ट उ न गएको। यो चाकरी चापलुसी गरेको मान्छे। बलेको आगो थियो उसका लागि राजतन्त्र। अब आगो निभ्यो। राजतन्त्र उसका लागि कहिले पनि सिद्धांत थिएन।

कमल थापा लाई convince गरिएको होइन परास्त गरिएको हो भनेर म संघीयता वादी हरु लाई बारम्बार भन्छु। त्यो मान्छे को mindset केही change भएकै छैन। त्यति बेला पनि मानव अधिकार नमान्ने, अहिले पनि मान्दैन। धर्म निरपेक्षता त मानव अधिकार हो। त्यो उ मान्दैन।

संघीयता विरोधी लाई convince गर्ने होइन परास्त गर्ने हो भनेर मैले बारम्बार भन्छु। केपी ओली भो, राम चन्द्र पौडेल भो, यी बाहुन को घैंटो मा यो जुनीमा चाहिं घाम लाग्दैन। यी जस्ता लाई संघीयता को मुद्दामा convince गर्न खोज्ने मान्छे नै मुर्ख।

सो जा नहीं तो गब्बर आ जाएगा जस्तो बच्चा सँग गफ गरे जस्तो हेपेर गफ नगर्ने। बड़ो patronizing भो।

ज्ञानेन्द्र को डर छ? हाम्रो इनफार्मेशन त त्यस्तो छैन। तपाइँ को इनफार्मेशन कहाँ बाट आउँछ, कृपया थाहा पाऊँ।

बिचारा राजा मान्छे लाई गब्बर सिंह भन्दिएको?

जनता लाई ज्ञानेन्द्र सँग होइन एमाले का गुंडा हरु सँग डर लाग्ने गरेको छ। दैनिक। देश भरि नै। त्यो इनफार्मेशन तपाइँ सँग छ कि छैन?

राजा महेन्द्र, राजा वीरेन्द्र ले, राजा ज्ञानेन्द्र ले काँग्रेस पार्टी लाई समाप्त गर्न सकेनन्। हामी संघीयता वादी हरु काँग्रेस लाई सफाचट गरेर देखाइदिन्छौं।



हामी बाहुनवाद होइन माफियावाद, नवराजावाद र ब्रम्हलुटवाद का विरुद्ध लड्दै छौं
नवराजा Mentality
ओली को नवराजा बोली
नवराजा हरु
बाबुराम भट्टराई डराउनु पर्ने कारण छैन
भारत बाट आउने भाड़ा मा उपलब्ध बाबा जी हरु
राजा होइन नवराजा हरु संग डर छ

एउटा पार्टी का लागि संविधान संसोधन हुँदैन

काँग्रेस पार्टी को रेजिस्ट्रेशन समाप्त हुन लागेको छ। पाँच वर्ष मा एक चोटि सबै पार्टी ले महाधिवेशन गर्नै पर्ने बाध्यात्मक व्यवस्था छ। लोकतंत्र हो, पंचायत होइन, राजतन्त्र होइन। बीपी कोइराला ले शुरू गरेको पार्टी सुशील कोइराला ले समाप्त गर्दैछ। ट्वां देखि ट्वां सम्म। बहादुर शाह जफ्फर। बर्मा मा पनि नेपाली बस्छन् भन्ने सुनेको थिएँ।  

एउटा पार्टी का लागि संविधान संसोधन हुँदैन। कुनै परिवार को बिर्ता होइन यो देश, यो देशको संविधान।


Saturday, August 15, 2015

सही संविधान ले आर्थिक क्रांति गर्ने हो









लोकतंत्र र संघीयता ले आर्थिक क्रांति गर्ने हो। सही संविधान ले आर्थिक क्रांति गर्ने हो। त्यसैले नेपाली जनता ले सही संविधान का लागि जुन सुकै मुल्य चुकाउन तयार रहनुपर्छ। लोकतंत्र, मानव अधिकार, गणतंत्र मा बेइमानी हुनु भएन। संघीयता र समावेशीता मा बेईमानी हुनु भएन। २१ औं शताब्दी मा लेखिन लागेको संविधान दुनिया कै मोडर्न संविधान हुनु पर्यो। तीन दल का बाहुन जाए भाँड में।

सही संविधान लेखेर सही प्रक्रिया स्थापित हुन्छ। अनि देश र जनता को सम्पुर्ण उर्जा आर्थिक क्रांति मा गएर फोकस हुन्छ। अनि आर्थिक क्रांति हुन्छ। आर्थिक क्रांति आखिर जनता ले नै गर्ने हो। सही संविधान लेखेर सही प्रक्रिया स्थापित गरेमा जुन सुकै पार्टी हारोस जितोस मतलब हुँदैन, जोसुकै प्रधान मंत्री होस् नहोस् मतलब हुँदैन। आर्थिक क्रांति गर्न कोही सुपरमैन, बाहुबली, क्रांतिवीर, आइंस्टाइन, Knight In Shining Armor आउनु पर्दैन। कोही हीरो चाहिँदैन। जनता आफै हीरो हो। प्रक्रिया ले नै आर्थिक क्रांति गर्छ।

आर्थिक क्रांति बाहेक अरु सबै मुद्दा नया संविधान ले resolve गरिसकेको हुनुपर्छ। अनि आर्थिक क्रांति हुन्छ। सही प्रक्रिया ले आर्थिक क्रांति गर्छ।

बैरोमीटर के त? एउटा स्पष्ट बैरोमीटर हो संविधान मा प्रत्यक्ष निर्वाचित प्रधान मंत्री लेखिन्छ कि लेखिँदैन? प्रत्यक्ष निर्वाचित प्रधान मंत्री को व्यवस्था नभएको संविधान दमजमख (दलित मधेसी जनजाति महिला खस) सबैले मिलेर एक साथ जलाइ दिने। त्यसैमा भलाइ छ।

संविधान जारी हुँदा घर घर मा दिवाली मनाइयो कि मनाइएंन? मनाइयो सही संविधान हो। देश भरि जलाइएको संविधान अनिष्ट हो संविधान होइन। बेलामै चेतना भया।