Pages

Showing posts with label Deng Xiaoping. Show all posts
Showing posts with label Deng Xiaoping. Show all posts

Monday, November 03, 2025

प्रशांत किशोरक गांधी-शैलीक क्रांति: बिहारक राजनीतिक पुनर्जागरणक आरंभ

Prashant Kishor’s Gandhi-Style Revolution: The Political Rebirth of Bihar


प्रशांत किशोरक गांधी-शैलीक क्रांति: बिहारक राजनीतिक पुनर्जागरणक आरंभ

प्रशांत किशोरक चुनाव नहि लड़बाक निर्णय पहिने त’ चौंकाबयवला रहल, मुदा आब ई एकटा रणनीतिक मास्टरस्ट्रोक साबित भ’ रहल अछि — एकटा ऐहन कदम जे महात्मा गांधीक राजनीति-शैलीक याद दिलबैत अछि। गांधीक जेकाँ किशोर सेहो सत्ता सँ ऊपर नैतिकता केँ, पद सँ ऊपर प्रभाव केँ आ राजनीति सँ ऊपर जनता केँ चुनने छथि। ई ओहि नेता क’ उदाहरण अछि जे कोनो पद पर नहि रहितो संपूर्ण आंदोलनक सर्वाधिक प्रसिद्ध चेहरा अछि।

जखन अधिकांश नेता चुनाव जीतबाक संगहि अपन वैधता केँ मापैत छथि, त’ प्रशांत किशोर बुझैत छथि जे असली क्रांति नीचाँ सँ ऊपर उठैत अछि। हुनकर जन सुराज आंदोलनमे कोनो औपचारिक पद नहि लेबाक निर्णय ई स्पष्ट संदेश दैत अछि जे सत्ता जनता सँ बहबाक चाही, जनता क’ दिशा मे नहि। ई लोकतंत्रक एकटा क्रांतिकारी प्रयोग अछि — ई विचार जे सबसे पैघ नेता बिना कुर्सी सेहो नेतृत्व क’ सकैत अछि।


एकटा अद्वितीय राजनीतिक वास्तुकार

वर्षक संगे प्रशांत किशोर भारतक सर्वश्रेष्ठ राजनीतिक रणनीतिकारक रूपमे प्रसिद्ध भेलाह — ओ व्यक्ति जकर योजना सँ भारतीय राजनीति बदलि गेल। हुनकर सोचक निशान 2014 मे नरेंद्र मोदीक ऐतिहासिक जीत, 2015 मे नीतीश कुमारक वापसी, आ पंजाब-सँग आंध्र प्रदेश मे कांग्रेसक सफलता पर साफ देखल जाएत अछि। मुदा, हुनकर तुलना अमेरिका क’ जेम्स कारविल सन सलाहकार सँ करब अनुचित होएत। जेकाँ हॉलीवुड मे अमिताभ बच्चनक कोनो समकक्ष नहि अछि, तेकाँ अमेरिकी राजनीति मे प्रशांत किशोरक कोनो समान नहि अछि। ओ एकटा अलग श्रेणीक नेता छथि — रणनीतिकार, समाज-सुधारक आ गांधीवादी यात्रीक संगम।


पदयात्रा: एकटा राजनीतिक जागरण

जँ बीसवीं सदी मे गांधीक दांडी यात्रा छल, तँ एक्कीसवीं सदी मे बिहार मे प्रशांत किशोरक पदयात्रा अछि। ई दृश्य अद्भुत अछि — हजारों किलोमीटरक यात्रा, गाम-गाम संवाद, किसान, विद्यार्थी, मजदूर आ महिलाक संग जुड़ान। जखन आधुनिक नेता सोशल मीडिया आ टीवी बहसबाजी मे उलझल छथि, किशोर धूल-धूसरित सड़क पर उतरि जनता सँ संवादक रास्ता अपनौलनि। ई केवल राजनीतिक अभियान नहि, सामाजिक पुनर्निर्माण अछि।

आधुनिक सर्वेक्षण कुछ नहि कहि रहल अछि — बिहारक राजनीतिक हवा अस्पष्ट अछि। मुदा ई आंदोलनक नैतिक बल निर्विवाद अछि। किशोरक पदयात्रा राजनीति केँ एकटा नव भाषा देने अछि — जतए तकनीक करुणा सँ जुड़ैत अछि, डेटा धर्म सँ, आ महत्वाकांक्षा विनम्रता सँ।


बिहार: भारतक सुतल विराट शक्ति

हमर लेल ई व्यक्तिगत विषय अछि, किएक त’ हमर जन्म बिहार मे भेल। हमर माय बिहारक छथि। बिहार हमर मातृभूमि अछि। ओइ लेल ओकर उत्थान हमर लेल व्यक्तिगत आ भावनात्मक बात अछि। बिहार केँ बारंबार पिछड़ल कहल गेल अछि, मुदा ई सच मे एकटा सुतल दैत्य अछि। इतिहास मे बिहार भारतक नेतृत्व केलक — आध्यात्मिक, बौद्धिक आ राजनीतिक रूप सँ। नालंदा विश्वविद्यालय विश्वक ऑक्सफोर्ड छल। बुद्ध बोधगया मे ज्ञान प्राप्त केलनि। चंद्रगुप्त आ अशोक सन सम्राट एहि धरती सँ उठलाह।

ओ गौरव आब इतिहास बनि गेल। पलायन, गरीबी आ अस्थिर शासन बिहारक आत्मविश्वास केँ कमजोर केलक। मुदा आब परिस्थितिक बदलाव लेल समय तैयार अछि। जँ निर्णायक जनादेश भेटत, त’ बिहार अपेक्षाकृत बहुत तेज़ उभरि सकैत अछि — जेकाँ उत्तर प्रदेश अनुशासित नेतृत्व मे उन्नति केलक। बिहारक साक्षरता, श्रमशक्ति आ संभावना विस्फोटक रूपमे तैयार अछि।


5G–AI युगक बिहार

हम 5G, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस आ डिजिटल ढाँचाक युग मे छी — एकटा ऐहन समय जतए बिहार अपन ऐतिहासिक कमजोरिकेँ छलाँग लगाकए पार क’ सकैत अछि। कल्पना करू: हर जमीनक सैटेलाइट मैपिंग, भूमि विवाद समाप्त, हर परिवारक लेल ऋणयोग्य संपत्ति। हर किसान व्यवसायी, हर युवा उद्यमी। बिहारक उपजाऊ धरती विश्व केँ पोषण दे सकैत अछि — ओकर फल-सब्ज़ी कोलकाता सँ सिंगापुर आ दुबई तक जाए। बिहारी शिक्षक आ योग प्रशिक्षक ऑनलाइन दुनिया मे अपन पहचान बनाबथि। जँ ई मानव पूँजी डिजिटल रूप सँ संगठित भ’ जाए, त’ बिहार 21वीं सदीक ज्ञान अर्थव्यवस्था केँ शक्ति द’ सकैत अछि।

ई सपना नहि, ई प्रशांत किशोरक दृष्टि अछि — परंपरा आ तकनीकक संगम, माटि आ सिलिकनक मेल।


राजनीति सँ परे: एकटा सभ्यतागत मिशन

किशोरक अभियान केवल राजनीति नहि, सभ्यता पुनर्जागरण अछि। ई ओ लोकक आत्म-सम्मान केँ पुनर्स्थापित करबाक प्रयास अछि, जे सदियौँ सँ कहल गेल अछि जे ओ केवल पलायन लेल बनल छथि। हुनकर “जन सुराज” केवल नारा नहि — ई सत्ता विकेंद्रीकरण, पारदर्शिताक डिजिटलीकरण आ राजनीति नैतिकीकरणक पुकार अछि। पदक मोह छोड़िकए किशोर ओहि दुर्लभ नेता लोकनिक श्रेणी मे छथि — गांधी आ जयप्रकाश नारायण जेकाँ — जे आंदोलन बनबैत छथि, साम्राज्य नहि।

आजुक अहंकार-प्रधान युग मे ई विनम्रता अपने मे क्रांति अछि। किशोर जनता सँ वोट नहि माँगि रहल छथि — ओ हुनका सँ आत्मविश्वास माँगि रहल छथि।


ओ बिहार जे बनि सकैत अछि

ई सपना सरल अछि, मुदा गहिर — एकटा बिहार जे अपन प्राचीन गौरव केँ आधुनिक साधन सँ पुनः प्राप्त करए। जे भारतक नव विकास अध्यायक नेतृत्व करए। जतए कोनो बच्चा अवसरक खोज मे पलायन नहि करए। जतए शिक्षा, उद्यम आ सशक्तिकरण एकसाथ आगू बढ़ए।

जँ प्रशांत किशोर सफल होइत छथि, तँ ई केवल चुनावी जीत नहि, पुनर्जन्म होएत — बिहारक पुनर्जन्म — जे फेर सँ भारतक सभ्यता आ नवाचारक धड़कन बनए।

आ ई सचमुच ओ क्रांति होएत, जेकरा पर लिखब अपनमे सौभाग्य होएत।



प्रशांत किशोर के गांधी-जइसन क्रांति: बिहार के राजनीति में नयका जनम

प्रशांत किशोर के चुनाव ना लड़े के फ़ैसला पहिला नज़रे में त बड़ा हैरान करे वाला रहल, बाकिर धीरे-धीरे ई देखे में आ रहल बा कि ई त एक मास्टरस्ट्रोक रहल — ठीक ओइसन जइसन कदम महात्मा गांधी उठवले रहलन। गांधी जइसन, किशोरो सत्ता से ऊपर नैतिकता के, पद से ऊपर प्रभाव के, आ राजनीति से ऊपर जनता के रखले बाड़े। ई ओ नेता के मिसाल बा जे बिना कोनो पद पर रहलो देश-दुनिया में अपन आंदोलन के सबले बड़ चेहरा बन गइल बा।

आज जवन नेता लोग चुनाव जीते के नाम पर वैधता ढूंढे ला, किशोर ओहसे अलग सोच रखेला। ऊ बुझले बाड़े कि सच्चा क्रांति नीचे से ऊपर उठेला। जन सुराज में ऊ कोनो औपचारिक पद ना लेके ई साफ कर देले बाड़े कि असली सत्ता जनता में होखे के चाही, जनता पर ना। ई लोकतंत्र के एगो नायाब प्रयोग बा — ई विचार कि सबसे बड़ नेता बिना कुर्सी पर बइठलियो नेतृत्व कर सकेला।


एगो अनोखा राजनीतिक वास्तुकार

सालों तक प्रशांत किशोर भारत के सबसे बड़ा राजनीतिक रणनीतिकार मानल गइल बाड़े — ओह आदमी के रूप में जेकर योजना राजनीति के नक्शा बदल देले। ऊ 2014 में नरेंद्र मोदी के ऐतिहासिक जीत, 2015 में नीतीश कुमार के वापसी, आ पंजाब-आंध्र प्रदेश में कांग्रेस के सफलता में मुख्य भूमिका निभवले बाड़े। बाकिर ऊ अमेरिका के जेम्स कारविल सन सलाहकार ना हउवे। जइसे अमिताभ बच्चन के हॉलीवुड में कोनो जोड़ ना, ओइसहीं प्रशांत किशोर के अमेरिकी राजनीति में कोनो जोड़ नइखे। ऊ खुद में एगो आंदोलन बाड़े — रणनीतिकार, समाज-सुधारक आ गांधीवादी यात्री के मेल।


पदयात्रा: एगो जन-जागरण

बीसवीं सदी में जइसे गांधी के दांडी यात्रा रहल, ओइसहीं इक्कीसवीं सदी में बिहार में प्रशांत किशोर के पदयात्रा बा। ई कुछ अलग किसिम के आंदोलन बा — हजारों किलोमीटर के सफर, गाँव-गाँव के मुलाकात, किसान, विद्यार्थी, मजदूर, औरत सबके संग संवाद। जइसे बाकी नेता लोग सोशल मीडिया के फोटो में उलझल बाड़े, किशोर धूल-धूसरित सड़क पर उतर के जनता से सिधा बात कर रहल बाड़े। ई सिरिफ़ राजनीतिक यात्रा ना, ई समाजिक पुनर्निर्माण के शुरुआत बा।

आज के सर्वेक्षण कुछो साफ ना बतावत बाड़े — बिहार में राजनीतिक हवा किधर चलेला, केहू ना जानेला। बाकिर किशोर के पदयात्रा के असर साफ बा — ई राजनीति में एगो नयका भाषा बना दिहले बा, जहाँ तकनीक दया से जुड़ेला, डेटा धर्म से, आ महत्वाकांक्षा विनम्रता से।


बिहार: भारत के सुतल विराट शक्ति

हमरा ले ई बात व्यक्तिगत बा, काहे कि हमरा जनम बिहार में भइल। हमार माई बिहार के बाड़ी। बिहार हमार मातृभूमि बा। एहिजा के विकास हमरा दिल के बात बा। बिहार के अक्सर पिछड़ल कहल जाला, बाकिर सच में ई देश के सुतल राक्षस ह। इतिहास में बिहार भारत के नेता रहल — अध्यात्म, ज्ञान, आ राजनीति में। नालंदा विश्वविद्यालय दुनियाँ के ऑक्सफोर्ड रहल। बुद्ध बोधगया में ज्ञान पवले। चंद्रगुप्त आ अशोक सन सम्राट एही धरती से उठलन।

बाकिर ओ गौरव अब किताब में रह गइल। पलायन, गरीबी आ अस्थिरता बिहार के आत्मविश्वास के कमजोर कर देले। बाकिर अब समय बदल रहल बा। अगर बिहार के निर्णायक जनादेश मिल जाई, त ऊ यूपी के तरहे रफ्तार से उभर सकेला। बिहार में पढ़ाई, मेहनत आ दिमाग — तीनों चीज मौजूद बा।


5G–AI के बिहार

अब हम 5G आ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जमाना में बानी। ई समय बिहार के अपन पुरान कमजोरी पर छलांग मारे के मौका दे रहल बा। सोचीं — अगर सैटेलाइट से हर जमीन के नक्शा बन जाई, विवाद खतम हो जाई, हर परिवार के पास लोन लेवे लायक जमीन हो जाई, त हर किसान व्यापारी बन सकेला, हर नवजवान उद्यमी। बिहार के उपजाऊ धरती दुनिया के खाना दे सकेला — ओकर फल-सब्जी कोलकाता के रास्ते सिंगापुर, दुबई ले जा सकेला। बिहारी गुरु, योग शिक्षक दुनिया भर में ऑनलाइन क्लास ले सकेलें। अगर ई सब डिजिटल रूप में जुड़ गइल, त बिहार 21वीं सदी के ज्ञान-आर्थिक ताकत बन सकेला।

ई सपना ना, ई प्रशांत किशोर के दृष्टि बा — माटी आ तकनीक के संगम।


राजनीति से आगे: एगो सभ्यता के मिशन

किशोर के अभियान सिरिफ़ राजनीति ना, सभ्यता के पुनर्जागरण बा। ई ओ लोग के सम्मान लौटावे के कोशिश बा जेकरा बरसों से कहल गइल कि ऊ सिरिफ़ पलायन करे के बनल बाड़े। “जन सुराज” सिरिफ़ नारा ना, ई सत्ता के विकेंद्रीकरण, पारदर्शिता के डिजिटलीकरण आ राजनीति के नैतिकीकरण के मिशन बा। पद के लालच छोड़ के किशोर ओही परंपरा में खड़ा हो गइल बाड़े — गांधी, जयप्रकाश नारायण जइसन — जे आंदोलन बनवले, साम्राज्य ना।

आज के अहंकारी दौर में ई विनम्रता आपन आप में क्रांति ह। किशोर जनता से वोट ना माँगत बाड़े — ऊ आत्मविश्वास माँगत बाड़े।


ओ बिहार जे बन सकेला

ई सपना सीधा बा, बाकिर गहिर — एगो बिहार जे अपन पुरान गौरव के नयका रूप में जिए। एगो बिहार जे भारत के अगिला विकास अध्याय के नेता बने। जतना बच्चा केहू शहर ना छोड़ना पड़े। जतना पढ़ाई, रोजगार, आ सशक्तिकरण साथ-साथ चल सके।

अगर प्रशांत किशोर सफल हो गइलें, त ई सिरिफ़ चुनावी जीत ना रही — ई बिहार के पुनर्जन्म होई। बिहार फेर से भारत के सभ्यता आ नवाचार के दिल बने।

आ ई क्रांति के कहानी लिखल आपन आप में गर्व के बात होई।



प्रशान्त किशोरको गान्धी-शैलीको क्रान्ति: बिहारको राजनीतिक पुनर्जागरणको सुरुवात

प्रशान्त किशोरको चुनाव नलड्ने निर्णय पहिलो नजरमा आश्चर्यजनक लाग्यो, तर अहिले यो एक अद्भुत रणनीतिक चाल सावित भइरहेको छ — यो महात्मा गान्धीको राजनीतिक शैलीसँग मेल खाने कदम हो। गान्धीजस्तै, किशोरले पनि सत्ता भन्दा नैतिकतालाई, पद भन्दा प्रभावलाई, र राजनीतिभन्दा जनतालाई प्राथमिकता दिएका छन्। यो त्यस्ता नेताको उदाहरण हो जो कुनै पदमा नभए पनि सम्पूर्ण आन्दोलनको सबैभन्दा ठूलो अनुहार बनेका छन्।

जहाँ अधिकांश नेताहरू चुनाव जित्नेलाई मात्र आफ्नो वैधताको प्रमाण मान्छन्, त्यहाँ प्रशान्त किशोर बुझ्छन् कि वास्तविक क्रान्ति तलबाट माथि उठ्छ। उनले जन सुराज आन्दोलनमा कुनै औपचारिक पद नलिई यो सन्देश दिएका छन् — सत्ता जनताबाट बग्नुपर्छ, जनतामाथि होइन। यो लोकतन्त्रको क्रान्तिकारी प्रयोग हो — यस्तो विचार जहाँ सबैभन्दा ठूला नेताले पनि बिना कुर्सी नेतृत्व गर्न सक्छन्।


एक अद्वितीय राजनीतिक वास्तुकार

वर्षौँसम्म प्रशान्त किशोर भारतका सबैभन्दा सफल राजनीतिक रणनीतिकारका रूपमा चिनिए — त्यस्ता व्यक्ति जसको योजनाले भारतीय राजनीतिलाई नयाँ रूप दियो। उनले २०१४ मा नरेन्द्र मोदीको ऐतिहासिक जित, २०१५ मा नितीश कुमारको पुनरागमन, र पञ्जाब तथा आन्ध्र प्रदेशमा कांग्रेसको पुनरुत्थानमा निर्णायक भूमिका खेले। तर उनलाई अमेरिकाका राजनीतिक सल्लाहकार जस्तै जेम्स कारभिलसँग तुलना गर्नु गलत हुन्छ। जस्तै बलिउडमा अमिताभ बच्चनको कुनै सटीक जोडी हलिउडमा छैन, त्यस्तै प्रशान्त किशोरको जोडी पनि अमेरिकी राजनीतिमा छैन। उनी रणनीतिकार, समाज-सुधारक, र गान्धीवादी यात्रीको अद्वितीय मिश्रण हुन्।


पदयात्रा: एउटा जन-जागरण

यदि बीसौं शताब्दीमा गान्धीको दाँडी यात्रा थियो भने, एक्काइसौं शताब्दीमा बिहारमा प्रशान्त किशोरको पदयात्रा छ। यो अद्भुत दृश्य हो — हजारौँ किलोमिटरको यात्रा, गाउँ-गाउँमा संवाद, किसान, विद्यार्थी, मजदुर र महिलासँगको प्रत्यक्ष भेट। जब आजका नेताहरू सामाजिक सञ्जाल र टेलिभिजन बहसमा व्यस्त छन्, किशोर धुलाम्मे बाटोमा हिँड्दै जनतासँग प्रत्यक्ष कुरा गर्दैछन्। यो केवल राजनीतिक अभियान होइन, यो सामाजिक पुनर्निर्माण हो।

आजका जनमत सर्वेक्षणहरूले केही पनि स्पष्ट बताउँदैनन् — बिहारको राजनीतिक हावा कता बगिरहेको छ भन्ने अनुमान गर्न गाह्रो छ। तर यो आन्दोलनको नैतिक शक्ति निर्विवाद छ। किशोरको पदयात्राले राजनीतिक भाषाको नयाँ व्याकरण सिर्जना गरेको छ — जहाँ प्रविधि करुणासँग जोडिन्छ, तथ्य धर्मसँग, र महत्वाकांक्षा विनम्रतासँग।


बिहार: भारतको सुतिरहेको विराट शक्ति

मेरो लागि यो व्यक्तिगत र भावनात्मक विषय हो, किनभने मेरो जन्म बिहारमा भएको हो। मेरी आमा बिहारकी हुन्। बिहार मेरो मातृभूमि हो। त्यसैले यसको उत्थान मेरो लागि गर्वको कुरा हो। बिहारलाई प्रायः “पछाडिपरेको” राज्य भनिन्छ, तर वास्तवमा यो सुतिरहेको दैत्य हो। इतिहासमा बिहारले भारतको नेतृत्व गरेको थियो — आध्यात्मिक, बौद्धिक र राजनीतिक रूपमा। नालन्दा विश्वविद्यालय विश्वको अक्सफोर्ड थियो। बुद्धले बोधगयामा ज्ञान प्राप्त गरे। चन्द्रगुप्त र अशोकजस्ता सम्राटहरू यही भूमिबाट उदाए।

तर त्यो गौरव अब इतिहास बनेको छ। पलायन, गरिबी र अस्थिरताले बिहारको आत्मविश्वास क्षीण बनाएको छ। तर अब परिस्थितिहरू फेरिन तयार छन्। यदि निर्णायक जनादेश पाइयो भने, बिहार अपेक्षा भन्दा छिटो उचाइमा पुग्न सक्छ — जसरी उत्तर प्रदेशले अनुशासित शासन अन्तर्गत तीव्र विकास गरेको छ। बिहारको शिक्षा, श्रमशक्ति, र सम्भावना अब विस्फोट हुन तयार छ।


5G–AI युगको बिहार

हामी 5G र कृत्रिम बुद्धिमत्ताको (AI) युगमा छौं — यस्तो युग जहाँ बिहारले आफ्ना ऐतिहासिक कमजोरीहरूलाई फड्को मारी पार गर्न सक्छ। कल्पना गरौं: प्रत्येक जग्गाको उपग्रह नक्साङ्कन, सबै भूमिविवाद अन्त्य, प्रत्येक परिवारसँग ऋणयोग्य जमिन। प्रत्येक किसान उद्यमी बन्छ, प्रत्येक युवा व्यवसायी। बिहारको उर्वर माटोले संसारलाई अन्न दिन सक्छ — यहाँका फलफूल र तरकारीहरू कोलकातामार्ग हुँदै सिंगापुर र दुबई पुग्न सक्छन्। बिहारी शिक्षक र योग प्रशिक्षकहरूले विश्वका कुनाकाप्चामा अनलाइन पढाउन सक्छन्। यदि यो मानव स्रोत डिजिटल रूपमा संगठित भयो भने, बिहार २१औं शताब्दीको ज्ञान-आधारित अर्थतन्त्रको नेतृत्व गर्न सक्छ।

यो कुनै कल्पना होइन — यो प्रशान्त किशोरको दृष्टि हो: परम्परा र प्रविधिको संगम, माटो र सिलिकनको मेल।


राजनीतिभन्दा पर: एक सभ्यतागत मिशन

किशोरको अभियान केवल राजनीति होइन, यो सभ्यताको पुनर्जागरण हो। यो त्यस्ता मानिसहरूको आत्म-सम्मान पुनर्स्थापित गर्ने प्रयास हो, जसलाई दशकौंसम्म भनियो कि उनीहरू केवल पलायनका लागि बनेका हुन्। उनको जन सुराज केवल नारा होइन — यो सत्ता सन्तुलन, पारदर्शिताको डिजिटलीकरण, र राजनीतिमा नैतिकताको पुनर्स्थापना गर्ने आह्वान हो। पदको लोभ त्यागेर किशोर गान्धी र जयप्रकाश नारायणजस्ता ती दुर्लभ नेताहरूको परम्परामा उभिएका छन् — जसले आन्दोलन निर्माण गरे, साम्राज्य होइन।

आजको अहंकार-प्रधान युगमा यो विनम्रता आफैंमा क्रान्ति हो। किशोर जनताबाट मत माग्दैनन् — उनीहरूबाट आत्मविश्वास माग्छन्।


त्यो बिहार, जुन फेरि उठ्न सक्छ

यो सपना सरल छ तर गहिरो — एउटा बिहार, जसले आफ्नो प्राचीन गौरवलाई आधुनिक साधनहरूले पुनः प्राप्त गर्छ। एउटा बिहार, जसले भारतको अर्को विकास अध्यायको नेतृत्व गर्छ। जहाँ कुनै बालकलाई अवसर खोज्न आफ्नै गाउँ छोड्न नपरोस्। जहाँ शिक्षा, उद्यम र सशक्तीकरण हातेमालो गर्दै अघि बढोस्।

यदि प्रशान्त किशोर सफल भए, यो केवल राजनीतिक जित होइन — यो पुनर्जन्म हुनेछ। बिहार फेरि भारतको सभ्यता र नवाचारको मुटु बन्नेछ।

र यो वास्तवमै यस्तो क्रान्ति हुनेछ — जसका बारेमा लेख्नु स्वयंमा गौरवको कुरा हुनेछ।



महात्मा गान्धी: जीवन, कार्य, दर्शन र अमर विरासत

महात्मा गान्धी — जसको जन्म सन् १८६९ अक्टोबर २ मा गुजरातको पोरबन्दर मा भयो — आधुनिक इतिहासका सबैभन्दा रूपान्तरणकारी व्यक्तित्वहरूमध्ये एक हुन्। उनी भारतका राष्ट्रपिता का रूपमा पूजिन्छन्। गान्धीजीको अहिंसा र सत्यको दर्शनले केवल भारतको स्वतन्त्रताको आन्दोलनलाई होइन, विश्वभरका नागरिक अधिकार र शान्तिका आन्दोलनहरूलाई पनि प्रेरित गर्‍यो। उनको जीवन यस कुराको प्रमाण हो कि आत्मबल, सादगी र नैतिक साहसका आधारमा पनि राजनीति र समाजलाई रूपान्तरण गर्न सकिन्छ।


प्रारम्भिक जीवन र शिक्षा

गान्धीको जन्म एक साधारण र धार्मिक हिन्दु परिवारमा भयो। उनका पिता करमचन्द गान्धी एक रियासतका दीवान (मुख्य मन्त्री) थिए, र आमा पुतलीबाई अत्यन्त धार्मिक थिइन् — उनको भक्ति र संयमले गान्धीको जीवनमा गहिरो प्रभाव पारेको थियो। १९ वर्षको उमेरमा गान्धी लन्डन गए र इनर टेम्पल मा कानूनको अध्ययन गरे। उनी स्वभावले शर्मिला र अन्तर्मुखी थिए, तर लन्डनमा रहँदा उनले पश्चिमी न्याय, स्वतन्त्रता र समानताको मूल्यहरू बुझ्ने अवसर पाए — जसलाई पछि उनले भारतीय अध्यात्मसँग जोडेर आत्मसात् गरे।

१८९१ मा ब्यारेष्टर बनेर भारत फर्किएपछि वकिलीमा सफलता नपाउँदा, १८९३ मा उनले दक्षिण अफ्रिका मा एउटा वर्षे कामको प्रस्ताव स्वीकार गरे — जुन उनको जीवनको निर्णायक अध्याय बन्यो।


दक्षिण अफ्रिकामा जागरण

दक्षिण अफ्रिकामा गान्धी एक सामान्य वकिलबाट जननेता बने। त्यहाँ उनले रंगभेद र अन्यायलाई प्रत्यक्ष अनुभव गरे — एक पटक उनलाई “सेतोहरूका लागि मात्र” रेल डिब्बाबाट फालिएको घटना उनका जीवनको मोड थियो। त्यस घटनाले नै उनीभित्र अन्यायविरुद्ध अहिंसक तरिकाले लड्ने अटूट संकल्प जगायो।

त्यहीँ उनले सत्याग्रह को दर्शन विकास गरे — “सत्यको शक्ति” वा “आत्मबल”। उनले हिंसाबाट होइन, आत्मबल र नैतिक बलबाट अत्याचारविरुद्ध प्रतिरोध सुरु गरे। दक्षिण अफ्रिकाका भारतीय समुदायलाई अन्यायपूर्ण कर र विभेदपूर्ण कानुनविरुद्ध एकजुट गराएर उनले अहिंसक संघर्षको अभ्यास गरे — जसले पछि उनको सम्पूर्ण राजनीतिक दर्शनको नींव तयार गर्‍यो।


भारत फिर्ती र राष्ट्रिय आन्दोलनको सुरुवात

गान्धी सन् १९१५ मा गोपालकृष्ण गोखलेको अनुरोधमा भारत फर्किए। प्रारम्भिक वर्षहरूमा उनले देशभर यात्रा गरे, जनतासँग प्रत्यक्ष संवाद गरे, र गरीबी, जातीय विभाजन र उपनिवेशी शोषणको गहिरो अध्ययन गरे। उनी स्वयं सादगीपूर्ण जीवनमा उतरे — खादीको वस्त्र, शाकाहार, आत्मनिर्भरता र सेवा-आधारित आश्रम जीवन अपनाए।

१९१७ सम्ममा गान्धी भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलनको नेतृत्वका रूपमा स्थापित भए। चम्पारण सत्याग्रह (नील खेतीमा अन्यायविरुद्ध), खेड़ा आन्दोलन, र अहमदाबाद मिल हडताल जस्ता अभियन्ता आन्दोलनहरूले उनलाई राष्ट्रिय स्तरको नायक बनाए। उनका आन्दोलनहरू नैतिक आग्रह र जनसंगठनको अनोठो मिश्रण थिए — यिनैले आधुनिक भारतको राजनीति नै बदलिदिए।


अहिंसा र सत्याग्रहको दर्शन

गान्धीजीको राजनीतिक दर्शनको मूल थियो अहिंसा (हिंसामुक्ति)सत्याग्रह (सत्यको आग्रह)। उनका अनुसार साध्य जति पवित्र छ, साधन पनि त्यति नै पवित्र हुनुपर्छ। अन्यायलाई हिंसाले परास्त गर्न खोज्नु अन्ततः न्यायलाई नै कलंकित बनाउँछ।

उनका प्रमुख आन्दोलनहरू — असहयोग आन्दोलन (१९२०), नमक सत्याग्रह (१९३०), र भारत छोड आन्दोलन (१९४२) — यी नै सिद्धान्तमा आधारित थिए। जब उनले २४० माइल लामो दाण्डी यात्रा गर्दै समुद्रबाट नमक बनाएर ब्रिटिश कानूनको उल्लंघन गरे, त्यो एक प्रतीकात्मक कदम मात्र थिएन — त्यो कदमले विश्वभर ब्रिटिश साम्राज्यको नैतिक आधार हल्लाइदियो।


सामाजिक सुधार र स्वराजको सपना

गान्धीका लागि स्वराज (आत्मशासन) केवल राजनीतिक स्वतन्त्रता होइन — आत्मनियन्त्रण र आत्मनिर्भर जीवनको दर्शन थियो। उनले गाउँमा आधारित आत्मनिर्भर भारतको सपना देखे — जहाँ हरेक नागरिक शिक्षित, सशक्त र आत्मगौरवपूर्ण जीवन जिउन सकोस्।

उनले अस्पृश्यता उन्मूलन का लागि निरन्तर संघर्ष गरे र दलितहरूलाई “हरिजन” (ईश्वरका सन्तान) भनेर सम्बोधन गरे। उनले महिलाको अधिकार, स्वच्छता, ग्रामशिक्षा र श्रमको सम्मानको पक्षमा काम गरे। उनको चरखा आत्मनिर्भरता र श्रमको गरिमाको प्रतीक बन्यो।


राजनीतिक शैली: नैतिक नेतृत्व र जन-जागरण

गान्धीको नेतृत्व शैली राजनीतिकभन्दा नैतिक थियो। उनी सत्ताका लालची होइन, सेवाका साधक थिए। उनी जनताको नैतिक चेतना जगाउन चाहन्थे, केवल सत्ता हत्याउन होइन। उनका उपवासहरू केवल विरोधको माध्यम थिएनन्, तिनीहरूले शत्रु र समर्थक दुबैको अन्तरात्मालाई जगाउने उद्देश्य राख्थे।

उनको सादगी — खादीको कपडा, कोमल वाणी, र सत्यप्रति अटूट आस्था — नै उनको वास्तविक शक्ति थियो। उनले राजनीतिलाई आध्यात्मिक साधनामा रूपान्तरण गरे। उनका आन्दोलनहरूले धर्म, जाति, भाषा र क्षेत्रका भित्ताहरू तोड्दै भारतका करोडौं नागरिकलाई एकताको सूत्रमा बाँधे।


विश्वव्यापी प्रभाव र विरासत

गान्धीको प्रभाव भारत सीमित थिएन — विश्वव्यापी थियो। उनको अहिंसक प्रतिरोधको दर्शनबाट मार्टिन लुथर किङ जूनियर, नेल्सन मण्डेला, सीज़र चाभेज, र आङ सान सू ची जस्ता नेताहरू प्रेरित भए। उनले सिद्ध गरे कि नैतिक साहसले साम्राज्यहरूलाई पराजित गर्न सक्छ, र शान्ति पनि संघर्षको शक्तिशाली हतियार हुन सक्छ।

भारतले सन् १९४७ मा स्वतन्त्रता प्राप्त गर्‍यो — त्यो सपना जुन पूरा गर्न गान्धीजीले जीवन समर्पण गरेका थिए। तर देशको विभाजन र त्यससँग जोडिएको हिंसाले उनलाई गहिरो चोट पुर्‍यायो। सन् १९४८ जनवरी ३० मा नयाँ दिल्लीमा एक उग्रपन्थीले गोली हानी उनको हत्या गर्‍यो। उनका अन्तिम शब्द “हे राम” आज पनि करुणा, क्षमा र श्रद्धाको प्रतीक बनेका छन्।


उपलब्धिहरू र अमर सन्देश

  • भारतलाई स्वतन्त्रता दिलाए — अहिंसक जनआन्दोलनको माध्यमबाट।

  • राजनीतिमा नैतिकताको पुनर्स्थापना गरे।

  • विश्वभर नागरिक अधिकार र शान्तिका आन्दोलनहरूलाई प्रेरित गरे।

  • नेतृत्वको परिभाषा बदले — शक्ति होइन, सेवा र प्रेमद्वारा।

  • सत्य र अहिंसालाई मानवताको सर्वोच्च शक्ति बनाए।


निष्कर्ष

महात्मा गान्धीको जीवन एउटा पवित्र प्रयोग थियो — सत्यलाई जिउने, सेवालाई साधना बनाउने, र अन्यायसँग बिना घृणा लड्ने। उनको महानता केवल भारतलाई स्वतन्त्र बनाउनुमा होइन, मानवताको आत्मालाई उचाल्नुमा थियो।

आजको विभाजित र अशान्त विश्वमा उनको सन्देश अझै गहिरो रूपमा सान्दर्भिक छ —

“तिमी स्वयं त्यो परिवर्तन बन, जुन तिमी संसारमा देख्न चाहन्छौ।”

गान्धीले संसारलाई देखाए — कि एउटा मात्र व्यक्ति, यदि उसमा सत्य र करुणाको साहस छ भने, उसले इतिहासको दिशा परिवर्तन गर्न सक्छ।



देंग सियाओपिङ: आधुनिक चीनका निर्माता

देंग सियाओपिङ (१९०४–१९९७) २०औँ शताब्दीका सबैभन्दा प्रभावशाली नेताहरूमा पर्छन् — त्यो व्यक्ति जसले चीनलाई एक युद्धग्रस्त, गरिब देशबाट उठाएर विश्वको एक उदीयमान शक्ति बनायो। यद्यपि उनले कहिल्यै राष्ट्रपति वा प्रधानमन्त्रीजस्ता उच्च पद धारण गरेनन्, उनको प्रभाव चीनमा सर्वोच्च थियो। एक क्रान्तिकारी, सुधारक र यथार्थवादीका रूपमा देंगले समाजवादलाई चीनको परिस्थितिअनुसार पुनर्परिभाषित गरे — मार्क्सवादी विचारधारालाई बजारको व्यावहारिकतासँग जोडे। आजको आधुनिक र समृद्ध चीन नै उनको दूरदर्शिता र नीतिहरूको परिणाम हो।


प्रारम्भिक जीवन र क्रान्तिकारी सुरुवात

२२ अगस्ट १९०४ मा सिचुआन प्रान्तको ग्वाङ’आन मा जन्मिएका देंग एक साधारण तर शिक्षित परिवारबाट थिए। १६ वर्षको उमेरमा उनी फ्रान्स गए, जहाँ उनले वर्क-स्टडी प्रोग्राम अन्तर्गत श्रम गर्दै अध्ययन गरे। त्यहीँ उनले १९२० को दशकको सुरुवातमा चिनियाँ कम्युनिष्ट पार्टी (CCP) मा प्रवेश गरे र मार्क्सवाद–लेनिनवादबाट गहिरो रूपमा प्रभावित भए।

१९२७ मा चीन फर्केपछि देंगले गृहयुद्ध र जापानी आक्रमणका कठिन वर्षहरूमा क्रान्तिकारी आन्दोलनमा सक्रिय भूमिका खेले। उनी आफ्नो संगठनात्मक दक्षता र व्यावहारिक सोचका कारण पार्टीभित्र छिट्टै परिचित बने। उनले लङ मार्च (१९३४–१९३५) मा माओ त्से–तुंगको अधीनमा काम गरे र पछि १९४९ मा कम्युनिष्ट विजय पछि देशको सैन्य तथा प्रशासनिक नेतृत्वमा जिम्मेवारी सम्हाले।


उत्थान, पतन र पुनरागमन

१९४९ मा जनवादी गणतन्त्र चीन को स्थापना पछि देंगले एक कुशल प्रशासकको रूपमा पहिचान बनाएका थिए। उनी पार्टीका महासचिव बने र युद्धपछिको चीनमा प्रशासनिक स्थायित्व र आर्थिक पुनर्निर्माणमा योगदान दिए।

तर उनीहरूको व्यावहारिक नीति माओको विचारधारात्मक कट्टरतासँग टकरायो। सांस्कृतिक क्रान्ति (१९६६–१९७६) का दौरान देंगलाई दुईपटक “पूँजीवादी मार्गी” भनेर पार्टीबाट हटाइयो। उनका परिवारले पनि अत्याचार भोग्यो र उनलाई आन्तरिक निर्वासनमा पठाइयो।

१९७६ मा माओको मृत्यु पछि चीन आर्थिक रूपमा जकडिएको र सामाजिक रूपमा थकित अवस्थाबाट गुज्रिरहेको थियो। देंग पुनः पार्टीमा पुनर्स्थापित भए र १९७८ सम्ममा चीनका सर्वाधिक शक्तिशाली नेता बने। औपचारिक पदबिना नै उनले आफ्नो बुद्धि, व्यावहारिक दृष्टिकोण र पार्टी तथा सेनामा प्रभाव प्रयोग गरेर सत्ता आफ्नो नियन्त्रणमा लिए।


राजनीतिक दर्शन: विचारधाराभन्दा माथि व्यवहारिकता

देंगको सबैभन्दा प्रसिद्ध भनाइ थियो —

“बिल्ली कालो होस् वा सेतो, जबसम्म ऊ मुसा समात्छ, ठीकै हो।”

यो कथन उनको व्यावहारिक सोचको प्रतीक थियो — उनका लागि परिणाम विचारधाराभन्दा बढी महत्वपूर्ण थिए। देंगले मान्थे कि समाजवादको लक्ष्य जनताको जीवन सुधार गर्नु हो, केवल विचारधारात्मक शुद्धता होइन। उनले बारम्बार भने — चीनले “तथ्यबाट सत्य खोज्नु पर्छ” (Seek Truth from Facts) र मार्क्सवादलाई आफ्ना राष्ट्रिय यथार्थहरू अनुसार ढाल्नुपर्छ — जसलाई पछि “चिनियाँ विशेषतासहितको समाजवाद” भनियो।

माओको वर्गसंघर्ष–केन्द्रित दृष्टिकोण अस्वीकार गर्दै, देंगले आर्थिक विकास, स्थायित्व र आधुनिकीकरण लाई प्राथमिकता दिए। उनका सुधारहरू व्यवहारिक, क्रमिक र दीर्घकालीन योजना–आधारित थिए — जहाँ राजनीतिक उदारीकरणभन्दा अघि आर्थिक प्रगति अनिवार्य ठहरियो।


चार आधुनिकीकरण र आर्थिक सुधार

१९७८ मा देंगले चीनको पुनर्जागरणका लागि चार आधुनिकीकरण (Four Modernizations) कार्यक्रम सुरु गरे — कृषि, उद्योग, रक्षा, र विज्ञान तथा प्रविधि। यी सुधारहरूले चीनको अर्थतन्त्र र समाजलाई गहिरो रूपान्तरण गरे।

  1. कृषि सुधार: सामूहिक खेती प्रणाली हटाएर घरायसी जिम्मेवारी प्रणाली (Household Responsibility System) लागू गरियो, जसले किसानलाई उत्पादन र मुनाफामा स्वामित्वको भावना दियो। यसले कृषि उत्पादन र ग्रामीण आयमा तीव्र वृद्धि गर्‍यो।

  2. औद्योगिक सुधार: राज्य–स्वामित्व भएका उद्योगहरूमा प्रतिस्पर्धा र बजार–सिद्धान्तहरू लागू गरियो, र निजी उद्यमलाई सीमित रूपमा अनुमति दिइयो।

  3. विदेशी लगानी नीति: चीनले विश्वसँगका द्वार खोले। शेन्जेन जस्ता विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZs) स्थापना गरिए, जहाँ समाजवादी ढाँचा भित्र पूँजीवादी प्रयोग गरियो।

  4. शिक्षा र प्रविधि: उच्च शिक्षा पुनर्जीवित गरियो, विज्ञानमा लगानी बढाइयो, र हजारौं विद्यार्थीलाई आधुनिक ज्ञानका लागि विदेश पठाइयो।

यी सुधारहरूका परिणाम ऐतिहासिक थिए। १९८० को दशकको अन्त्यसम्म चीनको GDP तीव्र गतिमा बढिरहेको थियो, करोडौं मानिसहरू गरिबीबाट बाहिरिए, र चीन विश्व व्यापार प्रणालीमा एक प्रमुख शक्ति बन्दै गयो।


राजनीतिक शैली: सत्तावादी सुधारवाद

देंग पूर्ण रूपमा लोकतान्त्रिक थिएनन्, तर उनी विचारधाराका अन्धभक्त पनि थिएनन्। उनको नीति थियो — राजनीतिक नियन्त्रण कायम राख्दै आर्थिक स्वतन्त्रता दिनु। उनी मान्थे कि यदि राजनीतिक उदारीकरण छिटो भयो भने देश अस्थिर हुन सक्छ र पार्टी कमजोर पर्न सक्छ। उनका लागि सिद्धान्त थियो —

“सबैभन्दा माथि स्थायित्व।”

उनले निर्णयलाई केन्द्रित राखे, तर अर्थतन्त्रमा विकेन्द्रीकरण गरे। उनी पर्दामुनिबाट शासन गर्थे, जसलाई उनी “ढुङ्गा छोएर नदी पार गर्नु” भन्ने शैलीले वर्णन गर्थे — जसको अर्थ थियो सावधानीपूर्वक प्रयोग र क्रमिक प्रगति।

१९८९ को तियानआनमेन स्क्वायर आन्दोलन उनका लागि सबैभन्दा कठिन क्षण थियो। देंगले सेना प्रयोगको आदेश दिए, जसले व्यवस्था कायम राख्यो तर उनको छवि धुमिल बनायो। उनको दृष्टिमा, यो कदम राष्ट्रको स्थिरता र विकासको लागि आवश्यक थियो।


उपलब्धिहरू र विरासत

देंग सियाओपिङको योगदान क्रान्तिकारी थियो — न युद्धद्वारा, न विचारधाराद्वारा, तर सुधार र यथार्थवादद्वारा। उनका प्रमुख उपलब्धिहरू यस प्रकार छन्:

  • आर्थिक रूपान्तरण: चीनलाई योजनाबद्ध अर्थतन्त्रबाट निकालेर तीव्र गतिमा बढ्ने बजार–अर्थतन्त्रमा रूपान्तरण गरे।

  • गरिबी उन्मूलन: करोडौं मानिसहरूलाई गरिबीबाट बाहिर निकाले र चीनलाई औद्योगिक महाशक्ति बनाउने आधार तयार गरे।

  • वैश्विक एकीकरण: १९७९ मा अमेरिकासँग सम्बन्ध सामान्यीकरण गर्दै चीनलाई विश्व व्यापारको प्रमुख भाग बनाए।

  • संस्थागत सुधार: एक व्यक्ति–केन्द्रित शासन रोक्न कार्यकाल सीमिततासामूहिक नेतृत्व को अवधारणा ल्याए।

  • सन्तुलित विदेश नीति: विदेशमा संयम र भित्र घरेलु विकासमा ध्यान — उनको नीतिगत मन्त्र थियो, “आफ्नो शक्ति लुकाऊ, समय पर्ख।”


एक वाक्यमा दर्शन: व्यवहारिक समाजवाद

देंगले समाजवादलाई समान गरिबी होइन, उत्पादकता र समृद्धि साझा गर्ने व्यवस्था को रूपमा परिभाषित गरे। उनले भने —

“धनी हुनु गौरवको कुरा हो।”

उनका लागि राष्ट्रिय गौरव र आधुनिकीकरण अविभाज्य थिए। उनले प्रमाणित गरे कि चीन बजार–व्यवस्था अपनाएर पनि कम्युनिष्ट पार्टीको नियन्त्रण कायम राख्न सक्छ। यही मोडेल आजसम्म चीनको शासन प्रणालीको मेरुदण्ड बनेको छ।


निष्कर्ष

देंग सियाओपिङको जीवन दृढता, दृष्टि र व्यवहारिक बुद्धिमत्ताको कथा हो। उनले राजनीतिक उत्पीडन झेले, विचारधारात्मक संघर्ष सामना गरे, र एक जर्जर देशलाई आधुनिक चीनमा पुनर्जन्म दिए। आलोचकहरूले उनको सत्तावादी नीतिहरूको आलोचना गर्छन्, तर यो अस्वीकार गर्न सकिँदैन कि उनले चीनको उदयको आधारशिला राखे — गरिबीबाट शक्तिसम्म, अलगावबाट विश्व प्रभावसम्म।

देंग मूलतः एक यथार्थवादी नेता थिए — जसले क्रान्ति र विश्वीकरणबीच पुल निर्माण गरे। उनको सबैभन्दा ठूलो उपलब्धि यही थियो कि उनले देखाए — एक सभ्यता पश्चिमी ढाँचाको नक्कल नगरी पनि आधुनिक बन्न सक्छ, न पूर्ण पूँजीवादी, न पूर्ण साम्यवादी — तर विशुद्ध चिनियाँ।



Monday, May 30, 2022

Ratan, Lee, Deng




अमेरिका को मधेसी संगठन एण्टा का संस्थापक अध्यक्ष रतन झा को अहिले सम्म को सबैभन्दा मैले सम्झिने कुरा फेसबुक मार्फ़त मलाई यो पुस्तक सम्म पुर्याइदिएको। एउटा स्टेटस थियो यो पुस्तक दुई वर्ष अगाडि। मैले पुस्तक देखें, किनें, पढ़ें। रतन जी भन्दा पहिला पढ़ि सकाएं। दफा दफा मा लाइन मुनि धर्को कोरी कोरी। 

राष्ट्रनिर्माण मा ली गोल्ड स्टैण्डर्ड नै हो। र आर्थिक प्रगति मात्र होइन। बिभिन्न। जस्तो कि दंगा रोकथाम। थुप्रै। लगभग प्रत्येक पक्ष। स्वास्थ्य बीमा। होम ओनरशीप (Home Ownership)। 




मैले हीरो मानेको ली। ली ले हीरो मानेको डेंग। डेंग बारे को किताब पनि पढ़ें। चिनिया राजनीतिक प्रणाली बारे धेरै कुरा थाहा भो। ली ले हीरो किन मानेको भन्ने पनि देखें। आर्थिक नेपोलियन नै हो डेंग। सांस्कृतिक क्रांति का दौरान डेंग को छोरा लाई प्यारलाइज हुने गरी पिटपाट गरिएको। डेंग आफै हाउस अरेस्ट मा। 

चीन लाई एउटा अर्को डेंग चाहिएको हो। सी ले चीन लाई मिडल इनकम ट्रैप मा लगेर थन्क्याएको अवस्था छ। डेंग ले आर्थिक सुधार गरे। राजनीतिक सुधार पछि गर्ने भनेका। त्यो समय त अब आइसक्यो। 




Thursday, November 19, 2015

झापा त Sensitive Zone हो, चीनले बुझ्नुपर्छ

झापा त Sensitive Zone हो, चीनले बुझ्नुपर्छ। चीनले नेपालमा बनाउन चाहेको Special Economic Zone जसमा उ तीन खरब खर्च गर्न चाहन्छ, त्यसका लागि झापा भन्दा अनुपयुक्त ठाउँ अर्को हुनै सक्दैन। चीन ले मधेस सँग सम्बन्ध निर्माण गर्ने तर्फ सोच्नुपर्छ। Special Economic Zone का लागि सबै भन्दा उपयुक्त ठाउँ जनकपुर हो।

जनकपुर जयनगर ब्रॉड गेज रेल बने पछि कलकत्ता बाट काठमाण्डु पुग्ने सबै भन्दा छोटो बाटो जनकपुर को बाटो हुनेछ। झापा देखि नारायणी नदी सम्म को जुन मधेस प्रदेश बन्न लागेको छ त्यसको राजधानी जनकपुर हुन्छ। भविष्य मा धनुषा र  महोत्तरी सारा जिल्ला छोप्ने गरी एउटा महानगर बनाउने कुरा को कल्पना गर्न सकिन्छ, सारा नेपालको २५% मानिस अटाउने, ताकि पहाड़मा ७०%  forest cover गर्न सकियोस्। त्यस्तो ठाउँ मा पो Special Economic Zone बनाउने हो।

पहिला जनकपुर मा बनाउने। पछि बिहार को दरभंगा मा पनि बनाउने। हिन्द-चीनी भाइ भाइ।

झापा का बाहुन जात मात्र बाहुन, दिमाग खाली छ सबको। त्यहाँ Special Economic Zone का लागि शिक्षित मैनपावर नै पाउँदैन। एका कुनामा रहेको झापा।

जनकपुर सारा मधेस को सांस्कृतिक र राजनीतिक राजधानी। चीन-मधेस सम्बन्ध बलियो पार्ने उत्तम उपाय हो जनकपुर मा चीनले Special Economic Zone बनाउने।

झापा कुछ नहीं है।




मधेस र थरुहटले आफ्नो अधिकार पाउन संगै मिलेर जानुको विकल्प नरहेको विचार आज सप्तरीको ओद्राहामा आयोजित सभामा तमरा अभियानका ...

Posted by Jay Prakash Gupta on Thursday, November 19, 2015

मधेश बिरोधी सम्बिधानमा हस्ताक्षर गरेको भन्दै रौतहटमा आन्दोलनकारिहरद्वारा सांसद हरिचरण साहलाई कालोमोसो

Posted by Upendra Mahato on Thursday, November 19, 2015

थारु मधेसी सभा************आज मंसीर ३ गते सप्तरी जिल्लाको सप्तकोशी न.पा. मा तमरा अभियानका संयोजक जय प्रकाश गुप्ता र थार...

Posted by Jay Prakash Gupta on Thursday, November 19, 2015

My deepest admiration in Nepali politics is for Mahant Thakur. A man of utter simplicity, impeccable integrity, Gandhian...

Posted by Prashant Jha on Wednesday, November 18, 2015

I gather:Madhesi Morcha will allow schools till 11 am, allow medicine trucks to reroute through one crossing AND...

Posted by Prashant Jha on Thursday, November 19, 2015

कस्तो अचम्भ आभावाको नाउमा निकै चर्को मूल्य तिरी जे पनि पाउने?अव त काठमान्डौमा रोड जाम पनि हुनथाल्यो|मौकामा चौकाहाल्नेको कमि छैन है!सरकार कता

Posted by Er Satya Narayan Shah on Wednesday, November 18, 2015

इन्धन छैन सहरको बाटो जाम छकरोडौं कमाइ लाख दानमा नाम छ कालोलाई सेतो बनाऔं मीठो याम छ टिप्न जान्नुपर्छ अचेल जताततै दाम छ।

Posted by Guna Raj Luitel on Thursday, November 19, 2015

मलंगवामा बिशाल मसाल जुलूस प्रदर्शन.....आज संयुक्त लोकतान्त्रिक मधेशी मोर्चाद्वारा मलंगवामा बिशाल मसाल जुलूस प्रदर्शन

Posted by Upendra Mahato on Thursday, November 19, 2015

बिशाल मसाल जुलूस प्रदर्शन.....आज संयुक्त लोकतान्त्रिक मधेशी मोर्चाद्वारा बिरगंजमा बिशाल मसाल जुलूस प्रदर्शन

Posted by Upendra Mahato on Thursday, November 19, 2015

जलेश्वरमा बिशाल बिरोध प्रदर्शन....

Posted by Upendra Mahato on Thursday, November 19, 2015

सिंहदरबारको ‘चिया–विस्कुट’ वार्ता र मधेसी नेताको मुस्कान (फोटोफिचर)- See more at: http://www.ratopati.com/news/14292/

Posted by Rato Pati on Wednesday, November 18, 2015

And some of these lawyers happen to be on the rolls of international organisations committed to the cause or justice....

Posted by Prashant Jha on Wednesday, November 18, 2015

सब मिलेर बिरेाध गरैा ।********************प्रधानमन्त्री केपी ओली नेतृत्वको सरकारले मुलुकको गिर्दो अर्थतन्त्रको पर्वाहै...

Posted by C.k. Sah on Thursday, November 19, 2015

नाकाबन्दी बिरुद्ध बैद्य माओवादीले आन्दोलन गर्ने : आजको समाचार...

Posted by Manoj Gajurel on Wednesday, November 18, 2015

मधेश आन्दोलनमा सक्रिय भूमिका निर्वाह गरेका विभिन्न दलका आन्दोलनकारीहरू लाई पार्टीमा स्वागत गर्दै

Posted by सदभावना पार्टी on Wednesday, November 18, 2015

धरहरा यसरी ढलेको थियो। ध्यान दिएर भिडियो हेर्नुस्

Posted by Mysansar on Friday, July 31, 2015

भारतले भन्दा कर्मचारीले सताइराछ अहिले नेपाललाई...आफ्नो कर्मचारी तह लगाउन नसक्ने छ हाम्रो सरकार....भकाभक छान्दै सक्याउनु नि देश द्रोहको अभियोगमा....:@#BeBoldOliGovt

Posted by Anzaan Kumar on Wednesday, November 18, 2015

उपेन्द्र यादव, राजेन्द्र महतो र महन्थ ठाकुरहरुले आफ्नै देशभित्र अधिकारको कुरा गरिरहेका छन् । यस्तो बेलामा एक-दुईवटा गावि...

Posted by सदभावना पार्टी on Wednesday, November 18, 2015

I wrote Forget Kathmandu because my hometown can be self-centred & uncaring. Solidarity with #KTMwithMadhes, who prove Kathmandu does care.

Posted by Manjushree Thapa on Wednesday, November 18, 2015

Sunday, October 18, 2015

बाबुराम र नेपालमा आर्थिक क्रांति

नीतीशले बिहारमा जे गरे, मोदीले गुजरातमा जे गरे, भारत मा जे गर्छु भन्दैछन्, ली कुऑन यु ले सिंगापुर मा जे गरे, डेंग स्याओ पिंग ले चीन मा जे गरे, फिडेल कास्ट्रो ले क्यूबा मा शिक्षा र स्वास्थ्य को क्षेत्रमा जे गरे ----- नेपालमा आर्थिक क्रांति गर्न सिक्नु पर्ने शिक्षक यिनै हुन। मलाई लाग्दैन बाबुराम ले अब अध्ययन थाल्ने हुन। बाबुरामले यी सबैको अध्ययन धेरै पहिले गरिसकेको हुनुपर्छ।

आर्थिक क्रांति वास्तवमा राजनीतिक क्रांति भन्दा सजिलो हो। यद्यपि राजनीतिक क्रांति ले जनता बाट त्याग माग्छ।  आर्थिक क्रांति ले जनता लाई समृद्धि दिन्छ। दुख को कुरा हामी अझै राजनीतिक क्रांति को फेज मा नै छौं।
  • शिक्षा 
  • स्वास्थ्य 
  • Infrastructure
  • Ease Of Doing Business 
  • पारदर्शी र भ्रष्टाचारमुक्त सरकार 
९०% जनता को सुखद भविष्य निजी क्षेत्र को जागीर खाएर हुने हो। देशमा नभए विदेशमा गएर खान्छन्। कम्निष्ट हो, गरीब को बढ़ी चिन्ता छ भने शिक्षा र स्वास्थ्य को क्षेत्र मा क्रांतिकारी रफ्तारमा काम गरेर देखाउ। 

नेपालको विशेष परिस्थितिमा जलबिद्युत भन्नै पर्ने हुन्छ। विश्व बाजार मा पुंजी को अभाव छैन। भने पछि १००% कमी कमजोरी नेपाली पक्ष सँग छ। एउटा दुईटा ठुलो प्रोजेक्ट गर्न सके बाबुरामले संविधान मा लेखेका लामो लिस्ट का अधिकार सब पुरा हुन्छन्। वाक स्वतंत्रता जस्तो अधिकार का लागि सरकार ले पैसा खर्च गर्नु पर्दैन। तर बाबुराम ले लेखेको लामो लिस्टमा पैसा पर्ने अधिकार हरु छन। भने पछि देशले पैसा कमाउनु पर्यो। 

खोला र सुरक्षा बाहेक केही नदिने


Friday, August 21, 2015

३०-३०-३०-१०: केंद्र प्रदेश स्थानीय विशेष

अहिले बजेट १००% केंद्र सँग छ। किनभने देशमा एकात्मक व्यवस्था छ। त्यसलाई ३०-३०-३०-१०: केंद्र प्रदेश स्थानीय विशेष गर्नु उचित होला। अर्थात ३०% केंद्र सरकार सँग रहने। ३०% १६ प्रदेश लाई जनसंख्या समानुपातिक। अर्को ३०% स्थानीय सरकार हरु लाई जनसंख्या समानुपातिक। १०% विशेष क्षेत्र हरु लाई जस मध्ये अधिकांश भाग १० वटा SEC (Special Economic Zones) हरु लाई दिने। यो चीन मा डेंग स्याओ पिंग ले ल्याएको अवधारणा हो।

कमसेकम लगानी गरेर बढ़ी से बढ़ी उत्पादन हुन सक्ने ठाउँ भनेर बिज्ञ हरुको एउटा आयोग बनाएर सुझाव माग्ने। त्यस्ता SEC (Special Economic Zones) हरुमा सरकारले सबै किसिम का सर सहयोग विशेष रुपले पुर्याउने। बाटो, पानी, २४ घंटा बिजुली। बरु सशस्त्र प्रहरी लाई त्यहीँ सुरक्षा का लागि सीमित गरि दिए हुन्छ। सशस्त्र को संख्या घटाएर १०,००० मा पुर्यायो अनि एक एक हजार ती १० वटा SEC (Special Economic Zones) को सुरक्षा का लागि खटायो।

एक पटक SEC (Special Economic Zones) को स्थापना भए पछि move on गर्न पाइन्छ। १० वटा SEC (Special Economic Zones) हरु को निर्माण गर्न ५ वर्ष लाग्ला। त्यस पछि अर्को १० वटा SEC (Special Economic Zones) हरु निर्माण गर्न बजेट खर्च गरे भो।

बाटो, पानी, २४ घंटा बिजुली, सुरक्षा ले मात्र हुँदैन। Policy Framework अत्यंत बिज़नेस friendly हुनुपर्यो। यो शायद नंबर एक कुरा हो।

Federalism, Centripetal Force, Centrifugal Force
संघीयता मा बजेट बाडफाड़: ३३-३३-३४: केन्द्र प्रदेश स्थानीय
१ देश, १६ प्रदेश, २०-३० विशेष क्षेत्र, १००० गाउँ/नगर = १२५ जातजाति
प्रत्यक्ष निर्वाचित वडा अध्यक्ष, मेयर, मुख्य मंत्री र प्रधान मंत्री



'मधेसी मोर्चाको निर्णय आतंकारीको घोषणाजस्तो'
राज्य व्यवस्था समितिले छानबिन गर्ने



बीरगन्जमा आन्दोलनको प्रतिकार
'आन्दोलनकारीको मागप्रति समर्थन भए पनि बिहान र साँझ बजार खोल्न दिनुपर्‍यो,' शर्माले भने, 'हामी पनि हातमा कालोपट्टी लगाएर समर्थन गर्न तयार छौँ ।' लामो बन्दले दैनिक उपभोग्य वस्तुको अभावसमेत खडकिएको उनले बताए । यसअघि बन्दकर्ताले विगतका सम्झौता कार्यान्वयन नगरी मधेसीको अधिकार कुण्ठित गर्ने प्रमुख ४ दलका नेताको प्रतीकात्मक शव प्रदर्शन गरेका थिए । .... बाजागाजासहित निस्केको शव जुलुस नगर परिक्रमा गरी घण्टाघरमा कोणसभामा परिणत भएको थियो । अधिकारका लागि विगत ७ दिनदेखि जनता सडकमा उत्रिए पनि सरकारले बेवास्ता गरेकाले मलामी जुलुस निकालेको संयुक्त लोकतान्त्रिक मधेसी मोर्चाका प्रदीप यादवले बताए ।


किन लेखिन्छ 'मधेश सरकार’?
०६३ सालको माघमा भएको पहिलो मधेश विद्रोताका मधेशका सदरमुकामहरुमा त सरकारी कार्यलयको जम्मै वोर्डहरुमा नेपाल सरकारको ठाउमा मधेशीहरुले मधेश सरकार लेखि दिएका थिए । जो धेरै पछि सम्म त्यसै थिए । विस्तारै पुन उक्त ठाउमा फेरी नेपाल सरकार उल्लेख गरियो । त्यसलाई आधार बनाएर काठमाडौमा दजौनौ पटक तराई मधेश लोकतान्त्रिक पार्टीका अध्यक्ष महन्थ ठाकुरले त्यसलाई संघियता संग जोडेर भाषण पनि गरे । ठाकुरले पुर्व देखि पश्चिम सम्मका मधेशीहरुले आन्दोलनको क्रममा ठाउ ठाउमा मधेश सरकार लेखेको भन्दै मधेशको मुख्य माग एक मधेश प्रदेश भएको दाबी गर्थे । ...... सदभावना पार्टीले स्थापना काल देखि नै अपना शासन, अपना प्रशासन, अपना न्यालय, अपना विद्याँलय ।

Monday, July 06, 2015

Geopolitics भन्ने शब्द

English: Senior Minister Lee Kuan Yew of Singa...
English: Senior Minister Lee Kuan Yew of Singapore, being escorted by United States Secretary of Defense Donald H. Rumsfeld through an honour cordon and into the Pentagon. They met to discuss bilateral security issues including the war on terrorism: see DefenseLINK news photos. US Department of Defense (). Retrieved on . (Photo credit: Wikipedia)
Deng Xiaoping
Deng Xiaoping (Photo credit: Wikipedia)
Politics is like Physics, राजनीति पनि एउटा विज्ञानं नै हो। चन्द्रमा पृथ्वी वरिपरि घुम्छ, पृथ्वी सुर्य वरिपरि घुम्छ। That is gravity. नेपाल भनेको चन्द्रमा भन्दा पनि सानो। भारत भनेको जुपिटर, नेपाल भनेको जुपिटर को एउटा चन्द्रमा। नेपालको यथार्थ: नेपाल भुपरिबेष्टित होइन भारत-परिवेष्टित देश। काठमाण्डु उपत्यका को उत्तर मा शिवपुरी पहाड़ यथार्थ हो। It is reality, whether you like it or not. भारत नेपालको यथार्थ हो।

There is no escaping the laws of gravity. उफ्फ गुरुत्वाकर्षण भनेर चन्द्रमा ले शिकायत गर्न सुहाउँछ? तर त्यति बुझ्ने एउटा सानो अंतरिक्ष यान पनि पृथ्वी बाट मंगल ग्रह पुग्न सक्छ।

चन्द्रमा को गुरुत्वाकर्षण ले पृथ्वीमा समुन्द्रमा high tide, low tide भइराखेको हुन्छ ---- त्यस बारे शिकायत गर्ने? कि त्यस बाट बिजुली पैदा गर्ने?

मोदी प्रत्येक चार वर्ष मा एक पटक निर्वाचन ले दिने व्यक्ति होइन। यो एउटा rare मान्छे हो। Deng XiaopingLee Kuan Yew टु इन वन। भारतको यथार्थ लाई आत्मसात गर्दै, मोदी आएको कुराको फाइदा लिँदै नेपालमा आर्थिक विकास को कुरा सोँच्ने हो। तर बामे जस्ताले जसलाई "राष्ट्रियता" भन्छन (अर्को छ त्यस्तै जोकर नारायण काजी) त्यसलाई मोदीले "trust deficit" भन्छन ----- "Trust Deficit जितना कम होगा काम उतना जल्दी जल्दी होगा!" मोदीले भनेको। मोदीले पहिलो भ्रमण मा नै $1 Billion दिएको ---- सुशील ले त्यो छोएको पनि छैन। कस्तो अचम्म!

मैले केही अगाडि भने ----- नेपाल लाई सिक्किम बनाउनु पर्छ भनेर --- ख्याल ख्याल भनेको होइन --- it was not a rhetorical statement. सार्बभौमसत्ता नेपाली जनतामा छ भने नेपाली जनतालाई जनमत संग्रह का माध्यमले भारतको अर्को राज्य बन्ने अधिकार छ कि छैन? बिलकुल छ। सार्बभौमसत्ता जनतामा हुनुको परिभाषा नै त्यही हो। होइन भने भारत अमेरिका जस्तो बन्ने अनि नेपाल अझै दुई चार पुस्ता हेटी भएर बस्ने ठुलो संभावना छ।

बीपी देखि प्रचंड सम्मले नेपालमा खुट्टा टेक्ने ठाउँ नहुँदा भारतको भुमि प्रयोग गरेका हुन। त्यो प्रयोगले नेपालको राजनीति अगाडि बढ्यो।

बिहार १० करोड़ जनसंख्या ले ४० वटा MP पाएको छ दिल्लीमा ---- नेपाल ले ३ करोड़ को हिसाबले १३ वटा जति पाउने भो। राम्रै प्रतिनिधित्व हुन्छ। खस हरु नेपालमा भन्दा भारतमा बढ़ी छन। नेपाली भाषा साहित्य नेपालमा भन्दा भारतमा बढ़ी विकसित छ। नेपाली हरु को संख्या नेपाल सेनामा भन्दा भारत सेनामा बढ़ी छ।

नेपाल अलग देश हुँदा भारत ले नेपाल मा हस्तक्षेप गर्ने एकतर्फी छ ---- एउटै देश हो भने त नेपालका MP ले भारत हाँक्ने भो। Counter हस्तक्षेप। चन्द्रमा ले पृथ्वीमा high tide ल्याए जस्तो।

मुख्य कुरा त आर्थिक विकास हो। एकीकरण को फाइदा आर्थिक विकास।

भारत भनेको एउटा देश भन्दा पनि महादेश हो। European Union जस्तो। पुर्वी युरोप का देश हरु EU join गर्न तछाडमछाड गर्छन। EU ले political union गर्ने पनि इच्छा राखेको छ। गर्ने क्षमता नभएर नगरेको।

नेपाली राजनीति र भारत
भारतीय दुतावास कुन नेता जाँदैनन् : अमरेशकुमार


Wednesday, June 04, 2014

Fundamental Microfinance

English: Roadside billboard of Deng Xiaoping a...
English: Roadside billboard of Deng Xiaoping at the entrance of the Lychee Park in Shenzhen (Photo credit: Wikipedia)
I am a huge fan of microfinance. But it has to be reimagined. It is one of the three basic ingredients, the other two being education and health.

A country like Nepal can not afford to only educate the kids, although it currently does a poor enough job of that as well. But adult education has to step in. You use the same school buildings, but perhaps in the evenings and during weekends, for adult education. Everyone, child or adult, needs at least 10 years of schooling. And you should be able to pick up no matter where you left. And you should have the option to move at your own pace sometimes. Perhaps you put FM radio to use. People could tune in at a certain time of the day to listen into lessons. There is one frequency for the first grade, another for the second grade and so on. Lessons should be available in your primary language. The Chinese have proven beyond doubt that you don't have to learn English first before the world opens up for you.

People like Mao and Fidel Castro have done impressive work in basic health. You provide basic training to a large number of workers who then fan out to where the needs might be. There is a fundamental need to take up this work with revolutionary zeal.

But a left leaning country like Nepal where even the so-called right of center party like the Congress calls itself "socialist" sometimes tends to not grasp entrepreneurship well. You can educate your people all you want, you can turn them into fighting shape in terms of health, but unless you can create jobs for them they are going to rust with disuse. You are going to pump up a population that is all ready with nowhere go to.

Left leaning political leaders should cultivate a healthy respect for entrepreneurs who might be millionaires. They are like hens that lay the golden egg. You don't kill those hens. You don't get in their way. When they create more wealth for themselves, they pay more in taxes. You can use that tax money to serve the poor all you want.

But then entrepreneurship goes way beyond people who establish and run big factories. Small businesses are all the rage. Even in a country like America the vast majority of new jobs get created by small businesses.

And then there are micro businesses. I am talking raising goats to sell, or cultivating vegetables to sell, small businesses that you could start with a hundred dollar loan. Access to credit should be like a right, just like basic education and health.

But then sometimes it is hard to create any meaningful business with just a hundred dollars. China does not have a track record in microfinance, but it has lifted more people out of poverty than anyone else. And they have done that by creating jobs at large scales through large scale factories.

Very few rich people choose to become entrepreneurs. I like to say being an entrepreneur is kind of like being gay. It is assumed perhaps one per cent of the population is biologically gay. So if very few rich people are entrepreneurs, it is erroneous to think all poor people are inclined to entrepreneurship.

Another dimension to microfinance would be that you would have something like a right to a hundred dollars in business loans every year, but you would also have the option to pool your resources. So 100 individuals should have the option to bring together 100 dollars each into a pool of 10,000 dollars for a one per cent share each in an enterprise led by one entrepreneur who perhaps ends up employing most or all of those 100 people.

If you make room for the fact that 5-10% of those loans will fail that you will happily write off, I think that could create a lot of small business action. And you will end up with a lot of workers who are also part owners in enterprises. That is key. Deng Xiaoping started by letting Chinese farmers own small plots of land. The sense of ownership is key. The right to property is a fundamental human right, like free speech. And the act of exercising free speech takes some practice.

Completely state owned enterprises are not simply failed Soviet era ideas. Modi proved in Gujrat they can outperform the market if they are kept free of political interference and are allowed to run on meritocratic guidelines. It makes sense for some companies and some enterprises to be 100% state owned. As long as they perform is all that matters. What is dead weight is companies that are state owned and run losses year after year.

You can also have companies that are partly owned by the state. You can have companies that are partly owned by foreign investors.

There is no one size fits all. The key point is entrepreneurship has to be nurtured. It has to be allowed to flourish. There does not seem to be only a left or right way of doing it. State owned enterprises can work. Private companies can fail. Small business owners can create jobs. Large companies can stagnate. The job market is and should be a dynamic situation. As long as the cat catches mice is all that matters.
Enhanced by Zemanta