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Monday, September 14, 2015

मधेसकी लड़ाई मधेसकी भुमि पर होगी

An eagle does not fight a snake on the ground. It picks it up and changes grounds, then releases it back to the ground. A snake has no stamina, no power, no balance in the air. It is useless, weak and vulnerable unlike on the ground where it is deadly, wise and powerful. Take your fight to the spirit realm (pray) and when you are in the spiritual realm God takes charge. Don't fight in the physical realm change grounds like an eagle. You will be assured of a clean victory.

अब हुलाकी राजमार्ग बन्ने भो

अब हुलाकी राजमार्ग बन्ने भो। पहाड़ी हरु, आफु पनि नबनाउने, भारत ले बनाउन खोज्यो भने त्यहाँ पनि भाँजो हाल्ने। भारत ले आफ्नै भूमिमा बोर्डर मा सड़क बनाउन खोजे त्यहाँ पनि विरोध गर्ने। Evil मान्छे हरु। मधेस सरकार को प्रथम प्राथमिकता नै यो हुलाकी राजमार्ग रहन्छ।


नेता हरुको जनकपुरमा दाहसंस्कार गरियो

neta haruko daah sanskaar

हाम्रो नेपाल को बरिस्ट आदरणीय नेता जिऊ हरुको जनकपुरमा दाहसंस्कार गरियो....... एक पल्ट अवस्य हेर्नु होला.....

Posted by TV TODAY on Saturday, September 5, 2015


हाम्रो नेपाल को बरिस्ट आदरणीय नेता जिऊ हरुको जनकपुरमा दाहसंस्कार गरियो

Minendra Rijal, Jitendra Dev, Ganga Chaudhari

In The News (76)


आन्दोलन जारी छ .....अधिकार के लिए रक्त वर्षों से नसों में खौलता है,नसम्झो क्षणिक उत्तेजना है ।- जय मातृभूमि !
Posted by Upendra Mahato on Sunday, September 13, 2015

दवाब स्वरूप सान्तिपुर्ण रुपमा निस्किएको स्थानीय जनताको भिडलाई शनिवार दमौलीमा प्रहरीले निर्घातरूपमा कुट्नुका साथै ताकि त...
Posted by C.k. Sah on Monday, September 14, 2015

"महोत्तरीको जलेश्वर क्षेत्रमा सरासर अन्याय भइरहेको छ, कोही बोलिदिनुस् न ।"आवश्यकता : महोत्तरीको जलेश्वर लगायतका क्षेत्...
Posted by C.k. Sah on Monday, September 14, 2015

Hello Friends,I would like to draw your kind attention towards police brutality and killings of innocent and unarmed...
Posted by Manohar Sah on Sunday, September 13, 2015

६०० होइन ६००० कमाण्डो पठाउ

हामी सब लाई जागीर दिन्छौं मधेस देशमा।


लिम्बुवान बाट मधेस झरेको केपी ओली

लिम्बुवान बाट मधेस झरेको केपी ओली लाई हामी मधेस अलग देश को स्थापना सँगै वापस लिम्बुवान लाई सुपुर्द गरिदिन्छौं। अपना कुरा कचरा अपने साथ रखो।


Upendra Yadav

तीन व्यक्ति एक मत वाला खस लोकतंत्र मधेसी लाई मान्य छैन


१ करोड़ मधेसी। ४३ लाख लाई अनागरिक। अर्को ३० लाख लाई दोस्रो दर्जा को नागरिक। त्यो मान्य हुन्छ भनेर सोँच्नु हास्यास्पद छ।

Monday, August 31, 2015

मधेसी मोर्चा र मधेसी स्वराजी को सम्बन्ध



Dr. CK Raut
मधेशी पार्टी द्वारा स्वराजी अञ्‍जय मिश्रको फँसाकर जेल में बंद करवाना: मधेशी पार्टी द्वारा स्वराजियों को भीड में लपेटकर फँसाने, दमन करवाने, इन्काउन्टर करवाने और स्वराज अभियान को खत्म करने की साजिश
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कल शाम को प्रत्यक्षदर्शी से जानकारी प्राप्त हुई कि मोरंग विराटनगर से पकड़े गए स्वराजी अञ्‍जय मिश्र को अभी तक हिरासत में ही रखा गया है। मधेशी मोर्चा द्वारा घोषित श्रावण ३१/३२ के कार्यक्रम के दौरान एक मधेशी पार्टी के जिलाध्यक्ष, स्वराजी अञ्‍जय मिश्र और अजय नाम के एक साथी साथ-ही-साथ बजार से गुजर रहे थे। इतने में पुलिस वैन दिखाई दी और मधेशी पार्टी के जिलाध्यक्ष नें ईंट उठाकर पुलिस की गाडी पर फेंक दी, जिससे गाडी का शीशा टूट गया। जिलाध्यक्ष महोद्‍य तो भाग गए, पर सारी घटना से हक्का-बक्का हुए अञ्‍जय मिश्र और अजय वही पर खडे रहे। पुलिस ने उतरकर दोनों को गिरफ्तार कर के वैन में बिठाया, पर अजय वैन से कुदकर भाग गया जिसके कारण उसके पैर में मोच भी आई। अञ्‍जय को पुलिस ने हिरासत में लिया। शाम के मशाल जुलुस के दौरान मोर्चा के कुछ और कार्यकर्ताओं को भी पकडकर लाया गया। पर सभी कार्यकर्ताओं को मधेशी पार्टीयों ने छुडाकर ले गया, पर अञ्‍जय मिश्र को उन सबने हिरासत में ही छोड दिया। उल्टा मोरंग के पूर्वसभासद् तथा संघीय समाजवादी फोरम के नेता ने मकालु टेलिविजन से अन्तर्वार्ता में कहा कि उनके मशाल जुलुस में "विखण्डनकारी घुसपैठिया" घुस गया था जिसके कारण से आन्दोलन उग्र हो उठा।

बाद में जब श्री महन्त ठाकुर, श्री उपेन्द्र यादव, श्री राजेन्द्र महतो, श्री महेन्द्र राय यादव लगायत के नेता विराटनगर में सभा को सम्बोधन करने पहुँचे तो ईस्टर्न होटल में अञ्‍जय मिश्र के विषय में जीवन गुप्ता जी ने वृहत्त में बात रखी पर कोई सुनवाई नहीं हुई। विराटनगर के नागरिक समाज के सामने यह बात रखी गई वहाँ भी कोई परवाह नहीं किया गया। मधेशी मोर्चा के स्थानीय नेताओं के सामने बात रखी गई कि आपके कार्यक्रम के दौरान, आपके जिल्ला अध्यक्ष के कारण ऐसा हुआ है, तो जीवन गुप्ता जी को 'घटना में मारे जाओगे' कहके जान से मारने की धमकी दी गई। इसतरह से मोर्चा के कार्यक्रम के दौरान, मधेशी पार्टी के जिलाध्यक्ष के गैरजिम्मेबार करतूत के चलते गिरफ्तार हुए या षडयन्त्र पूर्वक गिरफ्तार कराए गए स्वराजी अञ्‍जय मिश्र पिछले १५ दिन से प्रहरी हिरासत में यातना भोग रहे हैं, और उनपर मुद्दा लगाने की तैयारी चल रही है।

उसी तरह, स्मरण रहे, तमलोपा के महामंत्री सर्वेन्द्रनाथ शुक्ला ने भी भैरहवा की घटना में सिके राउत के कार्यकर्ताओं का घुसपैठ होने का आरोप लगाया था।
(http://www.ratopati.com/2015/08/22/227596 )

इसतरह से जगह-जगह पर स्वराजियों को बदनाम करने की और नेपाली शासकों द्वारा स्वराजियों पर दमन करवाने की घटना सामने आ रही है, और इस ओर हम सबका ध्यान आकृष्ट हुआ है। पर हम सभी संयमता रखें क्योंकि यह इस भीड में लपेटकर स्वराजियों पर दमन कराके, स्वराजियों को बदनाम कराके, स्वराजियों का इन्काउन्टर करवाके स्वराज अभियान को खत्म करने की साजिश हो रही है। इसलिए हम सभी संयमता रखें, सावधान रहें।


बहुदल ले मात्र पुगेन। गणतंत्र पनि चाहियो। गणतन्त्रले मात्र पुगेन। संघीयता पनि चाहियो। बहुदलवादीले गणतन्त्रवादी लाई, गणतन्त्रवादी ले संघीयता वादी लाई शत्रु व्यवहार गर्नु इतिहासले गलत साबित गरेको छ।

संघीयता अझै मधेस ले पाइनसकेको कुरा। संविधान मा केही गरी संघीयता र समावेशीता पाइ हाले पनि त्यसको कार्यान्वयन को कुरा आउँछ। त्यहाँ पनि बेइमानी का ठाउँ प्रशस्त रहन्छन्।

सीके राउत को वाचडॉग (watchdog) रोल रहने हुन्छ। मधेसी क्रांति ले अंतरिम संविधान मा "स्वायत्त मधेस प्रदेश" स्थापित गरेको हो। त्यो स्वायत्त भन्ने शब्द को अर्थ के भन्ने कुरामा कुनै विवाद छैन। त्यो आत्म निर्णयको अधिकार नै हो। त्यसको अर्को कुनै अर्थ लाग्दैन।

मधेसी विरुद्ध को विभेद को औषधि संघीयता हो, संघीयता प्रयाप्त छ भन्ने मधेसी दल को त्यो अधिकार हो। अंतिम निर्णय गर्ने जनता हुन। मधेसी विरुद्ध को विभेद को औषधि संघीयता होइन मधेस अलग देश हो भन्ने हरु सँग वैचारिक असहमति लोकतान्त्रिक अभ्यास हो। तर तिन प्रति शत्रु व्यवहार मधेसी मानसिक दासता कै एउटा रूप हो। त्यो बाटो मा मधेसी दल हिँड्नु हुँदैन।

मधेस अलग देश को एजेंडा कंडीशनल हो। यदि संघीयता र समावेशीता को बाटो एउटा निश्चित समय भित्र मधेसी ले समानता पाऊँछ भने मधेस अलग देश को एजेंडा कायम रहँदैन। तर त्यो समय आइसकेको छैन मात्र होइन, त्यो समय आउन दिन्न भन्ने काठमाण्डु का बाहुन हरुको लिंडे ढिपी ले गर्दा होइन यत्रो आंदोलन गर्नु परेको?

त्यसैले मधेसी मोर्चा का दल हरुको, नेता र कार्यकर्ता को मधेसी स्वराजी संग respectful co-existence को सम्बन्ध हुनुपर्छ, hostility को होइन। दुबै ले लडेको मधेसी अस्मिता का लागि नै हो। मंजिल एक और राही दो।

भैरहवाको झडपमा सिके राउतका कार्यकर्ताको घुसपैठ?
सिके राउत पक्षको खण्डन
भैरहवा, भदौ ५– बिहिबार भैरहवामा भएको झडपमा सिके राउतका कार्यकर्ताले घुसपैठ गरि अराजकता फैलाएको भन्ने तराई मधेश लोकतान्त्रि पार्टीका महामन्त्री तथा रुपन्देही क्षेत्र नं. ६ का सभासद सर्वेन्द्रनाथ शुक्लाको भनाईको स्वतन्त्र मधेश गठबन्धनले बिरोध गरेको जनाएको छ । ...... गठबन्धनका जिल्ला संयोजक भोपेन्द्र यादवले प्रेस बिज्ञप्ती जारी गर्दै शुक्लाको भनाई कपोलकल्पित, गलत, निराधार तथा गैरजिम्मेवार रहेको बताए । शुक्ला जनताको मनोभवना र अकान्छालाई कुल्चेर सिके राउतको कार्यकर्तालाई दोसी देखाउनु खेदपुर्ण भएको बिज्ञप्तीमा उल्लेख छ । भैरहवामा सिके राउतको कार्यकर्ता वाट कुनै किसिमको सद्भाव बिग्रने खालको क्रियाकलाप नगरेको गठबन्धने जनाएको छ । मोर्चाको आन्दोलन भन्नु भन्दा पनि यो सम्पुर्ण मधेशी ,थारू ,आदिवासीजनजाति हरूको आन्दोलन भएको कारण यसमा गठबन्धनले नैतिक समर्थन गरेको संयोजक भोपेन्द्र यादवले बताए । बिहिबार रुपन्देहीका ग्रामीण क्षेत्रबाट आएका हजारौ प्रर्दशनकारीले भैरहवामा उगै रुप देखाउदै अस्पताल, निजि घर तथा बाटोमा सवारी साधन तोडफोड गरे पछि त्यसको सर्वत्र बिरोध भएको थियो । शुक्लले सो भिडमा सिके राउतका कार्यकर्ताले घुसपैठ गरि तोडफोड मच्चाएको आरोप लगाएका थिए ।

देश एक राख्ने मधेसी जनजाति एकताले मात्र हो अब

देश एक राख्ने मधेसी जनजाति एकताले मात्र हो अब। होइन भने अहिले सम्म जनजाति नजागेको भए मधेसी जनता अलग देश को बाटो मा हिंडिसकेको हुने।


Friday, August 21, 2015

Goit To Modi


जयकृष्ण गोइत द्वारा लिखित भारतीय प्रधानमन्त्री लाई खुल्ला पत्र

सम्माननीय प्रधानमन्त्री , श्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी, भारत सरकार
मार्फत
महामहिम राजदूत
भारतीय राजदूतावास
लैनचौर, काठमाण्डौं ।
तिथिः ९ अगस्त २०१५

श्रीमान् ,

हम, नेपाल अधीनस्थ तराई(मधेश) के मूल निवासियों के सच्चे प्रतिनिधि और तराई(मधेश) में जारी मुक्ति आन्दोलन के नेता के रुप में आपको भारत–नेपाल “शान्ति एवं मैत्री” सन्धि – १९५० की धारा – ८ का नेपाल में दोहरा मापदण्ड के सन्दर्भ में अवगत कराना अपना कत्र्तव्य समझतें हैं और आपका ध्यान इस ओर आकृष्ट करना चाहते हैं कि नेपालियों(पहाडियों) द्वारा भारतीय भू–भाग को सम्मिलित दिखाकर “वृहत्तर(गे्रटर) नेपाल” के एकतरफा अभियान से अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को गुमराह किया जा रहा हैं और तराई(मधेश) को औपनिवेशिक उत्पीडन में ही रखने की हताशापूर्ण कोशिशें की जा रही हैं ।

इतिहास की नींव पर ही वत्र्तमान का निर्माण होता है । इतिहास का संबंध सिर्पm अतीत से नहीं हैं, उसका संबंध वत्र्तमान और भविष्य से भी है । नेपाल के पाठ्यक्रम और अकादमिक चर्चा के रूप में इतिहास की विषयवस्तुओं के अनुसार नेपाल अधीनस्थ मेची नदी से महाकाली नदी तक का ‘तराई(मधेश)’ किसी शाहवंशी राजा, महाराजा वा नेपाली(पहाडी)का विजित भू–भाग नहीं रहा बल्कि ब्रिटिश स्वार्थ को पूरा करने के सहयोग के बदले नेपाल को हस्तान्तरित किया गया भू–भाग है ।

अतः भारत–नेपाल ‘संधि–१९५०’ की धारा– ८ के आधार पर मेची से लेकर महाकाली तक मधेश के ऊपर रही नेपाली अधीनता पूर्णतः अनाधिकृत और अवैध है । मेची से लेकर महाकाली तक मधेश वस्तुतः स्वतन्त्र भूभाग है । तराई(मधेश) के मूल निवासी(मधेशी) भारत–नेपाल संधि–१९५० की धारा– ८ के अनुसार नेपाल के अधीनस्थ मेची से लेकर महाकाली तक के भू–भाग को ‘स्वतन्त्र तराई(मधेश)’ मानते है जबकि नेपाली(पहाडी) मधेशियों की ऐसी धारणना को नेपाल का विखण्डन मानते हंै ।

दूसरी ओर पहाडियों के अनुसार उसी संधि–१९५० की धारा– ८ के अनुसार भारत के अधीनस्थ तिष्टा नदी से लेकर मेची नदी तक और महाकाली नदी से लेकर सतलज नदी तक का भू–भाग वृहत्तर(गे्रटर) नेपाल का अंग है, मगर ऐसी मान्यता को भारत का विखण्डन नहीं माना जाता है । २९ जून, १९९७ को “वृहत्तर(गे्रटर) नेपाल” के सन्दर्भ में नेपाल के सुप्रसिद्ध इतिहासविद् योगी नरहरिनाथ, अधिवक्ता रामजी विष्ट, अधिवक्ता श्याम प्रसाद ढुंगेल, नेपाली कांगे्रस सुवर्ण के अध्यक्ष प्रह्लाद प्रसाईं हुमागाईं, ‘विशाल नेपाल’ साप्ताहिक के सम्पादक तथा प्रकाशक प्रकाश देवकोटा, राष्ट्रीय जनजागरण पार्टी के अध्यक्ष अशोक लाल श्रेष्ठ, स्वतन्त्र पत्रकार राधेश्याम लेकाली आदि ने मंत्रिपरिषद्, मंत्रिपरिषद् सचिवालय, सम्माननीय प्रधान मंत्री, प्रधानमंत्री कार्यालय, परराष्ट्र मंत्री, परराष्ट्र मंत्रायल और साथ ही संसद सचिवालय सिंहदरबार को परिवादी बनाकर सर्वोच्च अदालत काठमाण्डू में एक रिट(याचिका) दायर की जिसका दर्ता नं. ३१९३ है ।

इसी प्रकार १९९९ में प्राध्यापक तथा “नेपाल ः टिस्टादेखि सतलजसम्म” के लेखक फणीन्द्र नेपाल, पूर्वी नेपाल के आदिवासी किरांत समुदाय के यमबहादुर कुलुङ, पत्रकार प्रकाश देवकोटा, समाजसेवी बाल कुमार अर्याल जैसे विभिन्न पेशा में संलग्न व्यक्तियों ने नेपाली जनता का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हुए सामूहिक रूप से नेपाल की सर्वोच्च अदालत काठमाण्डू में “वृहत्तर(गे्रटर) नेपाल” सम्बन्धी दूसरी रिट(याचिका) दायर की । इस रिट(याचिका) का दर्ता नं. ३९४० है और इसमें मंत्रीपरिषद् सचिवालय, सम्माननीय प्रधान मंत्री, प्रधानमंत्री कार्यालय, परराष्ट्र मंत्रायल, भूमि सुधार तथा व्यवस्था मंत्रायल के साथ—साथ रक्षा मंत्रायल सिंहदरबार को भी परिवादी बनाया गया है ।

सर्वोच्च अदालत के माननीय न्यायाधीश हरिप्रसाद शर्मा, दिलीप कुमार पौडेल और खिमराज रेगमी के विशेष इजलास ने नेपाल अधिराज्य का संविधान, १९९०(२०४७) की धारा २३ और ८८ (१) तथा (२) के अनुसार दायर दोनों याचिकाओं को २६ जून, २००३ के अपने फैसले में निरस्त कर दिया । उस फैसले को चुनौती देते हुए निवेदकओं ने सर्वोच्च अदालत के समक्ष पुनरावलोकन के लिए निवेदन नहीं पेश किया ।

गे्रटर नेपाल के उत्साही समर्थक अपने अभियान को व्यापक बनाने के प्रयासों में लगे रहे । उनलोगो ने सर्वसाधारण व्यक्ति से लेकर छोटे–छोटे बालक—बालिकाओं को भी अपने अभियान में आबद्ध करने हेतु ‘ग्रेटर नेपाल सिमानाको खोजीमा’ नामक एक वृत्तचित्र का निर्माण किया । ९ फरवरी, २००८ को नेपाल सरकार के सूचना तथा संचार मन्त्रालय के अन्तर्गत केन्द्रीय चलचित्र जाँच समिति से चलचित्र जाँच प्रमाण–पत्र लेकर वे पूरे नेपाल में इस वृत्तचित्र के प्रदर्शन एवं वितरण में लग गए ।

२०१० में नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचण्ड’ ने भी ‘गे्रटर नेपाल’ के लिए आवाज उठायी । गे्रटर नेपाल के अभियान में एकीकृत नेपाल राष्ट्रीय मोर्चा, नेपाल नेशलिस्ट फ्रन्ट, नेपाल भू–भाग संरक्षण मंच, राष्ट्रीय जागरण पार्टी आदि संगठित रूप से आवद्ध हैं ।

पुस्तक–पुस्तिकाओं, पत्र–पत्रिकाओं, सोशल मीडिया – फेसबुक आदि के माध्यम से अपने अभियान को व्यापक बनाने के प्रयासों में जुटे हैं । २० मई,२०१३ सुबह ९ .२५ बजे झापा जिले के सुमन श्रेष्ठ ने माउन्ट एवरेस्ट के शिखर पर गे्रटर नेपाल का नक्शा फहराया । राजधानी काठमाण्डू के एक समारोह में पहाडियों ने सुमन श्रेष्ठ का अभिनन्दन किया । इस अवसर पर सीमाविद् बुद्धिनारायण श्रेष्ठ ने पर्वतारोही सुमन श्रेष्ठ को माला पहनाया और अवीर लगाया ।

नए संविधान में गे्रटर नेपाल की सीमा और क्षेत्रफल का उल्लेख करने की मांग को लेकर ग्रेटर नेपाल राष्ट्रवादी मोर्चा ने नेपाली नया साल २०७१ बैशाख १ तदानुसार २०१४, अप्रैल १४ से देशव्यापी हस्ताक्षर अभियान चलाया । २० जनवरी, २०१५ को ग्रेटर नेपाल राष्ट्रवादी मोर्चा ने नए संविधान में गे्रटर नेपाल की सीमा और क्षेत्रफल का उल्लेख करने हेतु दबाव बनाने के उद्देश्य से काठमाण्डू के नयाँ बानेश्वर स्थित संविधान सभा भवन के आगे बैनर के साथ प्रदर्शन किया ।

आश्चर्य है कि १९५० की भारत–नेपाल संधि की धारा– ८ के आधार पर गे्रटर नेपाल बनाने के लिए पहाडियों द्वारा संचालित अभियान को संवैधानिक एवं कानूनी करार दिया जाता ह,ै जबकि उसी संधि की धारा– ८ के अनुसार “मुक्त तराई” के लिए मधेशियों द्वारा संगठित अभियान को असंवैधानिक और गैरकानूनी । कहने की जरूरत नही है कि नेपाल में १९५० की शान्ति एवं मैत्री सन्धि की धारा– ८ का बिल्कुल दोहरा मापदण्ड है ।

पूर्व के घटनाक्रम प्रमाणित करते है कि पहाडी शासकों द्वारा बडे सुनियोजित ढग से मधेशियों को मूलभूत नागरिक एंव मानव अधिकारों से वंचित रखा गया है और उनके न्यायपूर्ण आन्दोलन का भीषण नरसंहार कर दमन करने के लिए सभी पहाडी एकजुट रहते हैं ।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने प्रतिवेदन में तराई(मधेश) में नेपाली(पहाडी) अद्र्धसैनिक बलों द्वारा मधेशियों को गैरकानूनी रुप से गिरफ्तार कर उनकी नृशंस हत्याओं को सार्वजनिक किया है । सन् २०११ जनवरी ११ को जेनेवा में संयुक्त राष्ट्रसंघीय मानव अधिकार परिषद के विश्वव्यापी आवधिक समीक्षा (यूपीआर) में नेपाल के प्रतिनिधि तत्कालीन उपप्रधान तथा विदेश मन्त्री सुजाता कोइराला से तराईवासियों की गैरन्यायिक हत्याओं और दोषियों पर कारवाई के बारे में प्रश्न किए गए ।

अन्तर्राष्ट्रीय और नेपाल के मानवाधिकारवादी संस्थाओं के अनुसार भविष्य के होनहार लगभग ३०० मधेशी सपूतों की कायरतापूर्ण गैरन्यायिक हत्याए की जा चुकी हैं और यह क्रम जारी है, करीब डेढ हजार लोग गैरकानूनी बन्दी जीवन बिताने के लिए विवश किए गए हैं ।

ताजा स्थिति यह है कि पहाडी शासकों ने गांव—गांव में पहाडी पुलिस की चौकी, कुछ किलोमीटर पर पहाडी अद्र्धसैनिक सशस्त्र बल का कैम्प और जिले–जिले में पहाडी सैनिकों का बैरेक खडा कर मधेश को हिटलर के कैदखाना मे. परिणत कर दिया गया है और मधेशियों के विरोध की हर आवाज को बडी बेरहमी से कुचला जा रहा है ।

हम, आप से विनम्र आग्रह करते हैं कि आप अपने स्वतन्त्र स्रोत से सच्चाइयों का पत्ता लगाएं कि मधेश में नेपाली शासन के प्रति कितना विरोध एवं नफरत हैं । जब से नेपाली शासकों ने तराई मुक्ति आन्दोलन को बन्दूक की ताकत पर कुचलना शुरु किया, तभी से हमने बाध्यतावश प्रतिरोध की कारवाई का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी सम्भाली है ।

अतः हम सम्माननीय प्रधानमन्त्री और भारत सरकार से अपील करते हैं कि वे मधेश को नेपाली औपनिवेशिक शासन से मुक्ति दिलाने एवं मधेशियों को स्वयं अपना राजनैतिक भविष्य निर्धारित करने में न्यायपूर्ण सहयोग करें

जयकृष्ण गोइत
संयोजक
अखिल तराई मुक्ति मोर्चा



२०६३ माघ १७: डा. सी. के. राउत

२०६३ साल के मधेश आन्दोलन के समय में डा. सी. के. राउत (आजाद) द्वारा दिया गया सार्वजनिक वक्तव्य भी देखिए और एक बार पुनर्विचार किजिए कि उस समय भी हमने क्या गलत कहा था
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वि. सं. २०६३ माघ १७ गते बुधवार जारी गरिएको सार्वजनिक-वक्तव्य

मधेशको अधिकार र स्वतन्त्रताका लागि हाल संघर्षरत मधेशका सम्पूर्ण वीर-सपूतहरू र समस्त मधेशवासीहरू,

सबभन्दा पहिला मधेश र मधेशीहरूको अधिकार र स्वतन्त्रताका लागि आफ्नो ज्यान पनि बलि दिन पछि नपर्ने मधेशका ती वीर-सपूतहरूलाई स्मरण गर्दै र उहाँहरूको बलिदानको कदर गर्दै हामी हार्दिक श्रद्धान्जलि अर्पण गर्न चाहन्छौं। हाम्रा वीर शहीदहरू सदाका लागि अमर रहनेछन् र सम्पूर्ण मधेश उहाँहरूको योगदानको सदैव आभारी रहनेछ। मधेश र मधेशीहरूको अधिकार र स्वतन्त्रताका लागि निर्भय भएर मधेशका विभिन्न ठाउँमा हाल संघर्षरत स्वतन्त्रता-क्रान्तिका तमाम योद्धाहरू समक्ष हामी आफ्नो आदर र एकवद्धताको सलाम टक्र्याउन चाहन्छौं।

आज इतिहासमा पु:न एक पटक मधेश र मधेशीहरूलाई नेपालका शासकवर्गले आफ्नो सुनियोजित षड्यन्त्रमा फसाउँने प्रयास गरेका छन्। देखावटी केही बुँदे सम्झौताका नाममा र त्यसलाई नाटकीय ढंगले के-के न दिए जस्तो प्रस्तुत गरी मधेशीहरूको आवाजलाई दबाउने षड्यन्त्र गरिएको छ। यथार्थमा

यो एउटा सम्झौता नभएर मधेशीहरूले एकजुट भई उठाइरहेको आवाजलाई दबाउने एउटा कुचाल मात्र हो। गोली बर्साउँदा‍-बर्साउँदा मधेशीहरूको आवाज दबाउन नसकी थाकिसकेका सरकार र यसका गठबन्धनहरूद्वारा गरिएको यो सम्झौता बोली फ्याँक्ने एक अर्को अदृष्य शस्त्र मात्र हो।

आज हामी सबै मधेशीहरू सावधान भई यस षडयन्त्रबाट बच्नु आवश्यक छ। आज हामी सबैले यस बारेमा सोच्नु जरूरी छ, आखिर यस सम्झौताले आम-मधेशीलाई के दिएको छ? मधेशीहरूको कुन समस्यालाई समाधान गरेको छ त? यसले मधेशका केही नेताहरूको समस्या समाधान गर्न सक्ला, तर आम-मधेशीहरूले के पाएको छ त? के परिवर्तन आएको छ त आम-मधेशीका लागि? सांसद्‌मा लड्न नपाएका केही नेताहरू थप केही ठाउँबाट लड्न पाउनेछन्, बढीमा थप केही नेताहरूलाई संसद्‌को आरामदायी सीटमा बसेर निदाउँने अवसर प्राप्त होला, तर त्यसले मधेशीको जीवनमा के परिवर्तन ल्याउने छ त?

के अहिले संसद्‌मा मधेशी सांसद्‌हरू छैनन्? अनि किन मधेशीहरूमाथि सरकारले अन्धाधून गोली चलाउँदा तिनीहरूले रोक्न सकेनन् त?

किन मधेशीहरूमाथि पहाडीहरू, सरकारका सशस्त्र-प्रहरीहरू र माओवादी जवानहरूले आक्रमण गरी लुटपाट गर्दा तिनीहरूले केही गर्न सकेनन् त?

केही मधेशी नेताहरू अब नयाँ पार्टी नै खोल्न पाइने भइयो, वा सांसद् बनेर भोट बटुल्न पाइने भइयो, वा थप केही सांसद्हरू उठाउन पाइने भयो भनेर सम्झौताबाट तत्काल अहिले खुशी पनि हुन सक्ला, श्रेय बटुल्न हतारिएका तिनीहरू आफ्नो विजय जुलुस पनि निकाल्न सक्ला, तर तिनीहरूको सांसद् बन्ने सपना पनि पूरा हुने भन्ने कुरा संदेहनीय नै छ। यस सम्झौतामा यस्ता शर्तहरू जोडिएका छन् कि सरकार र यसका गठबन्धनहरूले आफ्नो संविधान-सभा चुनावको काम निकाल्न खोजेको प्रष्टै देख्न सकिन्छ, र एक-पटक आफ्नो काम पुरा भएपछि यी सम्झौताहरूलाई पनि धोती लाउन के बेर? र, कसै-कसैले त मधेशीलाई प्रधानमन्त्री वा राष्ट्रपति बनाइदिनाले मधेशीहरूको समस्या समाधान हुने जस्ता हास्यास्पद कुराहरू पनि प्रस्तावित गर्छन्। त्यसले पनि कुनै एक मधेशी नेताको सपना पूरा होला, तर आम-मधेशीहरूको जीवनमा त्यसले कुनै परिवर्तन ल्याउने छैन। डिजेल र पेट्रोलको भाउमा एक रूपैयाँ बढाउँदा त व्यापक विरोध र दंगा हूने देशमा मधेशी प्रधानमन्त्री वा राष्ट्रपतिले मधेशीको लागि के निर्णय गर्न सक्ला त? सिटौला वा प्रचण्डलाई कारबाही गर्न सक्ला?

मधेशी मन्त्रीहरूलाई एउटा प्यूनले समेत नटेर्ने र गाली दिने ठाउँमा, मधेशीको लगभग शून्य समावेशी रहेको नेपाल सैनिकले मधेशी प्रधानमन्त्रीलाई टेर्ला त?

कुन चाहिं निर्णय लिन सक्ला त मधेशी प्रधानमन्त्रीले? याद रहोस् यसभन्दा अगाडि एउटा मधेशी उपप्रधानमन्त्रीले “गिरिजालाई कारबाही गर्ने” भन्दा गिरिजा प्रसाद कोइरालाले उक्त मधेशीलाई “आफ्नो हैसियत भित्र बसेर कुरा गर्ने” चेतावनी दिएका थिए, र यही मानसिकता शासक वर्गका प्यूनदेखि प्रधानमन्त्रीसम्म सबैमा लागू हुन्छ र यो कुरा तपाईंहरूले एउटा मधेशी अधिकारीका रूपमा दैनिक आफ्नै कार्यालयमा पनि अनुभव गर्न सक्नुहुन्छ। त्यही भएर कसैले एउटा मधेशीको प्रधानमन्त्री वा राष्ट्रपति बन्नाले मधेशीको समस्याको निवारण हूने दिवा-स्वप्न देख्दछ भने, उहाँहरूलाई त्यस स्वप्नबाट शीध्र नै ब्यूँझी मधेशी-सैनिक सहितको स्वतन्त्र मधेश बनाउने तर्फ अग्रसर हुनका लागि हामी सचेत गराउँदछौं।

र, मानौं सरकारले अहिले भने झैं संघीय-राज्य प्रणाली र निवार्चन क्षेत्रको पुनर्निधारणका कुराहरू लागू गरे तापनि यसले हामीद्वारा पूर्व उठाइएका मधेश र मधेशीहरूको कुन मूलभूत समस्याहरूको समाधान गर्दछ त? के यसले सम्पूर्ण मधेशलाई अखण्ड राखी एउटै राज्य हुने ग्यारेन्टी गर्दछ? के यसले मधेशीहरूको जमीन पुन: नखोसिने र पहाडीहरूलाई मधेशमा नबसाइने कुराको ग्यारेन्टी गर्दछ? स्मरण रहोस्, बाबुराम भट्टराई अहिले नै मधेशको जग्गा हदबन्दी गरेर पहाडीहरूलाई दिने योजना बनाइसकेको छ, विभिन्न अन्तर्वार्ताहरूमा हेर्नुस्। के यसले मधेशका सम्पूर्ण प्रशासकहरू मधेशी नै हुने कुराको ग्यारेन्टी गर्दछ? होइन भने, पछि पनि ती पहाडी अधिकारीहरूद्वारा यस्तै नै कर्फ्यू लगाई मधेशीमाथि आक्रमण गरिराखिनेछ, पहाडी शासकहरूद्वारा यसरी नै शोसन जारी नै रहनेछ। के यसले ऋतिक रोशन कांड र नेपालगंज घटना जस्ता सुनियोजित क्रियाकलापहरू गराई मधेशीहरूमाथि फेरि पनि लुटपाट र आक्रमण नहुने कुराको ग्यारेन्टी गर्छ? के यसले मधेशका काम-काज र जागिरका पदहरू मधेशीहरूलाई नै मिल्ने कुराको ग्यारेन्टी गर्छ? के यसले मधेशको सम्पूर्ण आय र दाता राष्ट्रहरूबाट प्राप्त अनुदानहरूको समुचित भाग मधेशमा लगानी हूने कुराको ग्यारेन्टी गर्छ? कि मधेशलाई खाली विश्वबैंक र ADB को ऋण मात्रै बोकाइने छ? के यसले देशभित्र र बाहिर रहेको मधेशीको पहिचानको समस्यालाई समाधान गर्छ? के यसले मधेशबाट पहाडी सैनिक अड्डाहरू हटाएर पूर्ण मधेशी सैनिक बनाउने कुराको ग्यारेन्टी गर्छ? होइन भने जतिबेला पनि ती सैनिकहरू परिचालन गरेर केन्द्रिय सरकारले जे पनि गर्न सक्छ, जे संविधान पनि लागू गर्न सक्छ, जे नियम पनि बनाउन सक्छ। केन्द्रिय सरकारले आपत्कालीन स्थितिको घोषणा गरी मधेशीहरूको सम्पूर्ण अधिकार मिनटभरिमै निलम्बन गर्न सक्छ। के यसलाई हामीले उपलब्धि ठान्ने? यसलाई हामीले सम्पूर्ण मधेशीहरूले दिएको बलिदान र संघर्षको मूल्य ठान्ने?

आज संयुक्त राष्ट्र-संघ लगायत सारा विश्वको ध्यान नेपालतिर रहँदा त नेपाल सरकार र नेताहरूले मधेशीविरुद्ध यसरी ज्यादती गर्न सक्छन्, आफ्नै प्रशासन र पुलिसद्वारा लुटपाट गराउन सक्छन्, सशस्त्र प्रहरी परिचालन गरी मधेशीहरूको नर-संहार गर्न सक्छन् भने भोलि विश्वको ध्यान पनि नेपालतिर नरहँदा मधेशीहरूमाथि कुन हदसम्मको आक्रमण गराउने होला?

कसैको जन-निर्वाचित बहुमत सरकार नरहँदाको आजको संक्रमणकालीन् स्थितिमा यिनीहरूले यसरी ज्यादती गर्न सक्छन् भने भोलि यिनीहरूको बहुमतको सरकार बन्यो भने मधेशीहरूविरूद्ध के-के निर्णय गर्ने होला?

अहिले यिनीहरूले आफूलाई तानाशाहको शक्ति प्रदान गर्ने संविधान बनाई लागू गर्न सक्छन् भने भोलि यिनीहरूबाट कस्तो कानून र राज्यको अपेक्षा गर्न सकिन्छ त? त्यसमाथि १३००० मान्छेहरूको निर्मम हत्या गरेका हिजोसम्मका माओबादी आतंककारीहरू सबै अब नेपाली सेना हुने कुरा छ, यी हत्यारा सत्ताधारी र सैनिकहरूमाथि कुन आधारमाथि विश्वास गर्न सकिन्छ?

अहिलेको स्थितिमा त प्रचण्ड, बाबुराम र अन्यनेताहरूले शान्तिप्रिय मधेशीहरूलाई आतंककारीको दर्जा दिँदै कुनै पनि वार्ता गर्नबाट साफ अस्वीकार गरी मधेशीविरूद्ध सैनिक परिचालन गर्ने कुरा सोच्छन् भने भोलि यिनीहरू सत्तामा भएको बेला के मात्र गर्न छोड्ला र?



त्यसैले, हामी सबै मधेशीहरू अहिलेका सत्ताधारी नेताहरूले आफ्नो काम निकाल्न गरेको यस घोर षड्यन्त्रबाट बची मधेशलाई स्वतन्त्र घोषित नगरेसम्म आफ्नो संघर्षलाई जारी राख्ने प्रतिबद्धताका साथ अगाडि बढौं। यसका लागि मधेशका सम्पूर्ण जनताहरू, पार्टीहरू, नेताहरू, कार्यकर्ताहरू र संघ-संस्थाहरू सबै एक जुट भई लागौं। हाम्रा पूर्वजहरू दासताविरुद्ध लडेनन्, दासतालाई स्वीकार गरे, जसको सजाइ हामीहरूले भोग्यौं र भोग्दैछौं;

एउटा दास भएर, दोश्रो-दर्जाको नागरिक भएर आफ्नै भूमिमा लाखौं अपमान र हेपाइसहितको गरिमारहित जिन्दगी विताइरह्यौं। तर के हामी आफ्ना भावी सन्ततिलाई, आफ्ना बच्चाहरूलाई पनि त्यही घृणामय जिन्दगी दिन चाहौंला?

आफ्ना बालबालिकाहरूको भविष्यलाई पनि त्यही पहाडी शासकवर्गका हातमा दिई तिनीहरूलाई अनेकौं ठक्कर खानका लागि छोड्न चाहौंला? आफ्ना बालबालिकाहरूको भविष्यलाई त्यही भेदभावपूर्ण अन्धकारमा धकेल्न चाहौंला? होइन भने, आज हामी सबै एकजुट भएर मधेशलाई स्वतन्त्र घोषणा नगरेसम्म आफ्नो आन्दोलन जारी राखौं।

हाम्रो सहपाठी मित्रले पहिला पनि भने झैं कसले कहाँ के वार्ता गर्यो र कुन नेताले के पायो भन्ने कुरातिर नलागी अब हामी आफैंलाई सोधौं, ‘के हामी स्वतन्त्र भइसक्यौं? के मधेश स्वतन्त्र भइसक्यो?’। र, यसको जवाफ ‘अँ’ भनेर सकारात्मक नआएसम्म हामी संघर्ष गर्दै जाऔं, आफ्नो अधिकार र स्वतन्त्रताका लागि लड्‌दै जाऔं। मधेशलाई २३८ वर्षको दासताबाट उन्मुक्त हुन अब कसैले रोक्न सक्ने छैन, मधेश र मधेशीहरूलाई स्वतन्त्र हुनबाट अब कसैले रोक्न सक्ने छैन।

जय मधेश!

आजाद, केन्द्रिय समिति सदस्य
मधेश अधिकार एवं स्वतन्त्रता गठबन्धन




वि. सं. २०६३ फाल्गुण ७ गते सोमबार जारी गरिएको सार्वजनिक-वक्तव्य

वार्ताका लागि उपयुक्त वातावरण बनाउन भनी रोकिएको मधेश आन्दोलनपछाडि बितेका यी दश दिनहरूमा नेपाल सरकार र यसका गठबन्धनहरूले देखाएको असंवेदनशीलता र लापरबाहीले सरकार र यसका गठबन्धनहरू मधेशीको कुनै पनि माँग प्रति गम्भीर नरहेको कुरा पु:न एकपटक पुष्टि गरेको छ। प्रधानमन्त्रीद्वारा जारी गरिएका सम्बोधनहरू र देखावटी संविधान संशोधन मधेशीहरूलाई अल्झाइराख्ने र मधेशीहरूको आवाज दबाउने एउटा षड्यन्त्र बाहेक केही नभएको कुरा यसले छर्लङ्ग पार्दछ। मधेशका वीर शहीदका रगतका टाटाहरू सडकमा सुक्न नपाउँदा-नपाउँदै, लाखौं-लाख मधेशीहरूद्वारा मधेशका गाउँ-गाँउ र शहरहरूमा गुञ्जाइएका ती आवाजका प्रतिध्वनिहरू साम्य हुन नपाउँदै मधेशीहरूको आन्दोलन र न्यायपूर्ण माँगहरू सरकार, यसका संयन्त्रहरू र संचार माध्यमहरूबाट ओझेल हुन पुगेका छन्। मधेशी आन्दोलनलाई रोक्न बन्दुकको भरमा गोली बर्साएर तीस जनाभन्दा बढीको ज्यान लिने र सयौं मधेशीहरूलाई गोलीले घायल बनाएका नर-संहारक हत्याराहरूलाई सरकारले अविलम्ब कडा-कारबाही गर्नु पर्नेमा सरकार र यसका गठबन्धनहरू हालसम्म उत्तरदायित्व लिन समेतबाट पन्छिँदै आई यस बारेमा कुरा गर्न पनि पन्छिँदै आएको छ। मधेशमा आन्दोलनरत समूहहरूसँग वार्ताका लागि हालसम्म पनि कुनै पनि पहल नगर्नुले सरकारको वार्ता प्रस्ताव अन्तर्राष्ट्रिय जगत र अन्य मानवअधिकारवादीma संस्थाहरूको आँखामा धूलो छर्ने र मधेशीहरूको आन्दोलन दबाउने कुचाल मात्र रहेको भन्ने कुरा अझ प्रष्ट पार्दछ। शासन-संयन्त्र निर्माणारत यस घडीमा यदि मधेशीहरूले तीन-हप्तासम्म अबिरल आफ्नो ज्यानसम्मको परवाह नगरी एक जुट भई उठाएका माँगहरू प्रति सरकार र यसका गठबन्धनहरू संवेदनशील हुन सक्दैनन्, र उल्टो आफ्ना सशस्त्र-प्रहरी र सैनिकहरू परिचालन गरी मधेशीका माँगहरूलाई शासकवर्गले आफ्नो पैताला मुनि सदाका लागि कुल्चन चाहन्छन् भने त्यस देश, सरकार र संयन्त्रसँग मधेशीहरूले फेरि‍-फेरि भिखारी बनेर आफ्नो हात फैलाउनु र सरकारका सैनिकहरूको गोली खाइराख्नुको के औचित्य छ र?

कसैको पनि बहुमतको सरकार नभएको र माओवादीहरू पूर्णसत्तामा नभएको बेला आजको यस घडीमा जब सरकारले सैनिक परिचालन गरी मधेशीहरूको आवाजलाई सदाका लागि दबाइदिन चाहन्छन् भने, भोलि पनि मधेशीहरू यसै संयन्त्रभित्र रहेमा दास बन्नु बाहेक अरु के विकल्प हुन आउँछ र?

आज प्रचण्ड सत्तामा नभएको बेला आफ्नो जनसेना लगाएर मधेशीको नरसंहार गराउन चाहन्छ भने भोलि ऊ राष्ट्रप्रमुख भएको बेला, उसले मधेशीहरूको नर-संहार गर्ने सरकारी लाइसेन्स प्राप्त गरेको बेला, उसका चालीस हजार जनसेनाहरू सरकारी अत्याधुनिक हतियारले सुसज्जित रहेको वेला मधेशीहरूसँग मर्नु वा दास बन्नु बाहेक अरु के नै विकल्प बाँकी रहन्छ र?

र यो कुनै अनुमान वा अड्कल होइन, यथार्थ हो; सम्पूर्ण मधेशीहरू एक जुट भई आफ्नो जायज माँग राख्दा

प्रचण्डले मधेशीहरूलाई आतंककारीको दर्जा दिदैं सैनिक र जनसेना परिचालन गर्ने भनेकै हो

, उसका चालीस हजार जनसेनाहरू सरकारी सेना हुने नै भएको छ, ढिलो-चाँडो माओवादीहरू सत्ता पनि कब्जा गर्ने नै छन्, र मधेशीहरूको जमीन खोस्ने र पहाडीहरूलाई मधेशमा सर्वेसर्वा बनाउने जस्ता नीतिहरू पनि उसले सार्वजनिक गर्दै नै आएको छ। यदि आजको तुलनात्मक-सहज परिस्थितिमा यदि मधेशीहरूले आफ्ना जायज माँग राख्दा सयौं गोली खानुपर्छ, आफ्नै घरमा पनि सशस्त्र प्रहरी र पहाडीहरूद्वारा आक्रमण खप्नु परेको छ, आफ्नै घर-जमीन छोडेर हजारौं मधेशीहरू अहिले नै शरणार्थी बन्न बाध्य हुनु परेको छ भने माओवादी वा अन्य पहाडी शासकहरूको सशक्त सत्ता भएको बेलामा मधेशीहरूको जमीन हड्पेर उनीहरूलाई शरणार्थी बनाउन बाध्य गराइयो भने मधेशीहरूले कसरी आफूलाई प्रतिरक्षा गर्न सक्ला त?

र, कसैले नयाँ राजनैतिक परिवेशमा चुनावद्वारा मधेशीको भाग्य फेर्ने स्वप्न देख्छ भने, उहाँहरूलाई पनि चाँडै नै उक्त दिवा-स्वप्नबाट ब्यूँझन आग्रह गर्दछु। नयाँ राजनैतिक परिवेशमा मधेशलाई कैयौं टुक्रामा विभाजित गरिने कुरा लगभग सुनिश्चित छ। सत्ताका गोली खाएर दर्जनौं मधेशीहरू मरिरहेका बेलामा त एकत्र हुन नसकेका मधेशका पार्टीहरू र नेताहरू राज्यसत्ताको अंशवंडाका वेलामा एक हुने कुरा सोच्नु व्यर्थ छ। यसरी नयाँ राजनैतिक परिवेशमा भौगोलिक र राजनैतिक रुपमा पनि छिन्न-भिन्न मधेशीहरू अहिलेको भन्दा पनि अप्रभावकारी स्थितिमा पुग्ने कुरा प्रष्ट देख्न सकिन्छ, र अहिलेको जस्तै पहाडी शासकहरूको चाकडी गरी आफ्नो लागि एक-दुईवटा मन्त्रीको कुर्सी हत्याउने बाहेक मधेशका नेताहरूले मधेशीका लागि केही गर्न सक्ने कुरामा आशावादी हुनु व्यर्थ छ। नयाँ राजनैतिक परिवेशमा प्रवेश गरेको २-३ वर्ष भित्रमा नै मधेशीहरूले नयाँ राज्य-संयन्त्र उनीहरूको कुनै पनि समस्या समाधान गर्न र उनीहरूको लागि कुनै पनि आमूल परिवर्तन ल्याउन कति असक्षम छ भने कुरा अनुभव गर्न सक्नेछन् र राज्य-संयन्त्रबाट शीध्र नै आजित हुनेछन्, र त्यतिबेला कुर्सीका लागी हतारिएका यी मधेशी नेताहरू र पार्टीहरूले मधेशीहरूको तिरस्कार भोग्नु बाहेक के नै बाँकी रहला र? त्यसैले मधेशका विभिन्न पार्टीहरू र नेताहरूलाई मधेशीहरूको आन्दोलनलाई सीट र कुर्सी हत्याउने साधनको रुपमा प्रयोग नगरी सबै मधेशीले आफ्नो अधिकार र स्वतन्त्रता पाउने सही दिशातिर नेतृत्व दिनका लागि प्रयत्न गर्न पनि अनुरोध गर्दछौं। मधेशीहरूले कुनै विजय पाएको छैन, केही थप सीटहरूमा आफ्नो उम्मेदबार उठाउन पाइयो भन्दैमा त्यसलाई झुठो रुपमा मधेशीको विजय भनेर चित्रित गरी आम मधेशीलाई भ्रममा पार्नु र मधेशीको बलिदान र संघर्षसँग खेलबाड़ गर्नु आफैंलाई आत्मघाती सावित हुन सक्छ। मधेशीहरूको विजय उनीहरूले पहाडी शासकबाट सधैंका लागि मुक्ति पाएपछि, आफ्नो दुई सय वर्षको दासताबाट मुक्ति पाएपछि, र मधेशलाई स्वतन्त्र घोषणा गरेपछि मात्र हुनेछ।

दुई सय वर्षदेखि पहाडी शासकहरूले आफ्नो शैक्षिक-प्रणाली, संचार माध्यम र अन्य संयन्त्रहरूद्वारा मधेशीहरूको ब्रेन-वास गरी कतिपय मधेशीहरूलाई आफ्नो पहिचान समेत बिर्सन बाध्य गराएका छन्, कुनै आधार वा तर्क विना नै अखण्डताको नारा दिएर त्यसको आडमा मधेशलाई सघैं शोसन गरिराख्न चाहन्छन्।

सम्झिनु पर्ने कुरा के हो भने मधेश केवल दुई सय वर्षअगाडि नेपालसँग गाँसिएको हो, र मधेशीहरू यसरी दास बनेर नेपालसँग सँधै गाँसिरहने न कुनै दायित्व छ न त त्यसको कुनै औचित्य नै।

ती मधेशी जनताहरू र नेताहरू जो अझै पनि शासकवर्गद्वारा गरिएको व्रेनवाशबाट मुक्त हुन सकेका छैनन्, अझै पनि मन्त्रमुग्ध सुसुप्त अवस्थामा रही होशमा आउन सकेका छैनन्, आफ्नो वास्तविक पहिचान, इतिहास र अधिकारबाट परिचित हुन सकेका छैनन्, र आफ्नो अधिकार र स्वतन्त्र मधेशका लागि अगाडि आउन सकेका छैनन्, तिनीहरू पनि चाँडै नै स्वतन्त्र मधेशका लागि संघर्षमा उत्रने भन्ने कुरामा हामी विश्वास मात्र राख्दैनौं, त्यो कुरा हामी ठोकुवा नै गर्न सक्छौं। केही मधेशीहरू नयाँ राजनैतिक परिवर्तनले केही आशावादी देखिएका हुन सक्छन्, तर त्यो भ्रम अब धेरै दिनसम्म टिक्नै सक्दैन। जसरी विगतका राजनैतिक परिवर्तनहरूले मधेशीहरूको जीवनमा कुनै फरक पार्न सकेनन्, त्यसरी नै यसले पनि मधेशीहरूको कुनै पनि समस्याको समाधान गर्ने छैन, बरु यसले कैयन् मधेश-विरोधी तानाशाहहरूलाई सत्तामा मात्र पुर्‍याउनेछ र त्यसबाट आजित ती मधेशीहरू एक-न-एक दिन स्वतन्त्रता-संग्राममा उत्रन बाध्य हुने नै छन्। फरक यति हो, ती कट्टर मधेश-विरोधी तानाशाहहरू आउनुपूर्व अहिले नै सम्पूर्ण मधेशीहरू स्वतन्त्रताका लागि अगाडि बढछन् भने तुलनात्मक ढंगले शान्तिपूर्ण तरिकाले र कम क्षतिका साथ मधेशीहरूले आफ्नो अधिकार पाउन सक्छन्। त्यसैले, हामी सम्पूर्ण मधेशी जनताहरू, पार्टीहरू र नेताहरूलाई यस कुराको बोध गराउदैं मधेशको अधिकार र स्वतन्त्रताका लागि अहिलेको तुलनात्मक रुपले अनुकूल र उपयुक्त परिस्थितिमा नै संघर्षमा उत्रन आह्वान गर्दछौं।

मधेशको स्वतन्त्रता निर्विकल्प छ। मधेशीहरू पटक‍-पटक यी पहाडी शासकहरूको गोलीको निशाना बनेर भुटिनुभन्दा, मधेशीहरू पहाडी शासकवर्गको हरेक निर्णय पिच्छे संघर्षमा होमिनुभन्दा, एक पटक नै त्यस्तो संघर्ष गर्नु आवश्यक छ, जसले यी पहाडी शासक र उसका गोलीहरूबाट सँधैंका लागि छुटाकार दिलाओस्, जसले गर्दा मधेशीहरू आफ्नो अधिकार फेरि नखोसिने गरी सधैंका लागि पाओस्, जसले मधेशीहरूको गौरवमय इतिहास, पहिचान र संस्कृतिलाई पहाडीहरूको अतिक्रमणबाट सदाका लागि रोकोस्, जसले दुई सय वर्षदेखि बिताइरहेको दासताको जीवनबाट सदाका लागि उन्मुक्त गराओस्, र जसले पहाडी शासकहरूको हरेक षड्यन्त्रलाई सदाका लागि समाप्त पारोस्। एक मात्र र अंतिम निर्णायक संघर्ष, स्थायी स्वतन्त्रता, स्थायी शान्तिका लागि। जय मधेश!!

आजाद, केन्द्रिय समिति सदस्य
मधेश अधिकार एवम् स्वतन्त्रता गठबन्धन

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Saturday, August 08, 2015

भारत अमेरिका जस्तो हुँदा मधेस कनाडा बन्ने

English: Senior Minister Lee Kuan Yew of Singa...
English: Senior Minister Lee Kuan Yew of Singapore, being escorted by United States Secretary of Defense Donald H. Rumsfeld through an honour cordon and into the Pentagon. They met to discuss bilateral security issues including the war on terrorism: see DefenseLINK news photos. US Department of Defense (). Retrieved on . (Photo credit: Wikipedia)
सन २०५० मा भारत अमेरिका जस्तो भइसक्दा पनि छेउ मैं बसेर पनि नेपाल हेटी भएर बस्ने बाटो मा का-ए-ए का बाहुन हरुले देश लाई डोर्याउने कुचेष्टा गर्दै छन। मधेस त्यस रोडमैप मा सहभागी हुनु हुँदैन। सिंगापुर नचाहँदा नचाहँदै पनि मलेशिया बाट छुट्टिएको हो। भारत अमेरिका जस्तो हुँदा मधेस कनाडा बन्ने गरी हिड्नुपर्छ। त्यो बाटो अलग देश को बाटो हो भन्ने कुरा दिन प्रति दिन सिद्ध हुँदै गइरहेको छ। मधेसी जनता ले अहिले सम्म नेपाल को प्रत्येक क्रांति  गरेका छन। दुई दुई वटा मधेसी क्रांति गरेका छन। एउटा अर्को अंतिम क्रान्ति गर्नु पर्ने हुन सक्छ। त्यति बेला कति पनि हिच्किचाउनु हुन्न। साबिक मधेस को भूभाग समेटने गरी मधेसी गैर मधेसी सबै लाई समेटने एउटा उच्च कोटि को देश र अर्थतंत्र निर्माण गर्नु पर्ने समय शायद आउन लाग्यो। अहिले को नेपाल एउटा ग्लास हो। मधेसी एक बाल्टी पानी हो। त्यो ग्लास मा मधेसी न अट्ने जस्तो देखिन लाग्यो। मधेस अलग देश बने पनि दक्षिण एशिया को आर्थिक एकीकरण त्यस देश को निर्णायक मानक सिद्दांत रहनेछ। तर राजनीतिक गुलामी कुनै अर्थमा स्वीकार्य छैन।

मधेस स्वतंत्रता संग्राम मा सहभागी हुनु पहिलो कदम छ। त्यस पछि राजा जनक का सन्ततिले आफ्ना दुई कान बीचको मांसपेशी (muscle) को सक्दो प्रयोग गरेर ज्ञान आर्जन गर्नु पर्छ। आर्थिक क्रांति हुने नहुने त्यसमा निर्भर गर्नेछ।

मधेशमा छ प्रदेश होइन, छ प्रदेशमा मधेश बाँडियो
संघीयता को विवाद: कमिला र मौरी हरु बीच को विवाद
जटिलता र स्पष्टता
अम्बेडकर को निष्कर्ष
प्रत्यक्ष निर्वाचित प्रधान मंत्री का पक्ष मा भर्खर गएका मुख्य सचिव
चिन्ता को एक मात्र विषय: प्रत्यक्ष निर्वाचित प्रधान मंत्री
पहाड़ी महिलावादी लाई मधेसी महिला को मतलब छैन
६ अंचल को नक्शा: सुधारिएको एकात्मक व्यवस्था
शेखर गोल्छा, Public Space, Private Space, नेपाली नागरिकता र मधेसी पहिचान
चितवन: थारु हरुको काठमाण्डु
देश मधेसी क्रांति ३ तर्फ लम्केको हो?



मधेस र सौर्य उर्जा



Singapore Separates From Malaysia And Becomes Independent
On 9 August 1965, Singapore separated from Malaysia to become an independent and sovereign state. The separation was the result of deep political and economic differences between the ruling parties of Singapore and Malaysia, which created communal tensions that resulted in racial riots in July and September 1964. At a press conference announcing the separation, then Singapore Prime Minister Lee Kuan Yew was overcome by emotions and broke down. ........ Prior to the signing of the Malaysia Agreement in London, there was a week of “arduous and gruelling negotiations” over the more thorny issues of a common market between Singapore and Malaya, and the portion of Singapore’s revenue and taxes that would go to the federal government. With these issues settled, Singapore began its journey as part of Malaysia. ........ Even before the proclamation of the formation of the Federation of Malaysia on 16 September 1963, Singapore and Malayan leaders were mindful that the differences in the political approach and economic conditions between the two countries “cannot be wiped out overnight”. This, however, did not prevent sharp exchanges between the leaders of both countries throughout the period of the union. The slow progress of the creation of a common market and the difficulty in getting pioneer status from Kula Lumpur for Singapore industries frustrated Singapore leaders, while Kuala Lumpur was dissatisfied with Singapore's dogged response to the federal government’s clamour for increased revenue contribution to combat the Indonesian Confrontation, and for an agreed loan to develop Sabah and Sarawak. ......... At the political front, the grossly imbalanced Malay-Chinese population in both countries made each vulnerable to

communal prejudices which were played up by political leaders. The two major political parties in Malaysia, the People’s Action Party (PAP) and the United Malays National Organisation (UMNO), were soon accusing one another of communalism. The accusations escalated into tensions until they erupted into racial violence

in Singapore on 21 July and 2 September 1964. Despite agreeing to a two-year truce in September 1964, the acrimony between UMNO and PAP soon flared up again. At the heart of the rift was Lee’s multi-racial slogan, “Malaysian Malaysia”, which sowed deep distrust among UMNO leaders, especially

the “ultras”, who viewed his vision of a non-communal Malaysia as a challenge to their party’s raison d'être of undisputed Malay dominance.

.......... He then moved a resolution to enact the Constitution of Malaysia (Singapore Amendment) Bill, 1965, that would allow Singapore to leave Malaysia and become an independent and sovereign state. The bill was passed with a 126-0 vote and given the royal assent by the end of the day ............. Filled with emotions and his eyes brimming with tears, Lee had given Singaporeans a glimpse of their leader’s “moment of anguish” ...... Many rallied behind the news of the separation with relief although the manner of its announcement came as a shock and was initially greeted with disappointment and regret. ...... when merger came, the greater share of it was marked by constant differences and bitter political wrangling between leaders of the two nations. Although all signs were pointing to trouble, very few were prepared for the dramatic end to Singapore’s union with Malaysia.


Singapore Passing Malaysia 45 Years After Lee’s Tears
Forty-five years after Singapore’s expulsion from a union with Malaysia left Lee Kuan Yew in tears on national television, the economy of the city-state he led to independence is poised to overtake its neighbor..... Singapore’s gross domestic product will cap its fastest annual growth this year since independence, rising as much as 15 percent to about $210 billion, while the economy of Malaysia, a country 478 times its size, will expand 7 percent to $205 billion ....... The island that former economic adviser Albert Winsemius once said was considered a “poor little market in a dark corner of Asia” is now ranked by the World Bank as the easiest place to do business, has the world’s second-busiest container port, and boasts the highest proportion of millionaire households ..... “Malaysia was struck by the curse of resource-rich countries: It didn’t optimize its human capital.” ..... Singapore has become the world’s fourth-largest foreign-exchange center with a S$1.2 trillion ($932 billion) asset-management industry. ..... Smaller than New York City and the only Southeast Asian nation without natural resources, Singapore has grown 189-fold since independence in 1965, helping boost GDP per capita to $36,537 last year from $512. Malaysia’s economy expanded at one-third the pace during the same period and had a GDP per capita of $6,975 in 2009, up from $335 in 1965. ....... “Development is like a marathon and all policies geared toward it must be sustainable and continuous” ... “Malaysia runs the marathon like a 100 meter event, so you see the initial spurt but not continuous progress in the race.” .......

Lam, 35, is one of 386,000 Malaysians who have become permanent residents or citizens of Singapore, a list that includes Health Minister Khaw Boon Wan and Oversea-Chinese Banking Corp. Chairman Cheong Choong Kong.

........ After more than 140 years under British rule, Singapore joined the Federation of Malaysia in September 1963 as Lee and his colleagues sought a bigger common market to cut unemployment and curb communism. The merger survived less than two years amid ideological differences and worsening relations between the United Malays National Organisation, which dominated the ruling Barisan Nasional coalition, and Lee’s People’s Action Party. ......... “For me, it is a moment of anguish,” Lee said on Aug. 9, 1965, the day Singapore became a sovereign state. “My whole adult life, I believed in Malaysian merger and unity of the two territories.” Lee, 87, was Singapore’s prime minister from 1959 to 1990. ...... the general opinion of Singapore in the early 1960s was a country “going down the drain.” ..... “Economic development does not occur naturally” ....... cut corporate tax rates by nine percentage points since 2000 to 17 percent, compared with 25 percent in Malaysia. ........

Singapore was kicked out of the union partly because Lee opposed Malaysia’s affirmative-action policy, which provides special rights to the ethnic Malay majority. While Malaysian Prime Minister Najib Razak has pledged to roll back key policies of ethnic favoritism, he told UMNO’s 61st General Assembly last month that the “social contract” that gives benefits to the Malays cannot be repealed.

....... About 350,000 to 400,000 Malaysian citizens work in Singapore, including 150,000 who commute daily via buses and motorcycles to jobs in the city-state’s factories, kitchens and offices. ..... Singapore beat 182 economies to take first place in the World Bank’s annual ranking of business conditions, which looks at property rights, taxes, access to credit, labor laws and regulations on customs and licenses. ..... The country must keep innovating to stay ahead ........ “Singapore must keep searching for new markets,” Kinoshita said. “Less developed Asian countries are all growing quickly and trying to catch up.”
Truth behind expulsion of Singapore from Malaysia
“Well, first I regret having been turfed out of Malaysia. I think

if the Tunku had kept us together, what we did in Singapore, had Malaysia accepted a multiracial base for their society, much of what we’ve achieved in Singapore would be achieved in Malaysia.

But not as much because it’s a much broader base. We would have improved inter-racial relations and an improved holistic situation.” ...... “Now we have a very polarised Malaysia, Malays, Chinese and Indians in separate schools, living separate lives and not really getting on with one another. You read them. That’s bad for us as close neighbours.” ...... There’s never any doubt LKY was super intelligent, a double starred first class honours from Cambridge. But one can only be too clever by half in a Malayan environment because the style of his assertive and aggressive politicking didn’t go down well with Malay culture and its more genteel style of politics. ......

The Malay right wingers were getting so heated up with LKY

that Tunku thought a cooling period, via a ‘temporary’ expulsion of Singapore, would be good for everyone. ........ Tunku imagined that Singapore outside of Malaysia would be so helpless alone by itself that LKY would come crawling back, begging to be let in again, though this time on Tunku’s terms. That was Tunku's plan. ...... "For me, it is a moment of anguish. All my life, my whole adult life, I ... I believed in Malaysian merger and unity of the two territories. You know that we, as a people are connected by geography, economics, by ties of kinship ... It broke everything we stood for ....... " ........ his resolve to stay out, stay steadfast, strategize and systematically develop Singapore into a prosperous nation. ..... it was the concept of Malaysia which saved him from being trounced by the pro-communist party, and possibly being reduced into a political nobody. What a frightening thought for Malaysia if the communists had taken hold of Singapore, when there was a pro communist Indonesia under madman Soekarno.
Why did Singapore and Malaysia split up?
Singapore's PAP advocated a meritocratic, non-communal form of government that sought to treat everyone equally and reward them based on their merit, rather than their race or religion. ..... The dominant political party in the Malayan penisula on the other had believed that the Malays, being the "sons of the soil", deserved special previleges over the Chinese and Indians. This resulted essentially in the government practicing a heavily pro-Malay affirmative action policy, in a bid to bring them up to the economic levels of the Chinese. ...... The political parties at that time, (UMNO, MIC, MCA) were largely based on race, with the Malay-bssed party, UMNO being the biggest and strongest. Considering that Singapore(and the PAP) was predominantly Chinese, there was the perception that the inclusion of Singapore into the Malaysian Federation would dilute the power of the Malays and increase the influence of the Chinese. Actions by both parties only served to worsen the acrimonious relations between Singapore and Malaysia. ........ As a resource-poor, economically undeveloped territory, the leaders felt that union with Malaysia was the best outcome for the survival of the state.one of the main benefits would be to gain access to a larger consumer base to sell their goods to. However, by 1965, progress on this common market had stalled. Thus, our economic impetus for joining up slowly faltered.



The crucial speech...which split the nation
One speech more than any other was crucial in bringing Umno leaders round to the idea that Malaysia should get rid of Singapore and Mr Lee Kuan Yew with it. This was the speech that changed history, former Cabinet minister Lim Kim San said in his tribute to Mr Lee at his 75th birthday dinner celebrations on Wednesday........ He was referring to Mr Lee's speech in May 1965, when he rose to take part in the debate on the King's address at the opening of the Malaysian Parliament. Here is an account of that fateful debate, as told by Mr Lee in The Singapore Story: Memoirs of Lee Kuan Yew....... I MADE my most important speech in the federal Parliament to a hostile and tense audience, including a large number of Malay MPs who had been fed daily with anti-PAP, anti-Lee Kuan Yew and anti-Chinese propaganda by the Utusan Melayu over the past year. ..... But Dr Mahathir Mohamad's (then an Umno backbencher) speech implied that this could never happen. I quoted what he had said the day before about the Chinese in Singapore:

"They have never known Malay rule and couldn't bear the idea that the people they have so long kept under their heels should now be in a position to rule them."

....... To rule them? I drew a distinction between political equality and the special rights for the economic and social uplift of the Malays. I accepted the special rights, but if the other peoples of Malaysia were denied political equality with the Malays, we would not need Indonesian President Sukarno and Confrontation to crush us. ....... Waving a copy of the Malaysian Constitution in my right hand, I said: "Once you throw this into the fire and say, 'Be done with it', that means you do it for a long time; and history is a long, relentless process." I said Syed Ja'afar Albar (then Umno secretary general) wanted us to secede and leave our friends in Sarawak, Sabah, Penang, Malacca and other parts of Malaysia to Umno's tender mercies; we would not oblige. ...... I demolished the accusation that we were pro-Chinese. If we advocated a Chinese Malaysia; we could not attract majority support, as the Chinese were only 42 per cent of the population. If I had been going around saying about the Chinese what Albar had said about being a Malay -- "Wherever I am, I am a Chinese" -- where would that have led us? ...... On the contrary, I kept on reminding people: "I am a Malaysian, I am learning Bahasa Kebangsaan (the national language) and I accept Article 153 of the Constitution (on the special rights of the Malays)." ...... Having reached the most sensitive part of my speech, in which I would expose the inadequacy of Umno's policies, I decided to speak in Malay. Although my Malay was not as good as my English, I was fluent compared with other non-Malay MPs. .... I said that while I accepted Malay as the sole official language, I did not see how it could raise the economic position of the people. ..... Would it mean that the produce of the Malay farmer would increase in price, that he would get better prices? Would he get improved facilities from the government? I added that if the Alliance did not have real answers to current economic problems, it should not stifle the opposition. ....... Because we had an alternative, and it would work: "In 10 years we will breed a generation of Malays, educated and with an understanding of the techniques of science and modern industrial management." ...... It was at this point that I quoted what Dr Mahathir said earlier in the debate: "It is, of course, necessary to emphasise that there are two types of Chinese ... the MCA supporters to be found mainly where Chinese have for generations lived and worked amidst the Malays and other indigenous people, and the insular, selfish and arrogant type of which Mr Lee is a good example. This latter type live in a purely Chinese environment where Malays only exist at syce level ... They have in most instances never crossed the Causeway. They are in fact overseas Chinese first, seeing China as the centre of the world and Malaysia as a very poor second." ......... I continued: "What does that mean, Mr Speaker, sir? They were not words uttered in haste, they were scripted, prepared and dutifully read out, and if we are to draw the implications from that, the answer is quite simple: that Malaysia will not be a Malaysian nation. I say, say so, let us know it now." ...... As for the Malays "only existing at syce level", I said that the Tunku had frequently said in public and in private that the Chinese were rich and the Malays poor, but I used some simple examples to highlight a few points, still speaking in Malay. ...... Special rights and Malay as the national language were not the answer to this economic problem. If out of 4-1/2 million Malays and another three-quarters of a million Ibans, Kadazans and others, we made 0.3 per cent of them company shareholders, would we solve the problem of Malay poverty? ......

"How does the Malay in the kampung find his way out into this modernised civil society? By becoming servants of the 0.3 per cent who would have the money to hire them to clean their shoes, open their motorcar doors?

...Of course there are Chinese millionaires in big cars and big houses. Is it the answer to make a few Malay millionaires with big cars and big houses? ......... "How does telling a Malay bus driver that he should support the party of his Malay director (Umno) and the Chinese bus conductor to join another party of his Chinese director (MCA) -- how does that improve the standards of the Malay bus driver and the Chinese bus conductor who are both workers in the same company? ......... "If we delude people into believing that they are poor because there are no Malay rights or because opposition members oppose Malay rights, where are we going to end up? You let people in the kampungs believe that they are poor because we don't speak Malay, because the government does not write in Malay, so he expects a miracle to take place in 1967 (the year Malay would become the national and sole official language). The moment we all start speaking Malay, he is going to have an uplift in the standard of living, and if it doesn't happen, what happens then?..." ......... "Meanwhile, whenever there is a failure of economic, social and educational policies, you come back and say, oh, these wicked Chinese, Indians and others opposing Malay rights. They don't oppose Malay rights.

They, the Malays, have the right as Malaysian citizens to go up to the level of training and education that the more competitive societies, the non-Malay society, has produced. That is what must be done, isn't it? Not to feed them with this obscurantist doctrine that all they have got to do is to get Malay rights for a few special Malays and their problem has been resolved..."

............ Such arguments put in down-to-earth social and economic terms, and in Malay, had never been heard before in the Malaysian political debate. ...... The PAP had brought crucial, sensitive issues into the open

in a rational way to expose the shallowness of Umno's political argument, that because Malay leaders (mostly the aristocrats and educated elite) worked together with Chinese leaders (mostly the successful merchants) and Indian leaders (mostly the professionals), all would be well.

............ It was the most significant speech I had ever made in Malay, and I made it to an audience of Malay MPs, many of whom represented rural areas, and to a strangers' gallery, which was packed with more Malays. I had spoken without a script, and for that reason it had all the more impact.

As I spoke, there was a stunned silence. The air was electric.

.......... "He spoke for about half an hour. There must have been about 500 or so in the House and in the gallery, but you could hear a pin drop. I think if they could have cheered, they would have. Looking back, I think that was the moment when the Tunku and his colleagues felt it was better to have Singapore and Mr Lee out." .......

"The chamber was very quiet and nobody stirred. The ministers of the central government sunk down so low in their seats that only their foreheads could be seen over the desk in front of them. The backbenchers were spellbound. They could understand every word. That was the turning point. They perceived Lee as a dangerous man who could one day be the prime minister of Malaysia."

..... I had no such illusions. Malaysia would not have a Chinese prime minister for a very, very long time. ...... The Malays present did not expect me, the supposed anti-Malay Chinese chauvinist out to destroy the Malay race, to speak in Malay with no trace of a Chinese dialect accent that most Chinese would have. I had been born and bred in Singapore, speaking the language from childhood. I could trace my ancestors for three generations in Singapore. They had made as big a contribution to the country as any Malay in the chamber. And I was on their side, not against them. I wanted to improve their lot. ........ The Tunku and his deputy PM, Abdul Razak Hussain, looked most unhappy. I was meeting them on their own Malay ground and competing for support peacefully with arguments in an open debate. I was not rattled by their strident, shrill and even hysterical cries of abuse and denigration. I could hold my own. If allowed to go on, I might begin to win over some Malays. ....... They could see that among the MPs wearing the Haji skullcaps of those who had made the pilgrimage to Mecca, heads were nodding in agreement when I pointed out that

simply having Malay as the national language would not improve their economic lot. They needed practical programmes directed in the fields of agriculture and education.

......... The speech aroused such unease among the Alliance leaders and MPs that, contrary to standing orders, the Speaker ruled I could not reply to arguments made against it. It was a backhanded tribute to my effectiveness in Malay. Instead, he called on Razak, in place of the Tunku, to wind up the debate. ....... Razak launched into a long spiel of accusations: I was out to create chaos and trouble and hoped to emerge as the leader who could save the country. I was an expert in creating situations that did not exist. I twisted facts and cast doubts in the minds of people.

I planned to split the country into two

-- "one Malay Malaysia, and one Lee Kuan Yew's Malaysia". ......... Razak was at his most bitter when he concluded: "The gulf that divides the PAP and the Alliance is now clear. PAP means Partition and Perish." ....... I had not expected my speech to play so crucial a part in the Tunku's decision to get Singapore out of Malaysia. ..... Twelve years later, 1977, in his book Looking Back, the Tunku wrote: "The straw that broke the camel's back, however, was a speech Mr Lee Kuan Yew made in Parliament, when he moved an amendment to 'the motion to thank the King for his speech in May, 1965'. He brought up many issues which disturbed the equilibrium of even the most tolerant Members of the House." ........ He sent me a copy of the book, inscribed: "Mr Lee Kuan Yew, The friend who had worked so hard to found Malaysia and even harder to break it up...... Five years later, in 1982, the Tunku told the author of a book on Singapore: "He (Lee Kuan Yew) would think himself as legitimate as I was to be the leader of Malaya because he speaks Malay better than I do." ........ I did not speak Malay better than the Tunku. Even if I did, I was still not a Malay and could not be the leader of Malaysia. ........ But when he heard me that day in Parliament, he realised that I was getting my message through to his own backbenchers. That was unacceptable.


स्वतंत्र मधेस देश को अंतरिम राष्ट्रपति सीके राउत बाहेक अरु कोही हुन सक्दैन। तर देश घोषणा भएको एक वर्ष भित्र संविधान सभा को चुनाव हुन्छ। त्यस चुनाव मा मधेस स्वराज पार्टी ले बहुमत बटुल्न नसके बहुमत बटुल्ने व्यक्ति अर्को दुई वर्ष का लागि अंतरिम राष्ट्रपति हुन्छ।