Monday, November 24, 2014

मोदीको जनकपुर में आम सभामें न बोल्ने देनेका निर्णय किसने लिया?



निधि मंत्री हैं और जनकपुर से हैं तो उनको मोदीके जनकपुर भ्रमणका जिम्मा दिया गया ---- that makes sense. मोदीको बारह बिघामें प्रस्तुत नकर एक छोटे मोटे कमरे में दो चार सय लोगो से मिलवाने का निर्णय किया गया। उस निर्णयका चेहरा निधि रहे। लेकिन वो निर्णय लिया किसने? 

वो निर्णय मोदीने नहीं लिया। मोदीकी तीव्र इच्छा थी। आम जनताको सम्बोधन करेंगे। ये कहते आए थे। तो मोदीके इच्छा विपरीत भारत सरकारके किसीभी तहके किसी भी व्यक्ति ने आम सभा मत करो ऐसा कहा होगा ये सवाल पैदा होता ही नहीं। भारतके राजदुत खुद प्रधान मंत्रीसे मिल मिलके कहे पर कहे जा रहे थे कि आम सभा करिए। 

तो या तो निधिको सुशीलने कहा कि आम सभा मत करो और निधि ने उस बातको माना। लेकिन आम सभा वाले आईडिया को सुशीलने कभी पब्लिक्ली विरोध नहीं किया। विरोध किया वामे ने। तो निधिको आर्डर कौन दे रहा है? सुशील कि वामदेव? निधिका बॉस कौन है? सुशील कि वामदेब? आम सभाके विषय पर सुशील और वामदेब एक राय के थे या उनमें मतभिन्नता थी? मतभिन्नता थी तो सुशीलने अपनी बात निधिको बताया कि नहीं? बताया तो क्या निधि ने नहीं माना? बात क्या है? देश आखिर चला कौन रहा है? 

कि निधि से न वामदेब ने बात किया न सुशीलने, हवामें ही उनको हिन्ट मिल गया? कि पहाड़ी शासक वर्ग नहीं चाहते हैं कि आम सभा हो, तो वो तो काँग्रेस में टोकन (token) मधेसी तो हैं ही। वो अपने पहाड़ी बॉस लोगोकी इच्छा पुरी करने में जीजान से लग गए और जनकपुरको ५०० करोड़का चुना लग गया। 

मोदीको जनकपुर में आम सभामें न बोल्ने देनेका निर्णय आखिर किसने लिया? एक आयोग गठनकी माग हम कर रहे हैं। आखिर truth क्या है? 


मोदीने एक मिनट में लिया निर्णय

English: Narendra Modi in Press Conference
English: Narendra Modi in Press Conference (Photo credit: Wikipedia)
मोदी संसारके सबसे व्यस्त व्यक्ति हैं। उनकी एक खुबी है - quick decision making की। वो decisive हैं। जनकपुर और लुम्बिनी जाने की बात उन्होने सारे देशके सामने कहा था, भड़ी संसद में, सारी दुनियाके सामने। उनको और उनके टीम को तभी ही मालुम था कि भारतके किन राज्योंमें कब चुनाव है। बिहार में और उत्तर प्रदेश में जहाँ कि अभी मोदीकी पार्टीकी राज्य सरकार नहीं है, और अगर उनकी पार्टी इन राज्योंमें सरकार बना लेती है तो भारतके upper house में उनको बहुमत मिल जाएगी और वो और स्पीड में काम कर सकेंगे। इस बात से वो वाफिक हैं। जनकपुर और लुम्बिनी भ्रमणसे उनको बिहार और उत्तर प्रदेश में फायदा था।

ये कहना कि व्यस्ततावश उन्होने जनकपुर और लुम्बिनी भ्रमण कैंसिल कर दिया --- ये कूटनीतिक भाषाको न समझना है। वो कैंसिल करने का निर्णय उन्होने एक मिनट में लिया, क्यों कि उनके पास उस के लिए उससे ज्यादा समय है ही नहीं। और एक बार निर्णय कर लेने के बाद फिर से उस निर्णयको revisit करने का समय उनके पास नहीं है।

मोदीने एक मिनट में लिया निर्णय। उनको जनकपुरमें आम जनताको सम्बोधन करना था। तीव्र इच्छा थी। प्रोग्राम schedule पर एक निगाह दिया। देखा आम सभा सम्बोधन प्रोग्राम में है ही नहीं। तो उन्होने जनकपुर जानेका प्रोग्राम कैंसिल कर दिया। खिसा खतम।

जनकपुर नगरीके इतिहासमें टीकमगढ़की महारानीने अपने गलेका नौ लाखका हार उतार कर जो दे दिया और जानकी मन्दिर बनी, वो बेमिसाल है। लेकिन मोदी उससे भी आगे जाने वाले थे। ५०० करोड़का पैकेज तैयार था। जनकपुर नगरीका कायापलट होना था। टीकमगढ़की महारानीसे भी तीन कदम आगे चल्ने वाले थे मोदी।

उस सब पर वामदेवने और काठमाण्डु के शासक वर्गने पानी फेर दिया। कितना गहरा है उन लोगो का घृणा! खुद तो कुछ करते नहीं हैं, मधेसीका पैसा ले जाते हैं लेकिन मधेसीको बजट में जगह नहीं देते हैं। और मोदी जैसे लोग उपहार ले कर आते हैं तो उसमें भी रोड़ा डाल देते हैं। वामदेवको माँ जानकीका श्राप लगेगी। वो तो सीधा नरक जायेगा बन्दा।

मोदी grassroots से उपर आए लोग हैं। उनको ये समझने में ज्यादा कठिनाइ नहीं होगी। ब्रिटिश साम्राज्यसे भारत तो मुक्त हो गया लेकिन मधेश अभी तक उस श्राप से मुक्त नहीं हो पाया है।


मोदी के प्रति मधेश के जनता में एक क्रेज है
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