Monday, August 31, 2015

मधेसी मोर्चा र मधेसी स्वराजी को सम्बन्ध



Dr. CK Raut
मधेशी पार्टी द्वारा स्वराजी अञ्‍जय मिश्रको फँसाकर जेल में बंद करवाना: मधेशी पार्टी द्वारा स्वराजियों को भीड में लपेटकर फँसाने, दमन करवाने, इन्काउन्टर करवाने और स्वराज अभियान को खत्म करने की साजिश
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कल शाम को प्रत्यक्षदर्शी से जानकारी प्राप्त हुई कि मोरंग विराटनगर से पकड़े गए स्वराजी अञ्‍जय मिश्र को अभी तक हिरासत में ही रखा गया है। मधेशी मोर्चा द्वारा घोषित श्रावण ३१/३२ के कार्यक्रम के दौरान एक मधेशी पार्टी के जिलाध्यक्ष, स्वराजी अञ्‍जय मिश्र और अजय नाम के एक साथी साथ-ही-साथ बजार से गुजर रहे थे। इतने में पुलिस वैन दिखाई दी और मधेशी पार्टी के जिलाध्यक्ष नें ईंट उठाकर पुलिस की गाडी पर फेंक दी, जिससे गाडी का शीशा टूट गया। जिलाध्यक्ष महोद्‍य तो भाग गए, पर सारी घटना से हक्का-बक्का हुए अञ्‍जय मिश्र और अजय वही पर खडे रहे। पुलिस ने उतरकर दोनों को गिरफ्तार कर के वैन में बिठाया, पर अजय वैन से कुदकर भाग गया जिसके कारण उसके पैर में मोच भी आई। अञ्‍जय को पुलिस ने हिरासत में लिया। शाम के मशाल जुलुस के दौरान मोर्चा के कुछ और कार्यकर्ताओं को भी पकडकर लाया गया। पर सभी कार्यकर्ताओं को मधेशी पार्टीयों ने छुडाकर ले गया, पर अञ्‍जय मिश्र को उन सबने हिरासत में ही छोड दिया। उल्टा मोरंग के पूर्वसभासद् तथा संघीय समाजवादी फोरम के नेता ने मकालु टेलिविजन से अन्तर्वार्ता में कहा कि उनके मशाल जुलुस में "विखण्डनकारी घुसपैठिया" घुस गया था जिसके कारण से आन्दोलन उग्र हो उठा।

बाद में जब श्री महन्त ठाकुर, श्री उपेन्द्र यादव, श्री राजेन्द्र महतो, श्री महेन्द्र राय यादव लगायत के नेता विराटनगर में सभा को सम्बोधन करने पहुँचे तो ईस्टर्न होटल में अञ्‍जय मिश्र के विषय में जीवन गुप्ता जी ने वृहत्त में बात रखी पर कोई सुनवाई नहीं हुई। विराटनगर के नागरिक समाज के सामने यह बात रखी गई वहाँ भी कोई परवाह नहीं किया गया। मधेशी मोर्चा के स्थानीय नेताओं के सामने बात रखी गई कि आपके कार्यक्रम के दौरान, आपके जिल्ला अध्यक्ष के कारण ऐसा हुआ है, तो जीवन गुप्ता जी को 'घटना में मारे जाओगे' कहके जान से मारने की धमकी दी गई। इसतरह से मोर्चा के कार्यक्रम के दौरान, मधेशी पार्टी के जिलाध्यक्ष के गैरजिम्मेबार करतूत के चलते गिरफ्तार हुए या षडयन्त्र पूर्वक गिरफ्तार कराए गए स्वराजी अञ्‍जय मिश्र पिछले १५ दिन से प्रहरी हिरासत में यातना भोग रहे हैं, और उनपर मुद्दा लगाने की तैयारी चल रही है।

उसी तरह, स्मरण रहे, तमलोपा के महामंत्री सर्वेन्द्रनाथ शुक्ला ने भी भैरहवा की घटना में सिके राउत के कार्यकर्ताओं का घुसपैठ होने का आरोप लगाया था।
(http://www.ratopati.com/2015/08/22/227596 )

इसतरह से जगह-जगह पर स्वराजियों को बदनाम करने की और नेपाली शासकों द्वारा स्वराजियों पर दमन करवाने की घटना सामने आ रही है, और इस ओर हम सबका ध्यान आकृष्ट हुआ है। पर हम सभी संयमता रखें क्योंकि यह इस भीड में लपेटकर स्वराजियों पर दमन कराके, स्वराजियों को बदनाम कराके, स्वराजियों का इन्काउन्टर करवाके स्वराज अभियान को खत्म करने की साजिश हो रही है। इसलिए हम सभी संयमता रखें, सावधान रहें।


बहुदल ले मात्र पुगेन। गणतंत्र पनि चाहियो। गणतन्त्रले मात्र पुगेन। संघीयता पनि चाहियो। बहुदलवादीले गणतन्त्रवादी लाई, गणतन्त्रवादी ले संघीयता वादी लाई शत्रु व्यवहार गर्नु इतिहासले गलत साबित गरेको छ।

संघीयता अझै मधेस ले पाइनसकेको कुरा। संविधान मा केही गरी संघीयता र समावेशीता पाइ हाले पनि त्यसको कार्यान्वयन को कुरा आउँछ। त्यहाँ पनि बेइमानी का ठाउँ प्रशस्त रहन्छन्।

सीके राउत को वाचडॉग (watchdog) रोल रहने हुन्छ। मधेसी क्रांति ले अंतरिम संविधान मा "स्वायत्त मधेस प्रदेश" स्थापित गरेको हो। त्यो स्वायत्त भन्ने शब्द को अर्थ के भन्ने कुरामा कुनै विवाद छैन। त्यो आत्म निर्णयको अधिकार नै हो। त्यसको अर्को कुनै अर्थ लाग्दैन।

मधेसी विरुद्ध को विभेद को औषधि संघीयता हो, संघीयता प्रयाप्त छ भन्ने मधेसी दल को त्यो अधिकार हो। अंतिम निर्णय गर्ने जनता हुन। मधेसी विरुद्ध को विभेद को औषधि संघीयता होइन मधेस अलग देश हो भन्ने हरु सँग वैचारिक असहमति लोकतान्त्रिक अभ्यास हो। तर तिन प्रति शत्रु व्यवहार मधेसी मानसिक दासता कै एउटा रूप हो। त्यो बाटो मा मधेसी दल हिँड्नु हुँदैन।

मधेस अलग देश को एजेंडा कंडीशनल हो। यदि संघीयता र समावेशीता को बाटो एउटा निश्चित समय भित्र मधेसी ले समानता पाऊँछ भने मधेस अलग देश को एजेंडा कायम रहँदैन। तर त्यो समय आइसकेको छैन मात्र होइन, त्यो समय आउन दिन्न भन्ने काठमाण्डु का बाहुन हरुको लिंडे ढिपी ले गर्दा होइन यत्रो आंदोलन गर्नु परेको?

त्यसैले मधेसी मोर्चा का दल हरुको, नेता र कार्यकर्ता को मधेसी स्वराजी संग respectful co-existence को सम्बन्ध हुनुपर्छ, hostility को होइन। दुबै ले लडेको मधेसी अस्मिता का लागि नै हो। मंजिल एक और राही दो।

भैरहवाको झडपमा सिके राउतका कार्यकर्ताको घुसपैठ?
सिके राउत पक्षको खण्डन
भैरहवा, भदौ ५– बिहिबार भैरहवामा भएको झडपमा सिके राउतका कार्यकर्ताले घुसपैठ गरि अराजकता फैलाएको भन्ने तराई मधेश लोकतान्त्रि पार्टीका महामन्त्री तथा रुपन्देही क्षेत्र नं. ६ का सभासद सर्वेन्द्रनाथ शुक्लाको भनाईको स्वतन्त्र मधेश गठबन्धनले बिरोध गरेको जनाएको छ । ...... गठबन्धनका जिल्ला संयोजक भोपेन्द्र यादवले प्रेस बिज्ञप्ती जारी गर्दै शुक्लाको भनाई कपोलकल्पित, गलत, निराधार तथा गैरजिम्मेवार रहेको बताए । शुक्ला जनताको मनोभवना र अकान्छालाई कुल्चेर सिके राउतको कार्यकर्तालाई दोसी देखाउनु खेदपुर्ण भएको बिज्ञप्तीमा उल्लेख छ । भैरहवामा सिके राउतको कार्यकर्ता वाट कुनै किसिमको सद्भाव बिग्रने खालको क्रियाकलाप नगरेको गठबन्धने जनाएको छ । मोर्चाको आन्दोलन भन्नु भन्दा पनि यो सम्पुर्ण मधेशी ,थारू ,आदिवासीजनजाति हरूको आन्दोलन भएको कारण यसमा गठबन्धनले नैतिक समर्थन गरेको संयोजक भोपेन्द्र यादवले बताए । बिहिबार रुपन्देहीका ग्रामीण क्षेत्रबाट आएका हजारौ प्रर्दशनकारीले भैरहवामा उगै रुप देखाउदै अस्पताल, निजि घर तथा बाटोमा सवारी साधन तोडफोड गरे पछि त्यसको सर्वत्र बिरोध भएको थियो । शुक्लले सो भिडमा सिके राउतका कार्यकर्ताले घुसपैठ गरि तोडफोड मच्चाएको आरोप लगाएका थिए ।

In The News (53)











Niranjan Koirala
By the time I was growing up in Biratnagar in the early 50's, the tharus had lost much of their influence and land in that area to the migrants from the hills and many Marwari families that came from Rajasthan at the call of earlier Rana Primeminister whose dream was to make Biratnagar an industrial town and a trading centre. My grandfather, Krishna Prasad Koirala was one of the early pahadi settlers there. He might have been one of the people who gave the place its current name. Before that the place was called Gograha. Gograha was dominated by the tharus, who had been the original settlers and who had acquired immunity against the dangerous malarial mosquito bites. When my grandmother, Dibya came to Biratnagar as a young bride, she tied a rakhi on a tharu zamindar from Raghunathpur, a few miles east of today's Biratnagar. The tharu zamindar, Teju Lal Chaudhury, gifted my grandmother 25 bighas of land in Raghunathpur that she very proudly called her 'peva'. She used to tell us proudly that her 'brother' had given her that land and it had nothing to do with the Koirala family. Before she died. she gifted most of that to her sister. My father and all his brothers including BP used to address him as Mama. 'Mama' came to Biratnagar very rarely. But when he came, he stayed in our home, Koirala Nivas. He was an extremely dignified man and he usually came with three or four of his retainers who looked after his comforts. My grandmother accorded great respect and because of that we used to be in awe of him. I remember going and spending a couple of nights in his home in Raghunathpur. The main house was built of wood with a tin roof and there were many neat huts around it. There was no halla-gulla in the premise. The serenity of the environment made us impose self-discipline....The Tharus that I knew growing up were the most peace loving people. In fact, much later, I was quite surprised when I was told that a junior party colleague who was quite aggressive and a boisterous youth leader- Bijaya Gacchadar- was a tharu! I had always believed and believe now that Tharus can never be aggressive till they are pushed to the wall. I believe somethlng like that happened in Nepal today that has provoked the tharus to be so aggressive. Sitting in Delhi I am not the right person to comment politically, but as someone who had had many tharu friends and grew up amongst them, I can say with certainty that whatever has gone wrong is not because of them. And if things get out of hand, it will not be because of them. My uncle Sushil who is the current PM of the country knows this. I hope he is taking appropriate steps to contain this anger of the tharus before it spirals out of control.