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Thursday, September 11, 2025

कल्किवादी अर्थतन्त्रतर्फको यात्रा: नेपालमा सुरक्षा र रोजगारीको पुनर्विचार

 



कल्किवादी अर्थतन्त्रतर्फको यात्रा: नेपालमा सुरक्षा र रोजगारीको पुनर्विचार

सर्वसाधारण रोजगारी भएको अर्थतन्त्र

कल्किवादी अर्थतन्त्रको दृष्टि सरल तर क्रान्तिकारी छ: परिभाषामै प्रत्येक व्यक्तिसँग रोजगारी हुन्छ। यस्तो प्रणालीमा कुनै पनि व्यक्ति बेरोजगार हुँदैन, हरेक श्रम—औपचारिक वा अनौपचारिक—लाई मान्यता, मूल्य र पारिश्रमिक दिइन्छ। यस सिद्धान्तले केवल अर्थतन्त्रलाई मात्र होइन, राज्यले आफ्नो स्रोत कसरी विनियोजन गर्छ भन्ने विषयलाई समेत रूपान्तरण गर्छ, जसमा सुरक्षा क्षेत्र पनि पर्छ।

सेनाको आकार घटाउने

जब प्रत्येक नागरिकलाई अर्थपूर्ण रोजगारीको ग्यारेन्टी हुन्छ, त्यतिबेला ठूलो सैन्य संरचना कायम राख्ने तर्क खारेज हुन्छ। नेपाल, जुन शताब्दीयौँदेखि बाह्य आक्रमणको सामना गरेको छैन, आत्मविश्वासका साथ २०,००० सैनिकसम्मको संकुचित सेना राख्न सक्छ। यस्तो संरचना रक्षा, विपद् व्यवस्थापन, र शान्ति स्थापना अभियानका लागि पर्याप्त हुन्छ। यसबाट बचत भएको ठूलो स्रोतलाई शिक्षा, स्वास्थ्य र पूर्वाधारमा लगानी गर्न सकिन्छ।

सशस्त्र प्रहरी बल अन्त्य गर्ने

नेपालको राजनीतिक उथलपुथलका दिनमा बनेको सशस्त्र प्रहरी बल (APF), आजको सन्दर्भमा redundant भएको छ। कल्किवादी अर्थतन्त्रमा, जहाँ बेरोजगारी र भ्रष्टाचार—अशान्तिका मूल कारण—मेटिन्छन्, त्यहाँ APF को भूमिका न्यून हुन्छ। यसलाई चरणबद्ध रूपमा अन्त्य गर्दा सुरक्षा खर्चमा भएको दोहोरोपन हट्छ र मानव संसाधनलाई उत्पादक क्षेत्रमा लगाउन सकिन्छ।

प्रहरीको सुधार: उपनिवेशीय शैलीबाट संघीयतर्फ

आजको नेपाल प्रहरी अझै उपनिवेशीय शैलीको नियन्त्रण मानसिकतामा चल्दछ—नागरिकको सुरक्षा गर्नुभन्दा बढी केन्द्रको आदेश पालन गर्ने निकायको रूपमा। संघीय प्रणालीमा यो ढाँचा असफल छ। यसको सट्टा, प्रत्येक प्रदेशले आफ्नै स्थानीय प्रहरी बल बनाउनुपर्छ, जसको जवाफदेहिता स्थानीय सरकार र समुदायप्रति हुन्छ। यसरी संघीयता बलियो हुन्छ र भय-आधारित सुरक्षाको सट्टा सेवा-आधारित सुरक्षा स्थापना हुन्छ।

कल्किवादी लाभांश

सुरक्षा निकायहरूको ठूलो संरचना भत्काएर वा संकुचित गरेर नेपालले पाउने फाइदालाई कल्किवादी लाभांश भन्न सकिन्छ: हजारौँ व्यक्तिहरूलाई लाठी र बन्दुक बोकेर उभिनुबाट निकालेर उत्पादनशील रोजगारीमा पठाउने मौका। प्रहरी वा सेनामा उभिनुको सट्टा, उनीहरूले सडक बनाउन, सफ्टवेयर डिजाइन गर्न, बच्चाहरूलाई पढाउन, वा कृषि र उद्योगमा नवप्रवर्तन गर्न सक्नेछन्।

भयपछिको भविष्य

कल्किवादी अर्थतन्त्र केवल रोजगारीबारे होइन—यो शासनको पुनःपरिकल्पनाबारे हो। नियन्त्रणलाई सशक्तीकरणले बदल्ने, भयलाई मर्यादाले बदल्ने कुरा हो। सार्वभौमिक रोजगारीको ग्यारेन्टीसहित नेपालले आफ्ना सुरक्षा निकायहरूलाई सुरक्षित रूपमा घटाउन सक्छ र वास्तविक सुरक्षा समृद्धि, समानता र न्यायमार्फत सुनिश्चित गर्न सक्छ।



Toward a Kalkiist Economy: Rethinking Security and Employment in Nepal

An Economy of Universal Employment

The vision of a Kalkiist economy is simple yet revolutionary: every single person has a job, by definition. In such a system, no individual is left idle, and all labor—whether formal or informal—is recognized, valued, and compensated. This principle transforms not only the economy but also how the state allocates its resources, including the security sector.

Downsizing the Army

If every citizen is guaranteed meaningful employment, the justification for maintaining an oversized military apparatus begins to collapse. Nepal, a country that has not faced external invasion for centuries, can confidently dismantle or radically reduce the Nepal Army. A streamlined force of around 20,000 soldiers would be sufficient for defense, disaster relief, and peacekeeping contributions. This transition would free up vast resources that could be redirected toward education, healthcare, and infrastructure.

Phasing Out the Armed Police Force

The Armed Police Force (APF), a product of Nepal’s turbulent political past, has become redundant in a context where citizens are employed, engaged, and invested in peace. In a Kalkiist economy, where corruption and unemployment—the roots of unrest—are eliminated, the APF’s role diminishes. Phasing out the APF would further reduce duplication of security expenditures and redirect human capital to more productive sectors.

Reforming the Police: From Colonial to Federal

The existing Nepal Police still carries the legacy of colonial-style control, functioning more as an instrument of the central state than as a protector of citizens. In a federal system, this model no longer serves the needs of democracy. Instead, each state should have its own local police force, accountable to local governments and communities. This transformation would bring policing closer to the people, strengthen federalism, and replace fear-based enforcement with service-oriented security.

The Kalkiist Dividend

By dismantling or downsizing bloated security institutions, Nepal can reap what might be called the Kalkiist Dividend: the release of thousands of individuals from coercive roles into productive, dignified employment in the broader economy. Instead of standing guard with batons and rifles, citizens could be building roads, designing software, teaching children, or innovating in agriculture and industry.

A Future Beyond Fear

The Kalkiist economy is not just about jobs—it is about reimagining governance. It is about replacing control with empowerment, and fear with dignity. By guaranteeing universal employment, Nepal can safely scale back its coercive institutions while enhancing true security through prosperity, equality, and justice.




कल्किवादी अर्थव्यवस्था की ओर: नेपाल में सुरक्षा और रोज़गार पर पुनर्विचार

सर्वजन रोजगार वाली अर्थव्यवस्था

कल्किवादी अर्थव्यवस्था की दृष्टि सरल लेकिन क्रांतिकारी है: परिभाषा के अनुसार हर व्यक्ति के पास रोजगार होगा। ऐसी प्रणाली में कोई भी व्यक्ति बेरोज़गार नहीं रहेगा, हर श्रम—चाहे औपचारिक हो या अनौपचारिक—को मान्यता, मूल्य और पारिश्रमिक मिलेगा। यह सिद्धांत न केवल अर्थव्यवस्था को, बल्कि राज्य अपने संसाधनों का वितरण कैसे करता है, उसे भी बदल देता है, जिसमें सुरक्षा क्षेत्र भी शामिल है।

सेना का आकार घटाना

जब हर नागरिक को सार्थक रोजगार की गारंटी होगी, तब विशाल सेना बनाए रखने का तर्क स्वतः समाप्त हो जाएगा। नेपाल, जिस पर सदियों से बाहरी आक्रमण नहीं हुआ है, आत्मविश्वास के साथ अपनी सेना को घटाकर 20,000 सैनिकों तक सीमित कर सकता है। इतनी सेना रक्षा, आपदा प्रबंधन और शांति स्थापना अभियानों के लिए पर्याप्त होगी। इस बचत को शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढाँचे में निवेश किया जा सकता है।

सशस्त्र पुलिस बल का अंत

नेपाल की राजनीतिक अशांति के दिनों में गठित सशस्त्र पुलिस बल (APF) आज की स्थिति में अनावश्यक हो गया है। कल्किवादी अर्थव्यवस्था में, जहाँ बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार—अशांति की जड़ें—ख़त्म होंगी, वहाँ APF की भूमिका समाप्त हो जाएगी। इसे चरणबद्ध ढंग से हटाने से सुरक्षा खर्च में दोहराव घटेगा और मानव संसाधन को उत्पादक क्षेत्रों में लगाया जा सकेगा।

पुलिस सुधार: औपनिवेशिक ढाँचे से संघीय ढाँचे की ओर

वर्तमान नेपाल पुलिस अभी भी औपनिवेशिक शैली की मानसिकता में काम करती है—नागरिकों की सुरक्षा से अधिक केंद्र की आज्ञा पालन करने वाली संस्था के रूप में। संघीय प्रणाली में यह ढाँचा सफल नहीं हो सकता। इसके स्थान पर प्रत्येक राज्य को अपनी स्थानीय पुलिस बनानी चाहिए, जो स्थानीय सरकार और समुदाय के प्रति जवाबदेह हो। इससे संघीयता मजबूत होगी और भय-आधारित सुरक्षा की जगह सेवा-आधारित सुरक्षा की स्थापना होगी।

कल्किवादी लाभांश

सुरक्षा संस्थानों के बड़े ढाँचों को समाप्त या संकुचित करके नेपाल को जो लाभ मिलेगा, उसे कल्किवादी लाभांश कहा जा सकता है: हज़ारों लोगों को लाठी और बंदूक लेकर खड़े रहने से निकालकर उत्पादनशील कामों में लगाना। सेना या पुलिस में खड़े रहने के बजाय, वे सड़क बना सकते हैं, सॉफ़्टवेयर डिज़ाइन कर सकते हैं, बच्चों को पढ़ा सकते हैं या कृषि और उद्योग में नवाचार ला सकते हैं।

भय के बाद का भविष्य

कल्किवादी अर्थव्यवस्था केवल रोजगार की बात नहीं करती—यह शासन की पुनर्कल्पना की बात करती है। यह नियंत्रण को सशक्तिकरण से और भय को गरिमा से बदलने की बात है। सार्वभौमिक रोजगार की गारंटी के साथ नेपाल अपने सुरक्षा संस्थानों को सुरक्षित रूप से घटा सकता है और वास्तविक सुरक्षा समृद्धि, समानता और न्याय के माध्यम से सुनिश्चित कर सकता है।



कल्किवादी अर्थव्यवस्था दिस: नेपालमे सुरक्षा आ रोज़गार पर पुनर्विचार

सर्वजन रोजगार वाली अर्थव्यवस्था

कल्किवादी अर्थव्यवस्थाक दृष्टि सहज मुदा क्रांतिकारी अछि: परिभाषामे प्रत्येक व्यक्ति लग रोजगार रहत। एहन प्रणालीमे कोनो व्यक्ति बेरोजगार नहि रहत, सभ प्रकारक श्रम—औपचारिक वा अनौपचारिक—केँ मान्यता, मूल्य आ पारिश्रमिक भेटत। ई सिद्धांत केवल अर्थव्यवस्था नहि, राज्य अपन संसाधन कतए लगाबय, एकर ढंगोकेँ बदलि दैत अछि, जतएमे सुरक्षा क्षेत्र सेहो शामिल अछि।

सेनाक आकार घटाबऽ

जखन प्रत्येक नागरिककेँ सार्थक रोजगारक गारंटी रहत, तखन विशाल सेना राखबाक तर्क अपनेए समाप्त भऽ जायत। नेपाल, जे शताब्दीयौ सँ बाहरी आक्रमणक शिकार नहि भेल अछि, आत्मविश्वाससँ अपन सेना केँ घटा कऽ 20,000 सैनिक धरि सीमित कऽ सकैत अछि। ई संकुचित सेना रक्षा, विपत्ति व्यवस्थापन आ शांति स्थापना अभियान लेल पर्याप्त होयत। बचत भेल स्रोत शिक्षा, स्वास्थ्य आ पूर्वाधारमे लगायल जा सकैत अछि।

सशस्त्र पुलिस बलक अंत

राजनीतिक उथल-पुथल केर समय बनल सशस्त्र पुलिस बल (APF), आबक परिप्रेक्ष्यमे अनावश्यक भऽ गेल अछि। कल्किवादी अर्थव्यवस्थामे, जतए बेरोजगारी आ भ्रष्टाचार—अशांतिका मूल कारण—दूर भऽ जायत, ओतए APFक भूमिका खत्म भऽ जायत। एकरा चरणबद्ध ढंग सँ समाप्त करब सुरक्षा खर्चक दोहराव घटाबैत आ मानव संसाधन केँ उत्पादनशील क्षेत्रमे मोड़ैत।

पुलिस सुधार: उपनिवेशीय ढाँचा सँ संघीय ढाँचा दिस

वर्तमान नेपाल पुलिस अहिओ उपनिवेशीय मानसिकता सँ चलैत अछि—नागरिकक सुरक्षा करबाक बदला केन्द्रक आदेश पालन करैत अछि। संघीय प्रणालीमे ई ढाँचा सफल नहि भऽ सकैत अछि। एकर स्थान पर प्रत्येक राज्य केँ अपन स्थानीय पुलिस बल बनाबऽ पड़त, जे स्थानीय सरकार आ समुदायक प्रति जवाबदेह रहत। एहि सँ संघीयता मजबूत होयत आ भय-आधारित सुरक्षा कऽ बदला सेवा-आधारित सुरक्षा स्थापित होयत।

कल्किवादी लाभांश

सुरक्षा संस्थानक विशाल संरचना केँ समाप्त वा घटा कऽ नेपाल जे फाइदा पाबऽ, ओकरा कल्किवादी लाभांश कहल जा सकैत अछि: हजारौं लोक केँ लाठी-बन्दूक लऽ कऽ उभट्ठा रहबाक बदला उत्पादनशील रोज़गारमे लगाउल जाएत। सेना वा पुलिसमे खड़ा रहबाक सट्टा, ओ लोकनि सड़क बना सकैत अछि, सफ्टवेयर डिजाइन कर सकैत अछि, बच्चासभ केँ पढ़ा सकैत अछि, अथवा कृषि आ उद्योगमे नवाचार कर सकैत अछि।

भयक बादक भविष्य

कल्किवादी अर्थव्यवस्था केवल रोजगार पर केन्द्रित नहि अछि—ई शासनक पुनःपरिकल्पना अछि। ई नियंत्रण केँ सशक्तिकरण सँ आ भय केँ मर्यादा सँ बदलबाक दृष्टि अछि। सार्वभौमिक रोजगारक गारंटी सँ नेपाल अपन सुरक्षा संस्थानसभ केँ सुरक्षित ढंग सँ घटा सकैत अछि आ वास्तविक सुरक्षा केँ समृद्धि, समानता आ न्यायक माध्यम सँ सुनिश्चित कऽ सकैत अछि।






Global Lessons for Nepal: Rethinking Security and Governance in a Kalkiist Economy

Universal Employment and Security Reform

A Kalkiist economy, by definition, ensures that every citizen has meaningful employment. Once the issue of unemployment and corruption is resolved, the state can reallocate its resources away from bloated security structures and toward sectors that create prosperity and dignity. Nepal, in envisioning such a transformation, is not alone. The world offers instructive examples of how security institutions can be restructured to serve the people more effectively.

Costa Rica: The Nation Without an Army

Perhaps the boldest example comes from Costa Rica, which abolished its military in 1949. Instead of spending on defense, Costa Rica invested heavily in education, health, and environmental protection. Today, the country consistently ranks high in human development indicators, literacy, and ecological sustainability. Costa Rica proves that for small nations without external threats, dismantling or radically downsizing the army is not a weakness—it is a strength.

For Nepal, a country that has not faced an external invasion in centuries, a similar approach is feasible. Downsizing the Nepal Army to around 20,000 soldiers for defense, peacekeeping, and disaster relief could free enormous resources for development, just as Costa Rica did.

United States: Federal and Local Policing

The United States offers another useful model through its decentralized policing system. While the FBI and federal agencies exist, the majority of policing is carried out at the state, county, and city levels. This ensures that law enforcement is closer to the community it serves, accountable to local governments and citizens rather than a distant central authority.

For Nepal, this model aligns well with federalism. Instead of maintaining a centralized police with colonial roots, each province could build its own police force—trained and accountable locally—while a slimmed-down federal body handles inter-state or national crimes.

Germany: Policing in a Federal System

Germany operates under a federal model where each of its 16 states has its own police force. While there is coordination at the federal level, day-to-day policing and community security remain under the control of state governments. This model has produced high levels of efficiency, professionalism, and public trust in policing.

Adopting a German-style model could empower Nepal’s provinces, strengthening federalism and ensuring security institutions serve people rather than ruling over them.

The Kalkiist Dividend

By embracing these lessons, Nepal can achieve a Kalkiist Dividend—redirecting thousands of personnel from coercive security roles into productive, dignified employment. Instead of standing guard with rifles, citizens could build infrastructure, develop new industries, teach, or innovate in technology and agriculture.

A Future Beyond Control

Costa Rica’s peace model, America’s decentralized policing, and Germany’s federal security structure all show that alternatives exist to oversized, centralized, colonial-era institutions. For Nepal, the path to prosperity lies in adopting these lessons within a Kalkiist framework—creating universal employment, ensuring security through dignity, and building a state that serves people first.



नेपालका लागि विश्वका पाठ: कल्किवादी अर्थतन्त्रमा सुरक्षा र शासनको पुनर्विचार

सार्वभौमिक रोजगारी र सुरक्षा सुधार

कल्किवादी अर्थतन्त्रको मूल मान्यता हो—प्रत्येक नागरिकसँग अर्थपूर्ण रोजगारी हुन्छ। जब बेरोजगारी र भ्रष्टाचार अन्त हुन्छन्, तब राज्यले स्रोतहरूलाई फुलिएको सुरक्षा संरचनाबाट हटाएर समृद्धि र सम्मान सिर्जना गर्ने क्षेत्रमा लगानी गर्न सक्छ। यस्तो रूपान्तरणको सोच नेपाल मात्र नभई संसारका विभिन्न देशहरूको अनुभवसँग मेल खान्छ।

कोस्टा रिका: सेना नभएको राष्ट्र

सबैभन्दा साहसी उदाहरण कोस्टा रिका हो, जसले सन् १९४९ मै आफ्नो सेना खारेज गर्‍यो। सेनामा खर्च नगरी, कोस्टा रिकाले शिक्षा, स्वास्थ्य र वातावरणमा ठूलो लगानी गर्‍यो। नतिजा स्वरूप, आज यो देश मानव विकास सूचकांक, साक्षरता र वातावरणीय स्थायित्वमा अग्रणी छ।

नेपालले शताब्दीयौँदेखि बाह्य आक्रमणको सामना गरेको छैन। त्यसैले सेना घटाएर करिब २०,००० सैनिकमा सीमित गर्ने, जसले रक्षा, विपद् व्यवस्थापन र शान्ति स्थापना अभियान सम्हाल्छ, व्यवहारिक र सम्भव दुवै हुन्छ। यसबाट बचत भएका स्रोतहरूलाई विकासमा प्रयोग गर्न सकिन्छ।

अमेरिका: संघीय र स्थानीय प्रहरी

संयुक्त राज्य अमेरिकामा विकेन्द्रीकृत प्रहरी प्रणाली छ। FBI र अन्य संघीय एजेन्सी भए पनि, अधिकांश प्रहरी राज्य, काउन्टी र सहर स्तरमा सञ्चालन हुन्छ। यसले कानून कार्यान्वयनलाई समुदाय नजिक ल्याउँछ, स्थानीय सरकार र नागरिकप्रति जवाफदेह बनाउँछ।

नेपालको संघीयतासँग यो मोडेल राम्रोसँग मेल खान्छ। उपनिवेशीय सोचमा आधारित केन्द्रीय प्रहरी राख्ने सट्टा, प्रत्येक प्रदेशले आफ्नै प्रहरी बल बनाउन सक्छ, जसले स्थानीय स्तरमै जवाफदेह भएर काम गर्छ।

जर्मनी: संघीय प्रणालीमा प्रहरी

जर्मनीका १६ राज्य (Länder) सँग आफ्ना-आफ्नै प्रहरी बल छन्। संघीय तहमा समन्वय भए पनि दैनिक सुरक्षा र समुदायसँग प्रत्यक्ष सम्बन्ध राज्य स्तरमै हुन्छ। यसले दक्षता, पेशागत क्षमता र जनविश्वास बढाएको छ।

नेपालले जर्मन शैलीको मोडेल अपनाए संघीयता बलियो हुन्छ र सुरक्षा संस्थाहरू नागरिकलाई सेवा गर्ने वास्तविक निकायमा रूपान्तरण हुन्छन्।

कल्किवादी लाभांश

यी पाठहरू आत्मसात् गरेर नेपालले कल्किवादी लाभांश पाउन सक्छ—हजारौँ मानिसहरूलाई लाठी-बन्दुक बोकेर बस्ने भूमिकाबाट हटाएर उत्पादनशील, सम्मानजनक रोजगारीमा लगाउन। प्रहरी वा सेनामा खडा हुने सट्टा, उनीहरूले सडक बनाउन, प्रविधि विकास गर्न, बालबालिकालाई पढाउन वा कृषि र उद्योगमा नवप्रवर्तन गर्न सक्नेछन्।

नियन्त्रणपछिको भविष्य

कोस्टा रिकाको शान्ति मोडेल, अमेरिकाको विकेन्द्रीकृत प्रहरी प्रणाली, र जर्मनीको संघीय सुरक्षा संरचनाले देखाउँछ—विकल्पहरू सम्भव छन्। नेपालका लागि समृद्धिको बाटो यिनै उदाहरणहरूलाई कल्किवादी ढाँचाभित्र आत्मसात् गर्नुमा छ—सर्वजन रोजगारी सिर्जना गर्ने, सम्मानमार्फत सुरक्षा सुनिश्चित गर्ने, र जनतालाई प्राथमिकता दिने राज्य निर्माण गर्ने।



नेपाल के लिए वैश्विक पाठ: कल्किवादी अर्थव्यवस्था में सुरक्षा और शासन पर पुनर्विचार

सार्वभौमिक रोज़गार और सुरक्षा सुधार

कल्किवादी अर्थव्यवस्था का मूल सिद्धांत है—हर नागरिक के पास अर्थपूर्ण रोज़गार हो। जब बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार समाप्त हो जाते हैं, तब राज्य अपने संसाधनों को फूले हुए सुरक्षा ढाँचे से हटाकर समृद्धि और गरिमा पैदा करने वाले क्षेत्रों में लगा सकता है। इस तरह का परिवर्तन केवल नेपाल के लिए नहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों के अनुभवों से मेल खाता है।

कोस्टा रिका: सेना रहित राष्ट्र

सबसे साहसी उदाहरण कोस्टा रिका है, जिसने 1949 में अपनी सेना समाप्त कर दी। सेना पर खर्च करने के बजाय, कोस्टा रिका ने शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण पर भारी निवेश किया। परिणामस्वरूप, आज यह देश मानव विकास सूचकांक, साक्षरता और पर्यावरणीय स्थिरता में अग्रणी है।

नेपाल पर सदियों से कोई बाहरी आक्रमण नहीं हुआ है। इसलिए सेना को घटाकर लगभग 20,000 सैनिकों तक सीमित करना, जो रक्षा, आपदा प्रबंधन और शांति स्थापना मिशन संभाले, यथार्थवादी और संभव है। बचाए गए संसाधनों को विकास में लगाया जा सकता है।

अमेरिका: संघीय और स्थानीय पुलिस

संयुक्त राज्य अमेरिका में विकेन्द्रीकृत पुलिस प्रणाली है। यद्यपि FBI और अन्य संघीय एजेंसियाँ मौजूद हैं, अधिकांश पुलिस बल राज्य, काउंटी और शहर स्तर पर संचालित होते हैं। इससे कानून का क्रियान्वयन समुदाय के करीब पहुँचता है और यह स्थानीय सरकार व नागरिकों के प्रति जवाबदेह होता है।

नेपाल की संघीय संरचना के लिए यह मॉडल उपयुक्त है। औपनिवेशिक सोच वाली केंद्रीय पुलिस रखने के बजाय, प्रत्येक प्रदेश अपनी स्वयं की पुलिस बना सकता है, जो स्थानीय स्तर पर जवाबदेह हो।

जर्मनी: संघीय प्रणाली में पुलिस

जर्मनी के 16 राज्यों (Länder) की अपनी-अपनी पुलिस है। यद्यपि संघीय स्तर पर समन्वय होता है, पर दैनिक सुरक्षा और समुदाय से प्रत्यक्ष जुड़ाव राज्य स्तर पर ही रहता है। इस व्यवस्था ने दक्षता, पेशेवर क्षमता और जनता का विश्वास बढ़ाया है।

नेपाल यदि जर्मन मॉडल अपनाता है तो संघीयता मजबूत होगी और सुरक्षा संस्थाएँ वास्तव में नागरिकों की सेवा करने वाली इकाइयों में बदलेंगी।

कल्किवादी लाभांश

इन पाठों को आत्मसात करके नेपाल कल्किवादी लाभांश प्राप्त कर सकता है—हज़ारों लोगों को डंडा और बंदूक थामने की भूमिका से हटाकर उत्पादनशील, सम्मानजनक रोज़गार में लगाना। सेना या पुलिस में खड़े होने के बजाय, वे सड़क बना सकते हैं, तकनीक विकसित कर सकते हैं, बच्चों को पढ़ा सकते हैं या कृषि और उद्योग में नवाचार ला सकते हैं।

नियंत्रण के बाद का भविष्य

कोस्टा रिका का शांति मॉडल, अमेरिका की विकेन्द्रीकृत पुलिस प्रणाली और जर्मनी की संघीय सुरक्षा संरचना यह दिखाते हैं कि औपनिवेशिक युग की विशाल, केंद्रीकृत संस्थाओं के विकल्प मौजूद हैं। नेपाल के लिए समृद्धि का मार्ग इन्हीं उदाहरणों को कल्किवादी ढाँचे में अपनाने में है—सार्वभौमिक रोज़गार सृजित करना, गरिमा के माध्यम से सुरक्षा सुनिश्चित करना और जनता को प्राथमिकता देने वाला राज्य बनाना।



नेपाल लेल वैश्विक पाठ: कल्किवादी अर्थव्यवस्थामे सुरक्षा आ शासन पर पुनर्विचार

सार्वभौमिक रोज़गार आ सुरक्षा सुधार

कल्किवादी अर्थव्यवस्थाक मूल सिद्धांत अछि—प्रत्येक नागरिक लग अर्थपूर्ण रोजगार हो। जखन बेरोजगारी आ भ्रष्टाचार खत्म भऽ जाइत अछि, तखन राज्य अपन संसाधन केँ फूलेल सुरक्षा ढाँचा सँ हटाकऽ समृद्धि आ गरिमा पैदा करऽवाला क्षेत्रमे लगा सकैत अछि। ई तरहक परिवर्तन केवल नेपाल लेल नहि, दुनियाक कतेक देशक अनुभवसँ मेल खाइत अछि।

कोस्टा रिका: सेना रहित राष्ट्र

सबसँ साहसी उदाहरण कोस्टा रिका अछि, जे 1949 मे अपन सेना समाप्त कऽ देलक। सेना पर खर्च करबाक बदला, कोस्टा रिका शिक्षा, स्वास्थ्य आ वातावरण पर भारी निवेश कएलक। परिणामस्वरूप, आब ई देश मानव विकास सूचकांक, साक्षरता आ पर्यावरणीय स्थिरता मे अग्रणी अछि।

नेपाल पर सदियौं सँ कोनो बाहरी आक्रमण नहि भेल अछि। ताहि लेल सेना केँ घटाकऽ करीब 20,000 सैनिक धरि सीमित करब, जे रक्षा, विपत्ति प्रबंधन आ शांति स्थापना मिशन संभालि सकै, व्यवहारिक आ संभव दुनू अछि। बचल संसाधन केँ विकासमे प्रयोग कएल जा सकैत अछि।

अमेरिका: संघीय आ स्थानीय पुलिस

संयुक्त राज्य अमेरिकामे विकेन्द्रीकृत पुलिस प्रणाली अछि। FBI आ अन्य संघीय एजेंसी मौजूद अछि, मुदा अधिकांश पुलिस बल राज्य, काउंटी आ शहर स्तर पर संचालित होइत अछि। एकरा सँ कानूनक क्रियान्वयन समुदायक नजिक पहुँचैत अछि आ ई स्थानीय सरकार आ नागरिकक प्रति जवाबदेह बनैत अछि।

नेपालक संघीय संरचनाक लेल ई मॉडल उपयुक्त अछि। उपनिवेशीय सोचवाला केन्द्रीय पुलिस राखबाक बदला, प्रत्येक प्रदेश अपन-अपन पुलिस बनबै सकैत अछि, जे स्थानीय स्तर पर जवाबदेह रहत।

जर्मनी: संघीय प्रणालीमे पुलिस

जर्मनीक 16 राज्य (Länder) लग अपन-अपन पुलिस बल अछि। यद्यपि संघीय स्तर पर समन्वय होइत अछि, मुदा दैनिक सुरक्षा आ समुदायसँ प्रत्यक्ष जुड़ाव राज्य स्तर पर रहैत अछि। एहि व्यवस्था सँ दक्षता, पेशागत क्षमता आ जनता मे विश्वास बढ़ल अछि।

नेपाल जँ जर्मन मॉडल अपनब त संघीयता मजबूत होयत आ सुरक्षा संस्थान वास्तवमे नागरिकक सेवा करऽवाला इकाइमे बदलि जायत।

कल्किवादी लाभांश

ई पाठ केँ आत्मसात् करि नेपाल कल्किवादी लाभांश पाबि सकैत अछि—हजारों लोक केँ डंडा आ बंदूक थामल भूमिका सँ हटाकऽ उत्पादनशील, सम्मानजनक रोजगारमे लगाउल जा सकैत अछि। सेना वा पुलिसमे खड़ा रहबाक बदला, ओ लोकनि सड़क बना सकैत अछि, तकनीक विकसित कर सकैत अछि, बच्चासभ केँ पढ़ा सकैत अछि वा कृषि आ उद्योगमे नवाचार कर सकैत अछि।

नियन्त्रणक बादक भविष्य

कोस्टा रिका क शांति मॉडल, अमेरिका क विकेन्द्रीकृत पुलिस प्रणाली आ जर्मनी क संघीय सुरक्षा संरचना देखबैत अछि जे उपनिवेशीय युगक विशाल, केन्द्रीयकृत संस्थानक विकल्प मौजूद अछि। नेपाल लेल समृद्धिक मार्ग ई उदाहरणसभ केँ कल्किवादी ढाँचा मे अपनाबैमे अछि—सार्वभौमिक रोजगार पैदा करब, गरिमाक माध्यम सँ सुरक्षा सुनिश्चित करब आ जनता केँ प्राथमिकता देनिहार राज्य निर्माण करब।






Wednesday, January 05, 2022

सीके राउत लाई सोधिंदै आएको अहिंसा को प्रश्न

सीके राउत को नेतृत्वको जनमत पार्टी नेपाल मा चुनावी राजनीति मा होम्मियेको पार्टी हो। सफलता भनेको सत्ता मा पुग्नु नै हो। सीके राउत प्रधान मंत्री बन भनेर सीके राउत को जनमत पार्टी को महाधिवेशन ले आदेश दिएको छ। लोकतंत्र मा पार्टी अध्यक्ष र केन्द्रीय समिति भन्दा माथि पार्टी महाधिवेशन हुन्छ। जुन कुरा नेपाल का नेता हरु लाई अचम्म लाग्ला जसलाई ३० वर्ष देखि लाग्दै आएको छ महाधिवेशन भनेको तिनलाई टीका लगाइदिने कर्मकांड हो भनेर। 

सीके राउत प्रधान मंत्री भनेको के? नेपाल सेना र नेपाल प्रहरी को कमाण्ड सम्हालने भनेको होइन भने के भनेको? नेपाल सेना को प्रत्येक सैनिक, नेपाल प्रहरी को प्रत्येक सिपाही ले हात मा हथियार बोकेको हुन्छ। न्याय को पक्ष मा, कानुन को पक्ष मा हिंसा को प्रयोग गर्नु परे गर्ने न भनिएको हो? 

महात्मा गांधी ले भारत माथि भारतीय को शासन भने। भारत सेना, भारत प्रहरी विसर्जन गर कहिले भनेनन। 

यति कुरा बुझ्न नसक्ने ले, बुझ पचाउने हरु ले महाभारत सीरियल एक पटक फेरि हेर्नु। युट्युब मा मुफ्त मा उपलब्ध छ। 

शांतिपुर्ण आन्दोलन चलेको छ। जनता को नोकर सरकार ले जनता ले गरेको आन्दोलन को सकेसम्म चाडो सम्बोधन गर्नुपर्छ। राणा, शाह शैली मा दमन को बाटो जाने नसोँचे हुन्छ। 

सीके राउत ले हिंसा को विरोध गरेको होइन। हिंसा को बलप्रयोग सकेसम्म नगर्ने, गर्नुपरे न्याय को पक्ष मा राज्य लाई उभ्याउने कसरत न हो यो आन्दोलन? अन्याय, अत्याचार, दमन, भ्रष्टाचार को पक्ष मा उभिन पुगेको राज्य लाई न्याय, सुशासन, सदाचार, समृद्धि को पक्ष मा उभ्यायने प्रयास हो। यो एउटा ठुलो पानीजहाज लाई १८० डिग्री टर्न गराउन खोजेको आन्दोलन हो। 

सीके राउत को धर्म राजधर्म हो। राजकाज चलाउने धर्म। 


 







Thursday, July 08, 2021

कटुवाल प्रकरण, ओली प्रकरण




नेपाल सेना असमावेशी छ। हुनुपर्ने भन्दा चार गुणा ठुलो छ। युद्धमा माओवादी लाई १० वर्ष मा नजितेको हो नै। नेपाल सेना भित्र भर्ना र सरुवा बढुवा गुणमा आधारित (मेरिटोक्रेटिक) छैनन। काका मामा चल्छ। तर कटुवाल प्रकरण दुध को दुध पानी को पानी हो। प्रचंड को तानाशाही चरित्र उदांग भएको हो नै। 

केपी ओली मलाई विगत ३० वर्ष को नेपाल को राजनीति को कम मन पर्ने मध्ये को नेता। हुन त लिस्ट लामो छ। तर यो ओली प्रकरण त्यो कटुवाल प्रकरण भन्दा भयावह हो। पार्टी महाधिवेशन मा चुनाव नलडी, संसदीय दल को चुनाव नलडी झन्डै देश को प्रधान मंत्री र दुई तिहाई बहुमतवाला पार्टी को अध्यक्ष बन्न भ्याएको। 

त्यसको दुई वर्ष अगाडि देखि नै बहुदलीय जनवाद नमान्ने घोषणा गरेको। प्रभु साह अहिले एमाले भित्र त्यही भन्दैछ। लगातार ५० वर्ष यो नेकपा ले अब शासन गर्छ भन्ने उद्घोष गरेका। 

प्रचंड लाई लाग्छ उ माओ हो र गिरिजा र देउबा चिआंग काइ सेक। जापानी लाई सिध्याउन चिआंग काइ सेक सँग सम्झौता। माधव लाई एमाले भित्र बलियो बनाउन देउबा सँग सम्झौता। माधव ले एमाले कब्ज़ा गरे पछि देउबा लाई कचयाककुचुक। 

प्रचंड को लक्ष्य गरीबी निवारण आदि केही होइन। सत्ता मा पुगेर गरे के? लक्ष्य नै तानाशाही हो। 

अहिले संसद पुनर्स्थापना गर्ने अदालत ले, क्रेडिट लिन पोजीशन लिएर बसेका छन प्रचंड। 

बहुदल नामनेर पनि बहुदलीय संविधान भित्र रहेर राजनीति गर्न मिल्छ? बहुदलीय जनवाद मान्नु प्रचंड का लागि बाध्यात्मक होइन र?



Tuesday, September 22, 2015

70,000 In Janakpur

आज जनकपुर में ७०००० से ज्यादा लोग सहभागी हो कर मधेश बिरोधी संविधान का दहन किया ।

Posted by Brikhesh Chandra Lal on Monday, September 21, 2015

Tuesday, September 08, 2015

मधेसी को नेपाल सेनामा समूहगत प्रवेश किन हुन सक्दैन?

मधेसी को नेपाल सेनामा समूहगत प्रवेश किन हुन सक्दैन? पहाड़ी को भएको छ। अहिलेसम्म भएको पहाड़ी को समूहगत प्रवेश नै त हो। पहाड़ी लिने मधेसी नलिने --- त्यो पहाड़ी को समूहगत प्रवेश होइन भने के हो? पहाड़ी को अहिलेसम्म भएको छ भने अब मधेसी को किन हुन सक्दैन?

र यो निर्णय  नेपाल सेना ले लिने नै होइन। नेपालको संसद ले निर्णय गर्ने, नेपाल सेना ले कार्यान्वयन गर्ने हो। नेपाल लोकतंत्र हो। सेना संसद को अधीन मा रहन्छ।




Thursday, September 03, 2015

नेपाल सेना को एक मात्र काम

गणतंत्र मा नेपाल सेना संवैधानिक राजतन्त्र जस्तो हो, नितांत symbolic ----- देशको राज्य व्यवस्था को त्यो एउटा अंग हो जस्ले राष्ट्रिय एकता को प्रतीक बनने काम गर्न सक्छ। (जीवन्त/ज्वलंत राष्ट्रिय एकता भनेको चाहिँ प्रत्यक्ष निर्वाचित प्रधान मंत्री हो। त्यहाँ कुनै प्रतिस्प्रधा छैन। )

जुन देश को झंडा मैं नीलो रंग छ त्यो देश को सेना ले चीन सँग भारत सँग युद्ध खेल्ने कुरा आउँदैन। UN Peacekeeping सम्म ठीक छ। राहत को काम त अति राम्रो। तर UN Peacekeeping मा थोरै मात्र जाने हो। राहत को काम सधैं होइन।

भने पछि नेपाल सेना ले फुल टाइम गर्ने काम के हो?

नेपाल को जनसंख्या को फुल reflection नेपाल सेना को composition मा देखिनुपर्यो। नेपाल मा महिला ५०% हो भने नेपाल सेना मा ५०% ---- राज्य (state) को अरु अंग मा ३३% होला, त्यस सँग नेपाल सेना ले मतलब राख्नु हुँदैन। Above and beyond the call of duty भनिन्छ नि -- हो त्यो। थारु देशमा ६% हो भने नेपाल सेना मा पनि ६% हुनुपर्यो। मुसलमान। दलित नेपालमा २०% हो भने नेपाल सेना मा पनि २०% हुनुपर्यो।

भर्ना देखि बढुवा १००% meritocratic हुनुपर्यो।

नेपाल सेना गणतंत्र मा exemplary बन्न सक्नुपर्छ।

नेपाल सेना को नंबर एक काम गणतंत्र नेपालमा राष्ट्रिय एकता हो। त्यस का लागि ब्यारेक बाहिर खुट्टा टेकनै पर्दैन। आफ्नो composition सपारे पुग्छ।


Thursday, August 27, 2015

सेना परिचालन: अस्वस्थामा मर्यो, हात्ती

सेनाले ब्यारेक बाहिर खुट्टा राख्नु भनेको सेना परिचालन हो। चाहे त्यो राहत का लागि नै किन नहोस् भुकम्प पछि। त्यस का लागि पनि राष्ट्रपति को सही चाहिन्छ। अंतरिम संविधान अनुसार। कैलालीमा सेना खटेको हो कि होइन? अझ अखणडवादी लाई नै सघाएको हो कि होइन? ठुला प्रश्न हुन यिनी।

सेना परिचालन: अस्वस्थामा मर्यो, हात्ती?



‘सशस्त्रले सघाएको भए सर बच्नुहुन्थ्यो’
एसएसपी मारिँदाका प्रत्यक्षदर्शी अंगरक्षकको बयान
लक्ष्मण न्यौपाने गत भदौ ७ गते टीकापुर भिडन्तमा मारिँदा अन्तिम अवस्थासम्म उनको साथमा थिए– मानबहादुर बुढामगर । नेपाल प्रहरीमा हवल्दार रहेका उनी एसएसपी न्यौपानेको निजी अंगरक्षकका रुपमा विगत १० महिनादेखि कार्यरत थिए । ..... हामीले भएजति अश्रुग्यास र रबर बुलेटहरु हानिसकेका थियौं । .... त्यसपछि गोली र हतियार नभएपछि अरु उपाय भएन । ....... अब के गर्ने ? हामीलाई चारैतिरबाट घेरिसकेका थिए । सशस्त्रका एसपी साब र उहाँका गार्ड भाग्दै भाग्दै अगाडि बढ्दै हुनुहुन्थ्यो । भीड उग्रगतिमा आइसकेको थियो । सर (एसएसपी न्यौपाने) आफू बच्न कुद्दै आउनुभयो । धानबारीमा नाली छ । उहाँ नालीमा अड्किनु भएको रैछ, त्यहाँबाट यहाँ घरसम्म मैले नै ल्याएको हो । ...... आँखा नै नदेख्ने भएको थिएँ । अनि म घरअगाडिको धानबारीमा घोप्टें । .... त्यसपछि मलाई थाहै भएन, पछि थाहा भयो– एकैचोटी बेहोस अवस्थामा अस्पताल पुर्‍याइएको रहेछ । ..... यहाँ एसएसपी साब र हामीलाई खेदाउँदै आएका केही व्यक्तिहरुले हेल्मेट प्रयोग गरेर आएका थिए । कतिले टाउकोमा रुमाल पनि बेरेका थिए । दाह्री पालेका पनि आएका थिए । नजिकबाट चिन्न सकिएन । उनीहरुसँग बाँसहरु थिए । बाँसहरुमा चेप्टा खुँडा बनाएर आएका । रड, भाला बनाएका । आर्सी, बेल्चा, फर्मा बोकेको आँखाले देखेको हुँ । घरेलु हातहतियार लिएर आफ्नो योजनाअनुसार आएका थिए । हामीले यस्तो हुन्छ भनेर सोचेकै थिएनौं । ...... हामीसँग १० र २ जनाको टोली थियो । ..... जसले एसएलआर बोकेको थियो, उसलाई माथिबाट बाँसले हानेर त्यो हतियार पनि खोसेर लगे ।
राष्ट्रपतिसँगको भेटमा प्रधानमन्त्रीले भने 'सेना परिचालन होइन'
आन्दोलन उठेका जिल्लामा हिंसा भडकन नदिन सेना सहयोगी भूमिकामा मात्र रहेको बताए । 'सुरक्षा निकायको कमाण्ड प्रमुख जिल्ला अधिकारीले नै गरेका छन् । सेना परिचालन भएको होइन' .... 'सेना परिचालन हो कि होइन ? गृहमन्त्रीज्यूले बोलेका कुराले अन्योल ल्याएको छ । सेना परिचालन नै हो भने संवैधानिक प्रावधान र प्रक्रिया उल्लघंन भएको देखिन्छ ।' ..... 'समस्या भएका ठाउमा सेनालाई खटाइएको हो । तर, सेनाको कमाण्ड होइन' ..... सेना परिचालनबारे अन्तरिम संविधानमा बेग्लै व्यवस्था छ । राष्ट्रिय सुरक्षा परिषदको सिफारिसमा मन्त्रिपरिषदले निर्णय गरी राष्ट्रपतिले अनुमोदन गरेपछि मात्र सेना परिचालन हुने संवैधानिक प्रावधान छ ।
गृहमन्त्रीको राजीनामा माग्दै थारुको प्रदर्शन
माग पूरा नभएसम्म आन्दोलनमा होमिन्छौ : सभासद मानपुर चौधरी
टिकापुर घटनापछि सेना परिचालन गरि थारु समुदायमाथि दमन गरिएको भन्दै सिरहाका थारुहरुले बिहीबार यहाँ विरोध प्रदर्शन गरेका छन् । .... विभिन्न जिल्लामा सयौं थारु आन्दोलनकारीलाई प्रहरी हिरासतमा यातना दिएर राखिएको भन्दै गृहमन्त्री वामदेव गौतमको राजीनामा मागे । .... एमाओवादी सप्तरी क्षेत्र नं. १ का सभासद् मानपुर चौधरीले आफू जनताको मतले निर्वाचित भएकाले थारु समुदायको हक अधिकारका लागि लड्दा पार्टीले ह्वीप लगाउन खोज्छ भने त्यसलाई नमान्ने चेतावनी दिए । खसवादी शासक र तीन दलका प्रमुख नेताहरुकै कारणले मुलुकले अहिलेको दुर्दशा भोग्नु परेको आरोप लगाउँदै उनले सयौं वर्षदेखि अधिकार खोसिएका थारु, मधेशी, दलित, मुस्लिमहरुको अधिकारसहितको संविधान र राज्य नभएसम्म आन्दोलन नरोकिने दावी गरे । आन्दोलनको नेतृत्व पंक्ति आफुहरु अब उभिने जनाउँदै उनले काँग्रेस र एमालेका नेताहरुको जन्मकुण्डली सुनाए । ..... ‘विभिन्न जिल्लामा सयौ जना थारुहरुलाई प्रहरी हिरासतमा यातना दिएर राखिएको छ, सयौं जना घाइते छन्, टीकापुरमा थारु समुदायलाई दमन गरिएको छ’ उनले भने, ‘प्रहरी हिरासतमा रहेका थारुहरुको विना शर्ता रिहाई, सडकमा उतारिएको सेनालाई ब्यारेक फिर्ता गरी कफ्र्यू हटाएरपछि मात्र वार्ताका लागि सोच्न सकिन्छ ।’ .... राज्यले थारुहरुको आन्दोलनलाई दिग्भ्रमित बनाउन सत्तापक्षीय पूर्व सभासद्हरुलाई प्रयोग गर्ने र संघर्ष समितिका सदस्यहरुलाई नै फुटाउन खोजिरहेको आरोप लगाउदै उनले विगतमा भएका आन्दोलनका उपलब्धिहरुको रक्षा गर्दै नयाा संविधानमा थप अधिकारका लागि शान्तिपूर्ण सडक आन्दोलनको विकल्प नरहेकाले आफूहरु आन्दोलनमा रहेको उल्लेख गरे ।
अन्तर्राष्ट्रिय समुदायको सुझबुझ र साथ खोज्दै सरकार
'अन्तर्राष्ट्रिय समुदायको सुझबुझपूर्ण व्यवहार आवश्यक'
कूटनीतिज्ञलाई निहित स्वार्थ राखेर काम नगर्न आग्रह
मन्त्रीद्वयले सांकेतिक भाषामा कतिपय समूह र केही मित्र मुलुकको आन्दोलनमा प्रत्यक्ष चासो रहेको उल्लेख गर्दै त्यसको नगर्न सुझाएका थिए । कतिपय अन्तर्राष्ट्रिय समुदाय राजनीतिकभन्दा पनि अन्य आफ्नै केही निहित उद्धेश्यले काम गरिरहेको विषय मुलुकको जानकारीमा भए पनि सरकार संयमित भएको तथ्य मन्त्रीहरुले प्रस्तुत गर्दा केही राजदूतको अनुहार मलिन भएको त्यहा उपस्थित अधिकारीले बताए । मन्त्रीद्वयले सांकेतिक रूपमा आफ्नो निहित स्वार्थमा नेपालका विभिन्न समूहलाई उकास्ने काम नगर्न आग्रह गरेका थिए । ..... उक्त बि्रफिङमा दुबै छिमेकी मुलुक भारत र चीनका राजदूत उपस्थित थिएनन् । ... अमेरिका, रसिया, प|mान्स, युरोपेली यूनिययन, अस्ट्रेलिया, जापान, दक्षिण कोरिया, कतारलगायतका देशका राजदूहरुको उपस्थिति थियो । .... राजदूतहरु पनि कूटनीतिक आचारसंहितामा रहनुपर्ने .....

कैलाली पूर्ववत अवस्थामा फर्केको र अन्य जिल्लासमेत बन्द हडतालालाई सरकारले निस्तेज पार्दै लगेको उनीहरूले बताए ।



काग्रेससँग एमाले रुष्ट, सरकारको कार्यशैली समीक्षा गर्न समिति
'संविधान निर्माणमामा हाम्रो मुख्य ध्यान रहेकाले गठबन्धनमा असर नपरोस् भनेर हामीले काग्रेसका मनोमानीलाई छुट दिइरह्यौ तर काग्रेसले यसलाई हाम्राे कमजोरी ठानेर फाइदा उठाउन खोजियो' ......... पछिल्लो समय विश्वविद्यालयहरमा कांग्रेसी कोटाबाट मात्र उपकुलपति नियुक्ति गरेपछि एमाले चिढिएको छ । .... 'एमाले काग्रेस जत्तिकै हैसियत राख्ने पार्टी हो ।
गाैरमा एमाले पार्टी कार्यालय आगजनी प्रयास
छापामार शैलीमा मोटरसाईकलमा आएका आन्दोलनकारीले सुरक्षाकर्मीको अाँखा छल्दै बाहिरबाटै कार्यालयमा आगो फालेर भागेका थिए ।
शरतसिंहको पार्टी पनि आन्दोलनमा

‘मधेस र पहाड दुवैतिर अधिकार माग्दा पहाडको मुद्दामात्रै राज्यले सम्बोधन गरेर बलिदानीमा समेत विभेद गर्‍यो’ ....‘मधेसमा मानिसहरुको ज्यान गइरहँदा कर्णाली र पहाडी जिल्लाको मात्रै आवाज शीर्ष नेतृत्वले सुन्यो ।’

..... रामसपासमेत आन्दोलनमा गएपछि जारी प्रक्रियालाई सघाउने मधेसकेन्द्रित दलहरु बाँकी छैनन् ।
सशस्त्र प्रहरीका ११ वटा सुरक्षा चौकी हटाइयो

महोत्तरी जिल्लाका विभिन्न स्थानमा रहेका सशस्त्र प्रहरीका ११ वटा सुरक्षा चौकीहरु हटाइएको छ ।

..... बखरीचोक, मटिहानीचोक, मनरा, टिकुलिया, लक्ष्मीनियाँ, भिठ्ठामोड र सीमा क्षेत्रमा रहेका पाँच सुरक्षा चौकीहरु हटाइएको हो । ....

मधेसी मार्चाका कार्यकर्ताहरुले मङ्गलबार बिहान सशस्त्र प्रहरीका बखरीचोक र मटिहानीचोकस्थित दुईवटा सुरक्षा चौकी जलाइदिएका थिए ।

सेना परिचालन भएको छैन : रक्षा सचिव
रक्षा सचिव ईश्वरीप्रसाद पौडेलले आन्दोलनरत क्षेत्रमा नेपाली सेना परिचालन नभएको बताएका छन् ।

कैलाली, रौतहट, सर्लाहीलगायतका जिल्लामा नेपाली सेना परिचालन भएको गृहमन्त्री वामदेव गौतमले संसद् बैठकमा बताएका थिए ।

...... सचिव पौडेलले भने, ‘सेना परिचालनसम्बन्धी अन्तरिम संविधानले प्रष्ट व्यवस्था गरेको भन्दै सुरक्षा परिषद्को निर्णय अनुसार मन्त्रिपरिषद्को सिफारिसमा राष्ट्रपतिले मात्रै सेना परिचालन गर्नसक्न छन् ।’ उनले भने, ‘अहिले त्यस्तो निर्णय भएको छैन र सेना परिचालन भएको छैन, कसले कहाँ के भने मलाई थाहा छैन ।’
सेना परिचालन फिर्ता गर्न माग गर्दै एमाओवादीका मधेशी सभासद् आन्दोलनमा
एमाओवादीका मधेशी सभासद् र मधेशी राष्ट्रिय मुक्ति मोर्चाले पनि आन्दोलनमा जाने निर्णय गरेको छ । ११ बुँदे माग राख्ने उनीहरुले आज एमाओवादी अध्यक्ष

पुष्पकमल दाहाल र अरु नेतालाई भेटी आन्दोलनको जानकारी गराएका हुन् । ...... सेना परिचालन फिर्ता गर्नुपर्ने, मधेसी र थारु आन्दोलनका मृतकलाई सहीद घोषणा गर्नुपर्ने र मृतकका परिवार, घाइते र अपांगलाई क्षतिपुर्ति दिनुपर्ने, मधेमा थारु र मधेशीका दुई प्रदेश हुनुपर्ने

विभाजित देश, द्वन्द्वरत शक्तिहरू

Tuesday, August 25, 2015

राष्ट्रपति ले सरकार हटाउनु पर्छ

बारम्बार कानुन र संविधान मिचेर देश लथालिंग पारेको भन्दै राष्ट्रपति ले यस चरी-घैंटे सरकार लाई हटाएर, संविधान सभा लाई निलंबन गरेर, नवंबर मा नया संविधान सभा को चुनाव हुने घोषणा गरी सरकार आफ्नो हात मा लिनुपर्छ।


Monday, August 24, 2015

लोकतंत्र को भाषा बोल्न छाडेका नवराजा हरु द्वारा सेना परिचालन

देशको १५% भूभाग मा देशको १५% अन्यत्र को ९०% प्रतिनिधित्व भएको सुरक्षा इकाई हरु ७०% राखेको केही वर्ष बित्यो। जबरजस्ती मधेस विरोधी संविधान ल्याउने अनि त्यसको आडमा गोली चलाउने -- त्यो मास्टरप्लान मा कर्णाली र सुर्खेत ले भांजो हाल्यो। त्यस का लागि सीमांकन परिमार्जित गरे, जातीय चरित्र देखाए। ह्रितिक रोशन कांड को मास्टरमाइंड हुँदा बामे सत्ता मा थिएन। अहिले सत्ता मा छ। हेग जाने बाटो उसले आफ्नो लागि प्रशस्त गर्दै छ। पाकिस्तान बंगलादेश को पहिलो कदम बामे ले लियो।



कैलाली, सर्लाही र रौतहटमा सेना परिचलान
देशैभरी सेना परिचालन गर्न सुरक्षा परिषद्ले निर्ण गर्नुपर्ने भए पनि केही क्षेत्रमा मात्रै सेना परिचालन गर्न सुरक्षा समितिले निर्णय गर्नसक्छ ।
टीकापुरमा एसएसपीसहित २० जना मारिए : कैलाली प्रजिअ श्रेष्ठ
कैलालीकाे टीकापुरमा भएको भिडन्तमा नेपाल प्रहरीका एसएसपी लक्ष्मण न्याैपानेसहित २० जनाको मृत्यु भएको कैलालीका प्रमुख जिल्ला अधिकारी राजकुमार श्रेष्ठले बताएका छन् । श्रेष्ठका अनुसार

सशस्त्र प्रहरीका ११, नेपाल प्रहरीका ६ र आन्दोलनकारी तर्फ ३ जनाको मृत्यु भएको छ ।

....... ५० भन्दा बढी घाइतेको उपचार भइरहेको छ । .... मृत्यु हुनेमा प्रहरी एसएसपी लक्ष्मण न्यौपाने र इन्सपेक्टरहरु केशव बाेहरा र बलराम बिष्ट छन् । उनीहरुलाई भालालगायतका हतियारले प्रहार गरिएको बताइएको छ । ..... प्रदर्शनकारी तर्फ पनि ठूलो हताहात भएकाे छ । .... तीनतिरबाट १० हजार जति प्रदर्शनकारी जम्मा भएका थिए । ..... यसै घटनालाई लिएर मन्त्रिपरिषद्को आकस्मिक बैठक अहिले केहीबेरमा बस्ने तयारी भइरहेको छ । गृहमन्त्रालयमा सुरक्षाा समितिको आकस्मिक बैठक अहिले चलिरहेको छ ।
लाठी र घरेलु हतियार सहित मलगंवामा प्रदर्शन

Friday, July 31, 2015

नेपाल सेना र नया संविधान

नया संविधान ले नेपाल सेना लाई पुर्ण लोकतंत्रीकरण र समावेशीकरण को बाटो मा लानुपर्छ। अहिले जुन परिपाटी छ, सेना ले काँग्रेस एमाले का दुई चार नेता लाई पैसा खुवाएर राजनीतिक प्रक्रिया लथालिंग पार्ने, त्यसको अन्त्य हुनुपर्छ। नेपाल सरकारको प्रत्येक अंग जस्तै सेना पनि पुर्ण रुपले संसदको अधीनमा आउनु पर्दछ।

राष्ट्रिय एकता, तथाकथि राष्ट्रिय एकता को कुरा गर्ने हरु नेपाल सेना लाई समावेशी बनाउने कुरा उनी हरुको एजेंडा मैं छैन। जब कि नेपाल सेना लाई पुर्ण रुपले ५ वर्ष भित्र समावेशी बनाउँदा देश लाई ठुलो ठेवा पुग्छ। सशस्त्र लाई गोली हान भन्यो भने देश टुट्छ। सेना लाई ५ वर्ष भित्र पुर्ण रुपले समावेशी बनाउँदा देश नटुट्ने हुन्छ। बुद्धिमान को इशारा काफी।

संख्या घटाएर ३०,००० मा पुर्याउने, ५ वर्ष भित्र पुर्ण रुपले समावेशी बनाउने, दैवी प्रकोप उद्धार कार्य र विकासका काम मा सक्रीय प्रयोग गर्ने। Peace keeping मा सहभागी हुने।

नेपाल सेना लाई meritocracy को उच्चतम नमुना बनाउनु पर्छ।

संसद मा जस्तै नेपाल सेना मा पनि एक तिहाइ महिला हुनुपर्छ।


Thursday, July 09, 2015

प्रचण्ड को कटुवाल प्रकरण

प्रचण्ड को कटुवाल प्रकरण -- त्यो माओवादी पार्टी भित्र छलफल गरेर, स्ट्रेटेजी बनाएर लिएको निर्णय हुँदै होइन। त्यसलाई स्टेट कैप्चर को प्रयास पनि कसरी भन्ने? स्टेट कैप्चर त भै सकेको थियो। माओवादी पार्टी को देशमा प्रधान मंत्री थियो। लोकतन्त्रमा त्यसैलाई स्टेट कैप्चर भन्ने गरिन्छ। त्यो आफ्नो हातमा आएको र मजाले २-३ वर्ष रहने सत्ता फालेको प्रचण्ड ले। त्यो स्टेट कैप्चर को उल्टो भो। त्यसलाई के भन्ने? State Capture Reverse भन्ने कि के भन्ने? भएको त्यही हो। प्रचण्ड असक्षम भन्ने कुरा त्यहाँ बड़ो प्रष्ट देखियो।



देश शोकमा परेको भन्दै पूर्व राजाले जन्मदिन मनाएनन्
जन्मदिनका अवसरमा पारिवारिक जमघटको कार्यक्रममा पनि नरहेको
The future of travel? A tube called Hyperloop
The capsules would ride a cushion of air blasted from underlying skis, propelled by a magnetic linear accelerator, according to Musk's plans, running above or below ground and along low pressure steel tubes. ...... we're going to move around 10 million people a year .... With a strong business model Ahlborn says makes the railway industry look like a dinosaur, the cost, safety and reliability of Hyperloop can be a model for future, lightning fast transport.
If the real Hyperloop ends up being this luxurious inside, it's going to be an amazing way to travel
Putin to Modi: Haven't tried Yoga, looks difficult
He thanked Putin with regard to the celebrations of Yoga Day on June 21 in Russia. He said it was held in all cities of Russia.
India on the verge of full membership of SCO, Putin tells Modi
Along with Iran, Afghanistan and Mongolia, India and Pakistan currently have 'observer' status in the organisation. .... "Under your (Putin's) leadership in BRICS, India has become a member of SCO. I am very grateful," Modi responded. ..... there was a fair amount of discussion over economic issues between the two countries, including the possibility of visa liberalization. He added that the two leaders also paid a lot of attention to civil nuclear cooperation, especially in the context of climate change. "The issue of connectivity and North-South regional transport corridor was also discussed"
१९९० सालको महाभूकम्पपछि कहाँ चुकेको थियो राज्य ?
एक सय वर्षअघि ठीक त्यही दिन त्यस्तै ग्रह नक्षत्र पर्दा नेपालमा महा–भूकम्प गएकाले यस पटक पनि भुइँचालो जान ठूलो सम्भव छ भन्ने धेरै मानिसले लख काटेका थिए । दक्षिणतर्फका कमाण्डिङ जर्नेल मोहन शम्शेर र उनीजस्तै ग्रहदशामा बढी विश्वास गर्नेहरु त त्यस दिन पाल टाँगेर दरबारबाहिरै छुट्टै पर बसे । आखिर त्यस दिन नभन्दै भुइँचालै गई छाड्यो । ...... अधिराज्यभर एक लाख एक हजार पाँच सय उनन्चास घर, पाटी, पौवा र देवल भत्के; टुँडिखेल धाँजा धाँजा भई ह्वालह्वालती पानी आयो; उनन्तीस हजार चार सय चौवन्न मानिस मरे र छ हजार चार सय बीस मानिस घाइते भए (ले.ज. ब्रह्म शम्शेर लिखित ‘नेपालको महाभूकम्प’) । काठमाडौंका तीनै सहर नराम्रोसँग भत्के । ...... काठमाडौं भूकम्पले ध्वस्त हुँदा कन्चनपुरको वनबासामा शिकार खेलिरहेका प्रधानमन्त्री श्री ३ जुद्ध शम्शेरले भुइँचालामा परी मर्ने नेपालीलाई वैतरणी नदी तार्न महाकालीमा एक हजार गाई दान गरी नेपाल फर्के । ..... त्यसबखत नेपालमा अधिकांश पक्की ठूला घरहरुको मोल पर्दथ्यो सरदर रु. चार–पाँच हजार जति । ....... भुइँचालोले हल्लाएका र भत्काएका घरको लगत तयार गरी मर्मत गर्न र बनाउनलाई रु. २९,८२,३१६।– निर्ब्याजी सापटी सरकारतर्फबाट निकासा भयो । अन्दाजी रु. तीन करोड राजस्व उठ्ने त्यस जमानामा श्री ३ जुद्धले एकमुष्ठ त्यति ठूलो रकम जिर्णाेद्धारलाई निकासा गरेकोमा मानिसहरु उनीसँग प्रभावित भएका थिए । ....... मुलुकीखानाको रकम पनि एक प्रकारले प्रधानमन्त्रीको खड्ग निशानाबाट मात्र झिकिने र मुलुकीखानाको रकम उनले निजी खर्चमा जहिले पनि लगाउन सक्ने त्यसबेलाको व्यवस्थाअनुरुप, सो २९ लाख ८२ हजार रुपैयाँ जुद्ध शम्शेरले भुइँचालो पीडित जनतालाई आफ्नै खल्तीबाट बाँडेथे भन्नु अत्युक्ति नहोला । ...... त्यसबखतसम्म पनि सरकारी रकम सकभर बाह्र हातको टाँगोले पनि नछुनू भन्ने पुरानो खालको विचार भएका मानिसले आफ्नो घरै भत्केकै भए पनि सरकारसँगबाट ऋण सापटी लिएनन्– सरकारी ऋण लिएपछि अनेक झन्झटमा फसिन्छ भनी । ...... नेपालको महा–भूकम्पबाट पीडित जनताको उद्धारलाई भारतका मदनमोहन मालवीयको अतिरिक्त अरु देशदेशावरबाट आर्थिक सहायता प्रदान हुने आश्वासनलाई श्री ३ महाराज जुद्ध शम्शेरले सधन्यवाद पन्छाए– प्रत्यक्ष वा अप्रत्यक्ष, कुनै रुपबाट पनि विदेशी सहायता नलिने र उनीहरुसँग सम्पर्क नराख्ने श्री ५ पृथ्वीनारायण शाहको पालादेखि चल्दै आएको नेपलको पुरानो नीतिअनुसार । ........ तर नेपालले त्यसबखत स्वदेशी, विदेशी सहायताबाट भत्के, बिग्रेको काठमाडौं सहरको पुनर्निर्माण गर्ने ठूलो सुनौलो मौका भने आएको थियो । त्यो गुमायो– स्वदेशी विकासलाई विदेशी सहायता नलिने त्यसबखतको मनोवृत्तिले गर्दा । ..... त्यसबखत प्रदान हुन खोजेको विदेशी सहायताले नेपाल सरकारले चाहेको भए जुग–जुगान्तरदेखि काठमाडौं, भक्तपुर र पाटनका सहरभित्र बाजिएका चोकका गन्हाउने नाल खुलाउन, कहिल्यै घाम नछिर्ने गुह्ये गल्ली चौड्याउन र भूकम्प पीडित सहरियालाई सहरबाहिर सारेर नयाँ सहर काठमाडौं उपत्यकामा बसाउन सक्तथ्यो । भरखरै गएको भूकम्पले तर्सेका सहरबासीहरु पनि त्यसबेला गुह्ये गल्ली र चोक छाडी खुला ठाउँमा जान तयार थिए । ......... विदेशीहरु सहायता दिने निउँले काठमाडौंमा छिरी, राणाजीको एकतन्त्री शासनको चर पाउँछन् र आफ्नो कमजोरीको भण्डाफोर हुन्छ भन्ने डरले त्यो सहायता अस्वीकार भएको हो भन्ने धेरैको धारणा थियो । यो स्वार्थी भावना बन्यो नेपालको पछौटेपनको मुख्य कारण । त्यसैले धेरै कालतक नेपालले एकाकी जीवन बिताउन पर्‍यो । ...... उनी शिकारबाट नेपाल भिडकिनासाथ “मैले पल्टनतर्फ ब्यारेक खडा गरी सिपाहीहरुलाई सुविस्ता दिलाउन, मुलुकमा बन्दव्यापारहरु बढाई कलकारखानाहरुबाट पूरा तवरले देशको उन्नति गरी, तिमी दुनियाँहरुलाई पनि सुख–सुविस्ता गराउँला भन्ने ठूलो उम्मेद लिएको थिएँ, तर के गर्नु हरे” भन्ने उनको उद्गार ‘गोरखापत्र’मा छापिएको थियो । ....... भत्केका देवालयबाट कति सुनको जलप लगाएका धातुका गजुर, काठ र धातुका कलापूर्ण झ्यालढोका, अद्वितीय मूर्तिहरु गायब भए– केही नीच खालका मानिसमा मूर्ति चोरी विदेशी निकासी गर्ने हरामी बानी बसाल्दै । त्यसको लेखाजोखा रहेन । ...... (टिनले घर छाउने चलन त साम्राज्यवादी राष्ट्रले आफ्नो शोषित उपनिवेशमा चलाएका हुन् । युरोप, अमेरिका र जापानजस्ता विकसित राष्ट्रमा खालि फैक्ट्री र गोदाम छाउन मात्र टिनको प्रयोग गरिन्छ । यो नीच चलन नेपालमा अझ बढ्दो छ ।) ........ सरकारबाट तोकिएको डिजाइनको पनि कतैबाट वास्ता भएन । छाँट न काँटका घर जथाभावी बन्न सुरु गरे । प्रजातन्त्र बाद त अवाञ्छनीय प्रक्रिया झन् बढ्यो । ..... भूकम्पमा घर बनाउने कालिगडको अभाव महसुस भएकोले धेरै अघिदेखि भारतीयहरुलाई नेपाल पस्न नपाउनेगरी लागेको प्रतिबन्ध हट्यो । काम गर्ने निहुँले त्यसबेला केही कालका लागि काठमाडौंभित्र घुसेका भारतीयहरुमध्ये धेरै नेपालमा बसेका बस्यै गरे (१८६६ समलको महा–भूखमरी, १९७७\७८ सालतिर नेपाल तराईका बजारमा स्वदेशी विदेशीलाई रस्तीबस्ती बसाउने, गुल्जार गर्ने श्री ३ चन्द्र शम्शेरको नीति र १९९० सालको भूकम्पले निकै भारतीयहरुलाई तराई र नेपाल पस्ने मौका प्रदान गरे) । तैपनि भारतीय नागरिक नेपाल खाल्डोभित्र त्यतिन्जेल नगण्य नै थिए । ........ भूकम्प पीडितहरुलाई काठ, दाउरा प्रदान गर्नको लागि वन कटानी फुकेको कारण बालाजू, टोखा, हात्तीवन, थानकोट, साँखु, गोदावरीका वन त्यसबेला सखाप भएका अझ सखापै छन् । ...... भूकम्पको लगत्तै नेपाली जनतामा सहयोगको नयाँ भावना र देशको पुनरोत्थान गर्ने जोश जोगेको थियो; जनताको त्यो जाग्दो जोश सुहाउँदो राणा सरकारबाट देश विकासको काम भई दिएको भए, जसरी १९८० सालको महा–भूकम्पछि जापान झन् जम्यो, नेपाल पनि १९९० सालको भूकम्पपछि त्यस्तै हुन्थ्यो होला । इँट र झिंगटीको उत्पादन औ स्तर बढ्न सक्तथ्यो र नयाँ ढाँचाका सस्ता, बलिया र राम्रा नेपालीपनका घर बन्न सक्तथे । त्यो केही भएन । ...... आएको महँगी पनि गएन; नत फर्के भुइँचालोपछि नेपाल पसेका धेरैजसो भारतीयहरु । ..... यस्ता महासंकटको बाद धेरै राष्ट्रहरु पत्याई नसक्ने किसिमले विकासिएका विश्वमा अनेक दृष्टान्त छन् । तर

नेपालमा त्यसबखत जहानियाँ राणाशासन विद्यमान हुँदा र उसका मूल नीति नेपालमा शिक्षा र जनताको आर्थिक विकास सकभर नगर्ने हुँदा, देशको काँचुली फेरिएन । जतिसुकै खुम्च्याए पनि खुम्चने र जेजस्तो परे पनि मन बाँधेर र बुझाएर बस्न सक्ने अधिकांश नेपालीहरुको जन्मजात बानी हुँदा, राणाकालभरि जस्तो नेपाली जनता अज्ञानी र गरिब रहे ।

देशमा यस्तो भएन र उस्तो भएन भनेर १९९७ सालसम्म कसैले कुनै ठूलो आवाज उठाएनन् । एकाध उठाउनेहरुलाई राणा सरकारले यात लामपुच्छर लगायो अथवा फ्याउरा भनेर खेदेका कुरा यो पुस्तकका एकाध ठाउँमा छन् । ....... भूकम्प गएको वर्षदिनपछि, त्यस भवितव्यमा परी मर्नेहरुलाई तार्न आचार्य कुलचन्द्र गौतमको अध्यक्षतामा सात दिनसम्म होम गरी त्यसको खरानी र जल तीनै सहर नेपालमा छर्कियो । तन्त्रमन्त्र, नाटीकुटी, पूजा–पाठ, दानधर्ममा निकै विश्वास गर्ने त्यसबखतको नेपाली जनताले यो यज्ञको सराहना गरे– अकाल मृत्युमा परेका आफ्ना दाजु, भाइ, दिदी, बहिनी, छोराछोरीहरु अब बैतर्नी नदी तरी, वैकुण्ठ पुग्ने भए भनेर ।
मस्यौदाले हतियार उठाउने बाटो राख्यो : पद्मरत्न तुलाधर
आन्दोलनका अध्यक्ष पद्मरत्न तुलाधरले प्रारम्भीक मस्यौदा अनुसार संविधान बने अधिकारका लागि अर्को युद्ध निम्त्याउने चेतावनी दिए । आफूले २०४७ सालको संविधान बन्दा पनि अधिकारका लागि लड्नु पर्ने आवश्यकता औल्याएको र पछि गएर जनयुद्ध भएको स्मरण गर्दै तुलाधरले अहिलेको संविधानले पनि हतियार उठाउने बाटो (कारण) बाँकी राखेको तर्क गरे । ...... संघीय लोकतान्त्रिक गणतन्त्र संविधानको प्रस्तावनामा नलेख्नु, धर्म परिवर्तनको अधिकार खोस्नु, आत्मनिर्णयको अधिकार नदिनु, अग्राधिकार नदिनु, प्रदेशलाई प्रशासनिक निकाय मात्रै बनाउन खोज्नु, जनसंख्याको आधारमा समावेशी नहुनुले संविधानको पहिलो मस्यौदा प्रजातन्त्र, महिला र आदीवासी जनजाति विरोधी भएको उनले बकताए ।
समानुपातिक समावेशी प्रतिनिधित्वको सवाल
महिलाको हकमा व्यवस्थापिकाको दुवै सदनको कुल सदस्यमा कमसेकम एक तिहाइ महिला हुने प्रावधान छ। यसमा पनि जातीय जनसंख्याको अनुपातअनुसार हुनैपर्ने कुरा छुटेको छ। सच्चिएर आएन भने खसआर्य समुदायको बर्चस्वलाई निरन्तरता दिन लैङ्गिक हतियार पनि प्रयोग भएको प्रमाणित हुनेछ।
समानुपातिक समावेशी प्रतिनिधित्वको सवाल
भनियो १५ दिन, गरियो २ दिनः दुई दिनमै जनताले सुझाव दिनुपर्ने रे !
असार ३१ गतेदेखि बिहानै २४० वटा उपसमितिका सदस्यहरु हवाई जहाज तथा हेलिकप्टरमार्फत सम्बन्धित निर्वाचन क्षेत्रमा प्रस्थान गर्नेछन् । यसको अर्थ सबैजसो हेलिकप्टर संविधान मस्यौदाको छलफलका नाममा प्रयोग हुने भएको छ । भूकम्प प्रभावित क्षेत्रमा बर्षातको मौसममा पहिरो जाने सम्भावना बढी रहेको छ । त्यस्तो पहिरो गएको खण्डमा उद्धार गर्न हेटिकप्टर समेत उपलब्ध रहँदैन । ....... यसमा साउनको २ र ३ गते मात्रै छलफल हुने देखिन्छ । यही २ दिन जनताले आफ्नो राय राख्ने मौका पाउने छन् । र, ४ गते अनिवार्य रुपमा राजधानी आइपुग्ने बाध्यात्मक अवस्था राखिएको छ । यसरी जनताको राय साउन २ र ३ पछि लिन नहुने अघोषित प्रतिबन्ध लगाइएको देखिन्छ । ..... साउन ५ र ६ गतेका दिन प्रतिवेदन लेखनको समय पनि आम जनतासँग गरिने भनिएको छलफलको समयबाटै लिइएको छ भने साउन ७ गतेभित्र संविधानसभाभित्र अनिवार्य रुपमा प्रतिवेदन गर्नुपर्ने विधि र प्रक्रिया तय गरिएको छ । यसरी आफ्नो स्वामित्व र अपनत्वको संविधानको सपना देखेका जनताको आँखामा छारो हाल्ने काम गरेको देखिन्छ । ...... जनताको राय संकलनका लागि १५ दिनको समय दिने भन्दै जालसाजी गर्ने क्रममा त्यसलाई वास्तवमा २ दिनमा सीमित गरेको देखिन्छ । सात सात वर्षभन्दा बेसी समयसम्म संविधान निर्माण नहुँदा पनि हाम्रा पार्टी र नेताहरुको हकमा केही बिग्रेको थिएन, तर आज आएर सात दिनको छलफलको समय पनि नराखी हतार हतार संविधान लेखिएन भने आकाशै खस्ने हो कि भन्ने नियत देखाइँदैछ । ........ नेपालको अन्तरिम संविधानको धारा ७०(१) मा संविधानसभाले संविधानको विधेयक पारित गर्दा संविधानसभामा पेस भएको त्यस्तो विधेयकको प्रस्तावना तथा प्रत्येक धारामा संविधानसभामा निर्णयार्थ प्रस्तुत गरी पारित गर्नुपर्ने तथा उपदफा (२) मा संविधानसभामा तत्काल कायम रहेका सम्पूर्ण सदस्यको कम्तीमा दुई तिहाइ सदस्य उपस्थित भएको बैठकको सर्वसम्मतिबाट पारित गर्नुपर्ने व्यवस्था गरिएको छ । ...... मस्यौदा समिति र संविधानसभामा पनि त्यसका प्रत्येक धारा केलाएर छलफल गर्नुपर्ने हुन्छ । तर मस्यौदा समिति र संविधानसभामा पनि छलफल गरिएको छैन । ...... यसको मतलब भोलि संविधानका कुनै धारा वा विषयमा विवाद भएमा संविधान निर्माणको समयमा के कस्तो छलफल भएको थियो भन्ने अभिलेख नै भेटिने अवस्था रहँदैन र संविधान निर्माणको मर्म र भावनालाई बुझ्न पटक्कै सम्भव हुँदैन । अतः मनोगत हिसाबले संविधानको व्यवस्था र व्याख्या हुन सक्दछ । ...... भारतमा संविधान निर्माणको समयमा संविधानसभाका मुख्य मुख्य नेताहरुले कुन विषयमा के धारणा राखेको थियो भन्ने कुराको अभिलेख राखिएको छ । आज ती धारणा वा मत सन्दर्भ सामग्रीको रुपमा प्रयोग हुँदै आएका छन् । .......... सोह्रबुँदे सहमतिवालाहरुसँग दुई तिहाइभन्दा बेसी मत छ भन्दैमा सबै ऐन नियमलाई खारेज वा संशोधन गर्ने हो र ? ..... सात आठ वर्षसम्म संविधान नबनाउनेहरुसामु प्रश्न उठेको छः केका लागि यस्तो हतारो हो, जसले गर्दा सात दिनसम्म पनि कुर्न नसकिने भयो ? हाम्रोजस्तो भौगोलिक रुपले विकट रहेको मुलुकमा जनताको राय १५ दिनमा संकलन गर्छु भन्नु र त्यसलाई पनि दुई दिनमा झारा टार्ने तरिकाले सुझाव संकलन गर्नु भनेको त आफैमा कर्मकाण्ड पूरा गर्नु मात्रै हो, जुन पुरोहित्याइँ गर्नमा माहिर नेताहरुलाई पक्कै पनि सुहाउछँ । आम जनता भूकम्प, बाढी, पहिरोको पीडामा आँसु बगाइरहेको बेला, त्यसबाट मुक्त नहुँदै खेतीपातीको चटारोमा रुमल्लिरहेको समयमा गरिएको यस्तो कर्मकाण्ड रहस्यमय हुनु स्वाभाभिकै हो । ...... सर्वोच्च अदालतले अन्तरिम आदेश दिँदादिँदै पनि फास्ट ट्रयाकको नाउँमा, नयाँ संविधानमा मत र सुझाव दिन पाउने जनताको अधिकारलाई समेत कुठाराघात गर्दै, अलोकतान्त्रिक र गैरसंवैधानिक हिसाबले थोपरिने संविधानको स्वामित्व भोलि कसले लिने होला ? ...... हुन त चार दलको प्रभुत्वमा रहेको संविधानसभाले हिटलरको एकाधिकार रहेको जर्मन संसदः राइखस्ट्याग मोडेलमा काम गर्न थालेको छ । यस्तो अलोकतान्त्रिक र गैरसंवैधानिक विधिले ल्याइने संविधानमाथि अब आम जनताले कसरी ममत्व जाहेर गर्न सक्छन् ?
मधेशी मोर्चा संयुक्त आन्द्योलनको कार्यक्रम बनाउदै । तत्कालै बृहत मोर्चा नबनाउने
संविद्याँनसभामा प्रारम्भिक मस्यौदालाई सुरुदेखि नै विरोध गर्दै आएका यी मधेशी पार्टीहरुले जनता माझ छलफलमा लगिने कार्यक्रमहरुको समेत मधेशका जिल्लाहरुमा भाडने तयारी आन्तरिक रुपमा गरिरहेका छन । आजको बैठकम सहभागी एक नेताका अनुसार मधेशी मोर्चाले आफना सभासद तथा नेताहरुले अगुवाई मधेशका हरेक जिल्लाहरुमा छलफलमा जाने मस्यौदा सहितको नेताहरुलाई कार्यक्रम गर्न नदिने वातवरण बनाउन लागेका छन । त्यसका लागी विरोध जुलुस सहित अन्य कार्यक्रमहरुलाई एक दुई दिन भित्रै व्यापक रुपमा सुरु गर्ने योजनामा मोर्चा छन । ...... मधेशी मोर्चाका एक प्रमुख घटक तराई मधेश लोकतान्त्रिक पार्टीले संविद्यानसभामा पेश गरिएको प्रारम्भिक मस्यौदा मधेश विरोध भएको भन्दै आज देखि धनुषा र महोत्तरीमा माईकिंग सुरु गरेको जनाएको छ । तमलोपाका उपाध्यक्ष वृषेशचन्द्र लालका अनुसार भोली देखि मधेशका अन्य जिल्लाहरु सर्लाही, रौतहट, वारा पर्सा लगायतका जिल्लाहरुमा समेत माईकिंग हुदै छ । लालका अनुसार माइकिंग गरिएर आम नागरिकलाई मस्यौदा मधेश विरोधी भएको भन्दै आन्दोलनमा आउन अपिल गरिरहेको छ । ... आजको बैठकमा तमलोपाका नेताहरुले यस सम्बन्धी प्रस्ताव राखे पछि फेरम नेपालका अध्यक्ष यादवले हालैको प्रसंग कोटयाउदै विजय गच्छदारलाई कारवाही गर्न मोर्चा अघि सर्दा अनिल झा, राज किशोर यादव लगायतले असहयोग गरेको भन्दै उनीहरु माथी भर नपर्न र आन्दोलनलाई वर्तमानकै संयुक्त लोकतान्त्रिक मोर्चामा आवद्ध चार घटकहरु मिलेर अघि वढाउन सुझाएका थिए । तराई मधेश सदभावना पार्टीका अध्यक्ष महेन्द्र यादवले मोर्चामा आवद्ध घटकहरुले मस्यौदा च्यात्दा अनिल झाले मिडियामा सार्वजनिक रुपमै खिल्ली उडाएको भन्दै भोलीका दिनमा उनीहरुले आन्दोलनको विपक्षमा गए मोर्चा बदनाम हुन सक्ने बताएका थिए ।
मस्यौदा सच्याउन पाइन्छः पौडेल
सकेसम्म सीमाङ्कन र नामाङ्कनसहितको संविधान जारी गर्ने प्रयास भइरहेको बताए । ..... थोरै प्रदेश उपयुक्त हुने धारणा राख्दै उनल हाल चर्चामा रहेको जस्तो आठ प्रदेश नेपालले थेग्न सक्नेमा शङ्का व्यक्त गरे ।
सबैलाई मान्य हुने संविधान बनेमात्र मुलुकमा शान्तिः नेपाल
कतिपय मधेसवादी दलले नयाँ बन्ने संविधान मधेस विरोधी भएको बताई प्रचारवाजी गर्ने गरेको तर्फ इङ्गित गर्दै उनले संविधानको मस्यौदा अध्ययन गरेर मात्र टीकाटिप्पणी गर्नु जायज हुने उल्लेख गरे ।
परम्परागत पुँजीवादी गणतन्त्रभन्दा माथि नै उठेको र समाजवादको दिशामा केही कदम अघि बढेको संविधान
हाम्रो पार्टीभित्र संविधानसभामार्फत संविधान ल्याउनुपर्छ भन्नेमा सबैभन्दा बढी जोड मैले नै दिँदै आएको हुँ । ०५७/५८ सालपछि संविधानसभाको राजनीतिक नारालाई बढी जोड दिने र स्थापित गर्ने काम गरेबापत नै हाम्रो पार्टीभित्र ठूलो बहस छेडियो । कतिपय साथीले मेराविरुद्ध अनर्गल प्रचार पनि गर्नुभयो । संविधानसभाबाट सबैभन्दा ठूलो दल भएर आइसकेपछि पार्टीभित्रको एउटा सोचले यो लाइनलाई मन पराएन, यसको निरन्तर विरोध गरिराख्यो । त्यसैले गर्दा हामी शक्तिमा भएका बेला संविधान बनाउन सकेनौं । हाम्रो आफ्नै आन्तरिक कलहले शक्ति कमजोर हुन पुग्यो । खासगरी तत्काल २ जेठ ०६९ मा जुन सहमति भएको थियो, कमसेकम त्यो सहमतिलाई मात्रै कार्यान्वयन गर्न पाएको भए पनि अहिलेभन्दा धेरै राम्रो संविधान बन्न सक्थ्यो । तर, हाम्रो आन्तरिक कारणले गर्दा नै, पार्टीभित्रको अत्यन्तै यान्त्रिक, संकीर्ण सोच राख्ने प्रवृत्तिको कारणले गर्दा हामी कमजोर बन्न पुग्यौँ र त्यतिबेला भन्दा तल झरेर हामी यो सम्झौता गर्न बाध्य भयौं । ......

संवाद समितिले गरेका र पहिलो संविधानसभाबाट गरिएका निर्णय पनि अहिलेको मस्यौदा समितिले अनधिकृत ढंगले उल्टाइदिएको छ, त्यो बिल्कुल गलत हो ।

..... विप्लव र वैद्यजीहरूको त अलि फरक कोणको आलोचना हो । उहाँहरू अहिले नै समाजवाद चाहनुहुन्छ । तर, आफूले तत्काल एउटा रोप्ने, फल चाहिँ अर्कै खोज्ने, त्यो प्राप्त हुन सक्दैन । उहाँहरू ठूलो भ्रममा हुनुहुन्छ । अहिले तत्काल सम्भव भए हामी पनि समाजवाद नै ल्याउन चाहन्छौं । तर, नेपालको इतिहासको अहिलेको जुन विकासक्रम छ, त्यसले तत्काल नेपालमा समाजवाद ल्याउने परिस्थिति सिर्जना गर्दैन । त्यसैले किरणजी र विप्लवजीहरूको भनाइ नेपालको वस्तुगत स्थितिसँग मेल खाँदैन । ...... जहाँसम्म मधेसवादी, जनजातिहरूको कुरा छ, उहाँहरूको विरोध चाहिँ संघीयताको कुरामा मात्रै हो, अरूमा हैन । उहाँहरूको भनाइ पूर्ण आकारको अर्थात् सीमांकन र नामांकनसहितकै संघीयता भए हुन्थ्यो भन्ने हो । त्यसमा हामी पनि सहमत छौं, यसमा अन्तिमसम्म हामीले पनि प्रयास गर्यौं तर कांग्रेस–एमालेको दुईतिहाइको बहुमत भएको ठाउँमा उनीहरूले कुनै हालतमा पनि यो ढंगको सम्झौता गर्न तयार नभएको अवस्थामा हामीले जतिसुकै बल गरे पनि त्यो सम्भव भएन । कि त संविधानसभा नै छोडेर अर्को बाटो हिँड्नुपथ्र्यो । त्यो गर्नु उपयुक्त हुँदैन थियो, त्यसैले हामीले सम्झौता गर्यौं । तैपनि मधेसी र जनजाति शक्तिले जुन आवाज उठाएका छन्, त्यसलाई सम्बोधन गर्ने गरी अहिले पनि सीमांकनसहितको संघीयता घोषणा गर्न सकिन्छ, सक्नुपर्छ भन्ने मलाई लाग्छ । .......

मस्यौदा समितिले जसरी आफ्नो कार्यक्षेत्र मिचेर पहिले भइसकेका सहमति उल्ट्याउने काम गरेको छ, त्यो बेठीक भएको छ । नागरिकतादेखि अल्पसंख्यक र उत्पीडितलाई अधिकार दिने कुरा उटाइएको छ । यस विषयमा पुनः छलफल गरेर टुंग्याउने प्रयास गर्नेछौं । जनताबाट अझै राय–सुझाव आउन बाँकी छ । त्यसपछि त्यो फेरि एकपटक संवाद समितिमा आउँछ । त्यहाँ छलफल गरेर हामीले सच्याउन सक्छौं । त्यहाँ सच्चिन नसकेको कुरा फेरि एकपटक संविधानसभाबाट पारित गर्ने क्रममा संशोधन राखेर सच्याउन सकिन्छ ।

....... संविधानसभाबाट जुन संविधान बन्छ, त्यसको मूल श्रेय माओवादी जनयुद्धलाई जान्छ । ...... हाम्रै दलभित्रका साथीहरूले यो लाइनको मर्मलाई नबुझेको हुँदा एउटा अवसर गुमायौं । त्यही भएर फेरि सम्झौता गर्दा बढी छाड्नुपर्ने अवस्था आएको हो । ...... १० वर्ष पहिलेकै कुरा गरौं न, कांग्रेस, एमालेलगायत संसदवादी शक्तिहरू गणतन्त्र, लोकतन्त्र, संघीयता, धर्मनिरपेक्षता, समावेशिता, समानुपातिकताको पक्षमा थिएनन् । त्यो जनयुद्धको राप र तापपछि यसमा आउन बाध्य भएका हुन् । त्यसैले संविधानसभाबाट चाँडो संविधान बनेन भने कांग्रेस र एमाले त्यसमा धेरै आँसु बगाउनेवाला छैनन् । संविधानसभा फेरि पनि असफल भयो भने यसबाट परिर्वतनविरोधी शक्तिहरूलाई मात्र फाइदा पुग्छ । त्यही भएर कांग्रेस–एमालेभित्र रहेका परिवर्तनकारी शक्तिहरूसँग मिलेर हामीले अहिलेको सापेक्ष ढंगको अग्रगामी संविधान बनाउन लागेका हौं । ....... पार्टीभित्रको अवरोधको फाइदा उठाउँदै अन्य दलहरूले संविधानसभाबाट संविधान बन्न दिएनन् । पहिलो संविधानसभाबाट संविधान बनेको भए त्यसमा माओवादी छाप बढी हुन्थ्यो भन्ने कुराबाट डराएर उनीहरूले संविधानसभालाई तुहाउने काम गरियो र कमजोर किसिमको संविधान बनाउन उनीहरू लागिपरे । ...... उहाँहरूको राजनीतिक बुझाइ नै गलत हो । नेपालमा राष्ट्रिय अन्तर्राष्ट्रिय शक्ति सन्तुलनको सापेक्षतामा अहिले यो उपलब्धिलाई संस्थागत गरेर अघि बढ्नु नै नेपालको क्रान्तिका लागि उपयुक्त छ भनेर उहाँहरूले बुझ्न सक्नुभएन । एकैचोटि जम्मै लिन्छु भन्यौं भने भुइँको टिप्दा पोल्टाको खस्छ भनेझैं पोल्टाको पनि खसाउने काम उहाँहरूबाट भएको हो । यसमा उहाँहरूको नियतभन्दा पनि चिन्तनको खोट हो । ....... उहाँहरू अहिले पनि संविधानसभाबाट संविधान बनाउनेभन्दा पनि अर्को क्रान्ति गरौं भन्नुहुन्छ । तर, हामी भने अहिलेको उपलब्धिको रक्षा गरेर अघि बढ्नु नै उपयुक्त हुन्छ भन्ने ठान्छौं । ....... सुगौलीसन्धिदेखि यता हामी भारतसँग असमान सम्बन्धमा गाँसिन पुगेका छौं । त्यसले गर्दा नेपालमा बाह्य शक्तिको चलखेल अलि बढी हुन्छ । त्यसको एउटा ऐतिहासिक शृंखला नै छ । त्यो शृंखलालाई बदल्न हामीले नेपालमा तीव्र आर्थिक विकास, समृद्धि र लोकतन्त्रलाई पूर्णता दिँदै नेपाललाई बलियो र समृद्ध बनाउनुपर्छ । त्यसपछि बाह्य हस्तक्षेपबाट मुक्त हुनुपर्छ । ...... जसरी हिजो बाह्रबुँदे नेपालीले गरेका थिए, यो सोह्रबुँदे पनि नेपाली आफैँ गरेका हुन् । यसमा अन्तर्राष्ट्रिय शक्तिहरूको पनि सद्भाव हुनु राम्रो हुन्छ । त्यो हिजो पनि थियो, आज पनि छ र भोलि पनि ल्याउने प्रयास गर्नुपर्छ । ..... सामन्ती शासकले आफ्नो सत्ता टिकाउनका निम्ति अरुको दलाली गर्छन् । तर, अहिलेको लोकतान्त्रिक युगमा नेपाली जनताको विश्वास र अभिमत सबैभन्दा ठूलो कुरा हो । त्यो प्राप्त भइसकेपछि बाह्य शक्तिसँग आफ्नो राष्ट्रिय हितमा सम्बन्ध अघि बढाउने हो । त्यसैले विदेशीको ताबेदारी गरेर मात्र नेपालमा सत्ता चल्छ भन्ने सोच राख्नु अत्यन्त अराष्ट्रिय र आफ्नो स्वाभिमानविरोधी चिन्तन हो । म त्यसको सख्त विरोधी छु । ...... मैले भूकम्पबाट प्रभावित बनेका इन्डोनेसिया, पाकिस्तान, भारतको गुजरातलगायत देशहरूको सकारात्मक अनुभवको आधारमा स्वायत्त र अधिकारसम्पन्न प्राधिकरणमार्फत नवनिर्माण र पुनर्निर्माणको काम गरिनुपर्छ भन्ने अवधारणा राखेको हुँ । त्यो राष्ट्रिय बहसको रूप लिँदै गएर अन्ततः सरकारले प्राधिकरण त बनायो तर यस्तो कमजोर प्राधिकरण बनायो कि त्यसले नवनिर्माण र पुनर्निर्माणको ठूलो आवश्यकता पूरा गर्छ जस्तो मलाई लाग्दैन । त्यसैले अहिले पनि समय छ, सरकारले त्यसलाई सच्चाएर अधिकारसम्पन्न प्राधिकरण निर्माण गरोस् । ...... बाह्य सहयोग आउँदा ठूलो हिस्सा उनीहरूको प्रशासनिक खर्चको नाममा फिर्ता जाने हुँदा आन्तरिक संयन्त्रमार्फत नै त्यो परिचालन गरिनुपर्छ । बाह्य शक्तिलाई स्वच्छन्द ढंगले काम गर्न दियौं भने हामी अर्को हाइटी हुनेछौं । ...... हाम्रो आन्तरिक लोकतन्त्र बलियो भयो, जनतालाई अधिकारसम्पन्न बनायौं र देश र जनताप्रति प्रतिबद्ध सरकार नेपालमा बन्यो भने उसले अन्तर्राष्ट्रिय सम्बन्धलाई पनि आफूअनुकूल बनाएर देशमा तीव्र विकास र आर्थिक समृद्धि गर्न सक्छ र देशलाई बलियो बनाउन सक्छ ।

Wednesday, July 08, 2015

प्रेमप्रकाश थापामगर र महेन्द्रनारायण निधि : व्यक्ति दुई पीड़ा एक

जनजाति प्रधान सेनापति

देशमा लोकतंत्र को लड़ाई पहाडीले लड्ने गरेको भए जब जब क्रान्ति भयो --- चाहे त्यो सात साल होस या ४६ साल होस या ३६ साल होस् या फेरी सन २००६ होस् --- त्यो कोइराला हरुले गर्ने भए जनकपुर मा होइन बिराटनगर मा शुरू हुन्थ्यो। जनकपुर मा होइन काठमाण्डु मा शुरू हुन्थ्यो। बिराटनगर मा पहिलो शहीद पैदा भएको मधेसी क्रांतिमा हो। जनकपुरले हिंट दिने अनि बल्ल काठमाण्डु का जनता तात्ने भएको छ।

त्यस्तै यो जुन बीर गोर्खाली बीर गोर्खाली भनिन्छ -- त्यो इमेज १००% कमाएको कसले भन्दा खेरी जनजातिले। त्यसमा बाहुन क्षेत्री राणा शाह को केही योगदान छैन।

अनि महेंद्र नारायण निधि लाई प्रधान मंत्री बन्न नदिने? प्रेमप्रकाश थापामगर लाई प्रधान सेनापति बन्न बाट रोकने? अन्याय गर्ने? छेड़की लगाउने? दुबै मेनस्ट्रीम मा आएका मानिस। आफ्नो बलबुतामा माथि पुगेका। आफ्नो मेरिट मा टुप्पो सम्म पुगेका मानिस। अनि त्यसरी सबैले देख्ने गरी अन्याय भए पछि मधेसी र जनजाति समुदाय मा वितृष्णा जाग्दैन?


Tuesday, July 07, 2015

जनजाति प्रधान सेनापति

जनजाति प्रधान सेनापति हुन लागेको जबरा ले रोकेको हो? यो त गिरिजा ले महेन्द्र नारायण निधि लाई प्रधान मंत्री बन्न नदिए जस्तो भएन? यो राज्य (state) नै बेइमान छ भनेर सीके राउत ले त्यसै भनेको होइन।

बीर गोर्खाली वाला जुन इमेज छ -- त्यो शाह राणा बाहुन क्षेत्री ले बनाएको होइन त! त्यो त जनजाति ले बनाएको इमेज हो। अनि यस्तो बेइमानी किन? नेपाल सेना को लोकतांत्रिकरण को काम धेरै बाँकी छ।


प्रधानसेनापति–रक्षासचिव ‘शीतयुद्ध’
प्रधानसेनापति गौरवशमशेर जबरा र रक्षासचिव ईश्वरीप्रसाद पौड्यालबीच ‘शीतयुद्ध’ चर्किएको छ । सैनिक मुख्यालयले पठाएका बढुवा, सरुवा र खरिदसम्बन्धी कतिपय प्रस्ताव कानुनसम्मत बनाएर ल्याउन भनेर फर्काइदिएपछि सेनापति जबराले रक्षाको समेत जिम्मेवारी सम्हालेका प्रधानमन्त्री सुशील कोइरालालाई भेटेर पौड्यालप्रति असन्तुष्टि जनाएको स्रोतले बतायो । ....... २०७१ फागुन २७ मा रक्षासचिव भएर आएलगत्तै पौड्याल र सेनाबीच खटपट सुरु भएको हो । सेनाको विकास निर्माण तथा स्थपति महानिर्देशक उपरथी योगेन्द्र खाँड भए पनि पूर्वमहानिर्देशक नरेश बस्नेतलाई सम्पूर्ण जिम्मेवारी सुम्पिएको थाहा पाउनासाथ पौड्याल सशंकित बने । उनले नयाँ जिम्मेवारी सम्हाल्नेलाई जिम्मेवारी मुक्त भएकाबाट ७ दिनभित्र कार्यभार सुम्पन लगाउन सैनिक मुख्यालय जंगी अड्डालाई पत्राचार गरे । यो निर्णय सेनालाई पाच्य भएन । ...... बस्नेत तिनै हुन्, जसलाई गत पुसमा जबराले सैनिक ऐनविपरीत रथीको विशेष पद सिर्जना गरेर पदोन्नति गर्न चाहेका थिए । बस्नेतको ५ वर्षको पदावधि २०६९ पुस १४ मै सकिएको हो । तर, त्यसबेला पनि उपरथीकै ‘विशेष पद’ सिर्जना गरी २ वर्षका लागि थमौती गरियो । ऐन–नियममा व्यवस्था नभए पनि संविधानसभा विघटनसँगै कामचलाउ बनेका तत्कालीन प्रधानमन्त्री बाबुराम भट्टराईले सेनाको सिफारिसलाई मन्त्रिपरिषदबाट अनुमोदन गरिदिएका थिए । ...... तर, ऐनविपरीतको त्यो कार्य गर्न तत्कालीन कायममुकायम सचिव देवेन्द्र सिटौलाले मानेनन् । यसका साथै सेनाले गभर्मेन्ट टु गभर्मेन्ट (जीटुजी) गरी रुसबाट दुईवटा हेलिकप्टर किन्न लाग्दा पनि सिटौलाले कानुनी प्रश्न उठाएर लामो समय रोकेका थिए । सेनासँगकै चिसिँदो सम्बन्धका कारण सिटौलाले राजीनामा दिए । ..... सेनामै समयावधि थप्ने प्रयास असफल भएपछि जबराले सैनिक कल्याणकारी कोषबाट तलब, भत्ता खानेगरी बस्नेतलाई सल्लाहकार बनाए । ..... सेनापतिले केहीअघि १० जना महासेनानीको ३ वर्ष पदावधि थपका लागि रक्षामा पठाए, तीमध्ये एक थिए सुरेन्द्र सिजापति । पौड्यालले बाँकी ९ को म्याद थप र सिजापतिको नागरिकता नक्कली भएको कारण म्याद थप्ने होइन कारबाही गर्नु भन्दै प्रधानमन्त्रीकहाँ प्रस्ताव लगे । ..... सचिव पौड्यालले सिजापतिको नागरिकता विधि विज्ञान प्रयोगशालामा जाँचका लागि पठाए, जुन नक्कली भेटियो । त्यसपछि सिजापतिलाई झिकाएर सैनिक ऐनअनुरूप कारबाही गर्न जंगी अड्डामा पत्राचार गरे । जंगी अड्डाले उल्टै हाल बेलायतमा रक्षा कोर्स गरिरहेकाले फर्केर नआउन्जेल म्याद थप्न अर्को प्रस्ताव पठायो, जसलाई पौड्यालले अगाडि बढाएनन् । अवकाश पाइसके पनि सेनाले फिर्ता नबोलाउँदा सिजापतिले बेलायतमा सैनिक पोसाक लगाएरै तालिम गरिरहेका छन् । ..... पौड्यालले भने, ‘म मागेर रक्षा मन्त्रालय आएको होइन । सरकारले जुन जिम्मेवारी दिन्छ, इमानदारीसाथ निभाउँछु । प्रधानमन्त्रीका रूपमा हजुरका धेरै जिम्मेवारी छन्, त्यसमाथि यतिबेला राजनीतिक व्यस्तता पनि बढेको छ । मैले आएका प्रस्ताव सैनिक ऐन, नियमावलीअनुरूप छन्/छैनन् राम्ररी नकेलाए कसले हेर्छ ? म कानुनविपरीतका कार्य कदापि गर्दिनँ । भोलि कानुनी प्रश्न उठ्यो भने रक्षाको समेत जिम्मेवारी सम्हालेकाले हजुरकै पनि बदनामी हुन्छ । मेरो काम चित्त नबुझे जहाँ मन लाग्छ, सरुवा गरिदिनुस् ।’ जंगी अड्डाले उपरथीमा बढुवाका लागि पठाएका अन्य ३ सहायक रथीको प्रस्ताव पनि पौड्यालले रोकिदिएका छन् । ....... जंगी अड्डाले सहायक रथीहरू ज्ञानेन्द्र रायमाझी, प्रह्लाद थापा र भुवन खत्रीलाई उपरथीमा बढुवाका लागि पत्राचार गरेको थियो । तीमध्ये ज्ञानेन्द्र रायमाझीको बिहारको शैक्षिक योग्यताको प्रमाणपत्र नक्कली रहेको र अन्य दुईले बहुविवाह गरेको उजुरीपछि पौड्यालले प्रस्ताव अघि बढाएनन् । थापाको बहुविवाहको मुद्दामा त अदालतले मानाचामल भराउने फैसला नै गरिसकेको भेटियो । पौड्यालले अबदेखि कसैको बढुवा, सरुवाको प्रस्ताव पठाउँदा सैनिक ऐन र नियमावलीअनुरूप शैक्षिक योग्यता, नागरिकता, भर्ना हुँदाको सिटरोलजस्ता कागजपत्र पनि पठाउन पत्राचार गरेपछि

जंगी अड्डा झनै जंगियो ।

...... प्रधानसेनापति जबराले गत वर्ष आफ्नै तजबिजमा ‘रथी र अधिकृतहरूको पदावधि थप गर्ने कार्यविधि २०७१’ तयार पारेकोमा पनि पौड्यालले आपत्ति जनाए । मन्त्रालयले बनाउनुपर्ने र पारित गर्नुपर्ने कार्यविधि आफूखुसी बनाएर किन लागू गरेको भन्दै पत्राचार नै गरे । त्यो कार्यविधिमा बहुविवाह गरेकाको म्याद नथप्ने उल्लेख भएको देखेपछि पौड्यालले अर्को प्रश्न तेस्र्याए, ‘बहुविवाह गरेकाको म्याद नै नथपिने अवस्थामा बढुवाको प्रस्ताव किन अघि बढाएको ?’ पौड्यालले हालै जंगी अड्डाबाट सहायकरथी र महासेनानी गरी ३० जनाको सरुवाका लागि आएको प्रस्ताव पनि थप कागजपत्र माग्दै रोकी राखेका छन् । एक महिनापछि बिदा बस्नुपर्ने अवस्थाका सेनापतिले ठूलो संख्यामा सरुवा गर्न गरेको प्रस्तावमा गहन अध्ययनको आवश्यकता रहेको भन्दै उनले रोकेका हुन् । ......... सेनापति जबराले किर्ते गरेको अभियोगमा बर्खास्त गरेका उपरथी प्रेमप्रकाश थापामगरको मुद्दामा पनि पौड्यालले चासो देखाए । तत्कालीन सहायकरथी हेम खत्रीको जन्ममिति एक दिन फरक पारेर पाकिस्तानमा नेसनल डिफेन्स कोर्स (एनडीसी) गर्न सिफारिस गरेको अभियोगमा उनलाई बर्खास्त गरिएको थियो । पहिलो त खत्रीले बुझाएको नेपाली जन्ममितिलाई अंग्रेजीमा रूपान्तर गर्दा एक दिन फरक परेको थियो । खत्रीले गरेको गल्तीमा मगरलाई कारबाही नहुनुपर्ने, त्यसमाथि खत्री बर्खास्त भइसकेका थिए । दोस्रो, खत्रीलाई एनडीसी गर्न पठाउने निर्णय गर्ने जुन बोर्डमा मगर सदस्यसचिव थिए, त्यसको प्रमुख स्वयं तत्कालीन रथी जबरा थिए । रथी जबराले अध्यक्षता गरेको बोर्डको निर्णय गलत भएकोमा मातहतको आफूलाई कारबाही गरिएकोविरुद्ध मगरले सैनिक अदालतमा उजुरी दिए । ......

प्रधानसेनापतिको लाइनमा रहेका मगर

को उपरथीको ३ वर्षे पदावधि गत चैत २७ गते सकिएको छ । तर, उनको मुद्दाको फैसला अझै भएको छैन । सैनिक ऐनमा उपरथीको ३ वर्षे पदावधि सकिएपछि २ वर्ष थप्न सकिने व्यवस्था छ । तर, बर्खास्तीमा परेकाले उनको म्याद थपिएन । पुनरावेदन अदालतका न्यायाधीश प्रमुख, रक्षासचिव र सेनाको कानुन विभाग (प्राड) का प्रमुख उपरथी सदस्य रहने सैनिक विशेष अदालतमा मगरको मुद्दा विचाराधीन छ । झन्डै ६ महिना रक्षामा सचिव नियुक्त नगरिएको र निमित्त सचिव अदालतमा बस्न नपाउने व्यवस्थाका कारण पेसी सरिरह्यो ।

जब फागुन २७ मा पौड्याल सचिव भएर आए उनले मगरमाथि अन्याय भएको भन्दै चासो देखाए ।

त्यसपछि जबराले प्राड प्रमुख उपरथी हेमन्त लावतीलाई लामो बिदामा पठाइदिए । एक सदस्य अनुपस्थित भए इजलास नबस्ने भएकाले मुद्दामाथि फैसला नहुँदै मगरले अवकाश पाए । .......... पछिल्लो समय सेनाले बिनाटेन्डर जीटुजीमार्फत इजरायलबाट ३४ करोड ६८ लाख ४० हजार रुपैयाँमा गलिल हतियार किन्न लाग्दा पनि सचिव पौड्यालले चासो देखाए । हतियार किन्न प्रतितपत्र खोल्ने स्वीकृतिका लागि जंगी अड्डाले जेठ ३२ गते रक्षामा पत्र पठाएको थियो । सामरिक सामग्री खरिद तथा आपूर्ति सम्बन्धमा बनेको कार्यविधिको दफा १७ मा जीटुजीबाट किन्दा पनि कम्तीमा नेपालस्थित ३ वटा दूतावाससँग दररेट लिई न्यून मूल्य कबोल गर्नेलाई दिनुपर्ने व्यवस्था छ । ...... तर, सेनाले सिधै इजरायली दूतावाससँग सम्झौता गरी हतियार किन्न थालेपछि र यसमा संसदको सार्वजनिक लेखा समितिले पनि चासो देखाएपछि पौड्यालले कानुनी प्रश्न अध्ययन गर्न भन्दै प्रतितपत्र खोल्ने स्वीकृतिको प्रस्ताव अघि बढाएका छैनन् । सामान्य प्रशासनमन्त्री लालबाबु पण्डितका अनुसार सोमबारको मन्त्रिपरिषदले सेनाका पुराना हतियार विस्थापित गरी नयाँले सुसज्जित पार्ने सैद्धान्तिक निर्णयसहित गलिल किन्न प्रतितपत्र खोल्ने स्वीकृति दिएको छ । स्रोतका अनुसार पौड्यालले अघि नबढाएपछि ठाडो प्रस्तावका रूपमा प्रतितपत्र खोल्ने स्वीकृति दिइएको हो ।

Wednesday, July 01, 2015

समानुपातिक समावेशी राज्य (State)


  • पहिला त इमान्दार संघीयता आउनुपर्यो। 
  • संघीयता मा प्रहरी राज्य को हुन्छ मुख्य रुपमा, प्रशासन पनि ठुलो हदसम्म। 
  • नेपाल सेना ले आफै नै सैनिक संख्या १००,००० बाट घटाएर ४०,००० मा लाने घोषणा गरिसकेको छ। त्यसलाई ३०,००० मा पनि लान सकिन्छ अनि १०,००० मधेसी, महिला, दलित को समुह्गत प्रवेश। सीमा सुरक्षा त नेपाल सेनाले गर्दैन (व्यावहारिक कुरा) ---- राष्ट्रिय एकता का लागि यति योगदान दिने कि नेपाल सेनाले? 
  • गृह युद्ध अगाडि को अवस्थामा सेना जान तैयार तर प्रहरी चाहिँ आफ्नो उपादेयता देखाउन का लागि देशमा नया गृह युद्द हुने किसिम को व्यवहार गर्दै हिँडेको हिंड्यै छ। बामे एक चर्तिकला अनेक। गृह युद्ध अगाडि को अवस्थामा प्रहरी पनि पुग्ने, होइन भने साँच्चै को नया गृह युद्द आउँछ। गृह युद्ध अगाडि सशस्त्र प्रहरी थिएन भने अब त्यसलाई dissolve गर्ने। राज्य आतंकवाद (state terrorism) को अन्त्य गर्ने। होइन भने राज्य नै dissolve गर्न नपरोस्। 
  • ५१% खुला प्रतिस्प्रधा, ४९% आरक्षण ---- मेरो विशेष चासो त्यो खुला प्रतिस्प्रधामा छ। खुला प्रतिस्प्रधा अहिले छैन। पियन को दरबन्दी खुल्यो भने कतै गिरिजा को प्र म कार्यालय बाट गिरिजा कै फोन आउँथ्यो। त्यो खुला प्रतिस्प्रधा होइन। ५१% खुला प्रतिस्प्रधा भनेको अहिले सम्म १००% बाहुन हरु लाई आरक्षण जस्तो छ। त्यो आरक्षण समाप्त गर्ने। एउटा professional, meritocratic, corruption free bureaucracy चाहियो देशमा।  त्यो ६० लाख बाहुन लाई पनि चाहिएको।  

Wednesday, May 06, 2015

The Nepal Army Has Been Doing Exemplary Work

From day one the Nepal Army has been doing great work on the ground.



४ लाख त्रिपाल छ, पीडितले पाएनन्
भन्सार विभागका अनुसार चालू आर्थिक वर्षमा भुकम्प आउने अघिल्लो दिनसम्म १ लाख ५५ हजार त्रिपाल आयात भएको थियो। ...... सोमबार साँझ सम्म २ लाख ४४ हजार त्रिपाल भित्रिएको देखिन्छ ‘भूकम्पपछि व्यवसायीले ६८ हजार ८ सय त्रिपाल आयात गरिसकेका छन्,’ विभागका प्रवक्ता सूर्यप्रसाद सेढाईले भने, ‘पहिले आयात भएका पनि धेरैजसो भूकम्पपछि बिक्री वितरण भएको हुनुपर्छ।’ यसमध्ये पश्चिम बंगाल सरकारले सोमबार पठाएको त्रिपाल पनि पर्छन्। उक्त त्रिपाल मंगलबार काठमाडौं ल्याइँदै छ। यो समेत जोड्ने हो भने मंगलबार साँझसम्म ५ लाख त्रिपाल हुन्छ। ....... सरकारले पनि करिब ३० हजार वटा त्रिपाल खरिद गरिसकेको छ। योसहित राहतका नाममा विभिन्न देश तथा दातृ निकायले भूकम्प अघि र पछि भित्र्याएको, खरकारले खरिद गरेको र व्यावसायिक प्रयोजनका लागि ल्याइएका सहित गरेर मुलुकभित्र ५ लाख त्रिपाल रहेको तथ्यांकले देखाउँछ। ....... सबै प्रकारका गरेर साढे ३ लाख घर क्षतिग्रस्त भएका छन्। ..... आयात भएको त्रिपाल कम्तीमा एक परिवारलाई एकवटा पुग्ने देखिन्छ। तर विवरण भएको तथ्यांक र आयात भएको त्रिपालबीच तुलना गर्दा झन्डै १ लाख त्रिपालको लेखाजोखा छैन। ..... ‘भूकम्प आएको दिन उपत्यका सबैजसो परिवार घरबाहिर थिए। पहुँचवालाले लिए। .... केही त्रिपाल यस्तो घटना पुन: घट्न सक्ने सम्भावनाको आँकलन गर्दै मौज्दात पनि हुन सक्छ। विभिन्न व्यक्तिदेखि लिएर व्यबसायीले मौज्दात राखेको हुन सक्ने अनुमान उनीहरूको हो। ...... ‘केहीले पहुँच भिडाएर २/३ वटासमेत लग्ने गरेकाले सबैलाई त्रिपाल नपुगेको हुन सक्छ,’ एक सरकारी अधिकारीको अनुमान छ। त्रिपाल नपुगेकै कारणले १ लाख २५ हजार खरिदको प्रक्रिया अघि बढाइएको ....... अहिलेसम्म त्रिपाल बढी मात्रामा हवाई मार्गमार्फत त्रिभुवन अन्तर्राष्ट्रिय विमानास्थल भन्सार नाकाबाट भित्रिएको देखिन्छ। अधिकांश मुलुकले अन्य राहत सामग्रीसहित त्रिपाल पठाएका छन्। अहिलेसम्म राहत पठाउने मुलुकको संख्या ३४ नाघिसक्यो। बढीमात्रामा भारतबाट त्रिपाल आयात भएको देखिन्छ। ....... सरकारले त्रिपाल वितरणमा सहजता अपनाउनका लागि भन्सार छुटको व्यवस्था गरेको छ। विभागका अनुसार वैशाख १९ बाट जेठ २० गतेसम्म जुन कुनै प्रयोजनका लागि ल्याइने त्रिपालमा भन्सार नलाग्ने व्यवस्था गरिएको छ। एक त्रिपालमा करिब ४७ प्रतिशत भन्सार लाग्ने गरेको थियो। एक हजार रुपैयाँ त्रिपालको मूल्य हुँदा ४ सय ४७ रुपैयाँ भन्सार महसुल लाग्थ्यो।
आकाशमा मानवरहित यन्त्र घुमेपछि सरकार गम्भीर
मुलुक भुकम्पको विनाशकारी चपेटामा परेका बेला कतिपय शक्ति र व्यक्तिहरुले मुलुकको गोपनीयता र संवेदनशीलतालाई चुनौति दिदै मानवरहित यन्त्र आकाशमा घुमाउने गरेका छन् । मुलुक यस्तो गम्भीर संकटमा परेका बेला आकाशबाट अनधिकृत तस्वीर खिच्ने को हुन् भनेर सरकारले अनुसन्धान गरिरहेको छ । गृह र पर्यटन मन्त्रालयले यसलाई मौका छोपेर गरिएको ठूलो अपराधका रुपमा लिएका छन् ।
२३ सय रूपैयाँमा त्रिपाल र चामल पुर्‍याउँदै बुढानीलकण्ठका विद्यार्थी
चौधरी ग्रुपद्वारा २५ करोड राहत घोषणा,१० हजार घर बनाउने
अमेरिकी ८, भारतीय १३ र चिनियाँ ३ हेलिकोप्टरले राहत ओसार्न थाले
महाभूकम्पपछिको खोजी तथा उद्धार कार्य सकेको नेपाली सेनाले अतिप्रभावित मानिसका लागि राहत पुर्‍याउने कार्यलाई प्राथमिकता दिएको छ। छिमेकी तथा मित्र राष्ट्रका सरकार या सैनिक सहायतामा आएको राहत द्रुत गतिमा भूकम्प प्रभावित क्षेत्रमा पठाउन थालिएको पनि सेनाले जनाएको छ। ..... काठमाडौं वेस भएका भारतीय वायू सेनाका ६ हेलिकोप्टरलाई भने मकवानपुर, धादिङ र गोरखा जिल्लामा राहत पुर्‍याउने जिम्मेवारी दिइएको छ। भारतले पठाएका १३ हेलिकोप्टर मध्ये ७ वटाले भने पोखरालाई बेस बनाएर उद्धार तथा राहत सामाग्री ओसार्ने काम गरिरहेका छन्। ..... प्रत्येक हेलिकोप्टरमा एक–एक जना नेपाली सैनिक अधिकृतलाई सम्पर्क अधिकृत राखेरमात्र उडान गर्न दिने नीति बनाइएको छ। सेनाले भनेको छ, ‘त्यस नीति अनुसार विदेशी हेलिकोप्टरमा नेपाली सैनिकलाई सम्पर्क अधिकृतका रुपमा खटाइएको छ।’
When A Nation Didn't Want To Know
A few years ago when i had gone to Kathmandu in the aftermath of King Gyanendra's declaration of a state of emergency in the Himalayan nation, an Indian diplomat posted at our embassy there told me how the first thing he advises new joinees is to remember that Nepal is a sovereign, independent country and not New Delhi's colony in the mountains. ........ Someone should have shared this very simple, very basic pearl of wisdom last week with the Indian TV crews and other members of the press as they went about barging into relief camps in Nepal that had no food or water, pointing cameras at battered faces and thrusting mics into mouths too numb to give a byte. ........ They did in a foreign land exactly what they do here ­ elbow people, shout each other down, intrude and aggravate.Just that everyone in this part of the world is used to it, even encouraging it at times. There are places, though, where such show of belligerence is alien to the local ethos. ....... At the heart of Nepal's frustration with the Indian media, voiced eloquently and strongly on Twitter through the trending hashtag #GoHomeIndianMedia, lies a more fundamental issue. A clash of cultures ­ i would go so far as to say civilisations ­ and a tendency to disrespect populations not living in the white powerhouses of Europe and America. ........ A polite, humble society where everybody elder to you is didi or dai and younger is bahini or bhai, Nepal doesn't understand the aggression of Indians.Its people think violence is best suited only to the battlefield. Road rage cases in the capital city of Kathmandu are rare, so is eve-teasing and molestation ­ all illicit manifestations of a misplaced sense of might. ........ When someone tells you something in Nepalese homes and streets, you acknowledge it with a `hajur'. The `tu' of Hindi, which translates into `ta,' is almost always reserved for the junior lot, sons, daughters, children, never elders. ....... What compounds the relationship India has had with Nepal is the condescension for a people who have always been fiercely independent, repulsing British attacks in the early 1800s with such determination that in a rare acknowledgement of courage in the face of adversity they erected a memorial at Kalunga, present day Nalapani, that honours the `gallant adversary'. So impressed and awestruck were the Brits at the valour of the Gorkhas that they would soon go on to recruit the hardy soldiers into their own armies, a tradition that continues to this day . ......... A friend from Kathmandu who studied in India ­ St Paul's in Darjeeling, St Stephen's in Delhi and later Jawaharlal Nehru University ­ would always tell me Indians do not realise, or refuse to, that not all Nepalese are Gorkhas, and not all Gorkhas durwans. ...... “It's only the most deprived, most needy that come to India to guard people's home,“ he would explain to fellow students at JNU. “It's like the poor Bihari, UP-wallah and Punjabi come in search of work to Mumbai as taxi and auto drivers.“ ....... It is this insensitivity and suffocating patronising that goes with it that had Nepal erupt in anger at the Indian media even as hundreds and thousands from this country opened their hearts and wallets to the suffering millions next door. ...... One of the close to 1,30,000 tweets that complained about our handling of the crisis in Nepal, already shell-shocked with devastation and distraught with grief in the wake of a 7.8 magnitude earthquake that left more than 7,000 dead and innumerable others homeless, said Dharahara has fallen, not their pride and dignity ...... There is a similar show of tastelessness that marks the `mainstream' Indian's attitude towards the country's north-easterners. Everyone is a `chinky'. In fact, in the eyes of many , the whole of NE, Sikkim, Darjeeling, Bhutan and Nepal form one contiguous, homogenous Mongoloid swathe, where everyone speaks Nepali, eats momos for breakfast and plays the guitar at night....... Going beyond, there is a boorishness being associated with us that is increasingly making the Indian a target of hatred and vilification across the world. The most reflective of this is our online world. There was a time when the slightest hint of criticism against Narendra Modi would awake hydra-headed defenders leaping from Pilibhit to the Paraganas, ready to chop your anti-national, unworthy and un-Indian head off........ They are still there, lurking, albeit a little less prickly after the great electoral triumph of last year. Not that you can say much against Sachin Tendulkar either....... There are many lessons for us in the Nepal fiasco. The biggest is that we need to respect people from the smaller countries and states. It's the same hurt we feel when America frisks our presidents.


‘कमजोर’ सरकार र राहतको ओइरो
सहायता घोषणा गरेका केही मुलुक र अन्तराष्ट्रिय दातृ संस्थाले सरकारको संयन्त्रलाई ‘बाइपास’ गर्ने संकेत गरेका छन् । ति आफ्नै संयन्त्र वा उनले छानेका नेपाली एनजिओ मार्फत कार्यक्रम लैजान इच्छुक छन् । थुप्रै प्रवासी संस्था र व्यक्ति समेतले आफ्नै ढंगले राहत वितरण र पुन निर्माणका योजना घोषणा गरेका छन् । ....... सरकारलाई बाइपास गरेर जान खोज्नुको कारण के छ ? कि त यिनले सरकारलाई विश्वास गर्न सकेका छैनन् कि सरकार मार्फत जाँदा आफ्नो प्रभाव र पकट कम हुने राजनीतिक लगायत स्वार्थ राख्छन् । अनि हामी चाँहि सरकार र राज्य प्रणाली ‘कमजोर’ र ‘भ्रष्ट’ ठान्ने अनि यस्ता विदेशी संस्था र निकायलाई अत्यन्तै प्रभावकारी र पारदर्शी ठहराउने हो भने कता पुगौला ? ....... सरकार कमजोर छ, यसमा कुनै शंका छैन । यो आजको दिनमा आएर अनुभूत भएको पनि हैन । हामीसँग यस्ता अनुभवका खात छन् । ‘अभिभावक’ सरकारको निन्याउरो अनुहार हामीले धेरै पटक देखेकै हो । अस्ति जाजरकोटको महामारी, गत वर्ष सिन्धुपाल्चोक-जुरेको पहिरो, महाकालीमा आएको बाढी, यस्तै यस्तै । ........ उही कमजोर सरकार र यसका संयन्त्रले यसपालीको महाविपद्‍मा एक्कासि चमत्कार गर्न सक्ने कुरै भएन । उद्धार र राहतमा भएको सरकारी ढिला-सुस्ती प्रति चर्कै असन्तुष्टी छरपस्ट छ । यो असन्तुष्टी अस्वाभविक हैन । तर यसपाली हामी सामान्य जीवनमा फर्किन ज्यादै कठिन बाटो हिड्नु छ, फलामका चिउरा चपाउनु छ । विगतका ‘साना तिना’ विपत् जसरी टरे, यसपाली त्यति सजिलो छैन । यसो भन्दैमा सरकारको विकल्प खोज्ने बेला आएको हो त? ........ क्षतिको विवरण, तत्काल र दिर्घकालिन राहतको आवश्यकता निर्धारण, कहाँ कति पुग्यो, कहाँ बाँकी छ ? पुन: स्थापना र पुन: निर्माणको मापदन्ड के हो? यस्ता विषयको एकीकृत संयोजन नगरी राहत र पुन: निर्माण प्रभावकारी हुनै सक्दैन । यो जिम्मेवारी सरकार र यसका संयन्त्रले नै पुरा गर्ने हो । अरूले गर्न पनि सक्दैन । गर्न दिनु पनि हुँदैन । ....... सन २०१० मा २ लाख भन्दा बढि मानिसको ज्यान लिने गरी गएको भुकम्प पछि हाइटीमा विदेशी सहायताको यस्तै ओइरो लागेको थियो । जम्मा १ करोड जति जनसंख्याको हाइटीका लागि अन्तराष्ट्रिय समूदायले उपलब्ध गराएको १३ बिलियन डलर ज्यादै ठुलो रकम थियो । यसबाटै सारै ठुलो आशा राखिएको थियो । नेपाल जस्तै गरिब हाइटीको पुननिर्माण मात्र हैन यो सहायता रकमले आर्थिक वृद्दी र जीवनस्तरमा पनि झलाङ मार्ने गरिएको अनुमान स्वाभाविक नै थियो । ........ हाइटीमा भ्रष्टाचार र कमजोर संयन्त्रको निहुँ पारेर सरकारलाई सिधै राहत रकम हस्तान्तरण गरिएन । कुल सहायताको जम्मा ९.६ प्रतिशत मात्र सरकारी नियन्त्रणमा रह्यो । ०.६ प्रतिशत स्थानिय संस्था र बाँकी ८९.८ प्रतिशत रकम विदेशी संस्थाले सिधै चलाए । देशमा यति ठुलो विदेशी र एनजिओको चलखेल भयो कि विश्लेषकहरूले देशको नाम नै ‘रिपब्लिक अफ एनजिओज’ भन्दै व्यङ्ग गरे । ....... सरकार झन-झन कमजोर र निरिह बन्दै गयो ।

हाइटीका लागि घोषित सहायताको अधिकाशं रकम देश भित्र नआउँदै वासिंटन र न्युयोर्कमै प्रशासनिक खर्चका नाममा सकियो । ५ वर्षसम्म पनि हाइटीको परिस्थितिमा सुधार आउन सकेको छैन ।