Saturday, August 31, 2019

सपा, राजपा र जपा को एकीकरण तत्काल गर्नुपर्छ



ढिलो गर्ने किन? जति ढिलो गर्यो त्यति बेमजा। जनतासँग अंतिम बलिदान माग्ने नेता हरुले आफुले भने जाबो पार्टी एकीकरण गर्न नसक्ने? आतंरिक लोकतंत्र भएको पार्टीमा को अध्यक्ष बन्ने भन्ने विवाद हुनै सक्दैन। ज-जसलाई अध्यक्ष बन्न मन छ ती सबैले पार्टी महाधिवेसनमा उम्मेदवारी दिने। महाधिवेशन प्रतिनिधि हरुले मत खसालेर निर्णय गर्ने कुरा हो त्यो।

एउटा हुन्छ घृणा। एउटा हुन्छ आत्म घृणा। केपी ओली ले संविधान संसोधन गर्दैन भन्ने कुरा थाहा हुँदा हुंदै डाक्यो कि चिया खान कूदिहाल्ने। तर आफु आफु बसेर गफ पनि गर्न नसक्ने! उपेन्द्र यादव, राजेन्द्र महतो, सीके राउत, र हृदयेश त्रिपाठी सबैको सबै सँग गफ भएको छ? छैन? त्यसलाई भनिन्छ आत्म घृणा। मधेसी भने पछि देखि नसहने।

Madhesi Self Hate

त्यो आत्म घृणा आफैमा चुनौती हो। मधेसीलाई समानता दिलाउन घृणा का साथै त्यो आत्म घृणा को पनि सामना गर्नु पर्ने हुन्छ। पार्टी एकीकरण गर्नु भनेको आत्म घृणा को सामना गर्नु हो।

तीन वटै पार्टी को एजेंडा हुबहु मिल्छ त।

तर लोकतान्त्रिक पार्टी भित्र लोकतान्त्रिक प्रतिस्प्रधा र विचार विमर्श, विचारको वाद विवाद, आलोचना, आत्मालोचना हुन्छ त। आन्तरिक समीक्षा गर्न सक्नुपर्छ।

सपा र राजपा ले अहिले सम्म चुनाव पछि जति शक्ति र समय ओली लाई संविधान संसोधन का लागि अनुनय विनय गर्नमा खर्च गरे त्यसको आधा शक्ति र समय पार्टी एकीकरण मा खर्च गरेको भए पार्टी एकीकरण भएर बरु संविधान संसोधन कै प्रक्रिया अगाडि बढिसकथ्यो।

मधेसीको मानमर्दन गर्छु भनेकै आधारमा भोट पटकाएको मान्छे ओली। त्यो ओली ले संविधान संसोधन गर्छु भन्ने पत्याउने नेता को को? आवश्यकता अनुसार प्रचण्ड ढाई वर्ष पछि प्रधान मंत्री बन्ने भनेर लिखित समझौता गरेको छ। ठग्यो प्रचण्डलाई पनि। पाँच वर्ष नै मै खान्छु भन्दैछ। प्रचण्डलाई आतथु आतथु।

संविधान संसोधनका लागि जनतासँग मैंडेट लिने, सरकार बनाउने र आफै संसोधन गर्ने।  त्यो हो बाटो। र त्यसकालागि पार्टी एकीकरण बाहेक उपाय छैन।

सीके राउत लाई संगठन विस्तार गर्नु छ। पार्टी एकीकरण गर्ने  हो भने त्यो संगठन विस्तार जंगल को आगो जस्तो फैलिन्छ। अहिले एक्लै जाँदा आतथु आतथु। न चुनाव छ न केही यो के को संगठन विस्तार भनेर जनताले पत्याइराखेको छैन। सीके राउतको संगठन विस्तार बेमौसमको बाजा भएको छ। पहिला पार्टी एकीकरण अनि बल्ल संगठन विस्तार। पहिला संगठन विस्तार भनेको अँग्रेजी मा भन्छन putting the cart before the horse.



एकीकरण को फोर्मुला सजिलो छ। पहिला दुई पार्टी मोटामोटी ५०-५० नै थिए। अब सपा र नया शक्ति को एकीकरण पछि त्यसलाई ५५-४५ मान्नु पर्ने हुन्छ। भने पछि एकीकरण महाधिवेशन सम्म का लागि कार्यवाहक अध्यक्ष उपेन्द्र यादवलाई मानन गार्हो नपर्नुपर्ने हो। तर पोलिटब्युरो बलियो बनाउनुपर्छ। र पार्टी अध्यक्ष ले पार्टी को पोलिटब्युरो सँग बराबर विचार विमर्श गरिरहने राजनीतिक संस्कृति को विकास गर्नु पर्ने हुन्छ।

अहिले उपेन्द्र लाई कार्यवाहक पार्टी अध्यक्ष मानने र एकीकरण महाधिवेशन का समयमा जो जो लाई पार्टी अध्यक्ष बन्ने इच्छा छ ती सबैले उम्मेदवारी दिने।

पार्टी अध्यक्ष उपेन्द्रले पाए पछि पार्टी को नाम मा राजपा वाला हरुले सर्वोच्चता पाउनु पर्छ। राजपा को जनता र जनमत पार्टी को जन लिँदा एकीकृत पार्टी को नाम चाहिँ जनता पार्टी उपयुक्त हुन्छ कि? चुनाव चिन्ह चाहिँ पंजा छाप?

सपा र राजपा ५५-४५ मा। तर जनमत पार्टीलाई कति वजन दिने? सपा+ राजपा लाई ८०% र जपा लाई २०% मान्दा हुन्छ कि?

पार्टी एकीकरण गर्ने दशैं अगाडि अनि फागु पछि एकीकरण महाधिवेशन। त्यस एकीकरण महाधिवेशन अगाडि सबैले कम्मर कसेर देश भरि संगठन विस्तार गर्ने। सान्तिना थारू र जनजाति पार्टी हरुलाई मिलाउँदै जाने। पार्टी को प्रत्येक तहमा सीधा निर्वाचन गरिदिने। प्रत्येक पदाधिकारी, प्रत्येक पोलिटब्युरो सदस्य, प्रत्येक केन्द्रीय समिति सदस्य। त्यति बेला थाहा हुन्छ कस्को वजन कति छ भन्ने कुरा।








अहिले का लागि एक संभावना

वरिष्ठ नेता: महंथ ठाकुर
संघीय परिषद अध्यक्ष: बाबुराम
पार्टी अध्यक्ष: उपेन्द्र यादव
सह-अध्यक्ष: राजेन्द्र महतो
उपाध्यक्ष: अशोक राई
उपाध्यक्ष: सीके राउत
उपाध्यक्ष: सरिता गिरी (महिला)
उपाध्यक्ष: शरद सिंह भण्डारी
उपाध्यक्ष: लक्ष्मण थारू
प्रवक्ता: अनिल झा
कोषाध्यक्ष: राजेन्द्र श्रेष्ठ
पोलिटब्युरो सदस्य: राजपा का अन्य अध्यक्ष हरु, सपा बाट ५ जना, जपा बाट २ जना, हृदयेश, जेलमा परेका थारू नेता
केन्द्रीय समिति: सपा ४५%, राजपा ४०%, जपा १५%

जिल्ला समिति: त्यसै गरी ४५-४०-१५




Friday, August 16, 2019

सीके संसदमा आउनुपर्छ






घ्यु कहाँ पोखियो? भागै मा। भने जस्तो।

समाजवादी पार्टी ले यो खाली हुन लागेको सीट लाई खाली हुन दिनुपर्छ र यस सीट मा जनमत पार्टी ले सीके राउत को उम्मेदवारी दिने र राजपा र सपा ले उम्मेदवारी नदिएर सीके लाई समर्थन गर्नुपर्छ। यो एक डेढ़ वर्ष पछि सपा र राजपा को एकीकरण पछि जपा सँग एकीकरण गर्न का लागि सपा र राजपा ले डाउन पेमेंट गर्ने हो।

सीके संसदमा आउनुपर्छ। लोकतन्त्रमा संसदको आफ्नै विशिष्ट स्थान हुन्छ। सीके संसदमा पुगे संसदको रौनक बढ्छ।

सप्तरीबाट संसद पुगे सीके ले अर्को चुनावमा जनकपुर को सीट ताकदैनन भन्ने ढुक्क हुन्छ राजेन्द्र महतो लाई।

Monday, August 12, 2019

नागरिकता समस्या का समाधान ब्लॉकचैन पर है

नेपाल में मधेसी समुदाय का प्रमुख समस्या नागरिकता का है। तीन चार बार मधेसियों ने आन्दोलन ही नहीं क्रान्ति ही की। अंतरिम संविधान के बाद देश में नया संविधान जारी हुवा। नए कानुन बनें। लेकिन मधेसी समुदाय का नागरिकता समस्या समाधान होने के बजाय और विकराल होता जा रहा है।

किसी भी मनुष्य को नागरिकता पत्र से वंचित करना मानव अधिकार का हनन है। यानि कि प्रत्येक मनुष्य को किसी न किसी देश का नागरिक होना मानव अधिकार है। जैसे कि वाक स्वतंत्रता मानव अधिकार है। नेपाल के संविधान ने मानव अधिकार को अकाट्य माना है। फिर भी खुलेआम ढेर सारे मधेसियों को नागरिकता पत्र से वंचित किया जा रहा है और वो भी बड़े सुनियोजित ढंग से।

राजनीतिक संघर्ष तो जारी रखना होगा और रहेगा भी। लेकिन मुझे दिख रहा है कि नेपाल के मधेसी के लिए ही नहीं दुनिया के सभी लोगो के लिए नागरिकता और परिचय के समस्या का समाधान नयी उभरती टेक्नोलॉजी ब्लॉकचैन होने जा रहा है।

ब्लॉकचैन (Blockchain) क्या है? बहुत लोग ब्लॉकचैन को बिटक्वाइन (Bitcoin) समझ लेते हैं। वो तो ऐसा हुवा कि आप इंटरनेट को जीमेल (Gmail) समझ लें। इंटरनेट एक बृहत् टेक्नोलॉजी है। उसका एक पक्ष है ईमेल। ईमेल भी ढेर सारे हैं। उस में एक है जीमेल। बिटक्वाइन (Bitcoin) एक क्रिप्टो करेंसी (cryptocurrency) और वैसे और भी हैं जैसे कि ईथरियम (Ethereum) हालांकि सबसे बड़ी बिटक्वाइन (Bitcoin) ही है। लेकिन जिस तरह इंटरनेट एक जीमेल से बहुत बड़ा है उसी तरह ब्लॉकचैन (Blockchain) बिटक्वाइन (Bitcoin) से बहुत बड़ा है।

इंटरनेट व्यक्ति को जानकारी (information) उपलब्ध कराती है। कहा जाता है आज दुनिया के एक मनुष्य जिसके हाथ में स्मार्टफोन है और जिससे वो इंटरनेट सर्फ करता है उसके पास उतनी जानकारी है जितना इंटरनेट से पहले सिर्फ अमेरिका के राष्ट्रपति के पास हुवा करता था।

तो ब्लॉकचैन (Blockchain) को मानिए इंटरनेट से १,००० गुना बड़ा। उससे भी बड़ा। पुराने दुनिया के मीडिया को इंटरनेट ने जो किया पैसा को ब्लॉकचैन (Blockchain) वही करेगी। और सिर्फ पैसा ही नहीं विश्वास (trust) को। ब्लॉकचैन (Blockchain) को मानिए बहीखाता। एक परमानेंट डिजिटल बहीखाता। अगर दुनिया का प्रत्येक ट्रांज़ैक्शन (transaction) एक परमानेंट डिजिटल बहीखाता पर रखा जाए तो क्या होगा? वही ब्लॉकचैन (Blockchain) है।

अगर दुनिया के किसी भी कोने से किसी भी दुसरे कोने तक पैसा आप तुरन्त और जीरो फी पर ट्रांसफर कर सकेंगे तो क्या होगा? क्रांति हो जाएगी। ब्लॉकचैन (Blockchain) वही करने जा रही है।

जिस तरह इंटरनेट न किसी देश का है और न किसी कम्पनी का उसी तरह ब्लॉकचैन (Blockchain) भी न किसी देश का रहेगा और न किसी कम्पनी का। समस्त मानवजाति का रहेगा। जिस तरह इंटरनेट अभी भी निर्माणाधीन ही है उसी तरह ब्लॉकचैन (Blockchain) बनना शुरू हो गया है और सालों दशकों तक बनता ही रहेगा।

वाक स्वतन्त्रता तो इंटरनेट से पहले भी था। लेकिन वाक स्वतन्त्रता इंटरनेट के बाद कुछ दुसरा ही मायने रखती है। उसी तरह मधेसी समुदाय के नागरिकता समस्या को महोत्तरी या धनुषा के जिल्ला कार्यालय अथवा काठमाण्डु के गृह मंत्रालय अथवा बालुवाटार के प्रधान मंत्री निवास से मुक्त किया जा सकेगा। ब्लॉकचैन (Blockchain) पर ही प्रत्येक मधेसी का ही नहीं प्रत्येक मनुष्य का राजनीतिक परिचय सुरक्षित रहेगा। उसी ब्लॉकचैन (Blockchain) पर बैंकिंग कर सकेंगे लोग। हाथ में स्मार्टफोन पर बैंक रहेगा। दिन में एक डॉलर पर दो डॉलर पर गुजारा कर रहे लोगों को बैंक लोन मिलने लगेगा ब्लॉकचैन (Blockchain) पर।

पृथ्वी के उपर हजारों सैटेलाइट घुमेंगे और धरती के कोने कोने पर इंटरनेट उपलब्ध रहेगा। किसी को भी नागरिकता पत्र से वंचित करना असंभव हो जाएगा। बैंक लोन लेने के लिए जमीन जायदाद की जरुरत नहीं पड़ेगी।