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Friday, August 16, 2019

सीके संसदमा आउनुपर्छ






घ्यु कहाँ पोखियो? भागै मा। भने जस्तो।

समाजवादी पार्टी ले यो खाली हुन लागेको सीट लाई खाली हुन दिनुपर्छ र यस सीट मा जनमत पार्टी ले सीके राउत को उम्मेदवारी दिने र राजपा र सपा ले उम्मेदवारी नदिएर सीके लाई समर्थन गर्नुपर्छ। यो एक डेढ़ वर्ष पछि सपा र राजपा को एकीकरण पछि जपा सँग एकीकरण गर्न का लागि सपा र राजपा ले डाउन पेमेंट गर्ने हो।

सीके संसदमा आउनुपर्छ। लोकतन्त्रमा संसदको आफ्नै विशिष्ट स्थान हुन्छ। सीके संसदमा पुगे संसदको रौनक बढ्छ।

सप्तरीबाट संसद पुगे सीके ले अर्को चुनावमा जनकपुर को सीट ताकदैनन भन्ने ढुक्क हुन्छ राजेन्द्र महतो लाई।

Friday, July 19, 2019

पार्टी एकीकरण का समय, समयतालिका, अंकगणित, और केमिस्ट्री

Federalism: Unfinished Business In Nepal
सपा, राजपा, जपा र त्रिपा को एकीकरण
समाजवादी पार्टी ले १० प्रदेशको कुरा उठाएर देशमा तेस्रो ध्रुवको निर्माण गर्न सक्छ



पार्टी एकीकरण का समय

नेपालमें सच्चा संघीयता लागु करने से पहले आर्थिक क्रांति संभव ही नहीं है। या तो आप इस बातको मानते हैं या नहीं। मैं कसके मानता हुँ। आर्थिक क्रांति का परिभाषा हुवा लगातार २०-३० साल तक नेपालमें आर्थिक वृद्धिका दर दो अंको का होना। डबल डिजिट ग्रोथ जिसे कहते हैं अंग्रेजी में। तो नेपालमें आर्थिक क्रांति अभी चाहिए कि ५० साल बाद आने से भी काम चलेगा? अभी नहीं ३०-४० साल पहले होना था। बहुत समय जाया गया। तो आर्थिक क्रांति की जल्दबाजी अगर है देशको तो देशको सच्चा संघीयता देना होगा। जिस तरह पंचायती व्यवस्था और राजतन्त्र लोकतंत्र के विरोधी शक्ति थे उसी तरह कांग्रेस और कम्युनिस्ट सच्चा संघीयता विरोधी शक्ति हैं। उनके विरुद्ध सिर्फ मोर्चाबंदी करने से काम नहीं चलेगा। एक तीसरी पार्टी की निर्माण करनी होगी। जनतासे आन्दोलन कर उनसे अंतिम बलिदान मांगने वाले नेता लोगो को समझना होगा कि जनता अंतिम बलिदान देती है तो नेता लोगो को कमसेकम चाहिए कि वो अपना गृह कार्य करे। आजके सन्दर्भमें वो गृह कार्य पार्टी एकीकरण और संगठन निर्माण एवं विस्तार ही है। आप कितना भी आंदोलन कर लिजिए लेकिन संसद में अंक गणित नहीं जुटा पाते हैं तो आपकी जो एजेंडा है वो पिछे पड़ी रहेगी। यानि कि अगला स्थानीय, प्रादेशिक और संसदीय चुनाव को डेडलाइन मानके चलना होगा। चुनाव से कमसेकम एक साल पहले पार्टी एकीकरण का काम ख़त्म हो जाना चाहिए। चुनावमें बुरी तरह हार जाने के दो महिना बाद पार्टी एकीकरण करना न करना बराबर होगा। सिर्फ मधेसी को नहीं जोड़िए संविधान संसोधन से। अंक गणित फिका पड़ जाता है। सिर्फ जनजाति को नहीं जोड़िए। अंक गणित दो तिहाई पहुँच जाती है लेकिन राजनीतिक चेतना उस कदर नहीं है अभी तक। संविधान संसोधन को सच्चा संघीयता से जोड़िए और सच्चा संघीयता को आर्थिक क्रांति से ताकि शत प्रतिशत नेपाली जनता को टारगेट किया जा सके। आर्थिक क्रांति तो सभी को चाहिए। बाहुन क्षेत्री को भी चाहिए। सरकारी जागीर करने वाले बाहुन क्षेत्री सिर्फ कुछ लाख होंगे। बाँकी में अधिकांश तो गरीब ही तो हैं। सरकारी जागीर करने वाले बहुसंख्यक भी गरीब हैं। सामाजिक न्याय का मुद्दा उठाना बहुत जरुरी है। लेकिन उससे मुख्य रूपसे दमजम को सम्बोधित किया जा सकता है।

पार्टी एकीकरण का समयतालिका

कुछ साल के प्रयास के बाद उपेन्द्र यादव और बाबुराम तो मिल गए। मोर्चा नहीं बनाया। पार्टी एकीकरण की। मोर्चा बनाने की बात बेतुक बात है। मुद्दा कठिन हो तो मोर्चाबंदी से काम नहीं चलेगा। फोरम और नया शक्ति एक हो गए। अब अगला कदम है सपा और राजपा एक हो जायें। नया शक्ति का फोरम में एक हो जाने से अंक गणित में बहुत फर्क नहीं हुवा है। पहले जो ५०-५० था उसमें थोड़ा १९/२० हुवा है। सपा और राजपा एक होने के बाद शायद तीसरा नम्बर आता है सीके राउतका। अकेले वो चुनाव लड़ेंगे तो जाने नजाने केपी ओली द्वारा प्रयोग हो जाएंगे। सपा और राजपा का भोट काटेंगे, खुद मधेसमें ५% या उससे कम पर अटक जाएंगे। सपा और राजपा का भोट काट कर मधेसमें कांग्रेस कम्युनिस्ट के जीतका मार्ग प्रशस्त करेंगे। वो नहीं होने देना है। मुद्दा जब हुबहु मिलता हो तो अलग पार्टी चलाने का मतलब क्या? अन्त में शायद हृदयेश त्रिपाठी आ सकेंगे। १०-१२ महिने में जब प्रचंड प्रधान मंत्री बनेंगे तो हृदयेश त्रिपाठी का उस मंत्री मंडल में आने की संभावना है। मंत्री बनना बड़ी बात नहीं। वो जरुरी चीज नहीं है। लेकिन ओली से अलग चल कर अगर प्रचंड संविधान संसोधन का मुद्दा आगे बढ़ाते हैं जैसा कि सोंचा जा रहा है तो हृदयेश के उस प्रयोग के लिए भी थोड़ा समय दे दिया जाए। उपेन्द्र यादव भी तो उसी आशा में मंत्रीमंडल में बैठे हुवे हैं। पुर्व माओवादी वाले भले संविधान संसोधन की बात करे पुर्व एमाले वाले जो कि बहुमत में हैं वो रोड़ा अड़कायेंगे ऐसा अनुमान किया जाता है। तो प्रयोग असफल होने के बाद हृदयेश त्रिपाठी या तो नया झंडा ढूढ़ेंगे या तो फिर उनकी राजनीति समाप्त हो जाएगी। छोटेमोटे कई जनजाति पार्टियां हैं। उन्हें भी मुद्दा के आधार पर एक एक कर के एकीकरण करते हुवे आगे बढ़ना होगा।

पार्टी एकीकरण का अंकगणित

फोरम और राजपा ५०-५० पर थे। अब नया शक्ति से मिलने के बाद शायद सपा को थोड़ा और बड़ा मानना होगा। अब शायद ५५-४५ पर बात हो। पार्टी एकीकरण की बात शुरू होते तक सीके राउत के जनमत पार्टी की सदस्य संख्या कितनी पहुँचती है। वो देखना होगा। अगर पार्टी सदस्य संख्या एक लाख से उपर ले जाते हैं तो सपा प्लस राजपा को २/३ और जनमत पार्टी को एक तिहाई मान कर एकीकरण किया जा सकेगा। सीके राउत को पार्टी में प्रथम पाँच में एक पद देना होगा। हृदयेश त्रिपाठी को तो कपिलवस्तु या रुपन्देही या परसा महोत्तरी कहीं एक सीट देना होगा। उनके कुछ साथीयों को पश्चिम तराई में टिकट। हृदयेश संसदीय मनस्थिति ले के चलते हैं। हृदयेश को पार्टी भितर पद अंक गणित नहीं केमिस्ट्री और हिस्ट्री के आधार पर दिया जाना जरुरी है। एक सम्मानजनक पद।

चुनाव से एक साल पहले पार्टी एकीकरण का काम ख़त्म कर लेने के बाद एक नजर कांग्रेस पार्टी पर भी डालने की जरुरत पड़ सकती है। लेकिन पहले मुद्दा की बात होगी। संविधान संसोधन के मुद्दे पर कांग्रेस एक ज्वॉइंट मेनिफेस्टो पर अगर तैयार हो जाती है तो उसको मधेसमें २५% और पहाड़में ५०% सीट देकर एक मोर्चा बनाया जा सकता है। लगभग दो तिहाई पर रही नेकपा को फेकना है तो उतना करना पड़ सकता है।

पार्टी एकीकरण की केमिस्ट्री 

केमिस्ट्री में प्रथम बात तो मुद्दा ही है। मुद्दा स्पष्ट है। लेकिन विभिन्न नेताओं के पर्सनालिटी की भी बात आ जाती है। पार्टीका अध्यक्ष कौन बने? ये केमिस्ट्री की बात नहीं है। ये अंक गणित की बात है। लेकिन इसको केमिस्ट्री की बात बना कर अभी तक पार्टी एकीकरण को न होने देने का काम किया गया है। उपेन्द्र यादव को लगता है मुझे पार्टी अध्यक्ष मानिए दो मिनट में पार्टी एकीकरण हो जाएगा। राजेन्द्र महतो को लगता है उपेन्द्रजी अध्यक्ष मंडल में एक सीट आप भी ले लिजिए। ऐसे में मुद्दा गौण हो जाता है। जो ओली संविधान संसोधन का विरोध कर के ही चुनाव जिता है उसी ओली को अनुनय विनय करने पहुँच जाते हैं कि संविधान संसोधन करो।

आपको पार्टी अध्यक्ष बनना है तो व्यापक संगठन विस्तार करिए ताकि ज्यादा से ज्यादा महाधिवेशन प्रतिनिधि आपको मत दें। और उस अंक गणित के आधार पर बनिए पार्टी अध्यक्ष। लेकिन पार्टी अध्यक्षता सिर्फ अंक गणित की बात नहीं है। पार्टी के अंदर एक ऐसी राजनीतिक संस्कृति होनी चाहिए की नेतृत्व परामर्श खोजने वाली हो अर्थात कंसल्टेटिव (consultative) . निर्णय करिए व्यापक छलफल के बाद। पार्टी  पदाधिकारी, पोलिटब्युरो सदस्य, केन्द्रीय समिति को लगे कि सभी बड़े छोटे निर्णय में ज्यादा से ज्यादा सहभागिता रहती है।

अंक गणित के आधार पर भले ही पार्टी अध्यक्ष उपेन्द्र यादव हो जाएँ लेकिन पार्टी नेतृत्व का स्टाइल राजपा के अध्यक्ष मंडल टाइप का ही होना होगा। व्यापक विचार विमर्श के आधार पर निर्णय की संस्कृति अपनानी होगी। इसके लिए पार्टी के शत प्रतिशत केन्द्रीय सदस्य और पदाधिकारी निर्वाचित होने की व्यवस्था की जा सकती है। पार्टी के भितर भी तो आरक्षण चलेगी। जहाँ दलित पदाधिकारी चाहिए वहाँ सिर्फ दलित उम्मेदवारी की नियम बनाई जा सकती है।

एकीकृत पार्टीका अंतिम नाम जनता पार्टी या नेपाल जनता पार्टी कर सकते हैं।

मुद्दा के प्रति वफ़ादारी

सामाजिक न्याय की बात करने वाले पार्टी और नेतागण वास्तव में मुद्दा के प्रति वफादार हैं तो पार्टी एकीकरण के महत्व को समझेंगे और अगली चुनाव के लिए उसे अपरिहार्य मानेंगे। जनता से मैंडेट लाइए और खुद संविधान संसोधन करिए।

एकीकृत पार्टी ले काठमाण्डु उपत्यका को १० को १० सीट ताकन सक्छ। राजेन्द्र श्रेष्ठ कीर्तिपुर बाट सांसद बन्छन।

Thursday, July 18, 2019

Federalism: Unfinished Business In Nepal



The republic has been established, a basic democracy has been established, but the federalism in Nepal is in name only. Federalism in Nepal today feels like democracy in 1988. It is unfinished business. A cosmetic federalism has been enshrined in the constitution, but even that limited federalism is thwarted by the state in practice every step of the way.

The Nepali Congress that held sway over the country from 1990 to 2005 and the Nepal Communist Party that has become the new status quo both are inherently anti-federalist forces. Their commitment to federalism can be compared to the commitment of the royalist party RPP to democracy. It is in name only. They never wanted it, and so worked in tandem to dilute it as much as possible. The fascist suppression of the Madhesi uprising after the unfair constitution was promulgated is a wound in history that is still gaping. The NC and the NCP are the very reason Nepal has been denied genuine federalism. Only when they are downsized into oblivion will Nepal see federalism the way it was meant to be.

The party that is in the best position to lead Nepal to that promised federalism right now is the Samajwadi Party that was formed when Upendra Yadav and Baburam Bhattarai joined forces. It also has illustrious leaders like Ashok Rai and Rajendra Shrestha. Other parties with similar commitments to social justice have to do the math and realize it is in unification with the Samajwadi Party that victory lies. The immediate candidates for unification are the Mahanth Thakur led Rashtriya Janata Party, the CK Raut led Janmat Party and the independent political group led by Hridayesh Tripathy. They all are mass-based. There are also smaller parties, many of them Janajati, that are ripe candidates for unification. If this unification can be brought about over the next two years, the party that emerges will be in a good position to sweep the 22 districts in the Terai. The magic of doing that is that then you force the NC and the NCP to compete with each other in the Pahad. The Samajwadi Party's 10 state proposal, explained well, will see it do well also in the Pahad among the Janajati groups.

It would be unrealistic to think the NC and the NCP might get wiped out. But if they are only sufficiently downsized that will force them to change tack. They might then support the constitutional amendments that will give Nepal genuine federalism.

Before the leaders ask the people for sacrifice, they should be willing to do their own internal homework. For the federalists in Nepal, that homework is the work of party unification.


Friday, July 05, 2019

सपा, राजपा, जपा र त्रिपा को एकीकरण

उपेंद्र यादव र बाबुराम वाला समाजवादी पार्टी, राजेंद्र महतो र महंथ ठाकुर वाला राष्ट्रिय जनता पार्टी, सीके राउत को जनमत पार्टी, र हृदयेश त्रिपाठी। यी चार एउटै झण्डा मुनि आउनु बड़ा जरुरी छ। उपेंद्र र बाबुराम त आइपुगे। वर्षौं प्रयास गरे। बल्ल आइपुगे। समय लाग्दो रहेछ त।

अर्को कदम हो समाजवादी पार्टी र राष्ट्रिय जनता पार्टी को एकीकरण। यो ५०-५० फोर्मुला मा गर्दा भइहाल्छ। नाम के राख्ने? त्यो सानो समस्या हो। पार्टी को पोलिटब्युरो भने बलियो हुने भो।

अहिले सीके राउत संगठन विस्तार गर्नमा सक्रिय छन। एक डेढ़ वर्ष त्यसकालागि समय दिन पर्छ। तर त्यसपछि सपा र राजपा एक गरेर बनेको पार्टीले सीके सँग पनि वार्ता थाल्नुपर्छ।

हृदयेश त्रिपाठी सँग एकीकरण गर्न सजिलो छ। हृदयेश को चुनाव क्षेत्र यस्तो विचित्र को बनाइएको छ कि अब त्यहाँ ढाका टोपी लगाएर नै भोट माग्नुपर्ने अवस्था आइसक्यो। अँग्रेजी मा gerrymandering भन्छन। नेपालीमा शायद जेरी पकाएको भनिन्छ होला। हृदयेश कपिलवस्तु, पर्सा, महोत्तरी जहाँ बाट चुनाव लड़े पनि भो। महंथ ठाकुर सर्लाही बाट महोत्तरी पुगिसके। राजेंद्र महतो सर्लाही बाट जनकपुर पुगे। हृदयेश ले नवलपरासी छोड़ने अब। हृदयेश त्रिपाठी सँग एकीकरण गर्न उनलाई एउटा चुनाव क्षेत्र दिनुपर्ने हुन्छ। बस।

यी चार को एकीकरण सँग थुप्रै साना सना पार्टी छन तिनी सँग पनि एकीकरण गर्नुपर्ने हुन्छ।

देशले तेस्रो ध्रुव खोजेको अवस्था छ। पाटन मा मशाल जुलुस निस्किनु भनेको तख्तापलट।

महाकाली भारत लाई बेचेर केपी ओली ले आफ्नो लागि महल खड़ा गरे। भारत लाई गाली गरेर दुई तिहाई। दुई तिहाई गन्हाइ सक्यो। काठमाण्डु उपत्यका का जनता कम्युनिस्ट लाई मन पराउन छोड़ेको काँग्रेस लाई मन पराउन नसकेको अवस्थामा छन। These are gathering storms. आकाशमें बादल मंडरा रहे हैं।

तर नेता हरुले आतंरिक गृहकार्य त गर्नुपर्छ। एकीकरण नै त्यो गृहकार्य हो।





Sunday, March 24, 2019

सीके राउत को जनमत पार्टी को आगामी तीन वर्ष



संसदीय चुनाव एक वर्ष अगाडि भएको। भने पछि चार वर्ष बाँकी। तर स्थानीय चुनाव हुन अब तीन वर्ष मात्र बाँकी। भने पछि सीके राउत को जनमत पार्टी ले एक वर्ष लगाएर संगठन विस्तार गरेर पार्टी को महाधिवेशन गर्नु पर्ने हुन्छ। पार्टी को सदस्य संख्या जति ठुलो बनाउन सकियो त्यति राम्रो। पार्टी को सदस्य संख्या एक लाख मात्र बनाउने हो भने फोरम र राजपा ले जनमत पार्टी लाई आफ्नो बराबरको हैसियतको पार्टी मानन कर लाग्छ।

यस एक वर्षका दौरान जनमत पार्टी ले फोरम र राजपा र साथै काँग्रेस कम्निस्ट सँग प्रतिस्प्रधा नै गर्नुपर्ने हुन्छ। नेपाल सरकार ले जुन सुकै नागरिक लाई राज्य सभा मा मनोनित गर्न पाउने प्रावधान छ। यदि यो ओली सरकार ले सीके लाई राज्य सभा मा मनोनित गर्छ भने त्यो राम्रो कुरा हो। सभी पक्ष का लागि राम्रो हो।

संगठन विस्तारका दौरान सीके ले संविधान संसोधन को वरिपरि को संवादमा सकेसम्म ठुलो भुमिका खेल्नुपर्ने हुन्छ। मधेस अलग देश का लागि जुन स्पष्ट तर्क हरु सीके ले पेश गरे अब त्यसै गरी मधेस आंदोलन ले चाहेको संविधान संसोधन को प्रत्येक बुंदा को पक्षमा त्यसै गरी तर्क हरु पेश गर्नु पर्ने हुन्छ। ती तर्क हरु काँग्रेस कम्निस्ट को टाउको मा बजार्ने हो। ओली को बाँकी डेढ़ वर्षमा त्यस किसिमले खेत खन्ने गरेर प्रचण्ड प्रधान मंत्री भए पछि खेत रोप्ने गर्नु पर्छ।



मधेस आन्दोलनले चाहेको बुंदा हरुको पक्षमा तर्क हरु त पेश गर्नु पर्ने भयो नै। तर वार्ता को क्रममा अर्को पक्षले भन्ने गरेका कुरा हरु सुनें पनि बुझे पनि मनन पनि गरें भन्ने भान पार्नु पर्यो। सीके ले ओली सँग गरेको ११ बुँदे नै रोडमैप हो। ब्रेकथ्रू (breakthrough) नहुँदा सम्म मीडिया बाट टाढै बसेको राम्रो।

तर महाधिवेशन गरिसकेपछि सीके ले फोरम र राजपा सँग (हृदयेश सँग पनि) पार्टी एकीकरण गर्न निर्णायक भुमिका खेल्नुपर्ने हुन्छ। त्यस का लागि एक वर्ष समय लाग्न सक्छ। मधेस आन्दोलनको कमजोर पक्ष नै यही हो कि तीन पार्टी तीन ठाउँमा छन। त्यसरी छरिएर बस्दा गन्तव्यमा कसरी पुगिन्छ?

तीन पार्टी एकीकरण गरे पछि अनि प्रचण्ड सरकार ले आफसेआफ संविधान संसोधन गर्छ। गर्न कर लाग्छ। संविधान संसोधन नगरेर अर्को चुनावमा मधेसका २० जिल्लामा लोप्पा खानु छ र भन्ने हुन्छ। अहिले त मधेसका २० जिल्लामा लोप्पा खानु छैन भने तीन मधेसी पार्टी लाई फुटाउ र राज गर भन्ने मनस्थिति छ।

भने पछि पहिलो वर्ष संगठन विस्तार, पार्टी महाधिवेशन र संविधान संसोधन को पक्षमा तर्क हरु पेश गर्ने। दोस्रो वर्ष तीन पार्टी को एकीकरण र संविधान संसोधन। त्यस पछि को तेस्रो वर्ष चुनावमा होम्मिने। मधेसका २२ जिल्ला त ताक्ने ताक्ने, बाँकी सकेसम्म धेरै जिल्ला पनि ताक्ने। पहाड़ र हिमाल का जिल्ला नपसी काँग्रेस कम्निस्ट लाई रक्षात्मक (defensive) अवस्थामा पुर्याउन सकिँदैन।

चौथो वर्ष संसदीय चुनाव। त्यस चुनावमा राष्ट्रिय जनमत फोरम देशको सबैभन्दा ठुलो पार्टी बन्ने संभावना रहन्छ।

सीके ले विगत केही वर्ष मधेस अलग देशको पक्षमा आंदोलन गरेर कुनै घाटा लागेको छैन। सीके को ब्रांड बिल्डिंग भएको छ। अब अर्को फेज शुरू।




Saturday, March 16, 2019

एक मधेसी दल ले निर्णायक भुमिका खेल्न सक्छ

फोरम, राजपा र सीके राउतको संगठन लाई एकीकृत गरेर बनाइएको एउटै राजनीतिक पार्टीले देशको राजनीति मा निर्णायक भुमिका खेल्न सक्छ। संघर्ष काठमांडु को सत्ता सँग मात्र छैन। संघर्ष आफ्नो पक्ष भित्र पनि छ। बाह्य र आतंरिक दुबै किसिमको संघर्ष गर्न तैयार हुनुपर्ने हुन्छ।

पहिलो संविधान सभाको अन्त्य तिर चितवन बाहेक एक मधेस दो प्रदेश को प्रस्ताव आउदा स्वीकार नगर्नु गल्ती थियो भनेर आत्मालोचना गरेको खोइ मधेसी नेता हरुले? जनतासँग अंतिम बलिदान को अपेक्षा राख्ने, आफुसँग भने सकुशल वार्ता गर्ने कलाको पनि अपेक्षा नराख्ने?

सात प्रदेश को नक्शा जुन अंततः पारित पनि भयो र लागु पनि भयो त्यो पहाड़ी पार्टीका नेताहरुले कोरेको हुँदै होइन। पोखरा बाहेक प्रत्येक प्रदेश राजधानी मधेसमा राखिएको छ। मधेसलाई माइनस नै गर्ने ध्येय हो भने राजधानी सकेसम्म मधेसमा नराख्ने सोच हुनुपर्ने। छैन। त्यो त स्थायी सत्ताका ब्यूरोक्रैट हरुले कोरेको नक्शा हो। काठमाण्डु छोड़नै परे सुगम ठाउँ मात्र जाने सोंच हो। सात प्रदेश को नक्शा त स्थायी सत्ताले कोरेको नक्शा हो। विराटनगर, जनकपुर, हेटौंडा, भैरहवा, सुर्खेत, धनगढ़ी: प्रदेश राजधानी जति सबै मधेसमा। एउटा पोखरा चाहिं परेन। तर पोखरा लाई दुर्गम ठाउँ भन्न मिल्दैन।

एक मधेस एक प्रदेश, पछि एक मधेस दो प्रदेश खोजेका हरुले अन्त्यमा त देशका सात मध्ये ६ वटा प्रदेश पाएको देखियो। सात मध्ये ६ वटा राजधानी।

काठमाण्डु निजगढ फ़ास्ट ट्रैक बने पछि र निजगढ अन्तर्राष्ट्रिय विमानस्थल बने पछि देशको अर्थतंत्र को सेण्टर ऑफ़ ग्रेविटी काठमाण्डु बाट सरेर मधेस पुग्छ स्वतः कुरा। भने पछि संघीयता को सेण्टर ऑफ़ ग्रेविटी पनि सात मध्ये ६ राजधानी मा। देशको अर्थतंत्र को सेण्टर ऑफ़ ग्रेविटी पनि।

मधेस हारेको होइन। मधेस ले केन्द्र मा झण्डा गाड्ने तरखर गर्दैछ।

हाइड्रो हाइड्रो भन्छन। हाइड्रो भन्दा अब सोलर को जमाना आउँदैछ। उर्जा को क्षेत्रमा मधेस नम्बर वन हुन्छ। पोल्ने घाम पो लाग्छ मधेसमा।


Tuesday, March 12, 2019

सांगठनिक एकीकरण पछि हुन्छ संविधान संसोधन



हृदयेश त्रिपाठी समय समय मा मीडिया मा आएर जनगिंछन। मैले क्षेत्रीय पार्टी छोड़ें राष्ट्रिय पार्टी समाते ताकि राष्ट्रिय पार्टी ले संविधान संसोधन गरोस तर मैले त्यो राष्ट्रिय पार्टीको सदस्यता लिएको छैन, संविधान संसोधन गरेकै छैन कसरी सदस्यता लिने!

आधुनिक मधेसी आन्दोलनमा वास्तवमा गजेंद्र नारायण सिंह पछिको सबैभन्दा पुरानो मान्छे हृदयेश। त्यो मेरो निजी प्रत्यक्ष ज्ञान नै हो। र अहिलेको कदमलाई मैले न विचलन मानेको छु न वेदानन्द झा प्रवृति। पार्टी भन्दा जनता माथि हो। तर दलीय राजनीति गर्ने ले एउटा न एउटा पार्टी समाउनै पर्छ। अहिले हृदयेश पानी बिनाको माछो, पार्टी बिनाको नेता बनेका छन। २०४६ पछि नै लगातार देखिएको कुरा, हृदयेश संसदीय राजनीतिमा रमाउने तर दलभित्रको राजनीति सकेसम्म ऑउटसोर्सिग गर्ने मान्छे भएकोले यो अवस्थामा आइपुगेको हो। अब त मधेसमा दलभित्रको राजनीति पनि संसदीय राजनीति जतिकै रोचक भएको छ। हृदयेश त्रिपाठी ले अब निर्णायक भुमिका खेल्नुपर्ने हुन्छ पार्टी एकीकरण मा। हृदयेश प्राइम मिनिस्टर मटिरिअल मान्छे त हो, तर प्राइम मिनिस्टर बनने नबनने त समयले बताउने कुरा हो। सीके पनि विदेश पढेको, बृक्खेश पनि बिदेश पढेको, हृदयेश पनि बिदेश पढेको। प्रचंड चाहिं जङ्गलमा पढेको।

राजेन्द्र महतो को केपी ओलीसँग सीधा क्लैश भएको मधेस आंदोलन ताका। तर केपी ओलीसँग कम उपेंद्र यादव सँग बढ़ी बाझ्ने नेता पो हुन कि राजेंद्र!

आफ्नो निजी राजनीतिक करियर भन्दा मधेसको मुद्दा लाई माथि मान्नुपरयो र समाधान तर्फ जानुपर्यो। महाधिवेसनले यदि उपेन्द्र यादवलाई अध्यक्ष निर्वाचित गरेछ भने त्यसलाई मान्छु भन्ने माइंडसेट बनाउनु परयो। पार्टीमा अध्यक्ष नै त सबै थोक होइन। अरु पनि शीर्ष पद हुन्छन्।



एउटै पार्टी राष्ट्रिय फोरम र ६ जना सह-अध्यक्ष



अझ अशोक राइ लाई थपेर सात नै बनाउनु श्रेयस्कर हुन्छ कि! पहाड़मा पनि जुन संगठन विस्तार जो गर्नु छ।

बाबुरामको प्रश्न : सिके राउतसँग सेटिङ, रेशमलाई जन्मकैद?
सिकेसँगको सम्झौता राष्ट्रघाती, ओलीले खण्डन गर्नुपर्छ : देउवा
सिकेसँग झुक्ने होइन, समातेर कारबाही गर : कमल थापा
राजपा नेता भन्छन्- सिके राउतको ‘दोकान’ चल्दैन!
‘सिके राउतले आत्मसमर्पण गरेका होइनन्’
प्रधानमन्त्रीको सम्बोधनः जनमत संग्रह, मृत संस्था र चन्दा असुली!
युएनपीओमा सिके राउत ! ‘मधेस’ लाई ताइवान र तिब्बतकै ‘स्टाटस’

र यी सात पनि महाधिवेशन सम्म मात्र हो। महाधिवेशन पछि त एक जना मात्र निर्वाचित अध्यक्ष हुने हो। र अहिले लाई यी सात बाहेक अरु लाई एउटा पोलिटब्युरो बनाएर राखदिने। राजपा का अध्यक्ष मंडलका अरु हरु, त्यति नै संख्यामा फोरम का, सीके र हृदयेश का संगठनका मानिस। २१ जनाको पोलिटब्युरो।

सरकार सँग वार्ता सफल नभएको यो सांगठनिक एकीकरण न गरेर हो। आफ्नो आंगको भैंसी देख्ने।

सीके राउत र केपी ओली बीच सम्झौता र आफैमा बाझियेका तर्कहरू

Friday, March 08, 2019

सीके र चुनावी अंकगणित

अहिलेको नेपालको संविधानमा अलग देश का लागि जनमत संग्रह गर्न पाउने कुनै प्रावधान नै छैन। त्यति मात्र होइन कुनै प्रदेश सरकारले त्यस किसिमको जनमत संग्रह गर्ने प्रयास मात्र गरे केन्द्र सरकारले प्रदेश सरकार बर्खास्त गर्ने प्रावधान छ। भने पछि लक्ष्य जनमत संग्रह नै हो भने पनि पहिलो लक्ष्य त्यस किसिमको संविधान संसोधन हो। त्यसका लागि मधेसी समुदाय को जनमत बटुल्नु पर्यो र जनजाति समुदाय लाई पनि रिझाउन सक्नुपर्यो।

भने पछि पार्टी निर्माण, संगठन विस्तार अनि पहाड़ पस्ने। फोरम, राजपा र राउत को गठबंधन एकीकरण गरेर यदि एउटै पार्टी बनाइन्छ भने अहिले संविधान संसोधनको पक्षमा शक्ति जम्मा हुन्छ। र संसोधन हुन बाँकी रहने कुरालाई अर्को चुनावमा एजेंडा बनाउन पाइयो। त्यो एकीकृत पार्टीले स्वीप गर्छ। मधेस र थरुहट मा स्वीप गर्यो भने काँग्रेस कम्युनिस्ट पार्टी सँग पहाडमा प्रतिस्प्रधा गर्न बाध्य हुन्छ।

फोरम, राजपा र राउत को गठबंधन एकीकरण गरेर यदि राष्ट्रिय फोरम नामको पार्टी बन्छ भने र त्यो पार्टी ले मधेसका २२ जिल्लामा ६५% मत र सीट लिन्छ भने र पहाडमा काँग्रेस र कम्युनिस्ट ले ५०-५० सीट र मत बाड़न पुग्छन भने राष्ट्रिय फोरम देशको सबैभन्दा ठुलो शक्ति पो बन्छ त।

त्यस अवस्थामा माग राख्ने होइन आफ्नो माग आफै पुरा गर्ने अवस्था आउँछ। भने पछि मधेसी समुदाय लाई अधिकार सम्पन्न बनाउन गर्नु पर्ने सबैभन्दा महत्वपुर्ण काम नै फोरम, राजपा र राउत को गठबंधन एकीकरण गरेर एउटै एकीकृत पार्टी बनाउनु हो। संगठन विस्तार गर्नु हो।

हृदयेश को स्वतंत्र राजनीतिक समुह लाई पनि मिसाउँदा चार जना सह-अध्यक्ष हुने पो हो कि?




Saturday, December 09, 2017

फोरम राजपा दोस्रो शक्ति बन्ने बाटो





(तस्वीर: यो लेख लेख्दा को चुनावी परिणाम)

अंतिम नतिजा आउँदा सम्म प्रचंड नै पाँच वर्ष प्रधानमंत्री बन्ने संभावना भएको अंकगणित उजागर हुन सक्छ। उमेर पनि छिप्पिँदै छ। यो प्रचंड को अंतिम अवसर नै हो। तर एमाले एक्लै ले बहुमत ल्याए प्रचंड एकीकृत पार्टी को पार्टी अध्यक्ष बन्न शायद बढ़ी रुचाउलान। प्रत्यक्षमा नंबर तीन पार्टी बने पनि समानुपातिक को नतिजा आउँदा सम्म काँग्रेस नंबर दुई पार्टी बन्छ होला। एमाले माओवादी एकीकरण गरेर अत्यन्तै ठुलो पार्टी अनि त्यसको तुलनामा एक तिहाई आकारको सानो नाम मात्रको नंबर दुई पार्टी काँग्रेस। एमाले माओवादीले एकीकरण गरे जस्तै फोरम राजपा ले एकीकरण गर्ने पक्का पक्की छ। प्रदेश नंबर दुई मधेस प्रदेशमा सजिलै दुई तिहाई पुगेको पार्टीले त्यस पछि राष्ट्रिय स्तर मैं काँग्रेस लाई उछिनदै नंबर दुई पार्टी बन्ने कदम हरु चाल्न थाल्नुपर्छ। नेपालको काँग्रेस अब भारतको काँग्रेस जस्तो भयो। गणतंत्र भारतमा राजा रजौटा हरुको हविगत जस्तो।

एमाले एक्लै ले बहुमत अथवा झन्डै झन्डै बहुमत ल्याउने, एमाले माओवादी मिलेर झन्डै झन्डै दुई तिहाई ल्याउने र सात मध्ये छ प्रदेशमा सरकार बनाउने अवस्था आएमा एकीकृत कम्युनिस्ट पार्टीले फोरम राजपा लाई सरकार मा डाक्दैन। फोरम राजपा सँग प्रदेश २ मा प्रदेश सरकार रहन्छ। त्यहाँ बाट आफ्नो पदछाप (footprint) बढाउन फोरम राजपा ले के गर्ने? कम्युनिस्ट ले लगातार ५० वर्ष त शासन गर्दैन (हिटलर ले १,००० वर्ष भनेथ्यो) तर 5 वर्ष शासन गर्ने गारंटी भइसक्यो। त्यो 5 वर्ष पछि केन्द्रमा फोरम राजपा को सरकार बनाउने बाटो के?

पहिलो कदम: पार्टी एकीकरण 

फोरम र राजपा ले तुरन्ता तुरुन्तै पार्टी एकीकरण गर्नु पर्यो। एमाले माओवादीले गरेभन्दा पहिला गर्नुपर्यो। एकीकृत पार्टी को नाम के हुने? राष्ट्रिय समाजवादी फोरम? चुनाव चिन्ह छाता वा मशाल? शायद मशाल। महंथ ठाकुर, उपेंद्र यादव र राजेंद्र महतो लाई समायोजन कसरी गर्ने? महंथ ठाकुर सर्वोच्च नेता, उपेंद्र यादव अध्यक्ष, राजेंद्र महतो वरिष्ट नेता? शायद।  अशोक राई पनि वरिष्ठ नेता। ११ सदस्यीय पोलिटब्युरो मा सरिता गिरी महिला नेत्री। लेखी लाई पनि पोलिटब्युरो मा ल्याउनुपर्छ।

दोस्रो कदम: संगठन सुदृढ़ीकरण

केंद्रीय समिति ३१ जनाको हुन्छ। एउटा कोठामा बसेर छलफल गर्न मिल्ने किसिमको हुनुपर्छ। काठमाण्डु मा वडा समिति मा बस्नुपर्ने मानिस हरुलाई पार्टी को केंद्रीय समिति मा राख्ने परिपाटी ले पार्टी लाई कमजोर बनाउँछ। दुई पार्टी को एकीकरण पछि वडा देखि केंद्र सम्म एकीकृत समिति हरु बनाउँदै जानुपर्ने भो।

तेस्रो कदम: Shopping: हृदयेश त्रिपाठी 

हृदयेश त्रिपाठी ले एमाले प्रवेश गरेको होइन, मधेसवाद छोडेको होइन। सुर्य चिन्ह मा जितेको स्वतंत्र सांसद हो। एमाले ले संविधान संसोधन गर्दैन भने त्रिपाठी ले मंत्री खान पनि मिल्दैन। मंत्री खायो कि त्यसपछि राजनीति समाप्त भयो। विजय गच्छेदार जस्तो। त्रिपाठी लाई फेरि पार्टी मा ल्याउनुपर्छ। वरिष्ठ नेता बनाउनुपर्छ। अर्को पटक उसको क्षेत्र मा कांग्रेस ले उम्मेदवारी दिँदैन। फेरि जित्छ उ। त्रिपाठी बिना पस्चिम तराई मा पार्टी लाई बलियो बनाउनु गार्हो काम हो। र पश्चिम तराई मा बलियो नबनेसम्म पहाड़ छिर्न सकिँदैन।

चौथो कदम: Shopping: बाबुराम भट्टराई + सीके राउत 

बाबुराम भट्टराई लाई पार्टी अध्यक्ष अथवा संसदीय दलको नेता चाहिएको होइन। वरिष्ठ नेता भए पुग्यो। दमजम ले पाउनु पर्ने अझै पाइनसकेको भन्ने गहिरो आभाष छ। तर बाबुरामको प्रमुख महत्व चाहिं कहाँ छ भने नेपालको आर्थिक क्रांति का लागि जुन किसिमको राजनीतिक स्पष्टता बाबुरामको दिमागमा छ त्यति स्पष्ट सँग अरु कसैको दिमागमा छैन नेपालको समसामयिक राजनीति मा। मोदीले तेली तेली भन्दै माथि पुगेका होइनन। विकास विकास भन्दै पुगेका हुन। राष्ट्रिय समाजवादी फोरम ले कम्युनिस्ट लाई उछिन्ने बाटो आर्थिक क्रांति मात्र हो। मधेसी मधेसी जनजाति जनजाति भन्दै उछिन्ने ठाउँ छैन। त्यस अर्थमा समस्त फोरम राजपा जमात बाबुराम बाट infect हुनु जरुरी छ। एकीकरण भए राष्ट्रिय पार्टी वाला बखेड़ा पनि समाप्त। बाबुरामले त्यो चाहेको हो।

सीके राउत लाई integrate गर्न जुन किसिमको गृहकार्य गर्नुपर्ने हो त्यो प्रयास गरेको देखिएन। मत बदर अभियान ले मधेस अलग देश त बन्दैन तर सीके राउत लाई irrelevant चाहिं पक्कै बनाउँछ।

पाँचौ कदम: महाधिवेशन

देशव्यापी व्यापक सदस्यता वितरण गरे पछि पार्टी महाधिवेशन गर्नु पर्छ। अशोक राई एक्लै ले गर्न नसकेको अशोक राई र बाबुराम भट्टराई मिले भने गर्छन कि! पहाडका जनजाति ले कहिले हो पत्याउने?

अर्को स्थानीय चुनाव 

पुर्वी तराई मा पकड़ कायम राख्दै पश्चिम तराई मा नंबर एक बन्नु पर्छ। पहाड़मा विभिन्न ठाउँ मा खाता खोल्नुपर्छ। नंबर दुई पार्टी बन्नुपर्छ। १० लाख बढ़ी वोट ल्याउनु पर्छ।

काँग्रेस: जुनियर पार्टनर

अर्को संसदीय चुनावमा त्यति बेलाको तेस्रो ठुलो पार्टी काँग्रेस लाई जुनियर पार्टनर बनाएर चुनावमा होम्मिनुपर्छ र सत्ता कब्ज़ा गर्नुपर्छ।



Friday, December 08, 2017

वाम गठबंधन र मधेसी गठबंधन को संयुक्त सरकार बन्नुपर्छ



(तस्वीर: यो लेख लेख्दा को चुनावी परिणाम)

"Keep strong, if possible. In any case, keep cool. Have unlimited patience. Never corner an opponent, and always assist him to save face. Put yourself in his shoes - so as to see things through his eyes. Avoid self-righteousness like the devil - nothing is so self-blinding."

कुरा अंकगणित को मात्र होइन। भूराजनीतिले नेपाल ले न चीन लाई जिस्क्याउ न भारत लाई जिस्क्याउ भन्छ। विदेशी पुँजी (FDI: Foreign Direct Investment) दुनिया भरि बाट र चीन बाट पनि भारत भित्र्याउने दौडमा मोदी केही वर्ष देखि कूदेको कुदै छन। चिनिया पुँजी नेपालमा आउनु भारतको टाउको दुखाइ हुन सक्दैन। तर नेपाल कालागि भारतको ठाउँ कुनै मुलुकले लिन सक्दैन। भुगोल बदल्न सकिँदैन, बदल्न जरुरी पनि छैन। नेपालको तीव्र आर्थिक प्रगतिमा चीनको पनि, भारतको पनि सकेसम्म सहभागिता खोज्नु जरुरी छ। त्यस संतुलन का लागि पनि काठमाण्डु मा वाम गठबंधन र मधेसी गठबंधन को संयुक्त सरकार बन्नुपर्छ।

यस चुनावको विजेता यी दुई गठबंधन हुन। सच्चा गठबंधन बनाउने दुबै विजयी भए। सच्चा गठबंधन पार्टी एकीकरण सम्म पुग्छ।

तर संविधान संसोधन को मुद्दा लाई बिर्सेर मधेसी गठबंधन ले कसैसँग हातेमालो गर्ने अवस्था छैन। प्रचंड ले पनि मधेसी लाई चट्टई बिर्सन नैतिकता ले दिँदैन। तर ठ्याक्कै मधेसी दल हरुले भने जस्तै हुनु पर्दैन। वार्ता शुरू गर्नुपर्छ। हल्का थपघट हुन सक्छ। लेनदेन का लागि ठाउँ छ। नागरिकता को सवाल मा कुरा दिल्ली सम्म पुर्याउन सकिन्छ। भारतीय नागरिकले नेपाली नागरिक विवाह गर्दा र नेपाली नागरिकले भारतीय नागरिक विवाह गर्दा दुबै देशमा एकै किसिमको कानुन हुनुपर्ने अडाण नाजायज हुने छैन।

संविधान संसोधन को मुद्दा लाई टुङ्गो लगाउनु को फाइदा हो देशले आर्थिक प्रगति मा लेजर फोकस (laser focus) गर्न पायो। र देशले चाँडै नै १०% आर्थिक वृद्धि दर उच्छिन्न सक्ने देखिन्छ।

पहाडमा वाम को प्रतिद्वंदी काँग्रेस, तराई मा मधेसी को प्रतिद्वंदी काँग्रेस। वाम गठबंधन र मधेसी गठबंधन एक ठाउँ मा आउनु अत्यंत सहज र प्राकृतिक (natural) कुरा हो। सन १९५० मा राजनीतिक यात्रा शुरू गरेको नेपाली काँग्रेस ले। सन २०१७ मा आएर त्यो सकिएको छ। अब पाँच वर्ष पछि पालो विवेकशील साझा को हो शायद। काँग्रेस ले घुँडा टेक्यो। अब फेरि उभिँदैन।

तर विवेकशील को उकालो यात्रा भने शुरू हुन सकेन। विवेकशीलका सामुन्ने अब केजरीवाल वाला बाटो उपलब्ध छ। पहिला काठमांडु मा सरकार बनाएर देखाउ अनि बल्ल राष्ट्रिय राजनीति को कुरा गर। वैचारिक दृष्टिकोण ले एमाले र माओवादी एक भए जस्तै, फोरम र राजपा एक भए जस्तै, विवेकशील साझा र नया शक्ति एक हो तर विवेकशील साझा ले बाबुरामको माओवादी हिंसाको इतिहास माफ़ गर्ने र उमेरको फरक काट्न सकने क्षमता देखाएको अवस्था छैन। होइन भने एक सीट बाबुरामको र तीन प्रतिशत दुबै को जोडेर मत, अनि भएन त राष्ट्रिय पार्टी? तीन लाख मतले कमसेकम छ समानुपातिक सीट त ल्याउँथ्यो। नया विवेकशील साझा।

गगनले पार्टी भित्र ढाल्नुपर्ने स्तम्भ हरु जनताले नै ढालिदिएको अवस्थामा गगनले हिम्मत गरेर संसदीय दलको नेतृत्व खोस्न सके काँग्रेस ले पीढ़ी हस्तांतरण गरेर भविष्यमा प्रतिस्पर्धामा आउने संभावना हुन्थ्यो कि! होइन भने बाटो अगाडि ओरालो ओरालो मात्र देखिन्छ काँग्रेस का लागि।

तीन राष्ट्रिय पार्टी: कम्युनिस्ट, कांग्रेस, मधेसी। कुहिरो हट्यो। आकाश साफा भयो।

















































Wednesday, September 20, 2017

तेस्रो चरणको स्थानीय चुनावको संभावित मैंडेट: फोरम र राजपा एकीकरण गर





हुन त नतिजा आउन बाँकी छ। तर यस एग्जिट पोल लाई आधार मान्ने हो भने यस तेस्रो चरणको चुनावको मैंडेट फोरम र राजपा एकीकरण गर भन्ने देखिन्छ। दुई तिहाई राजपा र एक तिहाई फोरम ले लिने गरी नया किसिमले संगठन निर्माण गर्दा हुन्छ। गच्छेदार को त बेहाल छ। राजपा सँग एकीकरण नगरी नहुने जस्तो देखिन्छ। उपेंद्र यादव ले पार्टी मा नंबर दुई पोजीशन पाउनु पर्छ। यसरी एकीकरण गरिएको पार्टी ले ७५ जिल्ला मा चुनाव लडन सक्छ। प्रदेश सभा र संसदको चुनाव का लागि यो एकीकरण अपरिहार्य छ।

उपेंद्र यादव समाजवादी भन्ने हो भने हृदयेश त्रिपाठी त सोभियत संघ को बेलाको मॉस्को मा ट्रेनिंग प्राप्त समाजवादी हो। हृदयेश राजपा मा अटाउंछ भने उपेंद्र किन अटाउंदैन?

एकीकरण को प्रमुख कारण संविधान संसोधन हो। यसरी एकीकरण गरेको पार्टी ले राम्रो चुनावी नतिजा ल्याउँछ र संसोधनको संभावना निकै बढेर जान्छ।  एकीकृत भए पछि बल्ल यो मधेस को नंबर एक पार्टी बन्छ।

नाम राजपा को लिने। चुनाव चिन्ह फोरम को मशाल।






Monday, April 11, 2016

म बाबुराम भट्टराई सँग सहमत छु

लोकतंत्र, मानव अधिकार, गणतंत्र, संघीयता, समावेशीता
सुशासन, शिक्षा, स्वास्थ्य, संरचना, सुलभता
E for Education, E for Entrepreneurship, E for Energy



भट्टराईले जनकपुरमा भने, ‘मधेसमात्र होइन, देशव्यापी आन्दोलन गरौं’
‘नयाँ संविधानमा मधेसी, थारु, आदिवासी जनजातिलगायतका जात–जाति, वर्ग तथा क्षेत्रसँग विभेद भएकै हो । यस राष्ट्रिय समस्याको समाधान मधेस आन्दोलनबाटमात्र सम्भव छैन । राष्ट्रिय आन्दोलनबाटै हुन्छ ।’ ...... मधेसीहरुले प्रमुखताका साथ उठाउँदै आएको सिमांकन सम्बन्धी मुद्दामा आफूहरु पनि सहमत रहेको उल्लेख गर्दै भट्टराईले मधेसी जनताका चाहना तथा समस्या बुझ्न मध्य मधेसका सप्तरीदेखि कपिलवस्तुसम्म स्वयं स्थलगत भ्रमण गर्ने जानकारी दिए । ..... नयाँ शक्ति नेपाल वैशाख ३ गतेदेखि १० गतेसम्म हुलाकी राजमार्गको स्थलगत भ्रमण गर्ने योजना बनाएको छ । सप्तरीबाट सुरु हुने यो भ्रमण कपिलवस्तुमा गएर सम्पन्न हुनेछ । ..... ‘संविधान च्यातेर काम हुँदैन । यसमा केही राम्रा कुराहरु पनि छन् । सालनाल सहितको बच्चा फाल्नु भन्दा सालनाल फाल्नु बुद्धिमानी हुनेछ ।’





मधेसी मोर्चाको नेतृत्व मा शुरू भएको त हो तर यो संसदीय लोकतंत्र को परिधि भित्र रहेको अहिंसात्मक आंदोलन हो। लोकतंत्र मा जन धन दुबै को सुरक्षा हुन्छ। भीडले कतै तोड़फोड़ गरेछ भने त्यो कार्यकर्ता लाई तालीम दिन नपुगेको हो। लोकतंत्र मा पुलिस ले मानव अधिकार को सुरक्षा गर्ने हो, बल प्रयोग गर्नै परेछ भने कानुन को दायरामा गर्नु पर्ने हुन्छ। पुलिस ले मानव अधिकार हनन गरेको छ भने त्यो लोकतंत्र नभएको कुराको प्रमाण हो।

संघीयता र समावेशीता त पछिको कुरा हो, मधेसी त २००७ साल देखि लगातार लोकतंत्र र मानव अधिकार का लागि लडेको लडयै छ। अहिले को पनि प्रथम लड़ाई फासिज्म का विरुद्ध हो।

आंदोलन अहिंसात्मक पनि हो र राजनीतिक पनि। यो जातीय आंदोलन होइन। राजनीतिक मुद्दा को आंदोलन मा मुद्दा को मात्र महत्व हुन्छ। अर्थात ११ बुँदे को समर्थनमा आएको पहाड़ी पनि बाहुन पनि आफ्नो पक्ष को मान्छे भयो। ११ बुँदे को विरोधमा उभिएको मधेसी पनि आंदोलन को विपक्षी भयो। विपक्षी हो तर शत्रु होइन। लोकतंत्र मा कुनै राजनीतिक मुद्दा को समर्थन र विरोध गर्ने अधिकार सबै लाई हुन्छ।

महंथ ठाकुर को राजनीतिक कमजोरी यस मानेमा देखियो कि (१) न तिनले कहिले आफुलाई औपचारिक रुपमा मधेसी मोर्चाको अध्यक्ष बनाए न आफु अध्यक्ष होइन भन्ने कुरा नै माने न सामुहिक नेतृत्व लाई नै औपचारिक रुपमा स्वीकार गरियो, र (२) तिनलाई लाग्यो कि यस आंदोलन को उद्देश्य सत्ता पक्ष लाई महंथ ले convince गरेर ११ बुँदे मा ल्याउनु हो।

कति उदेकलाग्दो विचार! सत्ता पक्ष लाई ११ बुँदे थाहा नभएको हो? लेखपढ गर्ने मान्छे होइनन तिनी? सत्ता पक्ष ले ११ बुँदे नबुझेर त्यसको विरोध गरेको कि बुझेर? यदि समझाइ बुझाइ नै गर्नु थियो भने त त्यो आंदोलन शुरू गर्नु अगाडि गर्नु पर्ने प्रयास हो। आंदोलन गर्नु भनेकै जति सम्झाउँदा पनि मानेन भनिएको हो। आंदोलन भनेको त शक्ति संतुलन आफ्नो पक्ष मा ल्याउने भनेको।

शक्ति संतुलन आफ्नो पक्ष मा कसरी आउँछ? प्रमुख त जनता हो। जनता सडकमा आउँछ भने। तर राजनीतिक मोर्चाबंदी पनि त हो। जनताले गर्नु पर्ने सबै गरेको हो। तर नेता को तरफ बाट राजनीतिक गृहकार्य को कमी कमजोरी देखियो। होइन भने विश्वको प्रत्येक प्रमुख शक्ति ले साथ दिएको छ मधेस आंदोलन लाई। सारा युरोप ले बीपी कोइराला को पक्ष मा कहिले वक्तव्य निकाल्यो? चीन र भारत दुबैले समर्थन गरेको छ।

तर १५ लाख मधेसी सडकमा आउने, ५ लाख मधेस संगठित नहुने कुरामा विश्व शक्ति ले रोल खेल्न सक्दैन। त्यो त मधेसी जनता र नेता ले नै गर्नुपर्ने कुरा हो। संगठन बनाउने काम विश्व शक्ति को होइन, राजनीतिक गृहकार्य गर्ने काम मधेसी जनता को होइन।

मख्य कमी कमजोरी नै राजनीतिक गृहकार्य को देखियो।

मधेसी र जनजाति ले मिलेर आफ्नो मोर्चाको स्पष्ट अध्यक्ष हुने किसिमले मोर्चाबंदी गर्ने हो भने ओली सरकार नै ढल्छ, यो संविधान नै ढल्छ। तर मधेसी मोर्चाका नेता हरु मा ओली प्रति यति सार्हो प्रेमभाव छ कि त्यो कदम लिनै सक्दैन, लिनै चाहँदैन। अनि त्यो कुरा जनताले नबुझ्ने पनि होइन। सबैलाई छर्लङ्ग छ।

५० जना शहीद भइसकेको आंदोलन को नेतृत्व्मा त यस्तो हुनपर्छ कि यो सरकार यो संविधान फाल्नु परे फाल्दिने। समानता पाउन देशलाई दुई त के गर्नुपरे २० टुकड़ा गरिदिने। देश भनेको जनता पनि होइन कि जनता मात्र हो। प्रकृति को देश हुँदैन। प्रकृति मनुष्य जस्तो संकीर्ण होइन। प्रकृति लाई देश कहिले चाहिएको नै छैन। प्रकृति त वसुधैव कुटुम्बकम। देश चाहिएको मनुष्य लाई मात्र हो। भने पछि देश दुई टुकड़ा हुनु हुँदैन भनेर कहाँ लेखिएको छ?

प्रगति गर्न नचाहेको पहाड़ी नेतृत्व छ र तिनलाई समर्थन गर्ने पहाड़ी जनता छ भने मधेसी आफ्नो बाटो लाग्नु पर्यो। कसलाई पर्खेको?


मधेसको समस्या समाधान नभएसम्म संविधान कार्यान्वयन हुँदैन : राणा
उनले नाकाबन्दीपछि पनि कालोबजारी रोक्न नसक्नु सरकारको कमजोरी भएको ..... नेता राणाले १९९० सालको भूकम्पले अहिलेको भन्दा बढी क्षति गरे पनि छ महिनामा पुनःनिर्माणको काम धेरै अघि बढेको तर अहिले एक वर्ष पुग्दा समेत काम अगाडि नबढेकामा असन्तुष्टि व्यक्त गरे ।
ओलीको चीन भ्रमणपछिको मधेस
ओली भ्रमणले चीनसँंग भौगोलिक र आर्थिक सम्बन्धको भविष्यमुखी सुरुआत गरेको थियो, जसबाट तत्कालका लागि कुनै फाइदा हुने थिएन। सन् २०२० मा केरुङ आउने चिनियाँ रेलको प्रयोग गर्न आवश्यक पूर्वाधारको तत्काल विकास गर्नसक्ने हाम्रो क्षमता र सम्भावना दुवै देखिँदैन। त्यो अवस्थामा ल्हासामा जतिसुकै सुन भए पनि नेपालीको कान बुच्चै रहन्छ। सरकारले जनतालाई यो व्यावहारिक कुरा बुझाउने आवश्यकता देखेन। ...... वक्तव्यको प्रक्षेपणपछि युरोपियन युनियन र भारतले नेपालको सार्वभौमसत्तामाथि हस्तक्षेप गरेको भन्दै प्रधानमन्त्री ओली एमाले संसदीय दलको बैठकमा निकै आक्रामक ढंगले प्रस्तुत भए। भर्खर बनेर जारी भएको संविधानलाई चीनले गरेको स्वागत र सम्मानबाट शक्ति आर्जन गरेर फर्केका प्रधानमन्त्री ओलीले ‘उच्च संवैधानिक विधिबाट निर्माण भएको संंविधानमा कुनै समस्या नभएको’ बताए। उनले प्रश्न गरे, ‘अलिकति भुइँचालो आयो, भूपरिवेष्टित भएकोले अलिकति अप्ठेरोमा छ। ......

भर्खरै सार्वजनिक भएको क्राइसिस ग्रुपको रिपोर्ट इयु र भारतको विज्ञप्तिको तुलनामा निकै कडा छ।

....... ओलीले मधेस समस्याको समाधानका लागि आवश्यक व्यापक राष्ट्रिय दृष्टिकोण राखेका छैनन्। ...... प्रधानमन्त्रीको व्यवहार आन्दोलनमा लागेका मधेसी नेतृत्वलाई दुत्कार्ने खालको छ। ...... एमाले केन्द्रीय समितिको बैठकमा उनले स्पष्ट रूपमा नै मधेस आन्दोलनलाई ‘प्रायोजित’ र मधेस समस्यालाई ‘नक्कली’ बताएका छन्। उनले मधेस आन्दोलनलाई प्रायोजित र नक्कली भने पनि यसले आफ्नो मौलिक चरित्र स्थापित गरिसकेको छ। ...... संविधान निर्माणमा सीमांकनको विवाद हुँदा त्यहाँ जस प्रकारको आन्दोलन भयो र त्यसमा जनशक्तिको परिचालन जुन हिसाबले भयो, त्यसैबाट थाहा हुन्छ, चुनावमा जय–पराजय भइनै रहन्छ। पराजित पक्षलाई पन्छाउने प्रवृत्तिले राजनीतिमा एकाधिकारवाद स्थापित गर्छ। ...... प्रधानमन्त्री नहुँदा पनि ओली सधैं समावेशी र सहमतिको संविधानका विपक्षमा उभिएका थिए। उनी बहुमतको दुहाइ दिंँदै एकतर्फी संविधान बनाउने विचारका पक्षपाती थिए। संयोगवश संविधान निर्माणको चटारोमा कांग्रेस र एमाओवादीले ओलीसँंग मत बझाएनन्। रक्तरञ्जित मधेस आन्दोलनका बीच संविधान बन्यो। तर जारी भएको संविधान लागु हुनसकेन। ...... मधेस आन्दोलनप्रति उनमा रहेको तिरस्कार र वितृष्णाभाव प्रधानमन्त्री बनेपछि पनि छुट्ने कुरा थिएन। .....

मधेसको मामिलामा प्रधानमन्त्री ओली संवादमा आउनै चाहेका छैनन्। उनी ह्याकुलाले मिचेर देश चलाउन चाहन्छन्। उनको यो त्रुटिपूर्ण दृष्टिकोणले नेपाल न समावेशी हुनसक्छ, नत संघीय सहकार्यमा नै जान सक्छ।

भारत र चीनसँग नेपालको सम्बन्ध
भारतीय कर्मचारीतन्त्रको नेपाल हेर्ने उही पुरानै सोच छ । ..... नेपाल भारतको प्रभाव क्षेत्र हो भन्ने मानसिकताबाट उनीहरू नेपाललाई हेर्छन् । यसै रूपमा नेपालको सूक्ष्म आन्तरिक विषयमा पनि हात हाल्न खोज्छन् । ..... अर्कोतर्फ झन्डै तीन करोड जनसंख्या र लामो ईतिहास बोकेको नेपाल स्वतन्त्र, सार्वभौम राष्टका रूपमा छरछिमेकी र विश्वको सामु उभिन चाहन्छ । यसरी भारतीय कर्मचारीतन्त्रको यथास्थितिवादी सोच र एक्काइसौं शताब्दीअनुरूप स्वतन्त्र राष्ट्रका रूपमा अघि बढ्न चाहने नेपाली जनताको चाहनाबीचको टकराबका कारण बेला बखतमा भारत र नेपालको बीचमा खटपट देखा पर्छ । ...... नेपाल र भारतको सम्बन्ध पुरानो अवस्थामा रहन सक्दैन । ...... आजको युगको मागअनुसार नेपाल–भारतको सम्बन्धको नयाँ परिभाषा गर्न जरुरी छ । ...... नेपाल र भारतले दुई देशबीचको सम्बन्धलाई अध्ययन गर्न विज्ञ समूह बनाएका छन् । ..... विज्ञ समूहको संयुक्त बैठक एक महिनाभित्र काठमाडौंमा हुने समाचार आएको छ । यो साह्रै राम्रो कुरा हो । दुई देशबीचका सन्धिसम्झौता अध्ययन गर्ने, दुई देशबीचमा गएको साठी वर्षका तीतामीठा अनुभवलाई हेरेर आगामी दिनमा भारत–नेपाल सम्बन्धलाई सुमधुर, एकअर्काको सहयोगी, साझा समृद्धिमा हातेमालो गरी अघि बढ्ने, शान्ति र मित्रतालई सुदृढ गर्ने आधारको साझा प्रतिवेदन ६ महिनाभित्र पेस गर्न दुवै देशले आआफ्नो समूहलाई निर्देशन दिनुपर्छ । ...... भारतका केही सञ्चार माध्यममा भारत, चीन, नेपालको आर्थिक साझेदारीमा सक्रिय रूपमा भारतले भाग लिनुपर्छ भन्ने विचार आउन थालेको छ । प्रधानमन्त्री ओलीको चीन भ्रमणलाई भारतमा सकारात्मक रूपमा हेर्न थालिएको पनि छ । यो शुभसंकेत हो ।
६ बैशाख देखि काठमाडौमा नियमित प्रर्दशन गर्ने मधेशी मोर्चा र आदिवासी -जनजातीको तयारी ।
पदमरत्न तुलाधरको आदिवासी जनजाती संयुक्र राष्टिय आन्दोलन समिती समेत ६ बैशाख देखिको आन्दोलनमा सहभागी हुने छन । ...... ६ बैशाखमा मोर्चाले आदिवासी जनजातीहरु संग मिलेर आयोजना गर्ने कार्यक्रमको नाम नै संयुक्र राष्टिय जनआन्दोलन विषयक वृहत अन्तक्रिया राखिने छ । ...... पहिलो चरणमा १५ दिनको कार्यक्रम घोषणा गरिने तयारी छ, शनिवार बैठकमा सहभागी नेताहरु भन्छन, त्यस पश्चात आमहडाल वा अन्य कडा आन्दोलनमा कसरी जाने वारेमा ठोस निर्णय हुन सक्छ ।

Sunday, March 13, 2016

संगठन विस्तार नै सच्चा र ठोस क्रांति हो



गच्छदारलाई महतोले दिए ठूलो झट्का
फोरमका ११ सय नेता कार्यकर्ता सदभावना प्रवेश

जिल्लामा फोरम लोकतान्त्रिक पार्टी लगभग सखाप भएको अवस्था छ।

सरकारमा सामेल भएपछि पार्टी परित्याग गरेका रौतहट जिल्ला कार्य समितिसहित करीब १ हजार भन्दा बढी नेता कार्यकर्ता गच्छदारकोसाथ छोडेर राजेन्द्र महतोको पार्टीमा प्रवेश गरेका छन् । ..... शनिबार रौतहटको गौरमा सदभावना पार्टीद्वारा आयोजित बिशाल आमसभा तथा पार्टी प्रवेश कार्यक्रममा फोरम लोकतान्त्रिक रौतहटका जिल्ला अध्यक्ष अजय गुप्ताको नेतृत्वमा एघार सय नेता कार्यकर्ता सदभावना पार्टीमा प्रवेश गरेका छन् ।....बिगतको संबिधान सभामा रौतहट क्षेत्र नं १ मा माधव कुमार नेपालद्वारा झिनो मतले पराजित भएका थिए अजय गुप्ता। उक्त कार्यक्रममा काँग्रेस, एमाले, एमाओवादी लगायतको पार्टीबाट पनि ४०० बढी नेता कार्यकर्ता पनि सदभावना पार्टीमा प्रवेश गरेका थिए ।.....पार्टी प्रवेश गर्नेहरूलाई सदभावना पार्टीका अध्यक्ष राजेन्द्र महतोले फुलमाला का साथै अबिर लगाएर स्वागत गरेका थिए। आन्दोलनको क्रममानै फोरम लोकतान्त्रिकका अध्यक्ष गच्छदारले सदभावना अध्यक्ष महतोलाई आफ्नो पार्टीका नेता कार्यकर्तालाई भडकाई पार्टी प्रवेश नगर्न चेतावनी दिएका थिए ।


अब कठोर आन्दोलन हुन्छ : महतो
अधिकारको निमित भएको आन्दोलनले राष्ट्रिय तथा अन्तर्राष्ट्रिय जगतमा मधेशी पहिचान स्थापित गरेको ठोकुवा गर्दै महतोले आफ्नै घटक दलका कारण नाकावन्दी असफल भएको टिप्पणी गरेका छन् । मधेशमा संगठन मजवुत पर्ने अभियान संचालन गरिएको जानकारी गराउँदै अध्यक्ष महतोले संविधान संशोधनवाट मधेशको माग सम्बोधन नभएको उल्लेख गरे । मोर्चाको ११ बुँदे माग बटम लाइन भएकोले एककदम पछाडी नहट्ने दावी गरे । मधेशको माग सम्वोधन नभए सम्म राजधानी नजाने उद्घोष गरेका महतोले प्रधानमन्त्री केपी शर्मा ओलीले मधेशको माग सम्वोधन गर्ने प्रतिबद्धता व्यक्त गर्दा उनलाई भेट्न दिल्लीबाट काठमाडौँ गएको प्रष्ट पारे । संचारकर्मीहरुको प्रश्नको जवावमा महतोले जनताको भावनको कदर गर्दै नाकाबन्दी खोलिएको स्पष्ट गरेका छन् ।
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